भारत की जल प्रबन्धन आवश्यकताओं से निपटने के लिये भारत यूरोपीय जल मंच

21 Dec 2015
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भारत में विभिन्न क्षेत्रों की बढ़ती हुई और प्रतिस्पर्धात्मक माँग के कारण दिन-प्रतिदिन जल प्रबन्धन कठिन होता जा रहा है। हालांकि आज़ादी के बाद से ही भारत ने जल संसाधनों के विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं, लेकिन- ‘हमारा प्रयास ज्यादातर परियोजनाओं पर केन्द्रित रहा है जिससे पारिस्थितिकीय और प्रदूषण सम्बन्धी पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया जा सका।

इसके फलस्वरूप जल का अत्यधिक प्रयोग हुआ, जल प्रदूषण फैला और विभिन्न क्षेत्रों के बीच अमर्यादित प्रतिस्पर्धा बढ़ी। इसलिये जल के समुचित आवंटन, माँग के प्रबन्धन और उसके उपयोग के लिये प्रभावकारी उपाय किया जाना बहुत जरूरी है।’

केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री प्रोफेसर सांवर लाल जाट ने नई दिल्ली में भारतीय यूरोपीय जल मंच की पहली बैठक का उद्घाटन करते हुए इसे स्वीकार किया।

भारत-यूरोपीय जल मंच की यह दो दिवसीय बैठक भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय और यूरोपीय संघ के पर्यावरण महानिदेशालय के तत्वावधान में हुई। इस बैठक में भारत में जल संसाधन से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों और यूरोपीय जल नीति के कार्यान्वयन से प्राप्त अनुभवों पर चर्चा हुई।

इसमें यूरोपीय संघ के पर्यावरण महानिदेशालय के महानिदेशक डेनियल कलेजा क्रस्पो समेत कई केन्द्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र विकास बैंक, एशियाई विकास बैंक, भारतीय उद्योग परिसंघ और जल संसाधन क्षेत्र के विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं।

यूरोपीय जल नीति का उल्लेख करते हुए प्रो. जाट ने कहा कि यह यूरोपीय संघ और भारत के बीच सहयोग की एक प्रमुख कड़ी हो सकती है। इस नीति में समुचित परिवर्तन करके इसे देश की जल संसाधन आवश्यकताओं के विकास के लिये लागू किया जा सकता है।

यूरोपीय संघ के सदस्य देशों द्वारा हासिल किये गए अनुभवों की मदद से देश में गंगा और अन्य प्रमुख नदियों के जल की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। जल की कमी से निपटना और जल प्रबन्धन के पारिस्थितिक पहलू, भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के कुछ और प्रमुख क्षेत्र हो सकते हैं।

बैठक के लिये भेजे गए अपने सन्देश में केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा कि उद्योग, कृषि, ऊर्जा और घरेलू उपयोग जैसे क्षेत्रों में जल की बढ़ती हुई खपत को देखते हुए नदी और जल प्रबन्धन एक बड़ी चुनौती बन गया है।

उन्होंने उम्मीद जताई कि देश के राष्ट्रीय जल ढाँचा विधेयक के मसौदे को लेकर यूरोपीय संघ के जल विशेषज्ञों द्वारा किया गया अध्ययन हमारे नीति-निर्माताओं के लिये बहुत उपयोगी साबित होगा।

बैठक के बारे में सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत की जल चुनौतियाँ जटिल हैं और इसमें मात्रा, आवंटन, गुणवत्ता तथा प्रबन्धन के मामले शामिल हैं। उद्योग, कृषि, ऊर्जा, घरेलू उपयोग और पर्यावरण के बीच जल के लिये बढ़ती प्रतिस्पर्धा से नदी बेसिन और सतत तरीके से बहुक्षेत्रीय आधार पर जल प्रबन्धन के महत्त्व को बढ़ा दिया है।

देश में वर्तमान में जल का सबसे अधिक उपयोग कृषि क्षेत्र में होता है हालांकि शहरी तथा अन्य क्षेत्रों की माँग इसे और बढ़ा देती है तथा देश की सिंचाई और व्याक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने में जल की उपलब्धता कम हो जाती है। इसलिये उचित आबंटन, माँग का प्रबन्धन और प्रभावी उपाय किये जाने की तुरन्त आवश्यकता है।

इन जटिल जल चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में नदी बेसिन प्रबन्धन और व्यापक जल प्रबन्धन पर केन्द्रित यूरोपीय जल नीति, यूरोप और भारत के बीच राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक व्यावहारिक मॉडल प्रस्तुत करती है।

यूरोपीय जल नीति उचित शासन संरचना स्थापित करने में यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों का समर्थन करती है, जिससे प्रदूषण प्रसार, जल के अति उपयोग, पारिस्थि‍तिकीय प्रभाव, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सहित जल संसाधन के दबावों और प्रभावों को समझा जा सकता है।

इसमें भूमि का उपयोग और ऊर्जा, उत्पादन, उद्योग, कृषि और पर्यटन, शहरी विकास तथा जन सांख्यिकीय परिवर्तनों जैसी आर्थिक गतिविधियों के प्रभाव शामिल हैं।

जल नीति कार्यान्वयन निर्धारित करने तथा राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने का यह मसौदा भारत के राज्यों में व्यापक जल संसाधन विकास और प्रबन्धन के लिये प्रेरणा स्रोत के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।

भारत-यूरोपीय जल मंच, नीति निर्माताओं के लिये एक मंच उपलब्ध कराएगा, जो भारत में जल संसाधन प्रबन्धन से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर हितधारकों की चर्चा के साथ ही यूरोपीय जल नीति के अनुभव तथा कार्यान्वयन से सीख लेने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

चर्चा के दौरान प्रमुख विषयों में जल शासन और कानून, नदी बेसिन प्रबन्धन, भारत और यूरोपीय संघ में जलनीति, जल की कमी से निपटना और जल प्रबन्धन तथा अनुसन्धान के पारिस्थितिकी पहलू, देश में सतत जल प्रबन्धन के उपाय करने में जल चुनौतियों के लिये नवाचार और व्यावसायिक समाधान शामिल होंगे।
 

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