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भारत की प्रमुख नदियां (India's major rivers in Hindi)

सर्वविदित है कि सभ्यता और संस्कृति का जन्म नदियों के तट पर ही हुआ है। चाहे वह सिन्धु घाटी की सभ्यता हो या नील घाटी की नदियों ने कहीं प्राणदायिनी बनकर मानवीय सभ्यता और संस्कृति का पोषण किया है तो कहीं पर विनाश की तांडव मुद्रा दिखाकर उसके अस्तित्व तक को समूल मिटा दिया है।

हिमपात के कारण जब किसी हिम क्षेत्र में हिम की राशि का आधिक्य बढ़ जाता है तो थोड़ा-सा दबाव बढ़ने पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से हिम ढलान की ओर अग्रसर होता है। इसी खिसकती हुई हिम राशि को हिमानी या हिम नदी कहा जाता है। प्रायः हिमानी में हिम पिघलने कि क्रिया सीधे सूर्य-ताप द्वारा अपनी गर्मी के संचालन से होती है, इसलिये खिसकती हिमधारा को पर्वतीय या घाटी हिम नदी या हिमानी कहते हैं, इसलिये खिसकती हिमनदी भी कहते हैं। ये पर्वतीय घाटियों में होकर जीभ की भांति आगे बढ़ती है। ये हिम नदियां “नेवे” के नीचे उतरने से बनती हैं और तुषार पात द्वारा उनका विस्तार होता जाता है।

दरअसल नदियां भू-पटल का व्यापक और विशिष्ट भौतिक रूप हैं। भूमि पर जितनी भी जलधाराएं प्रस्फुटित होती हैं वे सभी स्वतंत्र रूप से नदी बनकर नहीं बहती बल्कि वे किसी बड़ी नदी में समाहित हो जाती हैं।

घाटी की रचना करना प्रत्येक नदी का एक प्रमुख कार्य माना जाता है। धरातल पर जल का संतुलित बहाव ही नदी का ध्येय है। संसार का सागर तल ही सार्वभौमिक आधार तल है। प्रायः समस्त बड़ी नदियां समुद्र में ही गरिती हैं। यहां यह बतलाना आवश्यक है कि भूगर्भिक हलचलों के कारण पृथ्वी का भू-पटल ऊंचा-नीचा होता रहता है। ऐसी स्थिति में नदी के क्रम में उथल-पुथल आवश्यक है। फलस्वरूप नदी के प्रवाह प्रभावित होते रहते हैं।

हिमनदित क्षेत्रों में असंख्य झीलों की सृष्टि होती है और झीलें केवल नदियों को जन्म ही नहीं देतीं, वरन उनके प्रवाह को नियमित एवं स्थायी बनाने में भी योगदान करती हैं। भारत में अधिकांश नदियों का स्रोत हिमालय पर्वत से है। हिमालय के पांच खण्ड हैं- नेपाल, कूर्मांचल, (कुमाऊं), केदार (गढ़वाल), जालंधर (हिमाचल) और कश्मीर। कूर्मांचल, तीन जिलों का संयुक्त नाम है- नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़। पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान विष्णु का कूर्मावतार इन्हीं पर्वत श्रृंखलाओं पर हुआ था। कुमाऊं नदियों की दृष्टि से गौरवशाली क्षेत्र हैं। कुमाऊं क्षेत्र में सबसे बड़ी नदी है- काली नदी। प्रायः कुमाऊं की अन्य सभी नदियां इस नदी में समाहित होती हैं। दारमा क्षेत्र की धौली नदी के मिलमग्लेश्यिर से अद्भुत गौरी नदी, जौलजीवी (पितौरागढ़) नामक स्थान पर काली नदी से संगम बनाती है। यही नदी टनकपुर में शारदा और आगे फिर घाघरा, फिर सरयू कहलाती हुई गंगा में संगम बनाकर अपना अस्तित्व मिटा देती है।

कत्यूर क्षेत्र से गोमती नदी बागेश्वर में सरयू से संगम करती है और अल्मोडा़ जिले से आकर पनार नदी भी काकड़ीघाट में सरयू में समाहित होती है। काकड़ीघाट के पास ही पूर्वी राम गंगा नदी भी रामेश्वर नामक स्थान पर आकर मिलती है। पूर्वी दिशा में बहकर पंचेसर नामक स्थान पर यही सरयू भी काली नदी में आ मिलती है।

कत्यूरी शासन में कई मंदिर बनाए गये थे। जागेश्वर में तो लगभग 200 छोटे-बड़े मंदिर निर्मित हुए। आज इस घाटी में 24 महत्वपूर्ण मंदिर अच्छी हालत में है। मुख्य सड़क से जैसे ही घाटी की ओर मुड़ते हैं वैसे ही गधेरे नदी के इर्दगिर्द मंदिरों की झांकी दिखने लगती हैं। जागेश्वर एक जागृत तीर्थ है। इस तीर्थ में जय गंगा, अरावती, अलकनंदा और शूलगंगा नामक चार छोटी-छोटी गंगाओं का पानी एकत्र होता है। चार पहाड़ियों से निकली यह चार गंगाएं शिव-मंदिर की अर्चना करती जान पड़ती हैं। शिवरात्रि को यहां विशाल मेला लगता है। कहते हैं कि बारह शिवलिंगों में से एक शिवलिंग यहीं पर स्थित है। जागेश्वर में पर्यटकों के ठहरने के लिए वन विभाग का विश्रामगृह है। एक पुरानी अतिथिशाला भी है। खाने-पीने का प्रबंध हो जाता है। सर्वविदित है कि जागेश्वर का धार्मिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व है।

गढ़वाल के कर्ण प्रयाग में अलकनंदा से संगम करती पिंडर नदी जिसका उद्गम पिंडारी ग्लेशियर है तथा मेहल चौरी होकर मासी में बहती पश्चिमी रामगंगा जिसका उद्गम स्थल गढ़वाल का दूधतोली का पाद प्रदेश है। मिकिया सैंग में गंगास नदी पश्चिमी रामगंगा में मिलती है और मुरादाबाद में बहती हुई काली नदी में जा मिलती है। अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर के पास भटकोट नामक पर्वत से निकली कोसी नदी भी पश्चिमी रामगंगा में संगम बनाती है। चम्पावत तहसील (पिथौरागढ़) से निकली लधिया और लोहावती नदियां भी काली नदी में मिलती हैं।

नैनीताल जिले की मुख्य नदी गोला चौमसीपट्टी (अल्मोड़ा) के उत्तरी छोर से निकल कर भीमताल, सातताल, उलवाताल और नैनीताल की धारा को समेटती हुई हल्द्वानी होकर भावर में पहुंच जाती है। भावर में सिंचाई के लिए इस नदी का जलस्रोत पर्याप्त है। गोला नदी की दो धाराएं भावर में तथा तीसरी धारा पश्चिमी रामगंगा में मिलती है।

इसी तरह नंधौर या देवहा या गर्रा नदी भी सिंचाई के लिए उपयुक्त साधन है। दबका नदी भी भावर की प्यास बुझाकर पश्चिमी रामगंगा में मिलती है जो गतिया, घृणा और निहाल नामों से भी पुकारी जाती है। मकस, ढेला और फोका आदि भी भावर क्षेत्र की उपयोगी नदियों में हैं। वैसे ये स्पष्ट है कि नैनीताल में बहने वाली किसी भी नदी का उद्गम हिमालय पर्वत नहीं है। हिमालय की भारत स्थित नंदादेवी पर्वतमाला के पीछे गौरी, दारमा और कुटी नदी-घाटियों का विशाल भूभाग है। व्यास घाटी में काली नदी के दो स्रोत हैं। नंदा (कुंटी) नदी का नाम इसी घाटी में बसे कुटी गांव के नाम से पड़ा है। नंदा देवी पर्वतश्रेणी से जुड़े हुए पर्वत नंदा कोट की हिमानियों से पिंडर, सरयू और पूर्वी रामगंगा निकली है। पिंडर गढ़वाल की ओर बहती है तो सरयू तथा पूर्वी रामगंगा दोनों कुमाऊं की ओर बहती हैं। दानपुर के पश्चिमी भाग में सरयू और गोमती का संगम बागेश्वर में होता है। इस संगम पर बसा हुआ बागेश्वर समुद्र तल से 975 मीटर की ऊंचाई पर अल्मोड़ा से 90 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बैजनाथ से बागेश्वर की दूरी मात्र 20 कि.मी. है। उत्तरायण के दिन यहां पर मकर संक्रांति के पर्व पर हजारों यात्री संगम में स्नान करते हैं। गोमती की घाटी में गरुड़ नामक सुरम्य स्थल दर्शनीय है। चौगरर्वा परगने के पश्चिमी छोर पर बहकर अल्मोड़ा तक इस परगने की सीमा बनाने वाली सुआल नदी का भी महत्व है।

कुमाऊं के छखाता यानी साठ सालों के क्षेत्र में सबसे बड़ा आकर्षण का ताल नैनीताल है। यहीं से गोला नदी की उपधारा बल्लिया नदी का उद्गम होता है। बल्लिया नदी के अतिरिक्त और कई छोटी-छोटी नदियों का जाल बिछा हुआ हैं जिनका समायोजन गोला नदी में हो जाता है। अल्मोड़ा के पूर्व में विसौद और उच्यूर के भू-भाग में कौसिला (कौसी) नदी भी है। पाली पछाऊं के अंचल में वीनू नदी रामगंगा से बूढ़ी केदार में आकर संगम बनाती है। शारदा नामक एक नदी तल्लादेस के भावर के निकट बहती है। पाद प्रदेश से निकली वेणुनदी का संगम देघाट के पास रामगंगा में होता है। यहीं विनसर का विख्यात प्राचीन शिव मंदिर है। कार्तिक-पूर्णिमा को इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। दूधातोली घनघोर जंगल में स्थित इस मंदिर के प्रांगण में दूर-दराज के नर्तक व नृत्यांगनाएं नृत्य-गीतों का खूब प्रदर्शन करती हैं। प्रकृति प्रेमी सैलानी इस क्षेत्र में स्वच्छंद विचरण कर काफी आनंदित हो उठते हैं। उल्लेखनीय है कि हिमालय की जनसम्पदा के तीन भाग हैं:-

(1) सिन्धु नदी प्रदाय
(2) गंगा नदी प्रदाय
(3) ब्रह्मपुत्र नदी प्रदाय

(1) सिन्धु नदी प्रदाय
सिन्धु, घग्घर एवं अन्य शाखा नदियों से मिलकर सिन्धु नदी प्रदाय निर्मित होता है। सिन्धु नदी का उद्गम मानसरोवर के उत्तर में है जहां से यह कश्मीर से होती हुई उत्तर पश्चिम दिशा में बहती है। सिन्धु नदी समुदाय की शाखा नदियों में सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम आदि प्रमुख हैं। घग्घर नदी का उद्गम शिमला जिले से है। यह नदी कालका होती हुई हरियाणा तक पंजाब से गुजरती है और राजस्थान की रेत में जाकर इसका समापन हो जाता है।

(2) गंगा नदी प्रदाय
उत्तर प्रदेश के उत्तर काशी जिले के गंगोत्री ग्लेशियर से उद्गम होता है गंगा नदी का। उद्गम स्थल पर यह भागीरथी कहलाती है। गढ़वाल के देवप्रयाग में अलकनंदा आकर इसमें मिलती है, वहीं से इसे गंगा नाम से पुकारा जाता है।

इलाहाबाद से पूर्व रामगंगा नदी गंगा नदी में आकर मिलती है। राम गंगा गढ़वाल के चमोली जिले से निकलती है।

यमुना का उद्गम स्थल यमुनोत्री ग्लेशियर है। टांस और गिरि दो सहायक नदियां यमुना में मिलती हैं। स्वयं यमुना नदी इलाहाबाद में गंगा नदी में मिलकर विलीन हो जाती है।

महानदी का उद्गम दार्जिलिंग में है और यह पश्चिम बंगाल में गंगानदी में आकर मिलती है।

(3) ब्रह्मपुत्र नदी प्रदाय
तिब्बत ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थल है। यह अरुणाचल प्रदेश के गिरिपाद क्षेत्र के दक्षिण से होकर बहती है। लोहित एवं दिवंगा नदियां असम मे आकर ब्रह्मपुत्र में मिलती हैं।

हिमालय की नदियों के वार्षिक जलप्रवाह की जानकारी के लिए सारिणी देखें:-
से बिजली का उत्पादन 2935.105 किलोवाट होगा। हांलाकि टिहरी की बांध

नदी प्रदाय

जल की मात्रा

(मिलियन हैक्टेयर/मीटर में)

सिन्धु नदी प्रदाय

7.7 (62.4)

गंगा नदी प्रदाय

51.0 (413.4)

ब्रह्मपुत्र नदी प्रदाय

54.0 (437.8)



इस सारिणी में हिमालय क्षेत्र व मैदानों में कुल जल का विवरण है। इस विशाल जल राशि की उपलब्धि के कारण जो बांध परियोजनाएं प्रस्तावित हुई हैं उनसे मुख्यतः विद्युत का उत्पादन होगा तथा कृषि भूमि की सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध होगा।

1987 में गढ़वाल-कुमाऊं हिमालय क्षेत्र में प्रस्तावित 23 परियोजनाएं थीं। धौली गंगा बांध, तपोवन-हेलंग हाईस्कीम, हनुमानचट्टी बैराज, उत्यासू बांध, ऋषिकेश-हरिद्वार हाईडेलर स्कीम, कोटली भेल बांध, कोटेश्वरी बांध, टिहरी बांध, पाला बांध, लोहारी नाग बैराज, हरिसल बांध, मनेरी बांध, खोदारी पावर हाउस, डाक पत्थर बैराज, यासी बांध, छिब्रो पावर हाउस, दिशाओ बांध, इचारी बांध तथा राम गंगा बांध आदि। सम्भावना है कि विशाल टिहरी बांध के निर्माण के कारण टिहरी शहर जलमग्न हो जायेगा। टिहरी जिले के 32 गांवों को जल समाधि देना भी निश्चित है। इस 260.5 मीटर की ऊंचाई के बांध पर 600 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

टिहरी बांध की ऊंचाई भाखड़ा नांगल बांध की ऊंचाई से भी अधिक है। इस बांध परियोजना को पूरा करने में पहली कठिनाई तो यह है कि बांध के आस-पास की चट्टाने भुरभुरी (मुलायम) हैं और उन विशाल चट्टानों में काफी दरारें भी हैं। टिहरी बांध हिमालय में 853 फुट ऊंचा रहेगा जिसमें 45 वर्ग किलोमीटर की एक झील का भी निर्माण होगा।

चौखम्भा पर्वत श्रृंखला के अन्तर्गत ही बद्रीनाथ तीर्थ स्थित है। इसी पर्वत के उत्तर पूर्व का भाग सतोपंथ शिखर कहलाता है। यहीं स्थित सतोपंथ ताल से अलकनंदा निकलती है। इसी प्रकार केदारनाथ की तीन स्वर्गारोहिणी पर्वत श्रृंखलाओं के उत्तरी पनढाल से केदार गंगा निकलती है, जो गंगोत्री के सामने भागीरथी से मिलकर संगम बनाती है। दक्षिणी-पूर्वी ढाल के चोखाड़ी (अब गांछी) ताल से मंदाकिनी और वासुकी ताल से काली गंगा निकलती है जिसका संगम सोन प्रयाग से होता है। सोन प्रयाग के आगे मंदाकिनी कई गंगाओं को अपने में समेटकर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा से संगम करती है। इन्हीं स्वर्गारोहिणी पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य भृगुपंथ और महापंथ नामक तीर्थ हैं जहां देहत्याग कर मानव को स्वर्ग प्राप्ति होती है।

शिवलिंग पर्वत श्रृंखला के पश्चिमोत्तर में बंदरपूंछ पर्वत माला है जो 20,731 फुट ऊंचाई पर है जहां के हिमनद से यमुना निकलती है। बंदर पूंछ के बारे में कहा जाता है कि लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर हनुमान जी ने यहीं पर तपस्या की थी। अब भी कहा जाता है कि प्रति-वर्ष एक वानर की तपस्या यहां दृष्टव्य है। जोशी मठ से बदरीनाथ की ओर आगे अलकनंदा और धौली के संगम-स्थल को विष्णु प्रयाग कहते हैं। दोनों नदियां यहां बड़े वेग से आकर मिलती हैं। मंदगति से अंधेरे मोड़ों को काटते हुए गोविंदघाट पहुंचने पर लक्ष्मण प्रपात दृष्टव्य है। यहीं सिखों का गुरुद्वारा भी है। विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी भिन्न-भिन्न प्रकार के 2,000 फूलों की किस्मों से सुशोभित है। सितम्बर-अक्टूबर में यहां का नैसर्गिक सौंदर्य स्वर्ग की कल्पना को साकार करता है।

अन्य स्रोतों से:

 



 

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बाहरी कड़ियाँ:

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):

संदर्भ:

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