भारत में किसान आत्महत्याओं का सच


आँकड़ों की बाजीगरी से किसानों की आत्महत्याओं के दुखद पहलू को छुपाया नहीं जा सकता। आँकड़ों का विश्लेषण और वर्गीकरण हमारे सामने जो तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है वह वास्तव में भयावह है। आवश्यकता इन आँकड़ों के आधार पर ऐसी नीति बनाने की है जिससे कि आत्महत्याओं पर सर्वथा रोक लग सके।

आत्महत्या अंतिम कदम है। मनुष्य इसे तब उठाता है, जब वह अपने आपको अकेला और असहाय महसूस करता है तथा जिसे हर तरफ केवल प्रताड़ना ही सहन करनी पड़ती है और सहायता के बदले में उपेक्षा व तिरस्कार ही मिलता है। किसान आत्महत्याओं के मूल में मुख्यतः गरीबी और उससे उपजा तनाव है।

भारत में आत्महत्याएँ एक गम्भीर चिन्ता का विषय बन गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2014 में कुल 1,31,666 आत्महत्याएँ हुई हैं। गत दस साल में एक लाख लोगों में 11 की दर से प्रतिवर्ष आत्महत्याएँ हो रही हैं। इस प्रकार देश में प्रतिदिन 361 यानी हर घंटे 15 आत्महत्याएँ हो रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार इसके प्रमुख कारणों में पारिवारिक समस्याएँ, बीमारी, दिवालियापन या ऋणग्रस्तता, परीक्षा में विफलता, विवाह से सम्बन्धित मुद्दे, नशीली दवाओं का सेवन, प्रेम प्रकरण, सामाजिक प्रतिष्ठा में गिरावट, दरिद्रता, बेरोजगारी, संपत्ति विवाद, अज्ञात कारण और तमाम अन्य कारण शामिल हैं।

वर्ष 2014 की रिपोर्ट में आत्महत्या करने वालों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के आधार पर विभाजित किया गया है। आर्थिक स्थिति के बारे में दी जानकारी के अनुसार कुल 1,33,666 आत्महत्याओं में से 91,820 (69.7 प्रतिशत) की आय 1 लाख से कम और 35,405 (26.7 प्रतिशत) की आय 1 से 5 लाख के बीच रही है। मात्र 785 (0.6 प्रतिशत) 10 लाख से ज्यादा आय वाले हैं। शैक्षिक स्थिति के अनुसार आकलन करें तो आत्महत्या करने वालों में से 85 प्रतिशत बारहवीं से कम पढ़े थे। उसमें से भी 74 प्रतिशत दसवीं से कम पढ़े हैं, आठवीं से कम पढ़े लिखों की संख्या 53.5 प्रतिशत और 4.2 प्रतिशत उच्च शिक्षित हैं। पेशा आधारित आत्महत्या में देश के कुल आत्महत्याओं में 8.1 प्रतिशत पेशेवर वेतनभोगी व पेन्शनर लोगों की हैं। बाकी सभी आत्महत्याएँ किसान, खेतीहर मजदूर, गृहिणी, विद्यार्थी, बेरोजगार, स्वरोजगार, दैनिक मजदूर व अन्य की हैं।

शहरों और गाँवों में हो रही आत्महत्याएँ गरीबी, अशिक्षा और असुरक्षित रोजगार से गहरा रिश्ता दर्शाती हैं। यह स्पष्ट होता है कि, अधिकांश गरीबी से उपजे कारणों से हो रही हैं। इससे व्यवस्था का क्रूर, हिंसक और विकराल रुप उजागर होता है और देश की विकास नीति का पर्दाफाश भी होता है। आत्महत्याएँ मुख्यतः भेदभाव पूर्ण, अन्यायकारी नीतियों और आर्थिक विषमता पर आधारित समाज व्यवस्था का परिणाम हैं।

एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट में गाँव और नगरों में हुई आत्महत्याओं को स्वतंत्र रूप से नहीं दर्शाया गया है। साथ ही किसान परिवार में हुई आत्महत्याओं का भी अलग से उल्लेख नहीं किया है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 68.8 प्रतिशत जनता ग्रामीण भारत में बसती है और इसमें अधिकांश लोग खेती या खेती आधारित रोजगार पर निर्भर हैं। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि, 1,31,666 में से 68.8 प्रतिशत अर्थात 90,586 आत्महत्याएँ ग्रामीण भारत में और 41,080 आत्महत्याएँ नगरों में हो रही हैं। इस तरह ग्रामीण भारत में प्रतिदिन 248 यानी प्रति घण्टा 10 आत्महत्याएँ हो रही हैं।

यदि एक व्यक्ति भी आत्महत्या करता है तो वह भी चिन्ता का विषय है। परन्तु हर साल लगातार हजारों किसानों की आत्महत्याएँ सरकार के लिये चिन्ता का विषय नहीं है। सरकारें किसानों की आत्महत्याओं का सच जानबूझकर छुपाती हैं और इसके लिये वह नये-नये तरीके ढूँढ़ती हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सन 2014 में 12360 किसानों ने आत्महत्या की है। सदोष व्याख्या करके किसान आत्महत्या को कम दिखाने का प्रयास किया जाता है। कई राज्यों में किसान आत्महत्या को अन्य में वर्गीकृत भी किया जाता है।

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को सितंबर 2014 में एक मामले में (याचिका क्र.- डब्लू.पी. (सी) संख्या 134 ऑफ 2013) दिये जवाब में कहा गया है कि, देश में हो रही कुल आत्महत्याओं में किसान आत्महत्या का प्रतिशत केवल 8.73 प्रतिशत है। चूँकि किसानों की आबादी की तुलना में किसानों द्वारा आत्महत्याओं की यह संख्या बहुत कम है इसलिये यह चिन्ता का विषय नहीं है। लोकसभा में आठ जुलाई, 2014 को पूछे गये अतारांकीत प्रश्न क्र. 81 के जवाब में भारत के कृषिमंत्री ने किसानों के आत्महत्या के कारणों में प्रेम प्रकरण और नपुंसकता को एक कारण बताने में शर्म महसूस नहीं की। यह नीतिनिर्धारकों का संवेदना शून्य और किसान विरोधी होने का स्पष्ट प्रमाण है।

भारत सरकार द्वारा हर साल एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट पेश की जाती है। उसमें देश में की गयी आत्महत्याओं की संख्या पुलिस थाने में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर दी जाती है। परंतु भारत की पुलिस और महसूल विभाग के कर्मचारी आत्महत्या के कारणों के सही सामाजिक विश्लेषण के आधार पर उन्हें वर्गीकृत करने में सक्षम नहीं हैं। आमतौर पर जिसके नाम पर खेती और कर्ज है, ऐसी आत्महत्या को ही किसान आत्महत्या माना जाता है।

किसान की आर्थिक स्थिति पूरे परिवार को प्रभावित करती है। खेती पूरे किसान परिवार के जीवन का आधार है। इसलिये किसान के साथ के साथ किसान परिवार में हो रही आत्महत्या की भी गिनती की जानी चाहिये। हजारों किसान परिवारों में हुई आत्महत्याएँ खेती किसानी के संकट से उपजे कारणों से हो रही हैं।

आत्महत्याओं के विश्लेषण करने से यह स्पष्ट होता है कि, देश में किसान परिवार में हो रही आत्महत्याएँ घोषित आत्महत्याओं से कई गुना अधिक है। इससे इनका भयंकर सच सामने आता है। स्थिति मूल्यांकन सर्वेक्षण 2013 के अनुसार ग्रामीण भारत के कुल 15.61 करोड़ परिवारों में 9.02 करोड़ (57.8 प्रतिशत) किसान परिवार हैं। इनमें से 8.65 करोड़ (95.90 प्रतिशत) किसान परिवार एक लाख रुपयों से कम वार्षिक आय प्राप्त करते हैं। 52 प्रतिशत किसान परिवार ऋणग्रस्त है। प्रति किसान परिवार पर औसत 47000 रुपये का ऋण है। 36 प्रतिशत किसान परिवारों के पास बी.पी.एल. कार्ड और 5 प्रतिशत किसान परिवारों के पास अंत्योदय कार्ड हैं। सर्वेक्षण की अवधि के दौरान देश में लगभग 44 प्रतिशत कृषि परिवारों के पास मनरेगा जॉब कार्ड था। यानी बहुतांश किसान गरीबी का जीवन जी रहे हैं।

उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर कुल ग्रामीण आत्महत्याओं में 70 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएँ किसान परिवार में हो रही हैं। यह भी कहा जा सकता है कि, कुल 90,586 ग्रामीण आत्महत्याओं में से 70 प्रतिशत यानी 63410 आत्महत्याएँ किसान परिवार में हो रही हैं। इस प्रकार ग्रामीण भारत के किसान परिवारों में प्रतिदिन 174 और एक घंटे में 7 आत्महत्याएँ हो रही हैं। यह परिस्थिति किसी एक प्रदेश तक सीमित नहीं बल्कि अब पूरे देश में है।

शहरों में बसी ग्रामीण आबादी, गाँव की बदहाल स्थिति, कृषि पर हमला और गाँव के रोजगार छीने जाने का परिणाम है। आत्महत्या करने वाले लोगों में यदि गाँव से शहरों में विस्थापित पीड़ितों की संख्या जोड़ी जाए तो किसान परिवार में हो रही आत्महत्याओं की संख्या और भी अधिक बढ़ेगी। किसान आत्महत्या का सच छुपाने के बजाए देश के सामने रखना सरकार की जिम्मेदारी है और इन्हें रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना चाहिए।

श्री विवेकानंद माथने आजादी बचाओ आंदोलन एवं किसान स्वराज आंदोलन से संबद्ध हैं।

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