भारत में क्यों बढ़ रही हैं भूस्खलन की घटनाएं

आपदा प्रबंधन पर हम चर्चा तो करते हैं किंतु कोई ठोस कदम नहीं उठा पाते। यदि हम उठाते भी हैं तो झटके से, एवं फिर उन्हें अगली आपदा के आने तक भुला दिया जाता है। जब दुबारा प्राकृतिक आपदा का सामना होता है तो सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह जाती हैं। विश्व की जलवायु बदल रही है। पृथ्वी गर्म हो रही है। इसका असर विश्व के साथ-साथ भारत पर भी अपना प्रभाव दिखा रहा है। वर्षा अनियमित हो रही है एवं उसका घनत्व बढ़ रहा है जो आने वाले वर्षों में अनेक प्रकार की आपदाओं के आगमन का अशुभ संकेत दे रहा है। भारत प्राकृतिक तथा भौगोलिक विविधता वाला देश है। अतः आपदा प्रबंधन निश्चय ही एक महत्वपूर्ण चुनौती है। 2013 में उत्तराखंड में भारी बारिश तथा भूस्खलन इस वर्ष पुणे के पास भूस्खलन, नेपाल में भूस्खलन इत्यादि। इधर कुछ वर्षों से लगातार भारत और आसपास के इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं जिनमें जान माल का काफी नुकसान हुआ है। आखिर क्यों बढ़ रही है भूस्खलन की घटनाएं?

भारत के दो क्षेत्र पश्चिमी घाट तथा हिमालय के क्षेत्र इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। कारण है पर्वतीय क्षेत्र तथा अत्यधिक बारिश का होना। भारत का करीब 15 प्रतिशत भाग भूस्खलन से प्रभावित है। हिमालय तथा पूर्वी भारत में अधिक वर्षा के साथ-साथ ये क्षेत्र भूकंप प्रभावित भी हैं।

भू-कंपन की वजह से भी यहां भूस्खलन होता है जैसे 2011 में सिक्किम में भूकंप आने के बाद भूस्खलन हुआ था। कुछ छिटपुट भूस्खलन की घटना पूर्वी घाट, नीलगिरि पर्वत, विंध्य पठार, रांची इत्यादि में भी हुआ था। पश्चिमी घाट में भूस्खलन का मुख्य कारण है पहाड़ों का तीव्र ढलान, पहाड़ों का अपरदन, पहाड़ों में विस्फोट करना, इत्यादि।

भारत के कई पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्र अत्यधिक प्राचीन हैं जो कि अब धीरे-धीरे अपरदित हो रहे हैं तथा मिट्टी में परिवर्तित हो रहे हैं जिनकी वजह से ये भूस्खलन के लिए काफी संवेदनशील हो गए हैं। जरा-सी तेज बारिश या भूकंप यहां काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। भूस्खलन एक भूवैज्ञानिक घटना है। धरातली हलचलों जैसे-पत्थर खिसकना या गिरना, पथरीली मिट्टी का बहाव इत्यादि इसके अंतर्गत आते हैं।

भूस्खलन कई प्रकार के हो सकते हैं और इसमें चट्टान के छोटे-छोटे पत्थरों के गिरने से लेकर बहुत अधिक मात्रा में चट्टान के टुकड़े और मिट्टी का बहाव शामिल हो सकता है तथा इसका विस्तार कई किलोमीटर की दूरी तक हो सकता है। भारी वर्षा तथा बाढ़ या भूकंप के आने से भूस्खलन हो सकता है। मानव गतिविधियों, जैसे कि पेड़ों और वनस्पति के हटाने, सड़क किनारे खड़ी चट्टान के काटने या पानी के पाइपों में रिसाव से भी भू-स्खलन हो सकता है।

नदियों की तलहटी में बढ़ती मिट्टी से बढ़ा खतरा


भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ आदि निश्चित रूप से प्राकृतिक आपदाएं हैं। इन पर काबू पाना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन इन्हें कम जरूर किया जा सकता है। भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं तो इसके पीछे वाजिब कारण भी हैं। उत्तराखंड की त्रासदी के बाद यह एक तरह से स्थापित सत्य मान लिया गया था कि यह आपदा प्राकृतिक से कहीं ज्यादा मानव निर्मित थी।

अंध विकास के नाम पर बिना किसी ठोस वैज्ञानिक सोच के नदियों पर बांध बनाना, पहाड़ों पर से पेड़ों और अन्य वनस्पतियों को लगातार काटते जाना, जैव विविधता का खत्म होते जाना, आबादी का विस्तार और अनियंत्रित निर्माण आदि की वजह से पारिस्थितिकी को बहुत नुकसान पहुंच रहा है। जब पहाड़ों पर प्राकृतिक पेड़ और वनस्पतियां ही नहीं बचेंगी और पत्थरों को तोड़कर अन्य कार्यों में उपयोग किया जाता रहेगा तो पहाड़ों का आधार कमजोर होता जाएगा।

मालिण गांव में भूस्खलनऐसे में उनके धसकने का खतरा तो बढ़ता ही जाएगा। पहाड़ों में बरसात का पानी सोखने की क्षमता खत्म होती जाएगी और भूस्खलन बढ़ने लगेगा। भूस्खलन होगा तो पानी के साथ बहकर मिट्टी नदियों में जाएगी। तब नदियों में बाढ़ का खतरा बढ़ता जाएगा क्योंकि तलहटी में मिट्टी बढ़ती जाएगी। मालिण में इसी सब का खामियाजा वहां के लोगों को भुगतने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

लेखक भूवैज्ञानिक हैं।

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