भारत में पॉली हाउस कृषि : उत्पादन एवं उपयोगिता (Essay on Polyhouse farming information in Hindi)


सारांश -


भारत एक कृषि प्रधान देश है। 50 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या के लिये कृषि जीविकोपार्जन का स्रोत है। जैसे-जैसे औद्योगीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कृषि उत्पादन तकनीकियों के विकास की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। ग्रीन हाउस कृषि श्रेष्ठ आधुनिक कृषि तकनीक के रूप में आई है। जिसके प्रयोग से उन जगहों पर भी फसलों का उत्पादन संभव हुआ जहाँ पहले संभव न था। ग्रीन हाउस कृषि से फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ी है।

Abstract - India being an agriculture based country and more than 50% of population involved in agriculture for their livelihood. With increase in industrialization need of development in production technologies has also increased. Green house farming has emerged one of the best modern agricultural techniques to grow the copt in more areas, where it was not possible earlier. Green house farming has increased quality and production of crops.

किसी भी जैविक क्रिया के लिये उचित पर्यावरण की आवश्यकता होती है। अगर पर्यावरण उचित नहीं है तो जैविक क्रिया कम दर से बढ़ेगी या पूरी तरह से रुक जायेगी। पादप या प्राणि जीवन भी इसी सिद्धान्त से नियंत्रित है। कृषि में फसलों के लिये उचित पर्यावरण प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है जिसके फलस्वरूप उत्पादकता की उच्चतम सीमा प्राप्त हो सके। इसके लिये फसलों की उचित मौसम में बुआई करते हैं, सिंचाई और खाद का प्रबन्ध करते हैं। खरपतवार एवं बीमारियों को नियंत्रित करते हैं, तथा उचित समय पर फसल चक्र पूर्ण करते हैं। ऐसे में भी प्राकृतिक विपदाएँ जैसे अतिवृष्टि या अनावृष्टि, ओलावृष्टि, कीट-प्रकोप, आदि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव बनाये रखती हैं। परिणामस्वरूप खुले खेतों में परम्परागत खेती से कभी-कभी ही अधिकतम उत्पादकता प्राप्त हो पाती है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जा रही है और कृषि योग्य भूमि का आकार घटता जा रहा है, वैसे-वैसे कृषि उत्पादन की क्षमता बढ़ाना आवश्यक हो गया है, फिर इस बात की भी आवश्यकता है कि नागरिकों को उचित पोषण प्राप्त हो और उत्पादक को कम भूमि से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो। फसलोत्पादन के लिये आवश्यक संसाधनों को एक निश्चित सीमा से अधिक बढ़ाना सम्भव नहीं है।

ऐसे में कम से कम संसाधनों से अधिक से अधिक उत्पादन क्षमता का विकास आवश्यक हो गया है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या के लिये कृषि जी जीविकोपार्जन का स्रोत है। जैसे-जैसे औद्योगिकीकरण बढ़ रहा है और ग्रामीण युवक शिक्षित हो रहा है, वैसे-वैसे कृषि उत्पादन तकनीकियों के विकास की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। ऐसा न होने पर आशंका है कि आने वाले समय में कृषि उत्पादन के लिये समुचित मानव संसाधन जुटाना मुश्किल होगा। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों एवं पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों में हो रहे युवा पलायन को रोकना अति आवश्यक है। इन सभी परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में ग्रीन हाउस तकनीकी का विकास भारत वर्ष के किसानों के लिये बहुत ही आवश्यक हो गया है। ग्रीन हाउस काँच से ढका इस्पात, एल्यूमीनियम या बांस का बनाया जा सकता है। निर्माण सामग्री चयन फसल और स्थान विशेष के अनुसार किया जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि ग्रीन हाउस कृषि के उपयोग से उत्पादक को समुचित लाभ हो।

ग्रीन हाउस की उपयोगिता - भारत वर्ष में ग्रीनहाउस की उपयोगिता निम्नलिखित है।

1. जिन क्षेत्रों में परम्परागत खेती नहीं की जा सकती, उन परिस्थितियों में फसलोत्पादन की संभावना बन जाती है।
2. फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ जाती है।
3. किसी भी स्थान पर वर्ष पर्यन्त फसलोत्पादन संभव है।
4. किसी भी फसल को किसी भी स्थान पर वर्ष पर्यन्त उत्पादित किया जा सकता है।
5. बहुत कम क्षेत्र में फसलोत्पादन करके पर्याप्त जीविकोपार्जन संभव है।

ग्रीन हाउस तकनीक का विकास - ग्रीन हाउस तकनीकी का प्राथमिक विकास विश्व के ठंडे क्षेत्रों में लगभग दो शताब्दी पूर्व हुआ था। उन क्षेत्रों में अत्यधिक ठंड के कारण खुले खेतों में फसलोत्पादन कुछ महीनों के लिये संभव है। वहाँ सब्जियों, फलों और फूलों के उत्पादन को वर्ष पर्यन्त संभव बनाने के लिये काँच के घरों का उपयोग शुरू हुआ। ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ के कारण ठंडे मौसम में सूर्य के प्रकाश में इन कांच के घरों में तापमान बढ़कर फसलोचित हो जाता है और फसलों से संबंधित जैविक क्रियाएँ तेज गति से सम्पन्न होती हैं। इन कांच घरों में आवश्यकता अनुसार तापमान, आर्द्रता, प्रकाश, सिंचाई, पोषण, कार्बन डाइऑक्साइड गैस आदि के नियंत्रण का विकास होता गया और आज ग्रीन हाउस तकनीकी का स्वरूप अत्याधुनिक हो गया है। अब कई हेक्टेयर क्षेत्रफल में बने ग्रीनहाउस में फसलोत्पादन संबंधी क्रियाओं को कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित उपकरणों की सहायता से सम्पन्न कर, उत्पादकता की चरम सीमाओं की प्राप्ति संभव हो गई है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में वार्षिक 700 टन खीरा उत्पादन और 350 टन टमाटर उत्पादन संभव हुआ है। ग्रीन हाउस तकनीकी की उपयोगिता के कारण इसका प्रचलन अब विश्व के प्रत्येक भाग में हो रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद प्लास्टिक पदार्थ के विकास के फलस्वरूप ग्रीनहाउस तकनीकी में मूलभूत परिवर्तन हुआ है। अब विश्व में लगभग 90 प्रतिशत नये ग्रीनहाउस आवरण के लिये प्लास्टिक की पारदर्शी चादरों का उपयोग होता है।

ग्रीन हाउस प्रभाव - ग्रीन हाउस प्रभाव पारदर्शी की सूर्य के प्रकाश से संबंधित गुणता पर आधारित है। प्रारम्भ में इस प्रभाव को कांच की गुणता से जोड़ा गया था। अब यह विदित है कि प्रत्येक पारदर्शी पदार्थ किसी न किसी सीमा तक ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करने में सक्षम है। यह वही प्रभाव है, जिसके कारण बंद घर में जाड़े के मौसम में कांच की खिड़की से आते हुए सूर्य के प्रकाश में बैठना अच्छा लगता है अथवा सर्दी की ऋतु में भी सूर्य के प्रकाश में बंद खिड़की वाली कार में तापमान का बढ़ जाना इसी ग्रीनहाउस प्रभाव का उदाहरण है। कांच या दूसरे पारदर्शी पदार्थ ऊष्मीय विकिरण के विभिन्न भागों के लिये अलग-अलग पारगमनांक दर्शित करते हैं। कांच की गुणता है कि यह सौर ऊर्जा के लगभग 80 प्रतिशत भाग को कांच घर में स्थित उपकरणों एवं सतहों के तापमान को बढ़ाती है। बढे हुए तापमान पर यह उपकरण और सतह ऊष्मीय विकिरण उत्पन्न करते हैं। जो सुदूर लाल श्रेणी के विकिरण का कांच बाहर नहीं जाने देता और इस प्रकार कांच में सौर ऊर्जा एकत्रित हो जाती है, जिससे तापमान भी बढ़ता है। यही प्रभाव प्लास्टिक की पारदर्शी चादरों वाले ग्रीन हाउस में भी पाया जाता है। फलस्वरूप बिना किसी कृत्रिम ऊर्जा के ग्रीनहाउस प्राकृतिक सौर ऊर्जा द्वारा तापमान बढ़ जाता है। यह ग्रीनहाउस प्रभाव शीतकाल में बेहतर फसल उत्पादकता के लिये उपयोगी है। ग्रीनहाउस की परिभाषा और उपयोगिता अब अधिक विस्तृत है। अब ग्रीनहाउस को संरक्षित खेती का पर्याय माना जाता है। जिसमें आवश्यकता अनुसार पर्यावरण नियंत्रण का वांछित कृषि कार्य किया जा सके।

ग्रीन हाउस तकनीकी द्वारा उगाई गई सब्जियाँ - जैसा कि उपरोक्त जानकारी से विदित है, ग्रीनहाउस का स्वरूप एवं इसकी कार्य प्रणाली का संबंध स्थान और अभीष्ट कृषि कार्यों से है। भारतवर्ष में मौसम और फसलों की बहुत विविधताएँ हैं। अतः यह सम्भव नही है कि ग्रीनहाउस की कोई एक परिकल्पना सभी स्थितियों के लिये पर्याप्त होगी। हाँ कुछ सामान्य विचार हैं जिनको ध्यान में रखना लाभदायक है।

फसलों का चुनाव - आकार को ध्यान में रखते हुए आमतौर पर छोटे और कम आयतन के पौधों के लिये ग्रीनहाउस उपयुक्त है। बौनी प्रजाति के फल भी ग्रीनहाउस में उगाये जा सकते हैं। निम्नलिखित तालिका में उल्लिखित फसलों को ग्रीनहाउस में उगाया गया है। फसल का चुनाव ग्रीनहाउस की क्षमता, उत्पादकत के अनुभव एवं बिक्री संबंधी कारकों के आधार पर होता है। फसलों की विस्तृत जानकारी तालिका-1 में दी गयी है।

 

तालिका-1
ग्रीन हाउस मे उगाये जाने वाले फल, फूल एवं सब्जियाँ

सब्जियाँ

फूल

फल

टमाटर

गुलाब

स्ट्राबेरी

शिमला मिर्च

गुलदाउदी

अंगूर

खीरा

आर्किड्स

सिट्रस

पत्तागोभी

फॅर्न

आलू बुखरा

फूलगोभी

कारनेशन

आडू

ब्रोकोली

फ्रेशिया

केला

हरी प्याज

एन्थोरियम

पपीता

सेम

ग्लेडिओलस

खुमानी

मटर

लिली      

 

चुकन्दर

टूयूलिप

 

मिर्च

डेजी

 

स्कैवश

वैक्सफ्लावर

 

भिंडी

रसकस

 

शलगम

गनीगोजैन्घास

 

मूली

एल्सट्रोनेटिया

 

गाजर

जरबेरा

 

अदरक

बिगोनिया

 

मिर्च

डेजी

 

 

स्थापना सम्बन्धी आयाम - ग्रीन हाउस तकनीक की सब्जियों का विकास ठंडे प्रदेशों में शुरू हुआ। अधिकतर ग्रीनहाउस अब पॉलीथीन या पी.वी.सी. की पराबैगनी स्थिरीकृत पत्तियों के आवरण तथा इस्पात, एल्यूमीनियम, लकड़ी या बांस के ढांचे से बनते हैं। भारत में विलुप्त प्राय वनों की स्थिति के कारण ढांचों के लिये लकड़ी का प्रयोग वांछनीय नहीं है लेकिन स्थित विशेष में लकड़ी और बांस का उपयोग वर्जित नहीं है। उदाहरण के लिये देश में पूर्वाेत्तर राज्यों में ऊँची गुणवत्ता के बांस आसानी से और कम कीमत पर उपलब्ध हैं। इन स्थानों पर बांस का उपयोग ग्रीनहाउस के ढांचे के निर्माण में किया जा सकता है। एल्यूमीनियम में जंग नहीं लगती एवं इसके उपयोग से ढांचे का भार कम किया जा सकता है। लेकिन भारतवर्ष में अभी ग्रीनहाउस के ढांचे में उपयुक्त एल्यूमीनियम मिश्रित धातु के हिस्से उपलब्ध नहीं हैं। अतः इस्पात का उपयोग अधिकतम है। जंग लगने को कम करने के लिये इस्पात को जस्तीकृत करना ठीक है। लकड़ी और बांस के ढांचे प्रायः 5-7 वर्ष तक आयु वाले होते हैं, जबकि धातु के ढांचे की आयु 20-25 वर्ष होती है। भारत वर्ष में विद्युत महँगा है और हर समय उपलब्ध नहीं है। अतः नियंत्रित पर्यावरण वाले ग्रीनहाउस का प्रचलन कठिन ही नहीं अपितु महँगा हो जाता है। या तो अनवरत विद्युत प्राप्ति के लिये जेनरेटर की स्थापना आवश्यक है या ग्रीनहाउस परिकल्पना प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित होनी चाहिए। ग्रीनहाउस की स्थापना ऐसे स्थान पर हो जहाँ वर्षा का पानी इकट्ठा न होता हो, जो सड़क के नजदीक हो, जहाँ समुचित धूप, अच्छा पानी और समुचित ऊर्जा उपलब्ध हो। भारतवर्ष में अधिकतर स्थानों पर ग्रीनहाउस पर समुचित सौर ऊर्जा का समावेश दिशामान पर निर्भर नहीं करता है लेकिन बहुविस्तरीय ग्रीनहाउस में परनाले की दिशा आमतौर पर उत्तर-दक्षिण होनी चाहिए। ग्रीनहाउस की परिकल्पना पर वायु वेग का प्रभाव बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। ग्रीनहाउस से लगभग 30 मीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में आंधी के प्रकोप को कम करने के लिये ऊँचे वृक्षों की कतार लगाना उपयोगी है। ग्रीनहाउस में पौधों की सिंचाई ‘बूँद-सिंचाई विधि’ (ड्रिप) द्वारा की जाती है। उचित उत्पादकता और लाभ के लिये ग्रीनहाउस का सफल प्रबंधन अति आवश्यक होता है। इस प्रबंधन में न सिर्फ फसलों का उत्पादन अपितु कटाई के उपरान्त समुचित उपचार एवं उत्पाद की बिक्री भी सम्मिलित है। उत्पाद की उचित बिक्री के अभाव में ग्रीन हाउस से लाभ बहुत कम हो सकता है।

ग्रीन हाउस फसलोत्पादन - ग्रीन हाउस तकनीक की सब्जियों के लिये कांच का घर होता है। ग्रीन हाउस की स्थापना तथा उसमें वातावरण अनुकूल के लिये धन खर्च होता है। इसलिये ग्रीन हाउस में उगाई गई फसल तभी लाभदायक हो सकती है, जबकि उससे अपेक्षाकृत अधिक कीमत प्राप्त हो सके। सामान्य रूप से ग्रीन हाउस में उत्पादित सब्जियों में ये मुख्य हैं- टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, सलाद, हरी प्याज, बंदगोभी, सेम, मटर पालक, बैंगन, भिंडी, कद्दू मूली आदि। फूलों में गुलाब कार्नेशन, जरबेरा, गुलदाउदी, बिगोनिया आदि मुख्य हैं। अच्छी गुणवत्ता युक्त स्ट्राबेरी भी ग्रीनहाउस में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। इनके अलावा तम्बाकू तथा औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ-साथ पौध उत्पादन के लिये भी ग्रीनहाउस का उपयोग सफलतार्वूक किया जा रहा है। विभिन्न फसलों की उपज का ब्यौरा तालिका-2 में दर्शाया गया है।

 

तालिका - 2

भारतवर्ष में ग्रीनहाउस में उत्पादित कुछ फसलों की उपज

सब्जी

उपज (टन/हे.)

फूल

उपज (लाख/हे.)

टमाटर

140

गुलाब

15-20

शिमला मिर्च

90

गुलदाउदी

24-40

खीरा

180

जरबेरा

15-25

ब्रोकोली

15

कारनेशन

20-25

चप्पन कद्दू

35         

 

 

 

ग्रीन हाउस के अन्दर फसलोत्पादन में खासकर सब्जी उत्पादन में प्रजाति या चयन एक महत्त्वपूर्ण कारक है, इसलिये ग्रीनहाउस में अच्छी गुणवत्ता वाले अधिक उपज देने वाली संकर प्रजातियों का ही उपयोग करना चाहिए। सिंचाई के लिये बूँद-बूँद सिंचाई विधि का प्रयोग लाभप्रद होता है। ग्रीनहाउस के अन्दर सफाई अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि पुरानी पत्तियों आदि को न निकालने से रोग आक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। खीरा व टमाटर जैसी फसलों में प्रूनिंग व ट्रेनिंग की भी आवश्यकता होती है। वैसे तो अवांछित वृद्धि व पुरानी पत्तियों को निकालने के लिये प्रत्येक फसल में प्रूनिंग की आवश्यकता पड़ती है। वैसे तो अवांछित वृद्धि व पुरानी पत्तियों को निकालने के लिये प्रत्येक फसल में प्रूनिंग की आवश्यकता पड़ती है। ट्रिमिंग की भी विभिन्न पद्धतियों का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन वर्टिकल ट्रिमिंग विधि ज्यादा उपयोगी है। खासकर टमाटर, खीरा आदि जैसी फसलों के लिये। प्रूनिंग व ट्रिमिंग की वजह से संवातन रहता है और कीट-व्याधि का प्रकोप भी कम होता है। कीट-व्याधि नियंत्रण के लिये समय पर कीटनाशक व फफूंदीनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए। ग्रीनहाउस के अंदर एकलिंगाश्रयी पौधों के लिये पर-परागण की आवश्यकता पड़ती है। यह कार्य हाथ से किया जाता है। परागण के लिये मादा फूल के ऊपर नर फूल के परागण को छोड़ देते हैं, इससे फल प्रतिशत भी बढ़ जाता है। यह कार्य प्रातः 8-10 बजे तक किया जाता है।

ग्रीन हाउस का रख-रखाव - ग्रीन हाउस के रखरखाव के लिये निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

1. ग्रीनहाउस आवरण की सफाई नियमित अन्तराल पर करते हैं। धूल आदि के कणों द्वारा प्रकाश की पारगम्यता कम हो जाती है, खासकर पॉली ग्रीनहाउस में। इसलिये इनकी समय-समय पर धुलाई आवश्यक है।
2. पॉलीथीन आवरण को 3 साल के अन्तराल पर बदल देना चाहिए।
3. आवरण अगर कहीं फट गया हो तो उसकी मरम्मत करवाते रहना चाहिए।
4. ग्रीन हाउस में पम्प, पंखे इत्यादि की सर्विसिंग व देखभाल करनी चाहिए।
5. थर्मोस्टेट में कैलीब्रेशन समय-समय पर जाँच करते रहना चाहिए।

स्वरोजगार की सम्भावनाएँ - ग्रीन हाउस तकनीकी से उगाये गये फल और फूल, फसलोत्पादन एवं दूसरे कृषि कार्यों को बहुत लाभदायक तरीके से सम्पन्न किया जा सकता है। इसमें शिक्षित युवाओं के लिये रोजगार की व्यापक सम्भावनाएँ हैं। कोई भी युवक या युवती ग्रीनहाउस निर्माण या उनमें रखरखाव या उपयोग संबंधी कार्यों को अपनाकर जीविकोपार्जन कर सकते हैं। सिर्फ 1000 वर्ग मी. भूमि से ग्रीनहाउस तकनीकी का उपयोग करके एक परिवार के लिये समुचित आय प्राप्त की जा सकती है। इसी प्रकार ग्रीनहाउस निर्माण या रखरखाव की गतिविधियों से भी काफी आय प्राप्त की जा सकती है। तीनों ही स्थितियों में प्रशिक्षण की आवश्यकता है और ऐसे प्रशिक्षण भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में प्राप्त किये जा सकते हैं।

संदर्भ
1. वूड्स (मई 1988) ग्लास हाउसेज, हिस्ट्री ऑफ ग्रीन हाउसेज, आरम प्रेस, लंदन, आई.एस.बी.एन.-906053-85-4
2. ग्रीन हाउस ही है जलवायु परिवर्तन का कारण, दैट्स हिन्दी (हिन्दी), 03 अप्रैल 2008।
3. पटेल एवं अन्य (फरवरी 2014) एन एण्ड्रॉयड एप्लिकेशन फॉर फार्मर्स फॉर खरीफ एण्ड रबी क्रॉप, 0975-8887, अंक-88, पृष्ठ सं.-04।
4. इण्टरनेट स्रोत।
5. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार, विभिन्न वार्षिक रिपोर्ट।

लेखक परिचय


ब्रजेश सिंह एवं वर्षा रानी
असिस्टेंट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग
राजकीय महाविद्यालय, भेदोही-221401, उ.प्र., भारत
singh.brajesh30@yahoo.com, dr. vasharani82@gmail.com

प्राप्त तिथि-29.07.2016 स्वीकृत तिथि-25.08.2016

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