भारत में प्रदूषण नियंत्रण कानून


पर्यावरण संरक्षण में प्रदूषण नियंत्रण की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रदूषण बढ़ने से पर्यावरण बिगड़ता है। बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और मामलों में अनियोजित और अवैज्ञानिक विकास ने पर्यावरण को प्रदूषित किया है। भारत सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिये पिछले कई वर्षों से अनेक प्रयास किये हैं तथा स्पष्ट नीतियाँ तैयार की हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने इस दिशा में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की विवेचना की है।केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड देश में प्रदूषण नियंत्रण के कार्यान्वयन की सर्वोच्च संस्था है। इसकी स्थापना जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अधीन सितम्बर, 1974 में की गई थी। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम इस सन्दर्भ में सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और निष्ठा का परिचायक है। मौलिक रूप से जल प्रदूषण के नियंत्रण के लिये बनाई गई यह संस्था आज हरेक प्रकार के प्रदूषण को नियंत्रित करने वाली शीर्ष संस्था है। वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 तथा पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 ने मिलकर केन्द्रीय बोर्ड के कार्यक्षेत्र को व्यापक बना दिया।

भारत सरकार ने प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण के लिये जो कदम उठाए, उनमें प्रदूषण नियंत्रण से सम्बन्धित अधिनियम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि वर्ष 1974 से पहले प्रदूषण नियंत्रण से सम्बन्धित कोई नियमित अधिनियम नहीं था। अप्रत्यक्ष रूप से फैक्ट्री एक्ट,1948; बायलर एक्ट 1923; रिवर बोर्ड एक्ट 1956; इंडियन फिशरीज एक्ट 187 तथा एटोमिक एनर्जी एक्ट 1962 इत्यादि में अन्य प्रावधानों के साथ प्रदूषण नियंत्रण से सम्बन्धित प्रावधान भी थे।इन संक्षिप्त प्रावधानों में उद्देश्य पूरे नहीं हो पा रहे थे, इसलिये वर्ष 1962 में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने घरेलू और औद्योगिक बहिस्रावों से उत्पन्न प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिये समिति का गठन किया। इस समिति का विचार था कि सरकार केन्द्र तथा राज्य स्तर पर इससे सम्बन्धित अलग से कानून बनाये। इस अनुशंसा के आधार पर सरकार ने केन्द्रीय स्तर पर कानून बनाने का निर्णय लिया।

23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति से स्वीकृति मिलने के बाद जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 लागू हुआ। इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत हरेक राज्य में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा केन्द्रीय स्तर पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई।

राज्य बोर्ड द्वारा अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये वर्ष 1977 में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) उपकर अधिनियम 1977 पारित किया गया। वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिये वर्ष 1981 में वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण), अधिनियम 1981 पारित हुआ। उपरोक्त प्रावधानों को वृहत स्वरूप देने तथा खतरनाक रसायनों तथा अपशिष्टों को ध्यान में रखते हुये सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 लागू किया।

19 नवम्बर, 1986 से लागू पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है तथा पर्यावरण संरक्षण के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों को ध्यान में रखते हुये केन्द्रीय सरकार को व्यापक अधिकार प्राप्त हैं। उदाहरण के तौर पर पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिये उपाय करने की शक्ति, अधिकारियों की नियुक्ति, निर्देश देने की शक्ति, विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय मानक स्थापित करने की शक्ति, खतरनाक रसायनों और कचरे में कार्य करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश पर्यावरणीय प्रयोगशालाओं की मान्यता इत्यादि इसी अधिनियम के अन्तर्गत हैं।

खतरनाक औद्योगिक प्रक्रियाओं से बढ़ते खतरे एवं दुर्घटनाओं को ध्यान में रखकर लोक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991 लागू किया गया। जिसमें खतरनाक रसायनों और अपशिष्ट के उपयोग तथा विसर्जन से सम्बन्धित निर्देश हैं।

प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करने के लिये औद्योगिक बहिस्राव और उत्सर्जन के लिये मानक बनाना आवश्यक है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संदर्भ में कई उद्योगों के लिये ‘न्यूनतम राष्ट्रीय मानक’ निर्धारित किये, जो तकनीकी और आर्थिक तौर पर, यदि कोई राज्य बोर्ड चाहे तो इसे और कड़ा अवश्य किया जा सकता है। परिवेशी वायु गुणवत्ता और जल गुणवत्ता के भी मानक बनाये गये हैं, जो परिस्थितियों और उपयोग पर आधारित हैं। ध्वनि से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों और घरेलू उपकरणों के मानक भी बनाये गये हैं। उद्योगों में कार्यरत मजदूरों के लिये भी ध्वनि की तीव्रता और कम करने के समय से सम्बन्धित मानक बनाये गये हैं।

केन्द्रीय बोर्ड ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की मदद से पर्यावरण के सन्दर्भ में 24 शहरों और क्षेत्रों का पता कर, उन्हें प्रदूषण मुक्त करने के लिये समयबद्ध कार्ययोजना बनाई। ये शहर और क्षेत्र 15 राज्यों तथा एक केन्द्रशासित प्रदेश में स्थित हैं। इसके अतिरिक्त 26 नदियों में 41 प्रदूषित खण्डों का पता कर उनका विस्तृत अध्ययन किया गया।

केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय तथा केन्द्रीय नियंत्रण बोर्ड ने 17 श्रेणी के उद्योगों का चयन किया, जिनसे प्रदूषण का खतरा अपेक्षाकृत अधिक है। इस श्रेणी के कुल 1551 उद्योग देश भर में फैले हैं। केन्द्रीय बोर्ड और राज्य बोर्डों ने इन उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण पर अधिक ध्यान दिया, जिसके अच्छे परिणाम निकले। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार इनमें से 1154 उद्योग निर्धारित मानकों को पूरा कर रहे हैं और 78 उद्योग बन्द हो चुके हैं। शेष उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित किये जा रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण में प्रबोधन का बहुत महत्त्व है, क्योंकि पूरे आँकड़ों के अभाव में विस्तृत कार्ययोजना बनाना मुश्किल है। जल प्रदूषण से सम्बन्धित आँकड़ों के लिये विभिन्न नदियों में 480 स्थापनों पर हरेक महीने प्रबोधन किया जाता है। राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता प्रबोधन तंत्र के अन्तर्गत 290 केन्द्र स्वीकृत हैं, जो देश के अनेक आवासीय, औद्योगिक, व्यावसायिक और संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित हैं। कई स्थानों पर सागर तट का भी प्रबोधन किया जा रहा है। ध्वनि की तीव्रता मापने के लिये ऐसा कोई तंत्र नहीं है, पर समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में ध्वनि की तीव्रता भी मापी जाती है।

केन्द्रीय बोर्ड ने प्रदूषण कम करने के लिये अन्य कई मंत्रालयों और संस्थानों को भी प्रेरणा दी। उद्योग मंत्रालय, परिवहन मंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय के साझा प्रयासों से वर्ष 1995 के अप्रैल माह से सीसा रहित पेट्रोल की बिक्री शुरू हो गई है और शीघ्र ही कैटेलिटिक कन्वर्टर युक्त कारें भी चलने लगेंगी। इससे शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार होगा। महानगरों में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों का उत्सर्जन है। दिल्ली में 1970 के दशक में कुल वायु प्रदूषण का लगभग 25 प्रतिशत भाग वाहनों की देन थी, जो 1990 के दशक तक 65 प्रतिशत पहुँच गई और इसे यदि नियंत्रित नहीं किया गया तो वर्ष 2000 तक केवल वाहनों के कारण ही 75 प्रतिशत वायु प्रदूषण होगा। केन्द्रीय बोर्ड ने कुछ वर्ष पहले वाहनों के उत्सर्जन मानक तैयार किये थे। अब कारों में कैटेलिटिक कन्वर्टर लगाने से प्रदूषण भार बहुत कम हो जायेगा। सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग से वाहनों के उत्सर्जन में सीसा (लेड) नहीं होगा। सीसा एक जहरीली धातु है, इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और गर्भस्थ शिशु को हानि पहुँचती है।

भारतीय मानक ब्यूरो ने केन्द्रीय बोर्ड की पहल पर ‘पर्यावरण मित्र उत्पाद’ के लिये लाइसेंस जारी करना शुरू कर दिया है। ताप बिजलीघरों में वायु प्रदूषण उपकरण लगा दिये गये हैं। पर, अधिकतर उपकरण निर्धारित क्षमता से काम नहीं कर रहे थे, इसलिये अब अपेक्षाकृत स्वच्छ तकनीक की तरफ ध्यान दिया जा रहा है, जिससे कम प्रदूषण उत्पन्न हो। कोयले का उपचारण (साफ करना और धोना) ऐसा ही एक कदम है। बिजली घरों में जो कोयला उपयोग में आता है, उसमें राख की मात्रा 42 प्रतिशत है। अनुमान है कि उपचारण के बाद यह मात्रा 32-34 प्रतिशत हो जायेगी। इसमें ऊर्जा की बचत और प्रदूषण में कमी होगी। इस प्रकार के कोयले के उपयोग से सल्फर-डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम होगा। अधिकतर नये ताप बिजलीघर तथा पुराने स्थापित बिजलीघरों ने ऐसे कोयले का उपयोग शुरू कर दिया है।

प्रदूषण नियंत्रण से सम्बन्धित तकनीकी पुस्तकें विभिन्न शृंखलाओं में केन्द्रीय बोर्ड प्रकाशित करता है। इसी प्रकार सामान्य व्यक्तियों को प्रदूषण के कारण और प्रभावों की जानकारी समय-समय पर पुस्तकों और पुस्तिकाओं द्वारा दी जाती है। प्रदूषण नियंत्रण में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिये इस दिशा में कार्य कर रहे अनेक गैर-सरकारी संगठनों को पंजीकृत किया गया है। इनके माध्यम से जल प्रदूषण आकलन के उपकरण और पुस्तिकायें वितरित की जायेगी। पर्यावरण प्रदूषण से सम्बन्धित जन शिकायतों पर त्वरित कार्यवाही भी की जाती है।

केन्द्रीय बोर्ड ने विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर देश को इस संदर्भ में एक कुशल मानव-संसाधन दिया है। इससे प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम को बहुत बल मिला है। अब स्वच्छ तकनीक के प्रचार-प्रसार के लिये कोशिश की जा रही है। स्पष्ट है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिये एक कारगर नीति है और केन्द्रीय बोर्ड ने प्रदूषण को काबू करने के लिये अनेक कदम उठाये हैं। पर इसमें सामान्य जन की भी अहम भूमिका है और हरेक नागरिक को अपनी भूमिका को समझना होगा। तभी हमारा पर्यावरण मुक्त हो सकेगा।

सम्पर्क
वैज्ञानिक, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, परिवेश भवन, पूर्वी अर्जुन नगर, दिल्ली-110032

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