भीषण जल संकट से जूझ रहा है बुंदेलखंड

23 Jun 2010
0 mins read
महोबा, 22 जून। भूगर्भ से ज्यादा मात्रा में पानी का दोहन होने के कारण बुंदेलखंड के तमाम इलाके ग्रे श्रेणी में आने से पीने के पानी के लिए लोगों में मारामारी मची है। कई जनपदों के क्षेत्र डार्क श्रेणी में जाने से लोग परेशान हैं। राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन व भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की चेतावनी के बावजूद पूरे बुंदेलखंड में सरकार जल संकट से बचाने की ठोस योजना तैयार नहींकर पाई। नीतियों की अनदेखी से आज बुंदेलखंड में पानी का संकट पैदा है, आदमी को झुलसा देने वाली गर्मी से ताल, तलैया, पोखर, कुएं, हैंडपंप ही नहीं हजारों चंदेल कालीन पानी के स्रोत सूखने के साथ नदियां वेतवा, केन, उर्मिल, यमुना, धसान, चंद्रावल व अन्य सहायक नदियां बढ़ते तापमान से विलुप्त होती जा रही हैं।

केंद्रीय जल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखंड में 84 फीसद बारिश का जल जमीन की सतह से बह जाता है इसका प्रमुख कारण बुंदेलखंड क्षेत्र में पथरीली चट्टाने होना है, जिसके कारण भूगर्भ में जल स्तर में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है।

बुंदेलखंड क्षेत्र झांसी, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, टीकमगढ़, बांदा, छतरपुर जिलों में चूना पत्थर व ग्रेनाइट की चट्टानें हैं, विंध्याचल का पर्वतीय क्षेत्र पथरीला है, हरित क्षेत्र जालौन में छह फीसद, झांसी में 6 फीसद, ललितपुर में तेरह, बांदा में एक फीसद, छतरपुर में 10 फीसद, दतिया में 9 फीसद, महोबा में 4 फीसद बन क्षेत्र है। पन्ना, सागर जिलों का हरित वन क्षेत्र नाम मात्र बचा है।

बुंदेलखंड में भूमिगत जलस्तर का प्राकृतिक संवर्धन भी अब दम तोड़ रहा है, पूरे बुंदेलखंड में 83.4 फीसद क्षेत्र ग्रामीण है जिसमें 85.6 फीसद खेतीबाड़ी होती है। 58 फीसद क्षेत्र उत्तर प्रदेश व 42 फीसद क्षेत्र मध्य प्रदेश में आता है। आजादी के बाद से आज तक अधिकतर खेती बरसात के जल पर निर्भर रहती है। जालौन-हमीरपुर, बांदा, महोबा, झांसी, ललितपुर में 527 मीटर जमीन की खुदाई करने पर लगभग 4275 लीटर पानी प्रति मिनट प्राप्त हो पा रहा है। भीषण गर्मी के कारण 25.40 फीसद एमएम पानी वाष्प बन कर उड़ता है, जून के दो हफ्ते बीतने के बावजूद बारिश न होना और तेज गर्म हवाएं जनजीवन अस्त-व्यस्त कर रही है। डायरिया, हैजा, मलेरिया जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं।

पल्स पोलियो कार्यक्रम पर स्वास्थ्य विभाग (महोबा) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे जनपद में लगभग 65 फीसदी घरों में ताले लटके मिले। रेलवे के टिकट बिक्री आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2009 से मार्च 2010 तक 1209866 यात्रियों ने महानगरों को पलायन किया। कृति शोध संस्थान ने चरखारी ब्लाक के 8 ग्रामीण क्षेत्र बगरौन, बम्हौरी, घुटवई, सुदामापुर, चंदौली, कुरारा डांग, समुआ और जरौली गांव के सर्वे में टोटल 1689 परिवारों में सभी जातियों के 1222 परिवार महोबा जिले से पलायन कर गए लेकिन जिला प्रशासन इसको पलायन नहीं मान रहा । पूरे बुंदेलखंड में महोबा जिले के हालात बद से बदतर हो गए हैं जहां उर्मिल बांध से महोबा पानी लाने की अड़तीस करोड़ रुपए की परियोजना अभी तक पानी नहीं ला सकी।

जानकारों की माने तो भूगर्भ जल दोहन की हाई स्पीड पर तत्काल रोक लगाने की मांग उत्तर प्रदेश वन प्राणी संरक्षण बोर्ड के सदस्य जलीस खान कर चुके हैं। और इसे नहीं रोका गया तो भूगर्भ जल दोहन से यह क्षेत्र रेगिस्तान बन सकता है। बुंदेलखंड से पलायन, भुखमरी को कोई नहीं रोक सकता। बुंदेलखंड से पलायन, भुखमरी को कोई नहीं रोक सकता। बुंदेलखंड की सभी सिंचाई व पेयजल योजनाएं मात्र कागजों पर चलाकर केंद्र व शासन का करोड़ों रुपए फूंका जा रहा है और जनता-पशु पक्षी अपना जीवन बचाने की राह तलाश रहे हैं।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading