भोजन नष्ट करने का परिणाम

8 Sep 2011
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पाप है भोजन की बर्बादी विकसित देश जिस मात्रा में भोजन की बर्बादी करते हैं यदि उसे जरुरतमंदों में बांट दिया जाए तो विश्व खाद्य सुरक्षा के संकट को काफी कुछ पार सकता है। औद्योगिक खेती और डब्बाबंद खाद्य सामग्री की बचत होती है। यह भ्रम भी अब टूटता जा रहा है अमीर और गरीब देशों के मध्य भोजन बर्बादी में 15 गुना का अंतर बताता है कि अमीर देश अपनी समृद्धि के दंभ में मानवीयता को भूलते जा रहे हैं।

खाद्य पदार्थों की बढ़ती हुई कीमतों ने विश्व के कई हिस्सों में गरीबी और भुखमरी को बढ़ा दिया है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में प्रतिवर्ष अपशिष्ट बन रही अथाह खाद्य सामग्री को रेखांकित किया गया है। पूरे विश्व में मानव खपत हेतु उत्पादित लगभग एक तिहाई खाद्य या तो नष्ट हो रहा है या अपशिष्ट बन रहा है। सं. रा. खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी नवीन रिपोर्ट ‘वैश्विक खाद्य हानि एवं खाद्य अपशिष्ट’ के अनुसार खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में खेतों से उपभोक्ताओं तक पहुंचने में लगभग 1.3 अरब टन खाद्य प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाता है। प्रति व्यक्ति भोजन नष्ट करने में औद्योगिक देश उच्च स्तर पर हैं। उप सहारा अफ्रीका एवं दक्षिण/ दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में जहां 6-11 कि.ग्राम भोजन प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति खाद्य अपशिष्ट बन रहा है के मुकाबले यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के देश 95-115 कि.ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष भोजन सामग्री बर्बाद करते हैं।

हालांकि विकासशील देशों में भोजन हानि उतनी ही है जितनी कि औद्योगिक देशों में। परंतु विकासशील देशों में खाद्य हानि कटाई के दौरान एवं अन्य प्रक्रिया स्तर पर 40 प्रतिशत (फीसदी) है। जबकि औद्योगिक देशों के इतनी ही हानि क्रय एवं उपभोक्ता स्तरीय है। औद्योगिक देशों में उपभोक्ता लगभग 22 करोड़ टन खाद्य अपशिष्ट बना रहे हैं जो कि उपसहारा देशों में समग्र रूप में उत्पादित 23 करोड़ टन के लगभग बराबर है।

आर्थिक लागत के अलावा इसमें खाद्य उत्पादन के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले संसाधनों जैसे भूमि पानी और ऊर्जा की बर्बादी के अलावा इस प्रक्रिया में उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों के दुष्प्रभाव को भी आंकना चाहिए। इन तथ्यों से सचेत होकर न केवल हमें वैश्विक अपशिष्ट की मात्रा के बारे में सोचना है बल्कि करोड़ों लोगों पर पड़ रहे भुखमरी, कुपोषण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में भी सोचना है। यदि सम्पूर्ण खाद्य हानि तथा अपशिष्ट को घटाकर अति जरुरतमंदों को उपलब्ध किया जा सके तो विश्वव्यापी खाद्य असुरक्षा बहुत हद तक कम हो सकती है।

यह रिपोर्ट खाद्य हानि की मात्रा एवं खाए जाने योग्य सात समूहों जैसे अनाज (चावल एवं गेहूं) जड़ और कन्द, तेलीय फसल एवं दालें, फल एवं सब्जियां, मांस एवं उसके उत्पादों, मछली एवं समुद्री खाद्य और दुग्ध के उपभोग पर प्रकाश डालती है। खाद्य हानि एवं अपशिष्ट का कारण अति उत्पादन से असुरक्षित खाद्य एवं कमजोर अधोसंरचना और व्यापारिक प्रक्रिया है। लेकिन ये कारण औद्योगिक एवं विकासशील देशों में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।

अमीर देशों में खपत के स्तर पर खाद्य हानि के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है कि लोग साधारणतः खाद्य/भोजन को नष्ट करने में आर्थिक रूप से सक्षम हैं। वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों में उपभोक्ता एक समय में कम मात्रा में खाद्य पदार्थ क्रय करते हैं जो कि अक्सर एक दिन के लिए ही काफी होता है। अतः यहां खाद्य हानि न्यूनतम है। रिपोर्ट के अनुसार गरीबी एवं निम्न आय भी कम खाद्य हानि का एक कारण है।

सुपर मार्केटों द्वारा रंग रूप में मानक गुणवत्ता भी खाद्य हानि का एक प्रमुख कारण है। सुपर बाजार द्वारा कुछ ताजे खाद्य केवल इसलिए नष्ट कर दिये जाते हैं क्योंकि वे वजन, आकार एवं रंग रूप में उनकी गुणवत्ता पर पूर्णतया खरे नहीं उतरते। अतः ऐसी फसल का काफी बड़ा हिस्सा कभी खेत से बाहर ही नहीं निकल पाता एवं इसे पशुओं के चारे के रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

औद्योगिकीकृत खाद्य प्रसंस्करण में भोजन सामग्री को एक से आकार में करने से बड़ी मात्रा में बर्बादी होती है। इस प्रक्रिया में छटाई के दौरान नष्ट हुए पदार्थ मानव उपभोग में नहीं आते जो कि सामान्य परिस्थिति में उपभोग में आ सकते थे। औद्योगिक उत्पादन में उत्पाद को अंतिम रूप देते समय उसके भार, रूप, आकार या पैकिंग में हुई त्रुटियों के कारण भी खाद्य हानि होती है। हालांकि वह खाद्य उत्पाद की सुरक्षा, स्वाद एवं पोषण स्तर को मानक रूप से प्रभावित नहीं करते।

असुरक्षित खाद्य जो मानव खपत योग्य नहीं है और जो न्यूनतम खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरता, से भी खाद्य हानि को बढ़ावा मिलता है। ऐसे खाद्य पदार्थ जो जहरीले, खतरनाक कीटनाशक या जिनमें कीटनाशकों के अवशेष हैं और जो प्रदूषित जल से प्रभावित हैं, इस श्रेणी में आते हैं।

विकासशील देशों में ताजा निर्मित खाद्य जैसे फल, सब्जियां, मांस एवं मछली अक्सर भण्डारण व्यवस्थाओं में कमी, भवनों की कमी, कोल्ड स्टोरेज में कमी और बाजारों के कारण नष्ट हो जाते हैं। बहुत ही कम थोक दुकानें, सुपरबाजार एवं क्रय व्यवस्थाएं हैं जो खाद्य पदार्थों का उचित भंडारण कर पाते हैं। थोक एवं खुदरा बाजार अक्सर छोटे, अधिक भीड़-भाड़, अस्वास्थ्यकर एवं ठंडा रखने की न्यूनतम सुविधा वाले होते हैं।

औद्योगिक देशों में खुदरा उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु उत्पादों की बड़ी मात्रा एवं ब्रांड के रूप में दिखाने का प्रयत्न करते हैं। उत्पादकों से बड़ी मात्रा में खरीदना भी ज्यादा किफायती पड़ता है। परंतु ‘नियत तिथि’ तक समस्त पदार्थ बेचे नहीं जा सकते और जिन खाद्य पदार्थों की खराब होने की तिथि नजदीक होती है ग्राहकों द्वारा उन्हें अस्वीकार कर दिये जाने से उन्हें नष्ट कर दिया जाता है।

इस रिपोर्ट में बर्बादी और भोजन हानि में कमी को लेकर, खासकर गरीब देशों के संदर्भ में अनेक अनुशंसाएं की गई हैं। विकासशील देशों में छोटे किसान खाद्य असुरक्षा के मुहाने पर ही बने रहते हैं, ऐसे में खाद्य हानि में कमी उनकी जीविका पर तात्कालिक एवं महत्वपूर्ण असर डाल सकती है। यदि उपभोक्ताओं की दृष्टि से देखे तो खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की कार्यक्षमता में वृद्धि से न केवल भोजन का मूल्य ही कम होगा बल्कि उनकी उस तक पहुंच भी बढ़ेगी।

रिपोर्ट में विकासशील देशों में खाद्य आपूर्ति श्रंखला को मजबूत करने, किसानों को संगठित होने, अपने उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने और विपणन के साथ ही साथ यातायात व अधोसंरचना में निवेश की भी अनुशंसाएं की गई हैं। रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि वैश्विक खाद्य हानि एवं बर्बादी पर और अधिक समझ बनाने की आवश्यकता है। साथ ही खाद्य उत्पादन और उपभोग की बढ़ती वैश्विक प्रवृत्ति के कारण बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की वजह से होने वाली खाद्य हानि पर भी बहुत जोर देने की आवश्यकता बताई गई है।

भविष्य में बढ़ती अनुमानित मांग की पूर्ति हेतु अधिक खाद्य उपजाने की ओर ध्यान आकृष्ट किया जा रहा है। परंतु इसके पूर्ण यह सुनिश्चित करना होगा कि वर्तमान में उपलब्ध खाद्य को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। ऐसा विश्व जिसमें प्राकृतिक संसाधन जैसे भूमि, जल एवं ऊर्जा सीमित मात्रा में हैं, खाद्य हानि कम करने को प्राथमिकता देनी ही होगी।

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