भारत में हर दिन 40 टन बायोमेडिकल वेस्ट का नहीं होता प्रबंधन

7 Jul 2020
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भारत में हर दिन 40 टन बायोमेडिकल वेस्ट का नहीं होता प्रबंधन
भारत में हर दिन 40 टन बायोमेडिकल वेस्ट का नहीं होता प्रबंधन

भारत के बायोमेडिकल वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 के अनुसार मनुष्यों या जानवरों के निदान, उपचार या टीकाकरण के दौरान या अनुसंधान गतिविधियों से संबंधित या जैविक उत्पादन या परीक्षण के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट को बायोमेडिकल वेस्ट कहते हैं। अलग अलग प्रकार के बायोमेडिकल वेस्ट के लिए भिन्न भिन्न रंगों के कूड़ादान होते हैं। पीला कूड़ादान शारीरिक, रासायनिक, गंदा कपड़ा, दवाइयों संबंधित एवं प्रयोगशाला के वेस्ट के लिए होता है। मानव व पशुओं का शारीरिक कचरा, दवाइयों से संबंधित, तरल एवं सूक्ष्मजीवी कचरा (रक्त थैली एवं पेट्री डिश का पूर्व उपचार करें) को भी पीले कूड़ेदान में ही डालना होता है। इसी प्रकार दूषित प्लास्टिक कचरा (डिस्पोजेबल वस्तुएं जैसे ट्यूबिंग, प्लास्टिक की बोतलें, शिरभ्यंतर और कैथेटर, प्रवेशनी, सुइयों के बिना सीरिंज) के लिए लाल कूड़ादान, कांच की वस्तुएं एवं धातु प्रत्यारोपण (कांच से बनी टूटी-फूटी एवं खाली शीशियां अथवा बोतलें, स्लाइड कांच की पेट्री डिश आदि) के लिए नीला कूड़ादान होता है। 

धारदार धातु वाला कचरा (सुई एवं ब्लेड जैसे वस्तुएं (पंचर प्रूफ डिब्बों में रखें) को ग्रे कूड़ादान में, परिसंकटमय और अन्य कचरा (खाली एवं एक्सपायर्ड कीटाणुनाशक पदार्थों की बातलें, सीएफएल बल्ब/ट्यूब लाईट एवं बैटरी) को काले कूड़ादान में, पुनर्चक्रण योग्य कचरा आसमानी रंग के कूड़ेदान में और हरे कूड़ेदान में स्वाभाविक तरीके से सड़ने वाला सामान्य कचरा डालना होता है। सीएसई की ‘स्टेट आफ इंडियाज़ इनवायरमेंट 2020’ रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 84805 वैध हेल्थकेयर फैसिलिटी सेंटर है। तो वहीं 77010 हेल्थकेयर फैसिलिटी सेंटर (अस्पताल आदि) अवैध रूप से संचालित किए जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में यहीं से हर दिन 559084.5 किलोग्राम  बायोमेडिकल कचरे का उत्पादन होता था, लेकिन 40510.5 किलोग्राम कचरे का प्रबंधन नहीं हो पाता था।

बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन के मामले में सबसे बुरा हाल बिहार का है। बिहार में हर दिन 33 हजार किलोग्राम से ज्यादा बायोमेडिकल अपशिष्ट का उत्पादन होता है, लेकिन 78 प्रतिशत कचरे का प्रबंधन नहीं किया जाता है। दूसरे नंबर पर राजस्थान है, जहां से हर दिन 22502.57 किलोग्राम कचरा निकलता है, लेकिन लेकिन 28 प्रतिशत कचरे का प्रबंधन नहीं हो पाता है। असम का हाल भी कुछ ऐसा ही है, यहां से रोजाना निकलने वाले 8565 किलोग्राम कचरे में से 23 प्रतिशत कचरे का प्रबंधन ही नहीं होता है। तो वहीं, हरियाणा, चंड़ीगढ़, पंजाब, दिल्ली, गुजरात, दमन औ दीव, दादरा और नगर हवेली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रद्रेश, पुड्डुचेरी, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मिज़ोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में निकलने वाले सभी बायोमेडिकल वेस्ट का प्रबंधन किया जाता है। इन आंकड़ों को हम गलत नहीं कह सकते, लेकिन वास्तव में धरातल पर इन राज्यों की हकीकत बिल्कुल अलग है। कई स्थानों पर बायोमेडिकल वेस्ट कचरे को सार्वजनिक कूड़ादानों में पड़े हुए देखा जा सकता है। इसलिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्य द्वारा आंकड़ों के हिसाब से पूरे बायोमेडिकल कचरे का प्रंबधन करना संदेह पैदा करता है। 

एसोसिएटेड चैंबर्स आफ काॅमर्स, इंडस्ट्री आफ इंडिया एंड वेलोसिटी के 2018 के आंकड़ों के मुताबिक भारत हर दिन 550 टन बायोमेडिकल कचरे का उत्पादन करता है, लेकिन 2022 तक इसी कचरे का उत्पादन बढ़कर 775.5 टन प्रतिदिन हो जाएगा। डाउन टू अर्थ के एक लेख में भी इस बात की जानकारी दी गई है। ऐसे में यदि पूरे कचरे का उचित प्रकार से प्रबंधन करने की व्यवस्था नहीं की गई तो ये जल, जंगल, जमीन और हवा को प्रदूषित करेगा। जो विभिन्न प्रकार की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। बायोमेडिकल कचरे से वर्तमान में भी कई बीमारिया जन्म ले रही हैं। 

भारत में कचरे का निस्तारण इसलिए भी बेहद जरूरी है, क्योंकि यहां अधिकांश नदियां प्रदूषित हैं। करोड़ों लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल पाता है। स्वच्छता के क्षेत्र में देश काफी पिछड़ा हुआ है। एक प्रकार से गंदगी भारत की एक गंभीर समस्या रही है। इसलिए महात्मा गांधी ने भी हमेशा स्वच्छ भारत का सपना देखा था। स्वच्छ भारत अभियान में इस दिशा में काफी सकारात्मक बदलाव आए हैं, लेकिन बदलाव अपेक्षाकृत कम हैं, जो समस्या बन सकते हैं। कोरोना के समय ये स्थिति और भी भयानक है। सीपीसीबी के अनुसार 48 घंटों में बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण किया जाना चाहिए, लेकिन देश में सुविधाओं का अभाव एक चुनौती है। जिससे भारत को पार पाना होगा। अन्यथा कचरा प्रबंधन के बिना भारत में फैलने वाली बीमारियों को रोक पाना चुनौती बन जाएगा। इस चुनौती से पार पाने के लिए सरकार, प्रशासन और जनता को गंभीरता से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते को समाज और पर्यावरण के प्रति अपना योगदान देने की जरूरत है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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