भूजल आधारित पावर प्लांट का जोरदार विरोध - जान देंगे पर जमीन नहीं

6 Feb 2017
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परियोजना में 800 मेगावाट के दो संयंत्र लगाए जाएँगे। जिसमें प्रतिदिन 20 हजार टन कोयला और 16 करोड़ लीटर पानी की खपत होगी। अभी इलाके से प्रवाहित चीर नदी से 10 करोड़ लीटर पानी लेने की बात है, बाकी पानी भूगर्भ से निकाला जाएगा। पर चीर नदी बरसात को छोड़कर सूखी रहती है। अर्थात बाकी दिनों में पावर प्लांट की जरूरत का पूरा पानी भूगर्भ से निकाला जाएगा। इसका असर आसपास के भूजल भण्डार पर होगा। पहले से जलाभाव का शिकार बना इलाका जलसंकट में घिर जाएगा।

आजादी के बाद विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिये लाखों एकड़ जमीन का अधिग्रहण झारखण्ड राज्य के गठन के पहले हो चुका था। सैकड़ों गाँव विस्थापित हुए थे। झारखण्ड सरकार कोई आयोग गठित करती जो उन विस्थापित लोगों की वर्तमान दशा की खोजबीन करता।

यह कहते हुए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कई बेहद गम्भीर सवाल उठाए। गोड्डा जिले में प्रस्तावित अडानी पावर प्लांट के खिलाफ तीन दिनों से उपवास पर बैठे लोगों से उन्होंने कहा कि इस लड़ाई को झारखण्ड के गाँव-गाँव में ले जाना होगा। अदालत और विधानसभा में लड़ना होगा, केवल उपवास और धरना से कुछ नहीं होने वाला क्योंकि सरकार को अपने लोगों की फिक्र नहीं।

अडानी समूह की ओर से प्रस्तावित पावर प्लांट में कई गड़बड़ियाँ हैं। इसमें भूजल का बड़े पैमाने पर दोहन होगा और निर्मित बिजली पूरी तरह बांग्लादेश को बेच दिया जाएगा। दस गाँवों की 2385 एकड़ जमीन ली जाएगी जिसमें सामिलात की जमीन भी शामिल है। पर प्रभावित ग्रामीणों की राय को महत्त्व देने के बजाय उन्हें बरगलाने और दबाने की कोशिश की जा रही है।

सामाजिक प्रभाव आकलन की खानापूरी जरूर हुई, पर उसमें ग्रामीणों की भागीदारी नहीं हुई। फर्जी ढंग से जन सुनवाई हुई जिसका विरोध कर रहे ग्रामीणों पर लाठीचार्ज और आँसू गैस छोड़े गए। विधायक प्रदीप यादव ग्रामीणों के साथ हैं और पावर प्लांट का विरोध कर रहे हैं।

पावर प्लांट के बारे में ग्रामीणों को कानोंकान जानकारी मिली जब अडानी समूह ने चौकीदार के तौर पर कुछ ग्रामीण जवानों को नौकरी दी। गाँव में नई-नई गाड़ियाँ दिखने लगीं। अडानी पावर परियोजना के लिये सरकार की ओर से पहली सूचना अंचलाधिकारी के पत्र से मिली जिसमें सार्वजनिक भूमि के अधिग्रहण की जानकारी दी गई थी।

आजादी बचाओ आन्दोलन से जुड़े चिन्तामणी साह बताते हैं कि पत्र में अधिग्रहण के बारे में ग्रामीणों के विचार जानने के बजाय अडानी समूह को भूमि हस्तान्तरण के बारे में सहमति प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है। यह विचित्र बात थी। लेकिन इससे पता चला कि कुल दस गाँवों की जमीन पावर प्लांट में जाने वाली है।

गाँव-गाँव में सभा हुई। गाँव वालों ने आम राय से पावर प्लांट लगाने का विरोध किया। एक सितम्बर से पाँच सितम्बर के बीच हुई ग्राम सभाओं के प्रतिवादी विचार को अंचलाधिकारी के पास भेज दिया गया। सरकार की ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं होने पर 28 नवम्बर को मोतिया गाँव के सर्वोदय स्वराज आश्रम में किसानों की महापंचायत हुई। उसमें दसों गाँव से पाँच सौ से अधिक किसान आये थे। सबों ने आम राय से किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देने का फैसला किया। इसकी सूचना प्रशासनिक अधिकारियों को भेज दी गई। पर प्रशासन दूसरी दिशा में सक्रिय रहा। 6 दिसम्बर को जन सुनवाई की तारीख मुकर्रर कर दी गई। इस रवैए से आशंकित रिटायर शिक्षक चिंतामणि साह ने जिला उपायुक्त को पत्र भेजकर उचित एहतियात बरतने का अनुरोध किया था।

श्री चिंतामणी बताते हैं कि फर्जी सामाजिक आकलन रिपोर्ट के आधार पर 6 दिसम्बर को जन सुनवाई का नाटक किया गया। हमने स्थानीय लोगों को वोटर कार्ड, आधारकार्ड या राशन कार्ड के साथ जाने के लिये कहा था। परन्तु वहाँ कम्पनी की ओर से बँटे लाल और हरे रंग कार्ड वालों को ही प्रवेश मिल रहा था।

इसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो पुलिस ने लाठी भाँजना और आँसू गैस छोड़ना शुरू कर दिया। श्री साह बताते हैं कि उस फर्जी जनसुनवाई में दूसरे गाँवों से लोग भी बुलाए गए थे। साथ ही सहमति में बोलने के लिये जो लोग तैयार हुए थे, उन्हें दो सौ रुपए और लाल या हरा कार्ड थमाया गया था। इस लाठी चार्ज में कई लोग घायल हुए। एक महिला का हाथ टूट गया। दो लड़कों की टाँगे टूट गई। अगले दिन हम जिला मुख्यालय पर पहुँचे। उपायुक्त कार्यालय के सामने धरना व उपवास हुआ जिसमें विधायक प्रदीप यादव भी शामिल हुए। लेकिन बाद में दस जनवरी के अखबारों में खबर छपी कि पुलिस पर हमला करने के आरोप में डेढ़ सौ लोगों पर मामला दर्ज हो गया है।

विधायक प्रदीप यादव बताते हैं कि सामाजिक आकलन रिपोर्ट तैयार करने में बुनियादी गड़बड़ी हुई। इसे मुम्बई के किसी फर्म को दिया गया जिसका सम्बन्ध सम्भवतः अडानी समूह के साथ है। उसने इलाके की सरजमीनी हकीकतों का जायजा लेने और स्थानीय लोगों से बात करने की जरूरत नहीं समझी, बल्कि 1932 के सर्वे में बने मानचित्र के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर दी।

दरअसल यह ताप विद्युत परियोजना पहले इसी जिले के दूसरे इलाके में लगने वाली थी। लेकिन जमीन का दाम घटाने के खिलाफ हमने विधानसभा में आवाज बुलन्द की। जिला उपायुक्त ने 2014 में बीते तीन वर्षों की औसत विक्रय मूल्य के आधार पर गोड्डा जिले की जमीन का मूल्य 41 लाख 56 हजार रुपए प्रति एकड़ तय किया था। पर सरकार ने पावर प्लांट के लिये अडानी को जमीन देने में मनमाने ढंग से सवा तीन लाख प्रति एकड़ तय कर दिया। विरोध होने पर जमीन की कीमत तय करने के लिये तीन लोगों की समिति का गठन कर दिया गया। इसी बीच 2014 लोकसभा चुनाव आ गया और मामला टल गया। समिति ने जमीन के विभिन्न प्रकार की कीमत सवा छह लाख से लेकर 12 लाख एकड़ तय किया है।

परियोजना स्थल बदलने का कारण विधायक श्री यादव बताते हैं कि इलाके के कुछ लोग बाहर बस गए हैं। वे अपनी जमीन आसानी से देने के लिये तैयार हो जाएँगे। इसी उम्मीद पर अडानी समूह ने इस इलाके का चयन किया है। परन्तु यह बहु फसली जमीन का इलाका है। धान यहाँ की मुख्य फसल है। छोटी जोत वाले किसान और उनके खेतों पर आश्रित मजदूरों की रोजी रोटी पावर प्लांट लगने से मारी जाएगी। जमीन तो केवल दस गाँव के 841 रैयतों की ली जाएगी, पर पावर प्लांट का असर दस-पन्द्रह किलोमीटर के दायरे के गाँवों और खेतों पर होगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस परियोजना में 800 मेगावाट के दो संयंत्र लगाए जाएँगे। जिसमें प्रतिदिन 20 हजार टन कोयला और 16 करोड़ लीटर पानी की खपत होगी। अभी इलाके से प्रवाहित चीर नदी से 10 करोड़ लीटर पानी लेने की बात है, बाकी पानी भूगर्भ से निकाला जाएगा। पर चीर नदी बरसात को छोड़कर सूखी रहती है। अर्थात बाकी दिनों में पावर प्लांट की जरूरत का पूरा पानी भूगर्भ से निकाला जाएगा। इसका असर आसपास के भूजल भण्डार पर होगा। पहले से जलाभाव का शिकार बना इलाका जलसंकट में घिर जाएगा। मालूम हो कि इस इलाके से एक नहर भी निकली है जो पावर प्लांट के लिये चिन्हित इलाके के बीच में पड़ रही है।

सबसे बड़ी बात यह कि इतना सब होने के बाद इस परियोजना से बनी बिजली पूरी-की-पूरी बांग्लादेश भेज दी जाएगी। जिले या राज्य को उसका मामूली हिस्सा भी नहीं मिलेगा। जबकि झारखण्ड सरकार की ऊर्जा नीति के अनुसार राज्य में बनी बिजली का 25 प्रतिशत राज्य को ही देना है। जिसमें 13 प्रतिशत बाजार मूल्य और 12 प्रतिशत लागत मूल्य पर दी जाएगी। अडानी के मामले में राज्य सरकार अपनी ही नीति की अवहेलना कर रही है। बताते हैं कि तत्कालीन ऊर्जा सचिव इसका विरोध करते हुए अवकाश पर चले गए।

बहरहाल, अडानी पावर प्लांट के खिलाफ ग्रामवासी अभी धरना-उपवास जैसे शान्तिपूर्ण विरोध के मार्ग पर चल रहे हैं। अगले चरण में वे मामला अदालत में उठाना चाहते हैं। परन्तु कम्पनी लोगों की एकजुटता को तोड़ने के लिये छल बल का सहारा ले रही है। अडानी भगाओ संघर्ष मोर्चा के तीन दिवसीय (8-9-10 जनवरी)उपवास की काट में उसने कहीं स्वास्थ्य शिविर लगाए तो कहीं नवयुवकों के बीच क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित करवा दिया। गाँवों में सिलाई व कम्प्यूटर सिखाने के प्रशिक्षण केन्द्र भी खुल गए हैं। रुपए पैसे बाँटने की जानकारी भी मिली। दूसरी ओर विधायक प्रदीप यादव के साथ तीन दिनों के उपवास पर बैठे 125 लोगों ने साफ ऐलान किया है कि जान देंगे पर जमीन नहीं।

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