भूकम्प जब थर्राती है धरती

30 Apr 2015
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धरती की गहराइयों में होने वाली हलचलों के कारण पैदा होने वाला भूकम्प ऐसी प्राकृतिक घटना है जिन पर मनुष्य का वश नहीं। विज्ञान अभी इतना सक्षम नहीं है कि इसके बारे में पूर्वानुमान लगा सके। वैसे, भूकम्प खुद किसी की जान नहीं लेता। नुकसान होता है मानव निर्मित मकानों, इमारतों के टूटने और उनके नीचे दबने से
.भूकम्प प्रकृति की उन घटनाओं में से एक है, जिसे कभी नहीं रोका जा सकता। धरती की गहराइयों में क्या हलचलें हो रही हैं, इसे जानना किसी के लिये भी सम्भव नहीं। आधुनिक विज्ञान इसके होने का सिर्फ अनुमान लगा सकता है जिससे कुछ सीमा तक नुकसान होने से रोका जा सकता है। भूकम्प धरती की गहराइयों में होने वाली ऐसी हलचल है जो किसी तरह के मौसम पर निर्भर नहीं है और जो कभी भी, कहीं भी, रात में या दिन में हो सकती है। वैसे, भूकम्प कितना भी भयभीत करता हो, लेकिन नुकसान जमीन के थरथराने से नहीं बल्कि मानव निर्मित इमारतों के टूटने, आग लगने, भूस्खलन होने तथा सुनामी पैदा होने से होते हैं। सामान्य अर्थ में कहें तो किसी भी सीस्मिक घटना को भूकम्प कहा जाता है। विभिन्न कारणों से पृथ्वी की सतह के नीचे तनाव से ऊर्जा संग्रहीत होती है। जब तनाव बढ़कर अनियमितता उत्पन्न करता है तो सतह की बन्द सीमा के ऊपर भूमि खिसकने लगती है और संग्रहीत ऊर्जा मुक्त होने लगती है। यह ऊर्जा सतह पर घर्षण की ऊष्मा और चट्टानों में दरार पड़ने के सम्मिलित प्रभाव के कारण मुक्त होती है और इस प्रकार भूकम्प का कारण बनती है। यह एक प्राकृतिक घटना भी हो सकती है और मानवीय गतिविधियों के कारण भी। अक्सर भूकम्प भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भूकम्प मुख्य रूप से धरती की प्लेटों के टकराने से आता है।

तरह-तरह के प्राचीन विचार


प्राचीन सभ्यताओं ने भूकम्प की घटनाओं को तरह-तरह के मिथकों से जोड़कर समझने की कोशिश की है। ज्यादातर का मानना था कि पृथ्वी किसी विशालकाय जन्तु, जैसे कि शेषनाग, कछुआ, मछली, हाथी या फिर देवता के सिर पर टिकी हुई है। जब कभी वे अपने शरीर को हिलाते हैं, धरती कांप उठती है। यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने जमीन की गहराइयों में बहने वाली हवाओं को भूकम्प का कारण माना था। वास्तविकता यह है कि धरती की गहराइयों में चट्टानों के अचानक खिसकने या जगह बदलने से पृथ्वी के भू-पृष्ठ (क्रस्ट) पर कम्पन पैदा होता है। पृथ्वी के नीचे इस तरह की हलचल भूकम्प तरंगों के रूप में ऊर्जा मुक्त करती है। ये तरंगे ध्वनि तरंगों की तरह ही यात्राएं करती हैं जिससे पृथ्वी के भीतर कम्पन या भूकम्प पैदा होता है।

गहराई में तैरती प्लेटें


ऐसा भी नहीं है कि भूकम्प धरती के नीचे चट्टानें खिसकने से ही होते हैं। कोई भी चीज जो भूमिगत चट्टानों पर दबाव डालती है, जैसे कि जमीन के नीचे किया गया परमाणु विस्फोट, ज्वालामुखी का फूटना, जलपट्टी में बदलाव जैसी घटनाएं भी जमीन पर कम्पन पैदा करती है। लेकिन भूकम्पों का जो सबसे बड़ा कारण है, वह यह कि हमारी पृथ्वी मृत चट्टानों का ढेर नहीं, जैसा कि पहले कभी सोचा जाता था, बल्कि यह टैक्टोनिक प्लेट्स के रूप में निरन्तर गतिशील है। पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। ये प्लेटें पृथ्वी की गहराई में पिघले हुए यानी लावे पर तैरती रहती हैं। ये प्लेटें हजारों किलोमीटर चौड़ी और 100 किमी. तक मोटी होती हैं। इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है और भूकम्प पैदा होते हैं।

टैक्टोनिक प्लेटें बहुत धीरे-धीरे घूमती रहती हैं, हर साल 4 से 5 मिमी अपने स्थान से खिसक जाती हैं जिससे कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं। कहा जा सकता है कि पृथ्वी के महाद्वीप और महासागरों के तल इस प्लेटों पर चिपके यात्रियों की तरह हैं। ये जहाँ जाएंगी, वहीं उनको जाना होगा। लेकिन भू-पृष्ठ के ये यात्री बहुत नाजुक भी हैं। ये आपस में टकराते हैं, एक दूसरे से दूर होते हैं, तोड़ते-मरोड़ते हैं और रगड़कर एक दूसरे से आगे हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में चट्टानें टूटती हैं, मुड़ती हैं और परिणामस्वरूप भूकम्प पैदा होते हैं।

टक्करों से पर्वतों का निर्माण


टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल सिर्फ भूकम्पों को ही जन्म नहीं देती। प्लेटों की अन्तरक्रिया ज्वालामुखियों को पैदा करती हैं, पर्वतमालाओं को गढ़ती हैं, महासागरों का फैलाव करती हैं और उनमें खाइयाँ बनाती है। यह पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह में बदलाव ला सकती है। महासागरों की छिछली सतह की तुलना में महाद्वीपों पर पड़ने वाला इसका प्रभाव भिन्न है। जब दो महाद्वीपीय प्लेटें एक दूसरे से अलग होती है, तब भूमि धीरे-धीरे फट जाती है जैसे कि अफ्रीका की सतह का अपनी ग्रेट रिफ्ट वैली में अलगाव हो रहा है। इसी तरह जब प्लेटें टकराती हैं, तब वे आमतौर पर भूपर्पटी को मोटा कर लपेट लेती है। ऐसे में भूमि-समूह और कहीं न जाकर ऊपर की ओर बढ़ता है। हिमालय समेत दुनिया की कई पर्वतमालाओं का जन्म इसी तरह से हुआ है। महाद्वीपों का भार उठाए प्लेटों का सामान्य नियम यही है कि टक्कर से पर्वतों का निर्माण होता है अलगाव होने से गहरी घाटियाँ तथा मासागरों के कुण्ड पैदा होते हैं।

भूकम्प केन्द्र, गहराई और तीव्रता


.भूकम्प का केन्द्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकम्प का कम्पन ज्यादा होता है। कम्पन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसकी प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकम्प है तो आस-पास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकम्पीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कम्पन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा। भूकम्प की गहराई जितनी ज्यादा होगी सतह पर उसकी तीव्रता उतनी ही कम महसूस होगी।

भूकम्प के खतरे और भारत


इण्डियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह पाकिस्तान की सीमा को छूती भर है। यह हिमालय के दक्षिण में है। जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है। इण्डियन प्लेट उत्तर पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट, जिसमें चीन आदि बसें हैं, की तरफ बढ़ रही है। यदि ये प्लेट टकराती हैं तो भूकम्प का केन्द्र भारत में होगा। भूकम्प के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है। जोन दो-दक्षिण भारतीय क्षेत्र है जो सबसे कम खतरे वाले हैं। जोन तीन-मध्य भारत, जोन चार-दिल्ली समेत उत्तर भारत का तराई क्षेत्र, जोन पाँच-हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ है। जोन पाँच सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं।

भूकम्प मापने का पैमाना


भूकम्प की जाँच रिक्टर स्केल से होती है। भूकम्प के दौरान धरती के भीतर से जो ऊर्जा निकलती है, उसकी तीव्रता को इससे मापा जाता है। इसी तीव्रता से भूकम्प के झटके की भयावहता का अन्दाजा होता है। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकम्पों को हल्का माना जाता है। साल में करीब 6000 ऐसे भूकम्प आते हैं। जबकि 2 या इससे कम तीव्रता वाले भूकम्पों को रिकार्ड करना भी मुश्किल होता है तथा उनके झटके महसूस भी नहीं किए जाते हैं। ऐसे भूकम्प साल में 8000 से भी ज्यादा आते हैं रिक्टर स्केल पर 5-5.9 के भूकम्प मध्यम दर्जे के होते हैं तथा प्रतिवर्ष ऐसे 800 झटके लगते हैं। जबकि 6-6.9 तीव्रता तक के भूकम्प बड़े माने जाते हैं तथा साल में 120 बार आते हैं। 7-7.9 तीव्रता के भूकम्प साल में 18 बार आते हैं। जबकि 8-8.9 तीव्रता के भूकम्प साल में एक आ सकता है। इससे बड़े भूकम्प 20 साल में एक बार आने की आशंका रहती है। लेकिन यह क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। यदि भूकम्प का केन्द्र नदी का तट पर हो और वहाँ भूकम्परोधी तकनीक के बगैर ऊँची इमारतें बनी हों तो 5 की तीव्रता वाला भूकम्प भी खतरनाक हो सकता है। 8.5 वाला भूकम्प 7.5 वाले भूकम्प से करीब 30 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य


i. ज्यादातर भूकम्प समुद्र की सतह से 80 किलोमीटर की गहराई में होते हैं।
ii. दुनिया के 5 में से 4 भूकम्प प्रशांत महासागर के किनारे उस क्षेत्र में घटित होते हैं जिसे पैसिफिक रिंग ऑफ फायर कहा जाता है।
iii. अक्सर बड़े भूकम्प से पहले कई छोटे-छोटे भूकम्प आते हैं। इन छोटे भूकम्पों को ‘फोरशॉक्स ‘ कहा जाता है। बड़े भूकम्प के बाद ‘मेनशॉक’ और फिर कई छोटे-छोटे भूकम्प आते हैं जिन्हें ‘आफ्टरशॉक’ कहा जाता है।
iv. बड़े भूकम्प के बाद आने वाले कई दिनों और सप्ताह तक ‘आफ्टरशॉक्स’ आते रहते हैं।
v. कोई भी भूकम्प कुछ सेकेण्ड से लेकर कई मिनटों तक रह सकता है। लेकिन अधिकतर भूकम्प एक मिनट या इससे भी कम समय तक होते हैं।
vi. ज्वालामुखी अक्सर तभी फूटते हैं जब भूकम्प आता है, यानी ज्वालामुखी फूटने की वजह भूकम्प ही होता है।
vii. रिक्टर पैमाने पर 2 की तीव्रता वाले भूकम्प महसूस नहीं किए जा सकते। जमीन पर हो रहे कम्पन को आप तभी महसूस कर सकते हैं जब उसकी तीव्रता 3 से अधिक हो।
viii. ज्यादातर भूकम्प पृथ्वी की बड़ी-बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों के किनारे होते हैं।
ix. 8 और इससे अधिक तीव्रता वाला बड़ा भूकम्प औसत रूप से साल में एक बार होता है।
x. भूकम्प की सही वजह ब्रिटिश इन्जीनियर जॉन मिशेल ने 1760 में अपने संस्मरण में व्यक्त की। उन्होंने लिखा कि धरती की सतह के मीलों नीचे चट्टानों के खिसकने से भूकम्प पैदा होते हैं।
xi. भूकम्प का सबसे पहले दर्ज प्रमाण (1831 ईसा पूर्व) चीन के शानडोंग प्रान्त का मिलता है।

क्या करें जब काँपने लगे धरती


भूकम्प के बारे में थोड़ी सी जानकारी और पूर्व सावधानी आपका इससे बचाव कर सकती है।
i. यदि आप घर के भीतर हैं और भूकम्प आ जाए तो, घबराएं नहीं। वहीं रहें और जल्दी से सुरक्षित स्थान जैसे कि भीतरी दीवार, मजबूत डेस्क या टेबल के नीचे बैठ जाएं और उसे पकड़े रखें।
ii. तब तक घर के भीतर ही रहें जब तक कि कम्पन रुक न जाए और आप सुरक्षित बाहर निकलने को लेकर आश्वस्त हों।
iii. आलमारी, बुकशेल्फ, आदमकद शीशा, फर्नीचर जैसी चीजों से दूर रहें क्योंकि ये आपके ऊपर गिर सकती हैं।
iv. खिड़कियों से दूर रहें। बहुमंजिला इमारतों में भूकम्प के दौरान फायर अलार्म या स्प्रिंकल्स बन्द हो सकते हैं।
v. यदि आप बिस्तर पर हैं तो वहीं रहें। तकिए से अपने सिर की सुरक्षा करें।
vi. यदि आप घर से बाहर हैं तो इमारतों, पेड़ों तथा बिजली के खम्भों से दूर सुरक्षित स्थान की तलाश करें और जमीन पर लेट जाएं।
vii. यदि आप कार में हैं तो गति धीमी कर दें और सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाएंँ। तब तक कार के भीतर रहें जब तक कि कम्पन रुक न जाए।
viii. यदि आप खाना बना रहे हैं तो चूल्हें को बन्द कर दें।
ix. भूकम्प के दौरान सीढ़ियों का इस्तेमाल खतरनाक साबित होता है। हड़बड़ी और जल्दबाजी में दुर्घटना के ज्यादा चांस होते हैं। सीढ़ियों से उतरना ही है तो संयम से उतरें। लिफ्ट या एस्केलेटर का इस्तेमाल बिल्कुल न करें।
x. यदि आप भीड़ वाली जगह पर हैं तो घबराएं नहीं और न ही बाहर निकलने के लिये भागें। नीचे झुकें और अपने सिर और गर्दन को हाथों तथा बाहों से ढ़कें।
xi. यदि आप किसी पहाड़ी क्षेत्र में हैं तो सम्भावित भूस्खलनों से सावधान रहें। इसी तरह यदि आप समुद्र के पास हैं तो सुनामी से सतर्क रहें क्योंकि सुनामी भूकम्प के बाद ही आती है। ऐसे में ऊँचे स्थान में चले जाएं।

कहर ढाने वाले भूकम्प


i. मानव इतिहास में सबसे घातक भूकम्प 23 जनवरी 1556 में चीन के शांसी में आया था इसमें करीब 8,30,000 लोग मारे गए थे।
ii. अब तक दर्ज सबसे लम्बा भूकम्प 1960 में चिली में आया था जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9.5 थी। इसमें 2,000 लोग मारे गए थे और 20 लाख लोग बेघर हो गए थे। इसने जापान में सुनामी पैदा की जिससे 138 लोग मारे गए।
iii. 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकम्प में 20 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी।
iv. दुनिया में कहीं न कहीं हर तीसवें सेकण्ड भूकम्प की घटना होती है।
v. दुनिया में हर साल करीब 10 लाख भूकम्प आते हैं लेकिन इनमें से 100 ही नुकसान पहुँचाने वाले होते हैं।
vi. बड़े भूकम्प महासागरों में पैदा होते हैं। इनके चलते ही सुनामी पैदा होती है। इन भूकम्पों का प्रभाव समुद्री लहरों को 500 मील प्रतिघण्टे की रफ्तार से तट की तरफ ले जाता है। दुनिया की सबसे घातक सुनामी वर्ष 2004 में आई थी। इसमें 14 देशों के 2,27,000 लोग मारे गए थे।

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