राज से सम्वाद के लिए होमवर्क करता समाज : भूजल दोहन के आँकडों की समझ 

भूजल नदियों की जीवनरेखा होता है। फोटो : needpix.com
भूजल नदियों की जीवनरेखा होता है। फोटो : needpix.com

22 जून 2020 से बिहार के पच्चीस-तीस संवेदनशील नागरिक नदियों को जिलाने के लिए होमवर्क कर रहे हैं। यह होमवर्क रोज सबेरे 8.30 बजे प्रारंभ होता है। लक्ष्य है चयनित चार नदियों (दो नदियाँ गंगा के उत्तर और दो नदियाँ गंगा के दक्षिण की) को जिन्दा करने के लिए नदी विज्ञान के आधार पर उनको समझना और फिर रोडमेप के साथ राज से सम्वाद करना। होमवर्क का लक्ष्य है, समूह के साथियों की समझ को वैज्ञानिक आधार प्रदान करना। विकसित समझ के आधार पर समाज से सम्वाद करना। चयनित नदियों की समस्याओं और उनके पीछे के कारणों को पहचानना तथा नदी को अविरल और निर्मल बनाने के लिए कछार में निवास करने वाले समाज की मदद से समाज सम्मत हल का दस्तावेज तैयार करना और फिर उस पर राज से सम्वाद करना। डिजिटल प्लेटफार्म पर यह होमवर्क हर दिन बिना नागा किए होता है। उसमें जबाब-सवाल होते हैं। हर प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं। सभी जिज्ञासाओं और शंकाओं का समाधान किया जाता है। नदी पर काम करने वाले लोग अपने अनुभव भी साझा करते हैं। आज इस चर्चा में लेखक को भी भागीदारी का अवसर मिला। 

दिनांक 15 जुलाई 2020 को भूजल से जुड़ी चर्चा हुई। इस चर्चा को, बिहार के संदर्भ में, जयराज मालवीय ने प्रारंभ किया। उन्होंने सेन्ट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा प्रकाशित आँकडों की मदद से बिहार के क्रिटिकल, सेमी-क्रिटिकल तथा सुरक्षित जिलों की चर्चा की। अपने उद्बोधन में उन्होंने ग्राउंड वाटर रिचार्ज के लिए बरसाती पानी के सदुपयोग पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। सुझाव था कि ग्राउंड वाटर रिचार्ज की स्टेज को चयनित चारों नदियों के संदर्भ में समझा जाए। उन सभी नदियों के कछार में भूजल दोहन की हालिया स्टेज का पता लगाया जाए। यह जानकारी, आसानी से सेन्ट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के बिहार के पटना स्थित रीजनल आफिस से प्राप्त की जा सकती है। इस जानकारी के आधार पर रीचार्ज की मात्रा की मोटी-मोटी मात्रा का अनुमान लगेगा। उन नदियों के कछार के लोगों से सम्वाद करते समय समस्या की गंभीरता का भान होगा। लेकिन कुछ लोगों का मत था कि समाज के साथ प्रतिशत, आँकड़े या ग्राउंड वाटर दोहन की स्टेज जैसे, शब्द, सहज सम्प्रेषाण के अभाव में, बहुत कारगर नही होते। नदी चेतना यात्रा के संयोजक पंकज मालवीय की भी यही चिन्ता कई दिनों से सता रही थी। वे उसका हल चाहते थे।

आज, डिजिटल सम्वाद के समाप्त होने के बाद, जयराज, प्रीति सिंह और पंकज मालवीय तथा लेखक के बीच ग्राउंड वाटर दोहन की स्टेज (ओव्हर एक्सप्लायटेड, क्रिटिकल, सेमी-क्रिटिकल तथा सुरक्षित) को नदी समाज के साथ होने वाले सहज सम्प्रेषाण के सहज तरीकों पर विचार विमर्श हुआ। तय हुआ कि इस तथ्य की वस्तुस्थिति और असर को दो तरीकों से समाज के साथ साझा किया जाए। तरीके निम्नानुसार हैं-

वस्तुस्थिति 

सभी अवगत हैं कि हर साल बरसात के सीजन में ग्राउंड वाटर रीचार्ज का काम लगभग पूरा हो जाता है। इस जिम्मेदारी को पृकृति का हर घटक निभाता है। पानी की एक निश्चित मात्रा को धरती में उतारता है। हर साल होने वाली इस कुदरती प्रक्रिया के कारण जल स्रोत तथा नदियाँ अविरल और निर्मल रहती हैं। दोहन की वस्तुस्थिति को समझाने के लिए उन्हें बताया जा सकता है कि बरसात में पानी की जितनी मात्रा धरती में उतरी थी, उससे अधिक पानी की मात्रा को यदि हमने कुओं, चापाकल और सिंचाई नलकूपों से निकाली तो वह स्थिति ओव्हर एक्सप्लायटेषन कहलावेगी। यदि निकाली मात्रा कुदरती रीचार्ज का 90 से 100 प्रतिशत के बीच है तो वह दोहन क्रिटिकल कहलावेगा। यदि निकाली मात्रा कुदरती रीचार्ज का 70 से 90 प्रतिषत के बीच है तो वह स्थिति सेमी-क्रिटिकल कहलावेगी। यदि निकाली मात्रा कुदरती रीचार्ज का 70 प्रतिशत से कम है तो वह दोहन सुरक्षित कहलावेगा। इन तथ्यों को आसानी से समाज को बताया तथा समझाया जा सकता है। सहज सम्प्रेषण का यह थोडा बेहतर तरीका है। बैंक में जमा राशि की निकासी के आधार पर भी उसे समझा जा सकता है।

भूजल दोहन की स्टेज का असर 

ऊपर के पैराग्राफ में हमने नदी के कछार में भूजल के दोहन की चार स्थितियों का उल्लेख किया है। उन स्थितियों का जल स्रोतों, पानी की उपलब्धता और नदियों के प्रभाव पर असर निम्नानुसार है- 

ओव्हर एक्सप्लायटेशन स्टेज - इस स्थिति में कुओं, चापाकल और सिंचाई नलकूपों एवं नदी के बरसात के बाद के प्रवाह द्वारा कुदरती रीचार्ज की पूरी मात्रा से भी अधिक पानी को निकाल लिया जाता है। ऐसी हालत में पूरे कछार के सभी जल स्रोत अर्थात कुओं, तालाब, स्टाप-डेम, चापाकल, सिंचाई नलकूप और नदी पूरी तरह सूख जावेंगे। कछार जल विहीन होने लगेगा। कछार में भीषण जल संकट पैदा हो जावेगा। चेतना यात्रा के दौरान समाज को इस हकीकत से परिचित कराया जाना चाहिए। 

क्रिटिकल स्टेज - इस स्थिति में बरसात में होने वाली कुदरती रीचार्ज की पूरी मात्रा का 90 से 100 प्रतिशत तक पानी को निकाल लिया जाता है। ऐसी हालत में कछार के सभी जल स्रोत अर्थात कुओं, तालाब, स्टाप-डेम, चापाकल, सिंचाई नलकूप और छोटी बडी नदियाँ सूख जावेंगी। कछार का जल संकट, ओव्हर एक्सप्लायटेशन स्टेज वाले जल संकट की तुलना में थोडा कम अवश्य होगा पर उसका असर सभी जगह दिखाई देगा। नदी चेतना यात्रा के दौरान समाज को इस हकीकत से परिचित कराया जाना चाहिए। 

सेमी-क्रिटिकल स्टेज - इस स्थिति में कुदरती रीचार्ज की पूरी मात्रा का 70 से 90 से प्रतिशत पानी को निकाल लिया जाता है। ऐसी हालत में कछार के सभी उथले जल स्रोत अर्थात कुओं, तालाब, स्टाप-डेम, चापाकल, सिंचाई नलकूप और छोटी बडी नदियाँ सूख जावेंगी। कछार का जल संकट, क्रिटिकल स्टेज वाले जल संकट की तुलना में थोडा कम अवश्य होगा पर कई जगह उसका असर दिखाई देगा। नदी चेतना यात्रा के दौरान समाज को इस हकीकत से परिचित कराया जाना चाहिए।

सुरक्षित स्टेज - इस स्थिति में कुदरती रीचार्ज का 70 प्रतिशत पानी बचता है। यह सुखद स्थिति है। इस प्रकार की स्थिति आज से 50 -60 साल पहले पाई जाती थी। इस स्थिति में पूरे कछार के अनेक जल स्रोत अर्थात कुओं, तालाब, स्टाप-डेम, चापाकल, सिंचाई नलकूप और नदी लगभग जिन्दा रहते हैं। पूरे साल कछार में जल संकट से लगभ मुक्त रहता है। यदि ऐसा नहीं है तो रीचार्ज सुझावों के बारे में प्रयासों का उल्लेख होना चाहिए। चेतना यात्रा के दौरान समाज को इस हकीकत से परिचित कराया जाना चाहिए। उसकी आवश्यकता को प्रतिपादित करना चाहिए। सहज सम्प्रेषण का यह थोडा बेहतर तरीका है। 

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