बिहार में तटबंध: बाढ़ रोकने में सफल या विफल

29 Jan 2021
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बिहार में तटबंध: बाढ़ रोकने में सफल या विफल
बिहार में तटबंध: बाढ़ रोकने में सफल या विफल

बिहार में तटबंध बाढ़ से बचाव में बुरी तरह विफल रहे हैं। इनमे अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों पर एक नज़र डाले कि वे क्यों विफल रहे और बिहार में बाढ़ के संभावित समाधान क्या हैं?

बिहार में बाढ़ का इतिहास औऱ किन कारणो से यहाँ बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है ?

बिहार में बाढ़ एक सालाना प्राकृतिक घटना है। कुछ दशक से एक भी साल ऐसा नहीं  होगा, जब बिहार ने बाढ़ का सामना ना किया हो। 6 दशकों में बिहार को भारी  नुकसान झेलना पड़ा है।  सन् 1954 का भीषण बाढ़ जिसने उत्तर बिहार का 2.46 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन को बहा डाला और  करीब 7.61 मिलियन आबादी को नुकसान पहुंचाया। 

 2020: 2020: बिहार में बाढ़ क्षेत्र का मानचित्र, Source:IWP Flickr Album फोटो

 वर्ष 1974 में, एक बार फिर बिहार को बाढ़ का सामना करना पड़ा। जिसमे केवल उत्तरी भाग ही नही बल्कि दक्षिण भाग भी चपेट में आया । और इसमें करीब  16.39 मिलियन लोग भी प्रभावित हुए थे ।वर्ष 1987 में, बीस वे शताब्दी का सबसे भयानक बाढ़ जो पूरे राज्य को बहा ले गयी। जिसमे 1373 लोग मारे गए।

वर्ष 2004 और 2007 मे भी बहुत बार बाढ़ से कई आपदाएं आई। अगस्त 2008, कोसी नदी की भयानक बाढ़ ने राज्य को हिला के रख दिया था। उस बाढ़ ने आधे राज्य को प्रभावित किया। यह बिहार में बाढ़ के पांच दशकों में सबसे अधिक नुकसान करने वाली और बिहार के बाढ़ इतिहास में सबसे भयावहक बाढ़ के रूप में जानी जाती है , बताया जाता है की यहाँ बाढ़ नेपाल में तटबंध टूटने का परिणाम थी।

बाढ़ के बाद, अतिसंवेदनशील भूमि के लिहाज़ से बिहार सबसे अधिक बाढ़ ग्रसित भूमि वाला राज्य बन गया है। कुल बाढ़  ग्रसित राज्य की भूमि 68.80 लाख हेक्टेयर है, जिसका कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत और देश में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 17.2 प्रतिशत है। बिहार गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन के बाढ़ क्षेत्र के अंतर्गत आता है और इसका स्थान, जल विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान  के साथ मिलकर इसे दुनिया के सबसे खराब बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से एक बनाता है।

गंगा नदी पश्चिम से राज्य में प्रवेश करती है और पूर्व की ओर बहती है। बड़ी संख्या में नदियाँ- घाघरा, गंडक, बुरही गंडक, बागमती, अधवारा नदियों का समूह, कमला, कोसी (जिसे बिहार का दुख भी कहा जाता है) और महानंदा गंगा में मिलती हैं। ये नदियाँ अपने रास्ते बदलने के लिए बदनाम है। अपने बढ़ते रास्तों पर ये डेल्टा बनाते है जिस कारण बहुत सारी मिट्टी जमा हो जाती है. 

नेपाल से अधिकतम नदियाँ उत्तरी क्षेत्र से प्रवेश करती है जहाँ अधिक ढलान होने से गाद नदी मे जमा हो जाती है इसके अलावा, उत्तर बिहार में बाढ़ एक स्वतंत्र भौतिक घटना नहीं है। ये  प्राकतिक घटनाओ का एक चक्र है जिसमें साल दर साल पहाड़ों मे होने वाली वर्षा से मैदानी  क्षेत्रों मे गाद का बहना, भूजल की स्थिति, जल निकायों में भंडारण, सतही निरोध, जलभराव, जल निकासी, वनों की कटाई, केंद्रित वर्षा आदि है ।

बिहार की चपटी भूभाग मे, पानी और गाद नदी बहा के लाती है जो नेपाल से शुरू होती है और औसत  वर्षा 1200 mm होती है, जो लगभग 1000 से 2000 mm है और बिहार को बाढ़ ग्रसित क्षेत्र बनता है.

नदी तटबंध क्या होता है ? इन्हे क्यों बनाया जाता है ?

यह तटबंघ  एक कृत्रिम मानव निर्मित बांध है जो पूरी नदी के किनारे पर बाढ़ से भूमि को बचाने के लिए बनाया जाता है। इसको बनाने कि विधि उस जगह के भूगोलिक परिस्थिति और काम के हिसाब से अलग हो सकती है। कुछ बांध या तटबंध ठोस मिट्टी से बनाए जाते है, लेकिन बहुत बांध पहले से बने हुए उपलब्ध है जो नदी के तल से लिए गए पत्थरों से बनाए जाते है। बड़े बांध अक्सर बड़ी दीवार से बनाई जाती है जिसमे बड़े पत्थरों टुकड़े और रेत के कट्टो से भरे होते है। यह नदी के प्रवाह को धीमा करने मे सक्षम होते है। 

1850 ब्रिटिश सरकार ने नए तटबंध बनाने की ज़िम्मेदारी ली  ताकि उनकी रेलवे लाइनें क्षतिग्रस्त होने से बच सके। किंतु जब वह बाढ़ को रोक ना पाए तो कुछ वक़्त बाद ही उन्होनें उसे ध्वस्त कर दिया । वर्ष 1953 मे  लोगों का सामना एक बार फिर से कोसी नदी की बाढ़ से हुआ । जिसके बाद फिर से तटबंध की मांग उठाई गई । लोगों के दबाव के चलते सरकार ने बांध बनाने की  मंजूरी दे दी।

ऐसे तटबंध पर नजरअंदाज करने से बहुत नुकसान हुआ । जो बहुत ही अच्छे ढंग से भारतीय इंजीनियरो द्वारा बताए गए थे।इनका पूरा अध्ययन बाहर के देश जाकर हुआ। जिनमे चीन, मिसिसिपी,अमेरिका जाकर वहां के तटबंध के बारे में जाना और अतः 1955 मे कोसी नदी पर तटबंध के कार्य को मंजूरी मिली।

क्या नदियों के तटबंध राज्य मे बाढ़ को रोकने में सक्षम है?

वर्तमान समय में देश के अंदर 35199.86 किलोमीटर तटबंध बनाए गए हैं जिनमें से 1.8693 मिलियन हेक्टेयर बाढ़ ग्रसित जमीनों को बचाने का दावा किया गया है। इसके अलावा बहुत सारे  बांध और ड्रेनेज सिस्टम गांव के आसपास बाढ़ से सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं।लेकिन इतना सब कुछ कार्य होने के बावजूद भी 1952 में बाढ़ ग्रसित क्षेत्र में 25 मिलियन हेक्टर ,1980 में 40 मिलियन हेक्टर, 2010 में 49.815 million हेक्टर तक बढ़ गया। यह सभी आकलन बाढ़ प्रबंधन द्वारा किया गया है। जिसे नीति आयोग द्वारा बारहवीं पंच वर्षीय योजना में गठित किया गया था।

यह ये दर्शाता है कि बहुत प्रयासों के बावजूद भी बाढ़ से नुकसान होता रहा है और योजनाओं में बदलाव कि ज़रूरत है।"

 2020: 2020: तटबंध क्षेत्र में जीवन जलमग्न हो गया Source:IWP Flickr Album फोटो

क्यों तटबंध बाढ़ से सुरक्षा देने मे विफल है?

ऊंचे क्षेत्रों से बहने वाली नदियां अपने साथ ढेर सारा मलबा लेकर आती हैं, जैसे पूर्वी हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी। जब ये नदिया पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। तो सारा मलबा नदीयो में जमा हो जाता है। जिस कारण नदियों का स्तर भी बढ़  जाता है

अगर नदी स्वतंत्र रूप से बह रही है तो यह निचली भूमि तक पहुंच जाती है जिस  कारण नदी का पानी काफी दूर तक फैल जाता है। जिससे मिट्टी उपजाऊ हो जाती है।अगर नदी को तटबंधित कर दिया जाता है, तो उसका जल स्तर काफी बढ़ जाता है और कई बार तो उससे पानी ओवरफ़्लो होने लगता है। अत: इसे रोकने के लिए हम बड़े तटबंधन बनाये या फिर नदी से गाद को लगतार निकाले । लेकिन दोनों सूरत में ये काफी महंगे पड़ेंगे। 

इसके अलावा, उच्चे स्तर पर बहने वाली नदियो के त्रीव दबाव से तटबंदान टूट जाते है। तटबंध के टूटने के कारण आने वाली बाढ़ गैर-तटबंधित नदियों पर बाढ़ की तुलना में अधिक विनाशकारी होती है।

यही नहीं तटबंध पानी को एक तटबंधित नदी में वापस जाने से रोकते हैं जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ और जल-जमाव होता है

हालाकि कहीं कहीं रिसाव के लिए पाइप्स लगाए गए है लेकिन ये सब विफल ही हुआ है।उदाहरण के लिए बिहार में कोसी प्रोजेक्ट का लक्ष्य था 2000 स्क्वेयर किलोमीटर तक की सुरक्षा करना। 1990s तक 3000 स्क्वेयर किलोमीटर से क्षेत्र पानी से भरे थे।

बाढ़ और तबाही के अलावा तटबंधों के क्या निहितार्थ हैं?

स्थानीय लोग जिन्होंने अपनी जमीन गवाही हैं तटबंध बनाने के लिए अब उनकी वह जमीन बेकार हो चुकी है। जिस पर अब कोई भी व्यवसाय नहीं हो सकता। ज्यादातर जमीन पानी के कारण भर चुकी हैं और तटबंध के बनने से और भी बेकार हो चुकी हैं। पानी के बहाव से नदी द्वारा पोषक तत्व निचले जमीनों तक आते हैं पर तटबंध के कारण जमीने बेकार हो चुकी है। इसके कारण जीव जंतुओं के आवास और पानी का बहाव भी रुक जाता है।

तटबंधों के निर्माण के बाद उनकी अधिकांश भूमि जल भराव की स्थिति में आ गई है। उच्चतर नदी का पानी अपने साथ पोषक तत्व लाता है जो बाढ़ के मैदानों में जमा हो जाता है और इसलिए भूमि की उर्वरता को बढ़ाता है लेकिन अब तटबंधों की उपस्थिति के कारण पोषक तत्वों का जमाव भूमि की उर्वरता को प्रभावित नहीं करता है। तटबंधों के निर्माण से अंदरूनी बनाम बाहरी समस्या का भी सामना करना पड़ा, जहां बाहरी लोगों को बाढ़ राहत और बचाव प्रयासों के दौरान अधिक विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। 1955 में कोसी तटबंध के निर्माण के दौरान, बाढ़ के कारण, लगभग 304 गाँवों को तटबंध के भीतर नहीं छोड़ा जा सका था।

जैसे नदी का जल भराव क्षेत्रों में होने के कारण 304 गांव को अपनी जगह छोड़नी पड़ी कोसी नदी में तटबंध के कार्य के दौरान वर्ष 1955। हालांकि गांव द्वारा आंदोलन करने पर उन्हें आवास दिए गए, लेकिन उनके खेत खलियान सब बाढ़ में डूब चुके थे। ऐसे अव्यावहारिक कदम से आम आदमी अपने ही गांव में अपनी ही जमीन पर कुछ भी उगाने के लिए सक्षम नहीं है और वह गरीबी की कगार तक पहुंच चुका है और असहाय हैं।

 2020: 2020: मरम्मत का काम चल रहा है Source:WRD Bihar Twitter फोटो

तटबंध के टूटने की समस्या के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है।

बिहार सरकार ने इरिगेशन फ्लड मैनेजमेंट एंड ड्रेनेज नियम 2003 में निकाला था और जो संशोधित हुआ 2015 2016 और 2017 में नियम राज्य के लिए बाढ़ के दौरान, पूर्व और बाद की कार्य योजना की रूपरेखा तैयार करते हैं। इसके साथ ही, राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के पास बाढ़ के लिए एक विस्तृत मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) है। इसके अलावा, राज्य ने रिस्क रिडक्शन के लिए 2015-2030 का रोडमैप भी तैयार किया है। और बिहार राज्य जल नीति, 2014 में 'बाढ़ और सूखे के प्रबंधन' के लिए समर्पित एक खंड है।

बाढ़ प्रबंधन नियमों के अनुसार, अधिकारियों को अगले बाढ़ के मौसम से पहले बाढ़ से बचाव के कामों को अंजाम देना होगा। नियमित रूप से, तटबंधों के वर्ष निरीक्षण के लिए, बाहर किए जाने की आवश्यकता है और दरारें, कटाव या छिद्र वाले कमजोर स्थलों की पहचान की जानी चाहिए। इसके आधार पर, युद्धस्तर पर शीघ्र कार्रवाई की जानी है। बाढ़ के मौसम के दौरान, अधिकारी विशेष रूप से संवेदनशील और तटबंधों की सुरक्षा के लिए गहन गश्त का कार्य करेंगे।

इसके साथ ही, अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए:

  1. बाढ़ संचार का त्वरित प्रसार,

  2. केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ के कार्य का चौबीस घंटे

  3. बाढ़ से लड़ने वाली सामग्रियों की उपलब्धता और

  4. वर्षा की प्रवृत्ति, गेज रीडिंग और बाढ़ क्षेत्र पर साप्ताहिक रिपोर्टों का प्रसार।

तटबंध टूटने के स्थिति में इंजीनियर को यथाशीघ्र बांध को बंद करने की कोशिश करनी चाहिए हालांकि महेंद्र यादव  सुपौल के निवासी और नेशनल अलायंस ऑफ पीपल मूवमेंट के सदस्य के अनुसार मानसून और तेज वर्षा के दौरान टूटे हुए बंद को ठीक करना असंभव है । यह उसी तरह है जिस तरह एक बड़ी चोट पर छोटी बैंडिट लगाने ना के बराबर है और यह एक हर साल की घटना है

सभी बताएं गए नियमों के बावजूद भी राज्य हर साल बाढ़ से प्रभावित रहता है नियम केवल कागजों पर दिखते हैं बजाय जमीनी हकीकत के।तटबंध की लगातार विफलता के कारण भी सरकार इनको क्यों बनाती रहती है।

बाढ़ मुक्ति अभियान संस्था के दिनेश कुमार मिश्रा ने कहा कि बांध बनाना, रखरखाव केवल एक बहाना है असल पूंजी का दुरुपयोग करना है। और तो और तटबंध के कार्य में जो इंजीनियर होते हैं उनकी भागीदारी बड़े बड़े राजनेताओ के साथ होती है जिस कारण तटबंध कार्य की योजनाओं में पूरी तरीके से कार्य ढंग से नहीं हो पाता है। और हर साल चलता रहता है।

बाढ़ रोकने के लिए क्या हमारे पास तटबंध के बजाय कोई व्यवहारिक विकल्प है ?

तटबंध बाड़ रोकने का एक अहम हिस्सा है जोकि बाढ़ की तीव्रता को कम करने में भी मदद करता है दूसरे विकल्प जैसे कैसे जियो ट्यूब, ढांचे नुमा पत्थर के दीवारें जो बहुत महंगी पड़ती हैं बाढ़ रोकने के लिए बहुत प्राकृतिक इंजीनियरिंग पहल भी किए गए हैं जिनमें पेड़ पौधों को भी किनारों पर लगाया गया है जो पैसे भी बचाती हैं साथ ही साथ प्राकृतिक संरचना भी बनाए रखती हैं।

लेकिन बिहार में बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जिसे हम रोक नहीं सकते पर उसे विनाशकारी होने से रोका जा सकता है। इसके लिए राज्य सरकार को फ्लड रिस्क प्रोटेक्शन और बाड़ को भयानक होने से रोकने का पालन करना चाहिए जो प्रकृति को ध्यान में रखकर लोग और ज़मीन की भी रक्षा करेगा।

इसके साथ ही, राज्य को अपनी बाढ़ की तैयारी में सुधार करने की आवश्यकता है -

  1. अपने बाढ़ पूर्वानुमान को उन्नत करके, जो स्थान-विशिष्ट होना चाहिए, पर्याप्त रूप से अग्रिम में, सरल भाषा में और कमजोर लोगों तक पहुँचना चाहिए।

  2. उप-घाटियों के लिए विशिष्ट वर्षा की जानकारी प्रदान करना।

  3. कमजोर लोगों की भागीदारी के साथ एक कार्यात्मक आपदा प्रबंधन योजना तैयार करें

  4. विभिन्न स्थानों पर नदियों की बाढ़-वहन क्षमता का आकलन

  5. इस तरह के प्रवाह शासनों के आधार पर विभिन्न प्रवाह शासनों के बाढ़ के नक्शे तैयार करना और आपातकालीन कार्य योजना तैयार करना

  6. बेहतर निकासी योजना

  7. बाढ़ प्रूफ आवास

  8. अधिक राहत शिविर ताकि लोग बेघर न हों और सुरक्षा के लिए राजमार्गों या तटबंधों का सहारा न लें

इसके अलावा, शीघ्र पुनर्निर्माण, क्षतिपूर्ति और बीमा के संदर्भ में एक बेहतर बाढ़-पश्चात रिकवरी रणनीति की आवश्यकता है।

जनता की आवाज

तटबंध के टूटने से बाढ़ जलभराव के कारण लोगों की जिंदगी दूभर हो गई है। तटबंध बनाए जाने के कारण जो बाढ़ आती है उससे जनता यह समझने में असहाय है कि सरकार उनका किस प्रकार का सहयोग कर रही है। बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के साथ बातचीत पर आधारित यह हमें सूचित करता है कि वार्षिक उदासीनता से निपटने के लिए कितना कुछ किया जाना चाहिए।

साल के किस समय आपने बाढ़ का सामना किया और किस प्रकार से प्रभाव पड़ा?

बाढ़ आमतौर पर जुलाई और सितंबर के बीच देखा जाता है जब मानसून मौसम भी शुरू होता है बाढ़ फसलों को भारी नुकसान पहुंचाती हैं यही नहीं बाढ़ का पानी घरों में भी घुस जाता है जो कि अनाज और बाकी संसाधनों को नुकसान पहुंचता है जिस कारण लोगों को अपनी जगहों को छोड़कर पलायन करना पड़ता है और भारी नुकसान झेल कर भी अपने जेब से धन खर्च ना पड़ता है जो कि बहुत ही दुखदाई है।

पिछले कुछ सालों में क्या आपने सरकार द्वारा कुछ पहल बाढ़ के रोकथाम के लिए अपने इलाके में देखी है । नहीं मुख्य पहल बहुत पहले ली गई थी हर साल सरकार तटबंध को सुचारू रूप से ठीक करने की कोशिश करती है पर कुछ वर्षों में ऐसी कोई ठोस पहल सरकार द्वारा देखी नहीं गई।

 जब आपके घर पानी के भीतर डूबे हों तो बाढ़ के दौरान सुरक्षित रहने के लिए आप क्या उपाय करते हैं?

बाढ़ के दौरान, हम दो एहतियाती उपाय करते हैं। सबसे पहले, हम लकड़ी के चौकी को आवश्यक घरेलू सामान के रूप में रखते हैं और जब भी बाढ़ का पानी घर में प्रवेश करता है, हम सभी आवश्यक वस्तुओं को चौकी पर रख देते हैं और अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए उस पर रहते हैं। अगर हमें लगता है कि आने वाले दिनों में बाढ़ के पानी में वृद्धि हो सकती है, तो हम घर छोड़ देते हैं और पास के तटबंध के किनारे तिरपाल में बस जाते हैं। घर से बाहर निकलते समय हम घर का सारा सामान नहीं ले पाते हैं, लेकिन खाना बनाने के लिए अनाज, कपड़े और बर्तन लेकर जाते हैं।

 2020: 2020: हैंडपंप से पानी लेते बच्चे Source:IWP Flickr Album फोटो

बाढ़ के समय आप सुरक्षित पानी और स्वच्छता कैसे सुनिश्चित करते हैं?

बाढ़ के समय, हमारे पास भोजन भी नहीं होता है, सुरक्षित पानी और स्वच्छता छोड़ दें। तटबंधों पर शायद ही कोई शौचालय उपलब्ध हो, परिणामस्वरूप, हम खुले में शौच करते हैं। पानी के लिए, हम तटबंधों पर लगे हैंडपंपों पर निर्भर हैं। हैंडपंप न होने की स्थिति में हम पास के गांव में ट्यूबवेल से पानी लाते हैं।

जो भी नुकसान हुआ क्या आपको उसका भत्ता मिला?

भत्ता मिलना निर्भर करता है जब ऑफिसर आपके संपत्ति का आकलन कर सरकार को आपके नुकसान की रिपोर्ट भेजते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि घर के नुकसान को रिपोर्ट में वर्णन नहीं किया जाता जिस कारण वर्ष भत्ता बहुत कम मिलता है। फसल के नुकसान का आकलन लगाना भी बहुत निराशाजनक होता है एक लाख की फसल के नुकसान में आपको केवल 20 से ₹30 हज़ार ही मिलते हैं। लेकिन इस साल केवल ₹6000 बैंक में भत्ते के रूप में प्राप्त हुए हैं।

क्या आपको लगता है तटबंध ही आपके क्षेत्र में बाढ़ का कारण है?

नहीं ऐसी बात नहीं है। तटबंध न होने पर भी बाढ़ आई। लेकिन, तटबंधों के निर्माण के बाद, बाढ़ के पानी के कारण होने वाला नुकसान अधिक है। तटबंधों ने नदी के लिए सीमाएँ निर्धारित की हैं, जो अन्यथा बहने के लिए स्वतंत्र थीं, और इसलिए पानी एक सीमित स्थान में जमा हो जाता है। जब भारी बारिश के कारण नदी का निर्वहन बढ़ता है, तो कई बार तटबंध टूट जाते हैं, जिससे बाढ़ का पानी तेज गति से गांवों में प्रवेश करता है और भारी नुकसान होता है।

कितनी बार तटबंध का रखरखाव रखा गया है ताकि कभी बांध टूटे ना मानसून के समय में?

तटबंधों की मरम्मत हर साल कम या ज्यादा होती है, लेकिन ज्यादातर मरम्मत का काम उस हिसाब से नहीं होता है जिसके कारण मानसून के मौसम में तटबंध अक्सर टूटते हैं। जब तटबंध टूटते हैं, तो हम संबंधित अधिकारी को इसके बारे में सूचित करते हैं, फिर मरम्मत कार्य किया जाता है।


बाढ़ आने के बाद सामान्य होने में कितने दिन लगते हैं?

हम अपने घरों में तभी लौट सकते हैं जब बाढ़ के पानी में पूरी तरह से पानी भर जाए। हमारे मिट्टी के फर्श बाढ़ के पानी के कारण पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और मरम्मत की आवश्यकता होती है। हम किसान-मजदूर हैं और हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि इसे तुरंत पूरा किया जा सके।

हम घर की मरम्मत के लिए और अपने खेतों की दोबारा बुवाई के लिए कर्ज लेते हैं, फिर कर्ज चुकाने के लिए हमें मजदूरी के काम के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। लिहाजा, घरों की मरम्मत से लेकर कर्ज चुकाने तक में छह महीने लगते हैं।


आप बाढ़ के बाद के मौसम से कैसे निपटेंगे? जागरूकता कार्यक्रमों के संदर्भ में क्या आपको कोई सरकारी सहायता मिलती है?

सरकारी स्तर पर एक बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम नहीं किया जाता है, लेकिन छोटे पैमाने पर कार्यक्रम होते हैं जिसमें हमें सलाह दी जाती है कि बाढ़ के बाद स्वच्छता कैसे बनाए रखी जाए। हमें बाढ़ के बाद सरकार से संतोषजनक मदद नहीं मिलती है और यह हमारे द्वारा लिया गया ऋण है जो हमें अपना जीवन फिर से शुरू करने में मदद करता है।

 

अभिस्वीकृति : विशेष धन्यवाद Umesh K Ray* जिन्होंने बिहार में जमीनी स्तर पर लोगो से बातचीत करके जानकारी उपलब्ध कराई है।

https://www.indiawaterportal.org/faqs/embankments-in-bihar

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