चालीस गाँवों की लड़ाई

रिपोर्ट
कानूनी स्थिति जो भी हो, ग्रामीण इस मामले में झुकने को तैयार नहीं हैं। गीताचार्य ने चेतावनी दी है कि अगर एफडीसीएम गिरफ्तार लोगों को रिहा नहीं करता और जुर्माने के तौर पर पंचायत को 10000 रुपये अदा नहीं करता, तो वे जल्द ही 'जेल भरो' आन्दोलन शुरू करेंगे।महाराष्ट्र वन विकास निगम (एफडीसीएम) के अधिकारियों और नागपुर जिले की लोनारा ग्राम पंचायत के बीच तनातनी काफी बढ़ चुकी है।

31 दिसम्बर, 2004 को गाँव के करीब 600 लोगों ने मिलकर एफ़डीसीएम के एक ट्रक को इसलिये जब्त कर लिया कि ग्राम सभा की अनुमति लिये बगैर निगम ने पंचायत के दायरों में आने वाले वन क्षेत्र के पेड़ों को कटवाना शुरू कर दिया था। इसपर एफडीसीएम ने 8 जनवरी 2005 को प्रतिक्रिया जताई। करीब 300 पुलिस वालों को साथ लेकर निगम के महाप्रबंधक अनिल मोहन ने गाँव पर धावा बोला और ट्रक को छुड़ा लिया। बारह लोगों को गिरफ्तार कर नागपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

ग्रामीणों का कहना है कि गिरफ्तार किये लोगों ने कोई अपराध नहीं किया है और वे जमानत के लिए अर्जी भी नहीं देंगे। उनका दावा है कि 73वें संविधान संशोधन के जरिये उन्हें जंगलों पर पूरा अधिकार दिया गया है और वे ग्राम सभा की ओर से यह कार्रवाई कर रहे थे, जिससे पेड़ काटने से पहले एफडीसीएम ने इजाजत नहीं ली थी। लोनारा पंचायत महाराष्ट्र की उन 40 ग्राम पंचायतों में एक है जिन्होंने अपने-अपने गाँवों को ‘गणराज्य’ घोषित कर रखा है। ये पंचायतें गाँवों की स्वायत्तता और दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलाप में सरकार की दखलअंदाजी के खिलाफ एक मौन लड़ाई लड़ रही हैं।

यह अभियान 91 वर्षीय गाँधीवादी तुकमदादा गीताचार्य के नेतृत्व में चल रहा है। उनका कहना है कि एफडीसीएम व्यावसायिक उद्देश्य से वनों का दोहन कर रहा है। 73वें संशोधन के जरिये ग्रामीणों को निस्तार (संसाधनों के उपयोग सम्बन्धी) अधिकार प्राप्त हैं। ग्रामसभा गाँव स्तर पर सर्वोच्च संस्था है। गीताचार्य का आरोप है कि संयुक्त वन प्रबंधन के जरिये जंगलों को विकसित करने की बजाय एफ़डीसीएम सैकड़ों पेड़ों की कटाई कर गाँव के पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है।

एफडीसीएम के महाप्रबंधक का तर्क है कि सरकारी गजट के अनुसार जंगलों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है और इन पर निगम का पूरा अधिकार है। इसलिये वे पेड़ों की कटाई कर सकते हैं। इसके लिये उन्हें पंचायत क्या ग्राम सभा की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। कई विशेषज्ञ निगम के व्यावसायिक उद्देश्यों के पक्ष को ध्यान में रखते हुए निगम को ही समाप्त कर देने के पक्ष में हैं। पिछले साल मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर पीठ ने निगम द्वारा पेड़ काटने की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी, मगर बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर दिया।

कानूनी स्थिति जो भी हो, ग्रामीण इस मामले में झुकने को तैयार नहीं हैं। गीताचार्य ने चेतावनी दी है कि अगर एफडीसीएम गिरफ्तार लोगों को रिहा नहीं करता और जुर्माने के तौर पर पंचायत को 10000 रुपये अदा नहीं करता, तो वे जल्द ही 'जेल भरो' आन्दोलन शुरू करेंगे।

पंचायती राज अपडेट, फरवरी 2005

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading