चंबल में दशकों से है पीने के साफ पानी की दरकार

23 Mar 2012
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लोक समिति के अध्यक्ष सुल्तान सिंह का कहना है कि वैसे तो चंबल में कई अहम समस्याएं हैं लेकिन इंसानी जीवन के मद्देनजर अगर सरकार अपने वादे के मुताबिक उसे पीने का साफ पानी मुहैया नहीं करा पाती है तो इसे सरकार की नाकामी ही माना जाएगा। भले ही सरकार की ओर से लंबे समय से जल संकट की कार्ययोजनाएं बनाई जारी रही हो लेकिन साफ पीने के पानी का कोई इंतजाम न होने से लोगों के सामने इस बात का संकट है कि साफ पीने का पानी मुहैया हो तो कहां से।

इटावा, 22 मार्च। गुरुवार को विश्व जल दिवस पर पानी बचाने को लेकर चारों ओर चर्चाएं हो रही है। ऐसे में साफ पानी के मुद्दे को पूरे तरह से नजरअंदाज रखा गया है। देश में शुद्ध पानी की विकट समस्या है। लोगों को हलक तर करने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। लेकिन जिन कंधों पर इस समस्या के समाधान की जिम्मेदारी है, वे घोटाले कर सरकारी धन को डकारने में जुटे हैं। सरकार हमेशा इस बात का दावा करती रही है कि हर आमोखासा को पीने का साफ पानी मुहैया कराया जा रहा है। इसी आबादी में सबसे खास मानी जाएगी चंबल घाटी। जहां के लोग पीने के साफ पानी के लिए लंबे अरसे से तरस रहे हैं। इंडिया मार्का जो हैंडपंप एक दशक पहले स्थापित किए गए थे उनसे भी साफ पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है वैसे जब इन हैंडपंपों को स्थापित किया गया तब भी इस बात का परीक्षण नहीं किया गया कि हैंडपंप से साफ पानी आ रहा है या नहीं। लेकिन लोगों की जरूरत और राजनेताओं द्वारा लोगों को खुश करने की व्यवस्था ने हैंडपंपों को खासी तादाद में स्थापित तो करा दिया लेकिन हकीकत में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि हैंडपंप साफ पानी दे रहा है या नहीं। गांववालों ने इस बात की जब जल निगम अफसरों से शिकायत की तो यह बात खुल करके सामने आई कि हकीकत में गांव के लोगों की ओर से जो शिकायत की गई है वो सही है। लेकिन जल निगम के अफसर इस बात को पूरी तरह से स्वीकार करने की दशा में नहीं है कि हैंडपंपो का पानी अपने स्थापनाकाल के कई साल बाद साफ पानी देना बंद कर दिया है।

इटावा जल निगम के अधिशासी अभियंता एसवी सिंह का कहना है कि इटावा जिले में करीब 1983 से इंडिया मार्का हैंडपंपों के लगने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक जारी है। इटावा में करीब 25000 इंडिया मार्का हैंडपंपों को लगाया जा चुका है। सबसे खास बात तो यह है कि इन हैंडपंपों में से करीब 5000 से ज्यादा हैंडपंपों का वजूद ही मिट चुका है। जिस समय हैंडपंप की स्थापना की जाती है उसी समय सिर्फ उसके पानी का परीक्षण किया जाता है। उसके बाद कभी भी पानी का परीक्षण नहीं किया जाता है। ऐसे में आम आदमी के गले में साफ पानी उतर रहा है या नहीं इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

वैसे कहने को तो जल निगम की मुख्य शाखा इटावा में पानी के परीक्षण के लिए एक लैब को बना करके रखा गया है जिसका काम किसी भी हैंडपंप की स्थापना के दौरान पानी का परीक्षण करके रिपोर्ट देने का रहता है। आज पीने का साफ पानी एक समस्या बन गया है। हर कोई साफ पीने के पानी का जुगाड़ करने में लगा हुआ है। शहरी इलाकों में मिनरल वाटर का क्रेज देख करके गांव देहात में रहने वाले लोग भी साफ पानी की दरकार रखने लगे हैं। ऐसे में अगर चंबल में साफ पानी की जरूरत की बात की जाए तो कोई बेमानी नहीं होगी। सरकारी हैंडपंप साफ नहीं दे रहे हैं। ऐसे चंबल नदी के आस-पास के गांववालों को चंबल नदी के पानी के सहारे ही रहना पड़ रहा है।

पांच नदियों के लिए खासा लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में देश के अन्य हिस्सों की भांति साफ पानी की जरूरत को लेकर लोग मुखर हो रहे हैं। सरकारी हैंडपंपों के जरिए मिलने वाले पानी को साफ नहीं माना जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद भी लोगों को सरकारी हैंडपंप का ही पानी पीने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

इटावा जिले में चंबल नदी के किनारे बसे सैकड़ों गांव के बाशिंदे साफ पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। यह पानी साफ है या नहीं यह सवाल बहस का नहीं है। सवाल यह है कि जब सरकार की जिम्मेदारी है कि वो अपनी प्रजा को साफ पानी मुहैया कराएगी फिर भी साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है।

नतीजन इटावा जिले के चंबल नदी के आस-पास के तकरीबन दो सौ गांवों के लोग अपना हलक तर करने के लिए चंबल नदी का वह पानी पीने को मजबूर हो गए हैं। जहां जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं और अपने शरीर की गर्मी को शांत करते हैं। इसकी वजह है कि जल निगम के नकारापन के कारण यहां के हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो गया है। चंबल क्षेत्र के बाशिंदे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पेयजल की पूर्ति के लिए चंबल नदी के पानी से गुजारा कर रहे हैं। करीब 10 सालों से चंबल घाटी के विकास के लिए करोड़ों रुपए के पैकेज की मांग करके सुर्खियों में आए।

लोक समिति के अध्यक्ष सुल्तान सिंह का कहना है कि वैसे तो चंबल में कई अहम समस्याएं हैं लेकिन इंसानी जीवन के मद्देनजर अगर सरकार अपने वादे के मुताबिक उसे पीने का साफ पानी मुहैया नहीं करा पाती है तो इसे सरकार की नाकामी ही माना जाएगा। भले ही सरकार की ओर से लंबे समय से जल संकट की कार्ययोजनाएं बनाई जारी रही हो लेकिन साफ पीने के पानी का कोई इंतजाम न होने से लोगों के सामने इस बात का संकट है कि साफ पीने का पानी मुहैया हो तो कहां से।

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