छाई खेतों में हरियाली - आई गांवों में खुशहाली

14 Nov 2014
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Drip irrigation
Drip irrigation

ड्रिप इरीगेशन पद्धति अत्यंत लाभकारी है। इस तरीके से प्रेशर द्वारा पौधों की जड़ों के पास पानी पहुंचा कर डिपर द्वारा उसे बूंद-बूंद करके टपकाया जाता है। इसके लिए खेत में रबर के पाइप बिछाए जाते हैं। ये पाइप एक बार बिछाने के बाद कम-से-कम 10 साल तक काम करते रहते हैं। महाराष्ट्र, केरल व अन्य कई राज्यों के किसानों ने इसे अपनाया है।

मेरठ के किसान सिंचाई की बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा देकर न केवल पानी की बचत कर रहे हैं, प्रकृति का भी भला कर रहे हैं। पानी के गहराते संकट को देखकर जल पुरुष राजेन्द्र सिंह के क्षेत्र के किसान पानी बचाने की दिशा में सक्रिय हो गए हैं। मानपुर ग्राम के प्रधान श्री कृष्णपाल सिंह ने खुद आगे बढ़कर अपने क्षेत्र की समस्या को जांचा, परखा, देखा और खुद उसका समाधान खोजा। उन्होंने दूसरों की भांति व्यवस्था को नहीं कोसा। वरन् जल संरक्षण की महत्ता को समझा और इस दिशा में पहल करके अपने खेत में ड्रिप इरीगेशन प्लांट लगवाया।

इतना ही नहीं दूसरों को भी इस नई तकनीक व उपयोगी प्रणाली के संबंध में बताया। ग्राम प्रधान के उत्साह से प्रेरित होकर पड़ोस के गांवों में तीन और कृषक झट से इस प्रणाली को अपनाने के लिए राजी हो गए और अब क्षेत्र के 13 किसान इस कतार व इंतजार में हैं कि उन्हें यह अवसर कब मिलेगा? दरअसल इस जिले में चीनी की 6 बड़ी मिले हैं। अतः यहां गन्ने की खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है।

गन्ने की फसल को भरपूर पानी की जरूरत पड़ती है। इस लिहाज से मानपुर के इलाके में किसान बहुत परेशान थे, क्योंकि वहां की जमीन रेतीली है। अतः खेतों में खड़े गन्ने नहीं किसानों के प्राण सूख रहे थे। जमीन के अंदर का पानी बढ़ाना तो वश की बात नहीं है, लेकिन पानी को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। इसके लिए नई तकनीक को अपनाना जरूरी है ताकि पौधों की जड़ों को जरूरत के मुताबिक पानी मिले।

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। ट्यूबवेलों की तलहटी सूख रही है। जिले के कई हिस्से पानी की दृष्टि से डार्क ब्लॉक घोषित किए जा चुके हैं। ऐसे में पानी की हर बूंद कीमती है। अतः पानी का अपव्यय रोकना हमारा कर्तव्य बन गया है।

कहते हैं कि जल संरक्षण ही जल संवर्धन है। यह तथ्य सर्वविदित है कि कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की विपुल आवश्यकता पड़ती है। पानी की अधिकता से जमीन में खारापन बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि फव्वारा विधि और बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति जैसे किफायती उपाय आज की जरूरत हैं।

हमारे देश में ज्यादातर किसान आज भी परंपरावादी हैं। वे हर नए काम से शंकित व आशंकित रहते हैं। उन्हें लीक छोड़ने में संशय रहता है। बेशक ड्रिप इरीगेशन तकनीक फायदेमंद है लेकिन मेरठ में किसान तैयार न थे, क्योंकि इसमें 75 हजार रुपए अपनी जेब से खर्च करने पड़ते।

दरअसल ड्रिप संयंत्र लगवाने में करीब एक लाख रुपये का खर्च आता है। इसमें 25 हजार रुपये का अनुदान लाभार्थी को सरकार की ओर से मिलता है तथा शेष राशि लाभार्थी को स्वयं वहन करनी पड़ती है। अतः इतना जोखिम लेने को कोई तैयार नहीं हो रहा था।

प्रेरणा और प्रोत्साहन कृषि एवं उद्यान आदि कई विभागों ने पिछले 2 वर्षों में काफी प्रयास किया कि किसानों को ड्रिप इरीगेशन अपनाने के प्रति प्रेरित किया जाए लेकिन किसान टस से मस न हुए। इस दिशा में सर्वप्रथम सफलता गन्ना विकास विभाग को मिली। गन्ना किसानों को प्रोत्साहित व जागरूक करने में मेरठ के ऊर्जावान जिला गन्ना अधिकारी डा.आर.बी. राम व निष्ठावान उप गन्ना आयुक्त सत्येन्द्र सिंह ने रात-दिन एक करके बहुत सराहनीय काम किया। उनके कुशल मार्गदर्शन व निर्देशन में उनके स्टाफ ने प्रभावी प्रयास किए।

इस बारे में चेतना एवं जागृति लाने के उद्देश्य से ग्रामीण इलाकों में गोष्ठियां की गई ताकि किसानों को सिंचाई की इस नई तकनीक के लाभों की जानकारी विस्तार से दी जा सके। साथ ही इस काम में पहल के लिए जनप्रतिनिधियों को चुना गया तथा अनुदान में बढ़ोतरी व भागीदारी हेतु चीनी मिलों को प्रेरित किया गया। अतः परिणाम सफल एवं उत्साहवर्धक रहे। इसके फलस्वरूप जिले की नगलामल चीनी मिल सरकारी अनुदान के समान धनराशि 25 हजार रुपये अनुदान के तौर पर देने को तैयार हो गई। अतः जागरूक किसानों ने इस पद्धति को अपनाने में अपनी रुचि दिखाई है।

ड्रिप सिंचाईमानपुर के बाद ग्राम माछरा के किसान सुरेश त्यागी तथा ग्राम मउखास के किसान राजेश शर्मा के खेतों पर भी ड्रिप इरीगेशन के प्लांट लगवाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं अनुदान राशि 50 प्रतिशत से अधिक कराने के प्रयास भी किए जा रहे हैं ताकि अधिकाधिक व आम किसान भी इस प्रणाली को अपना कर खेती में पानी का अपव्यय रोक सकें। वस्तुतः हमारे देश में रोटी से अधिक सूचना की गरीबी है। किसान को खाद, बीज, दवा और यंत्र आदि कृषि निवेश तो सहकारी समितियों व बाजार आदि से सहज सुलभ हो जाते हैं लेकिन नई, सही व पूरी जानकारी तो ढूंढनी पड़ती है।

सूचना क्रांति के इस युग में दुनिया भर की जानकारी इंटरनेट आदि पर उपलब्ध है, लेकिन अधिकतर किसान उसे हासिल करने में सक्षम व समर्थ नहीं है। अतः सामूहिक सभाओं, प्रचार गोष्ठियों एवं प्रदर्शनी आदि के द्वारा सिंचाई प्रबंधन व ड्रिप इरीगेशन आदि के बारे में किसानों की शंकाओं व जिज्ञासाओं का समाधान किया गया।

पानी की बचत का पाठ सीखने के बाद से अब मानपुर गांव की स्थिति पहले से बहुत बेहतर है। कहते हैं कि एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन यह भी सच है कि एक अकेला दीपक अपने आसपास का अंधेरा दूर कर सकता है। दूसरों को राह दिखा सकता है। साथ ही दूसरों के दिल में एक नई ज्योति जला सकता है। यही मानपुर में भी हुआ।

वहां के प्रगतिशील ग्राम प्रधान की पहल के कारण पूरे क्षेत्र की कायापलट हो गई। उनकी सफलता दूसरों के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हो सकती है।

ड्रिप इंरीगेशन प्रणाली की विशेषताएं ड्रिप इरीगेशन पद्धति अत्यंत लाभकारी है। इस तरीके से प्रेशर द्वारा पौधों की जड़ों के पास पानी पहुंचा कर डिपर द्वारा उसे बूंद-बूंद करके टपकाया जाता है। इसके लिए खेत में रबर के पाइप बिछाए जाते हैं। ये पाइप एक बार बिछाने के बाद कम से कम 10 साल तक काम करते रहते हैं।

महाराष्ट्र, केरल व अन्य कई राज्यों के किसानों ने इसे अपनाया है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में भी किसानों ने इस प्रणाली को अपना कर लाभ उठाया है। अब मेरठ जिले में भी किसानों ने ड्रिप इरीगेशन की पद्धति को अपना लिया है। ड्रिप इरीगेशन की पद्धति जल संरक्षण के लिए बहुत उपयुक्त है। इससे बूंद-बूंद करके पानी पौधों की जड़ों में जाने से बरबाद नहीं होता। एक हेक्टेयर के खेत की सिंचाई में औसतन 16 घंटे ट्यूबवेल चलाना पड़ता है, किंतु इस नई प्रणाली से वह काम केवल 4 घंटे में पूरा हो जाता है। अतः श्रम, ऊर्जा व पानी की भारी बचत होती है।

इससे खरपतवार कम होते हैं तथा साथ में तरल उर्वरक भी दिए जा सकते हैं। खास बात यह कि फसल अच्छी होती है तथा मिट्टी की संरचना भी खराब नहीं होती।

कृष्णपाल सिंहसामान्यतः गन्ने की खेत में तो यह बहुत फायदेमंद है। उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए गन्ना कृषि में 6 से 8 सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है। यदि वर्षा कम हो तो 20 दिनों के अंतर से हल्की सिंचाई करने की संस्तुति की जाती है। अधिक गहरी सिंचाई कनरे से पानी ज्यादा खर्च होात है, रिसकर गन्ने की जड़ों से काफी नीचे पहुंच जाता है तथा जड़ों को सांस लेने में दिक्कत होती है। अतः इसके कारण फसल को पूरा लाभ नहीं मिल पाता है।

इस दृष्टि से गन्ने की फसल में 3 से साढ़े 3 इंच की हल्की सिंचाई बूंद-बूंद प्रणाली से करना लाभकारी सिद्ध हुआ है।

(लेखक उप गन्ना आयुक्त कार्यालय मेरठ में क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी हैं)

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