छत्तीसगढ़ी बोली में पानी पर काव्य रचनाएं

डॉ. पीसी लाल यादव द्वारा रचित “पानी” कविता छत्तीसगढ़ बोली में पानी के विभिन्न रंगों को उकेरती है। आज हमारे जीवन में पानी का कितना महत्व है तथा हमारे पूर्वज कैसे तालाब, कुआं, ताल तलैया आदि खुदवा कर पानी को संरक्षित करते थे आदि इस कविता में बहुत सरल तरीके से बताया गया है। कविता हमें यह भी बताती है कि अपने शहर गांव में रेनवाटर हार्वेस्टिंग, तालाब, कुआं आदि का निर्माण कर पानी को संरक्षित करें।

नदिया-तरिया, कुँवा-बवली, चाहे होवय बादर।
पानी हवय त मान हवय, मनखे होय के सागर।

पानी के मोल समझ नई, ते होबे पानी-पानी।
करे लपरही जिनगी मत, उतर जही सरी पानी।

पानी ले प्रकृति उज्जर अउ, प्रकृति ले हे पानी।
पानी के राहत ले पानी हे, नई ते दुनिया हर पानी।

हरियर जंगल, हरियर खेत, पानी ले सबे खेल।
पानी हे त जग परभूती, मनखे-मनखे के मेल।

पानी बचा के जिनगी बचा, कर पानी के मान।
नई ते पानी-पानी कहात, नकिल जही तोर परान।

पानी बचा के धरम कमा, पुन के बन तैं भागी।
पानी बिना कईसे बुझाही, जरत पेट के आगी।

पुरखा कइसे बचाय पानी, पुरखा ले कुछ सीख।
नई बचा बे पानी त सोच, नई मिलही घलो भीख।

घबरी घलो नई दिखय अब, नई दिखे कहूं डबरा।
बजबजावत नाली भरे हे, का होगेस मीठलबरा?

पुरखा कोड़ावय कुंआ बवली, अउ कोड़ावय तरिया।
चारों मुड़ा पानी च पानी, गाँव-खेत-खार-परिया।

कुंआ ह कचरा दान लहुट गे, अइसन हमर करम हे।
पुरखा के नाव बुड़ोवत हम, का इही हमर धरम हे?

घर के पानी घर में छेंकव, गाँव के पानी ल गाँव।
पानी पाही धरती ह तभे, मिलही ममता के छाँव।

सावन भादो सुक्खा परथे, जेठ कस तिपे घाम।
पानी बिन हा-हाकर होगे, लगथे पूर्ण बिराम।

बादर ले बरसथ पानी त, धरती के तन हरियाथे।
रूखराई अउ चिरई-चिरगुन जीव सर मुस्काथे।

जीयत पानी मरत म पानी, पानी जिनगी के नाँव।
पानी ले परान हे सबो के, का सहर का गाँव?

पूरी कविता पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें

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