देवनदी गंगा का आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व

4 Aug 2015
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भारत में किसी स्थान पर अपनी परम्परा से आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति जब स्नान करने जाता है तो उसके मुख से अनायास ही फूट पड़ता है-

‘‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी च सरस्वती,
नर्मदे, सिन्धु, कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु।।”


इससे यह प्रतीक रूप में स्पष्ट होता है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत एक ही है। हर एक व्यक्ति भारतीय नदियों एवं परिक्षेत्र से रागात्मक लगाव रखता है। भारत को एक सूत्र में बाँधने का श्रेय गंगा नदी को है। गंगा हमारे लिए पवित्र नदी है। इतनी पवित्र है कि हम सब नदियों को गंगा के रूप में ही देखते हैं।

गंगा की उत्पत्ति समुद्र तल से करीब 4000 मीटर की ऊँचाई पर हिमालय की बर्फीली चोटियों से होती है। गंगा का वास्तविक स्रोत गोमुख माना जाता है जो गंगोत्री से 21 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता के आदिकाल से ही गंगा न केवल भारत की सर्वाधिक महान एवं पवित्र नदी के रूप में लक्षित है, अपितु विश्व की सर्वश्रेष्ठ महानदियों में अपने अनेक विशिष्ट गुणों के कारण माँ के रूप में पूजित है। गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में सहायक नदियों में प्रमुख हैं- यमुना, गोमती, सरयू रामगंगा, कोसी, चंबल, सोन आदि। गंगा के किनारे पर बसे प्रमुख धार्मिक शहर हैं हरिद्वार , ऋषिकेश , इलाहाबाद, वाराणासी। गंगा किनारे पर स्थित हरिद्वार तथा इलाहाबाद में 12 वर्ष के अंतराल पर कुंभ मेला लगता है। गंगा जल का उपयोग नहाने, पीने, सिंचाई तथा उद्योगों में किया जाता है। आबादी बढ़ने के बाद प्रदूषण भी बढ़ रहा है तथा जल की उपलब्धता लगातार घट रही है।

गंगा नदी उत्तर भारत के लोगों के लिए जितनी पूज्य व पवित्र है, उससे कई गुना पूज्य व पवित्र है पूर्व, पश्चिम और दक्षिणवालों के लिए। दक्षिण भारत के लोग दीपावली के दिन जब स्नानोपरान्त एक दूसरे से मिलते हैं तो एक दूसरे से पूछते हैं कि ‘‘गंगा स्नानम आच्चा” (क्या आपका गंगा स्नान हो गया?) दक्षिण भारत में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति प्रयाग, काशी, हरिद्वार, बद्रीनाथ आदि तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान करने के लिए तड़पता है हर व्यक्ति गंगा दर्शन व गंगा स्नान को अपने जीवन का लक्ष्य मानता है। इतना ही नहीं वे अपने पूजा गृह में गंगा जल रखते हैं। उस गंगा जल की विधिवत पूजा भी करते है। मरणासन्न व्यक्ति को गंगा जल पिलाते हैं। इस धार्मिक आस्था के पीछे हम भारतीय एकता को ही देखते हैं।

दक्षिण के सुप्रसिद्ध संत कवि माणिक्कवाचकर की अद्भुत रचना है ‘तिरुवाचकम’। गंगा को आश्रय देनेवाले के रूप में अपने प्रभु के गुणगान करते हुए वे कहते हैं-

‘‘गंगा प्रवाह को आश्रय देने में समर्थ विशाल जटाधारी, वृषभारूढ़ ईश।’’ (तिरुवाचकम 3-25)

भक्त कवि सुन्दर ने ‘सप्तम तिरुमुरै’ की रचना की है। गंगा के संदर्भ में ईश्वर को वे कई नामों से पुकारते हैं। वे कहते हैं-

‘‘गंगाधर प्रभु (सुन्दरर् तेवारम 30-306)’’

जटा में गंगा को आश्रय दिया। (सुन्दरर् तेवारम 20-200)

‘‘गंगा देवी के प्रियतम (53-535)’’

आधुनिक काल में राष्ट्रीय भावना के सबसे बड़े कवि सुब्रह्मण्य भारती हैं। स्वतंत्र भारत की कल्पना करके उन्होंने कई गीत गाए हैं। भारती ने एक ऐसे भारत का रूप हमारे सामने रखा है जहाँ कि एक राज्य से दूसरे राज्य में परिपूर्ण मेल हो। इसके लिए उन्होंने गंगा का वर्णन सुन्दर ढंग से किया है। उन्होंने एक जगह पर गाया है-

“खूब उपजता है गेहूँ गंगा के कछार में,
तांबूल अच्छे हैं कावेरी के तट के,
तांबूल से विनिमय कर लेंगे गेहूँ का,
सब शत्रु भाव मिट जाएँगे।’’


भारती का प्रारम्भिक जीवन गंगा तट पर ही व्यतीत हुआ। भारती के लिए गंगा नदी प्रेरक रही। राष्ट्रकवि भारती गंगा को भारतीय एकता का अखण्ड स्रोत मानते थे।

गंगा का माहात्मय वर्णणातीत है। ‘गीता’ में श्रीकृष्ण ने कहा है-

‘स्रोतसामस्मि जाह्नवी’ अर्थात नदियों में मैं जाह्नवी (गंगा) हूँ।

महाभारत में गंगा के बारे में कहा गया है-

‘‘पुनाति कीर्तिता पापं द्रष्टा भद्र प्रयच्छति।
अवगाढ़ा च पीता च पुनात्या सप्तम कुलम।।’’


अर्थात गंगा अपना नाम उच्चारण करने वाले के पापों का नाश करती है। दर्शन करने वाले का कल्याण करती है तथा स्नान-पान करने वाले की सात पीढ़ियों तक को पवित्र करती है।

वेदों एवं पुराणों में गंगा को बारंबार तीर्थमयी कहा गया है।

‘‘सर्वतीर्थमयी गंगा सर्वदेवमया हरि:।’’ (नृसिंह पुराण)

इस प्रकार गंगा जल धार्मिक ग्रन्थों से लेकर विश्लेषण तक में श्रेष्ठतम सिद्ध हुआ है। इसीलिए कहा गया है- ‘‘गंगे तव दर्शनात् मुक्ति:।’’ पूरे विश्व में ऐसी कोई नदी नहीं जिसे इतना आदर मिला हो। इसे केवल जल का स्रोत नहीं वरन देवी मानकर पूजा जाता है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान गंगा के बिना पूरा नहीं होता।

जो गंगाजल ऋषिकेश में अत्यंत स्वच्छ और अमृतमय है वही आगे चलकर कानपूर, प्रयाग एवं वाराणासी में इतनी प्रदूषित हो जाती है कि पीना तो दूर, स्नान करने लायक भी नहीं है। प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-

1. उद्योगों एवं कारखानों का कचरा, रसायन तथा दूषित जल
2. नदी के किनारे त्यागा गया, मल -मूत्र।
3. गंगा में मृत शवों को डालना
4. मरे हुए पशु जो सीधे गंगा में बहा दिए जाते हैं।
5. नदी के किनारे अथवा नदी में कूड़ा-करकट डालना।
6. नदी तट पर शवदाह करना-इत्यादि।

इस प्रदूषण से गंगा को बचाने के लिए लोगों में जागरूगता फैलानी होगी। निम्नलिखित बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने से इस तरह के प्रदूषण से गंगा को बचा सकते हैं।

1. गंगा में अथवा गंगा तट पर मल-मूत्र विसर्जन न करें।
2. शवों के जलप्रवाह पर रोक लगाना।
3. गंगा के घाटों की मरमम्त करना।
4. तट पर या नदी में कपड़े न धोएँ।
5. वैज्ञानिक एवं तकनिकी विशेषज्ञ गंगा को साफ रखने की व्यावहारिक योजना बनाएँ।
6. स्वच्छ गंगा अभियान में सभी का सहयोग प्राप्त करना।
7. गंगा के किनारे वृक्षारोपण एवं सौंदर्यीकरण की व्यवस्था करना।

इस तरह गंगा के महात्त्म्य को बनाए रखने में हमें पूरा योगदान देना चाहिए। भारत की सभी नदियों को हम गंगा ही मानते हैं। ‘गंगा’ यह नाम सब के लिए प्रात:स्मरणीय मंत्र है। यदि किसी नदी को दिव्यता प्रदान करनी है तो उसे गंगा कह कर सम्बोधित करना हमारी भगवती गंगा के प्रति अनादि काल से चली आने वाली भावना का ही प्रतिफल कहा जाएगा। गंगा माता सब के लिए पुण्य प्रदायिनी आत्म-स्वरूपा है। जीवनदायिनी पावन गंगा को कोटि कोटि प्रणाम।

चैन्नई 6000094 (तमिल.) मो.- 099623 20119

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