दिल्ली में फिर सुपरबग का खतरा

13 Oct 2011
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दिल्ली के पानी में जब भी सुपरबग की आशंका जताई जाती है तो दिल्ली सरकार कुछ फौरी कदम उठाकर, चैन की नींद सो जाती है। मसलन पानी में क्लोरिन डालकर या यह मुनादी करवाकर कि लोग पानी उबालकर पीएं। ज्यादा हुआ तो पानी की आपूर्ति रोक, अलग से टैंकरों का इंतजाम कर दिल्ली नगर निगम अपनी जिम्मेदारियों से फारिग हो जाता है। लेकिन कोई बुनियादी बदलाव नहीं होते। आज भी दिल्ली में हजारों लोग खुले गंदे नाले के किनारे, यमुना की तलहटी और कचराघरों के आस-पास गुजर-बसर को मजबूर हैं।

दिल्ली से महाजीवाणु यानी सुपरबग की काली छाया हटने का नाम नहीं ले रही है। इस बार दावा विलायती शोधकर्ताओं ने नहीं बल्कि शहर के प्रमुख अस्पताल और पीजीआई चंडीगढ़ के शोधकर्ताओं ने किया है कि दिल्ली की रिहायशी कॉलोनियों और अस्पतालों वगैरह से निकलने वाले पानी में एंटीबायोटिक की तादाद ज्यादा हो जाने की वजह से उनमें पलने वाले बैक्टीरिया इस कदर ताकतवर हो चुके हैं कि उन्हें खत्म करना काफी मुश्किल हो गया है। इस रिपोर्ट के बाद दिल्ली सरकार की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक है। उसने धीमी आवाज में ही सही, मान लिया है कि यहां सुपरबग का खतरा मौजूद है। यही नहीं सरकार ने इस दिशा में तुरंत कदम बढ़ाते हुए राजधानी क्षेत्र में पड़ने वाले सभी अस्पतालों को इस समस्या से मुकाबले के लिए तैयार रहने को कहा है।

दिल्ली में एक साल के अंदर यह बात दूसरी बार सामने आई है कि यहां के पानी में सुपरबग मौजूद है। पिछली बार ब्रिटिश वैज्ञानिक शोध पत्रिका ‘द लांसेट’ ने जब अपनी शोध रिपोर्ट में दावा किया कि दिल्ली के पानी में ऐसा सुपरबग है, जिस पर दुनिया भर की किसी एंटीबायोटिक दवा का असर नहीं पड़ता तो स्वास्थ्य मंत्रालय के आला अफसरों और वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए झूठा बताया, लेकिन अब जब एक स्थानीय अस्पताल के शोधकर्ताओं ने यही बात दोहराई है, तो शक लाजिमी है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो है। ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब दिल्ली नगर निगम और जलबोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि दिल्लीवासियों को नलों से सप्लाई होने वाला पानी प्रदूषित है। नगर निगम के स्वास्थ्य महकमे ने अपनी जांच में दिल्ली जल बोर्ड के 18 फीसद पानी को जहरीला बताया था।

बहरहाल, इन रिपोर्टर के आने के बाद होना यह चाहिए था कि दिल्ली सरकार गंभीरता से जांच करा पानी को जहरीला होने से बचाती और बैक्टीरिया के खात्मे के लिए ठोस कदम उठाती। लेकिन यह गंभीरता जुबानी बयानों तक ही सीमित रही। सुपरबग के फैलने का सबसे ज्यादा खतरा गंदे पानी में है। दिल्ली जल बोर्ड के पेयजल में खतरनाक रासायनिक तत्वों के घुले होने, क्षतिग्रस्त पाइप लाइनों में सीवर का पानी मिल जाने और अस्पतालों से निकलने वाले पानी में एंटीबायोटिक दवाओं के मिश्रण से सुपरबग का खतरा और ज्यादा बढ़ गया है।

जब भी आशंका जताई जाती है तो दिल्ली सरकार कुछ फौरी कदम उठाकर, चैन की नींद सो जाती है। मसलन पानी में क्लोरिन डालकर या यह मुनादी करवाकर कि लोग पानी उबालकर पीएं। ज्यादा हुआ तो पानी की आपूर्ति रोक, अलग से टैंकरों का इंतजाम कर दिल्ली नगर निगम अपनी जिम्मेदारियों से फारिग हो जाता है। लेकिन कोई बुनियादी बदलाव नहीं होते। आज भी दिल्ली में हजारों लोग खुले गंदे नाले के किनारे, यमुना की तलहटी और कचराघरों के आस-पास गुजर-बसर को मजबूर हैं। घरों और अस्पतालों आदि से निकलने वाले कचरे के सुव्यवस्थित निपटान की कोई योजना अब तक कारगर नहीं हुई है। जिन पाइपलाइनों से होकर पानी घरों में पहुंचता है, उनमें लगातार गंदा पानी मिलता रहता है। ऐसे में यदि पानी के अंदर सुपरबग की आशंका जताई जा रही है, तो अतिशयोक्ति भी नहीं है।

अब वक्त आ गया है कि दिल्ली सरकार सुपरबग से निपटने के लिए कारगर कदम उठाए। क्योंकि, इसे लगातार नजरअंदाज करना आखिरकार हजारों-हजार लोगों की जान से खिलवाड़ करना होगा। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू और दिमागी बुखार जैसी बीमारियों से पहले ही जूझ रहे दिल्लीवासियों के लिए सुपरबग उनकी समस्या और बढ़ा सकता है। फिर सुपरबग तो ऐसा बैक्टीरिया है, जिस पर एंटीबायोटिक दवाओं का भी कोई असर नहीं होता। यानी, एक बार सुपरबग फैला तो इससे लड़ना आसान नहीं। आरोप-प्रत्यारोप से बाहर निकलकर दिल्ली सरकार को अब सुपरबग की वजहों के निराकरण और स्थायी समाधान पर गंभीरता से विचार करना ही होगा।
 

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