दिमागी बुखार : त्रासदी या लापरवाही (Encephalitis - tragedy or negligence)


उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कहर बरपाने वाली बीमारी पर दस सवाल

1. दिमागी बुखार क्यों चर्चा में है?
गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में 10-11 अगस्त को ऑक्सीजन की आपूर्ति रुकने से 23 बच्चों की मौत हो गई थी। ये बच्चे दिमागी बुखार से पीड़ित थे। बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली कम्पनी को बकाया का भुगतान नहीं किया गया था। इस कारण कम्पनी ने ऑक्सीजन की आपूर्ति रोक दी थी। हालांकि प्रदेश सरकार इससे इनकार कर रही है। इस मेडिकल कॉलेज में यूँ तो हर साल बच्चे मरते हैं लेकिन सरकारी लापरवाही से एक साथ इतने बच्चों की मौत ने दिमागी बुखार और बीआरडी कॉलेज को देशभर में चर्चा में ला दिया।

2. ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने के अलावा बीआरडी कॉलेज में मौतों की और क्या वजह है?
बीआरडी मेडिकल कॉलेज पूर्वी उत्तर प्रदेश में इकलौता ऐसा अस्पताल है जो दिमागी बुखार से पीड़ितों के इलाज के लिये विशेष रूप से दक्ष है। यूपी के 15 जिलों, बिहार के कुछ जिलों के अलावा नेपाल से भी इलाज के लिये लोग यहाँ आते हैं। लेकिन यहाँ कई कमियाँ भी हैं जिनकी वजह से साल-दर-साल बच्चों की मौत हो रही है। मसलन, बाल रोग विभाग में महज 210 बेड हैं जबकि इलाज के लिये इससे कहीं ज्यादा बच्चे यहाँ पहुँचते हैं। जानकार भ्रष्टाचार को भी मौतों की प्रमुख वजह मानते हैं।

3. अस्पताल पर सीएजी का आकलन क्या कहता है?
इस साल जून में जारी सीएजी की रिपोर्ट बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में खामियों को उजागर करती है। रिपोर्ट बताती है कि अस्पताल में 27.21 प्रतिशत क्लिनिकल उपकरणों की कमी है जबकि 56.33 प्रतिशत नॉन क्लिनिकल उपकरणों का अभाव है। ऑक्सीजन नॉन क्लिनिकल की श्रेणी में आता है। ऐसे अस्पताल में जहाँ बच्चों की संख्या काफी ज्यादा है, वहाँ ऑक्सीजन का महत्त्व बढ़ जाता है।

4. इस बीमारी का प्रकोप कहाँ-कहाँ है?
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और इसके आस-पास यह बीमारी मुख्य रूप से पैर पसार रही है। केन्द्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अनुसार उत्तर प्रदेश के महाराजगंज, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थ नगर, संत कबीरनगर, मऊ जिले में इसका प्रकोप ज्यादा है। पश्चिम बंगाल, बिहार, असम में भी यह बीमारी अपने पैर पसार चुकी है। असम में स्थिति काफी खराब होती जा रही है।

5. यह बीमारी कब से अस्तित्व में है और इस साल कितने लोगों की मौत हो चुकी है?
दिमागी बुखार का पहला मामला गोरखपुर में 1978 में सामने आया था। इस साल जनवरी से 21 अगस्त तक 260 बच्चों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। गोरखपुर के महज एक अस्पताल में पिछले 40 साल में 9,950 बच्चे दम तोड़ चुके हैं।

6. किस उम्र के बच्चों को और कब यह बीमारी फैलती है?
दिमागी बुखार 6 से 14 साल के बच्चों को मुख्य रूप से अपनी चपेट में लेता है। जुलाई, अगस्त और सितम्बर में यह बीमारी अधिकांश बच्चों को शिकार बनाती है। अक्टूबर और नवम्बर आते-आते बीमारी का प्रकोप कम हो जाता है। बुजुर्गों को भी यह बीमारी अपना शिकार बनाती है।

7. दिमागी बुखार का क्या असर होता है?
यह बुखार होने पर बच्चे के दिमाग में सूजन आ जाती है। सिरदर्द, उल्टी, थकान के साथ तेज बुखार चढ़ता है। इस बीमारी की चपेट में आया बच्चा कई बार जीवन भर विकलांगता से जूझता रहता है। मानसिक रूप से भी बच्चा विकसित नहीं हो पाता। बीमारी से पीड़ित बच्चा देखने, सुनने, सोचने और समझने की क्षमता खो देता है। वह कोमा तक में चला जाता है।

8. दिमागी बुखार के कारण क्या हैं?
अब तक इस बीमारी के स्पष्ट कारणों का ही पता नहीं चल पाया है। इस बीमारी के सम्बन्ध में जो शोध हुए हैं उनमें बीमारी के अलग कारण बताए गए हैं। कोई गन्दगी, तो कोई मच्छर या अलग-अलग विषाणुओं को इसका जिम्मेदार मानता है। स्पष्टता न होने के कारण बीमारी अब तक लाइलाज है। डॉक्टर महज लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं। दिमागी बुखार से पीड़ितों में स्क्रब टाइफस बीमारी भी देखी जा रही है जो एक बैक्टीरिया की देन है। लीची के सेवन को भी बीमारी की वजह माना जा रहा है।

9. सरकार ने इसे रोकने के लिये क्या प्रयास किये हैं?
सरकार का जोर बीमारी के इलाज पर ज्यादा है, उसकी जड़ में जाने पर नहीं। हालांकि बीमारी का इलाज भी ठीक से नहीं मिल रहा है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिये अस्पतालों की सख्त कमी है। कई कमियों की ओर से सीएजी रिपोर्ट भी इशारा करती है। सरकार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह असमंजस में है कि इस बीमारी से कैसे निपटा जाये। अब तक ठोस उपाय नहीं किये गए हैं। जब तक बीमारी के मूल कारणों का पता नहीं चलेगा, तब तक सटीक इलाज भी मुमकिन नहीं है।

10. दिमागी बुखार को फैलने से रोकने के लिये क्या करना होगा?
सबसे पहले तो लक्ष्य आधारित सोच के साथ बीमारी के कारणों का पता लगाने की दिशा में गम्भीर प्रयास करने होंगे। वैज्ञानिक सोच विकसित करने की जरूरत है। अभी अन्धेरे में तीर मारने जैसा काम हो रहा है। प्रभावित इलाकों में साफ-सफाई और जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत है ताकि लोग इस बीमारी से बचाव के प्रति सचेत रहें।

प्रस्तुति- भगीरथ

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