दुनियावी खतरा है इलेक्ट्रॉनिक कचरा

10 Jan 2014
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इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में कई तरह के विषाक्त पदार्थों का इस्तेमाल होता है जिनमें सीसा, पारा, कैडमियम और आर्सेनिक शामिल हैं। मसलन एक पुराने सीआरटी कंम्प्यूटर स्क्रीन में तीन किलो तक सीसा हो सकता है। एक बार लैंडफिल में पहुंचने पर ये विषाक्त पदार्थ पर्यावरण में प्रविष्ट हो कर ज़मीन, हवा, पानी को प्रदूषित कर सकते हैं। इसके अलावा इन उपकरणों के हिस्सों और दूसरे पदार्थों को बहुत ही गलत तरीके से अलग से किया जा सकता है। ऐसी जगहों पर काम करने वाले लोग बार-बार बीमार पड़ते हैं।

पश्चिमी देशों में क्रिसमस के मौके पर लाखों मोबाइल फोन लैपटॉप, कैमरे और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं। नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीददारी का मतलब है कि हर साल हजारों टन पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को त्याग दिया जाता है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि यह इलेक्ट्रॉनिक कचरा गैरकानूनी रूप से विकासशील देशों में डंप किया जा रहा है। दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरा जमा करने में भारत, चीन, ब्राजील और मैक्सिको जैसे विकासशील देशों का अपना योगदान भी कम नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की स्टेप इनिशिएटिव रिपोर्ट के मुताबिक अगले चार वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक कचरे की विश्वव्यापी मात्रा में 33 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इस कचरे का वजन मिस्र के आठ बड़े पिरामिडों के बराबर होगा। पिछले साल पूरी दुनिया में 5 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन हुआ जो प्रति व्यक्ति करीब 7 किलो पड़ता है।

इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में कई तरह के विषाक्त पदार्थों का इस्तेमाल होता है जिनमें सीसा, पारा, कैडमियम और आर्सेनिक शामिल हैं। मसलन एक पुराने सीआरटी कंम्प्यूटर स्क्रीन में तीन किलो तक सीसा हो सकता है। एक बार लैंडफिल में पहुंचने पर ये विषाक्त पदार्थ पर्यावरण में प्रविष्ट हो कर ज़मीन, हवा, पानी को प्रदूषित कर सकते हैं। इसके अलावा इन उपकरणों के हिस्सों और दूसरे पदार्थों को बहुत ही गलत तरीके से अलग से किया जा सकता है। ऐसी जगहों पर काम करने वाले लोग बार-बार बीमार पड़ते हैं। विकासशील देशों को कितना ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा भेजा जा रहा है, उसका कुछ खुलासा पिछले दिनों इंटरपोल ने किया था। इंटरपोल के एजेंटों ने यूरोपियन यूनियन के देशों से रवाना होने वाले हर तीन कंटेनरों में से एक कंटेनर गैरकानूनी इलेक्ट्रॉनिक कचरे से लदा हुआ पाया। इसके बाद 40 कंपनियों के खिलाफ आपराधिक जांच आरंभ की गई। क्रिसमस जैसे त्योहारों पर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की बिक्री में तेजी आती है। नए तकनीकी फीचरों की वजह से लोग जल्दी-जल्दी अपने मोबाइल फोन, कंप्यूटर और टीवी बदल रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक कचरे के उत्पादन में चीन सबसे आगे है। पिछले साल उसने 1.11 करोड़ टन कचरे का उत्पादन किया। दूसरे नंबर पर अमेरिका है जहां 1 करोड़ टन कचरा उत्पन्न हुआ, हालांकि एक औसत अमेरिकी नागरिक 29.5 किलो इलेक्ट्रॉनिक कचरा फेंकता है जबकि चीन में यह दर पांच किलो प्रति व्यक्ति से भी कम है। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भविष्य में अमेरिका से इलेक्ट्रॉनिक कचरे का सारा निर्यात भारत पहुंच सकता है क्योंकि दुनिया में कांच गलाने वाली भट्ठियां शीघ्र बंद होने वाली हैं।

इलेक्ट्रॉनिक कचरे से बढ़ता प्रदूषणस्टेप इनिशिएटिव के कार्यकारी सचिव रूडीगर कूर का कहना है कि 2017 तक इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा इतनी अधिक हो जाएगी कि उससे 40 टन वजनी लारियों की 24000 किलोमीटर लंबी कतार भरी जा सकती है। यूरोप में जर्मनी में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा फेंका जाता है। ब्रिटेन में 13.7 लाख टन कचरा निकलता है जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से करीब 21 किलो है। गरीब देशों को पुराने उत्पादों के निर्यात पर कोई रोक नहीं है बशर्ते उनका दुबारा इस्तेमाल हो या उन्हें ठीकठाक करके बेचा जाए। लेकिन इंटरपोल का कहना है कि अफ्रीका और एशिया को भेजे जाने वाले माल पर ‘इस्तेमालशुदा माल’ का लेवल लगाया जाता है जबकि हकीक़त में यह सामान बेकार होता है।

ज्यादातर देश इलेक्ट्रॉनिक कचरे की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं क्योंकि सारे कचरे का कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के अनुसार अमेरिका ने 2010 में 25.82 करोड़ कंप्यूटर, मॉनिटर, टीवी और मोबाइल फोन कचरे के रूप मे निकाले लेकिन इनमें से सिर्फ 66 प्रतिशत सामान की ही रिसाइकलिंग हो पाई। अमेरिकी, यूरोपियन यूनियन और जापानी सरकारों का कहना है कि हर साल लाखों मोबाइल फेंक दिए जाते हैं या ड्राअर में छोड़ दिए जाते हैं। अमेरिका में 2011 में सिर्फ 12 लाख मोबाइल फोन रिसाइकलिंग के लिए एकत्र किए गए जबकि 12 करोड़ मोबाइल खरीदे गए थे। बाजार में नए मोबाइल फोन जिस रफ्तार से पहुंच रहे हैं उसे देखते हुए फुराने फोनों का लेंडफिल में पहुँचना लाजमी है। संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल टेली कम्यूनिकेशन यूनियन के अनुसार पूरी दुनिया में मोबाइल फोनों के ग्राहकों की संख्या पांच अरब तक पहुंच जाएगी। अधिकांश मोबाइल फोनों में बहुमूल्य धातुओं का इस्तेमाल होता है। उनके सर्किट बोर्ड में तांबा, सोना, जस्ता, बेरिलियम और टेंटालम जैसे पदार्थ होते हैं। उनकी कोटिंग में सीसे का प्रयोग होता है। आजकल फोन निर्माता लिथियम बैटरियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मोबाइल फोनों के बहुमूल्य धातुओं की मौजूदगी के बावजूद 10 प्रतिशत से भी कम सेटों की रिसाइकलिंग की जाती है। एक मोबाइल फोन के वजन का एक चौथाई हिस्सा बहुमूल्य और विशेष धातुओं का होता है। इससे पता चलता है कि मोबाइल फोनों की रिसाइकलिंग इतनी महत्वपूर्ण क्यों हैं।

इलेक्ट्रॉनिक कचरे से बढ़ता प्रदूषणलघु स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक कचरे की रिसाइकलिंग के कुछ लाभ हो सकते हैं। मसलन बेकार उपकरणों से बहुमूल्य धातुएं निकालने में खदान से धातु निकालने की तुलना में कम ऊर्जा खर्च होगी। इसमें कम हुनर वाले श्रमिकों को रोज़गार मिल सकता है। लेकिन इस तरह की रिसाइकलिंग से होने वाला नुकसान ज्यादा गंभीर है। गलत ढंग से धातुओं का परिशोधन करने से पारा, सीसा और डायोक्सिन जैसे विषैले पदार्थ निकल सकते हैं जिनका मजदूरों रिहायशी बस्तियों और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ता है। भारत और चीन जैसे विकासशील देशों में अधिकांश रिसाइकलिंग अक्षम और अनियमित ऑपरेटरों द्वारा की जाती है। दोनों देशों में इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बोर्डों से सोना निकालने के लिए जो तरीका अपनाया जाता है वह पर्यावरण की दृष्टि से बहुत नुकसानदायक है।

फोनों की रिसाइकलिंग नहीं हो पाने से दुनिया में रेयर अर्थ खनिजों का अकाल पड़ने लगा है। यदि इन बहुमूल्य पदार्थों की कमी बनी रही है तो भविष्य में नई पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाना मुश्किल हो जाएगा। यदि बेकार टीवी, मोबाइल फोनों और कंप्यूटरों से निपटने के लिए कोई कारगर नीति नहीं बनाई गई तो आने वाले दशक में विकासशील देशों में घरेलू इलेक्ट्रिक सामान की बिक्री बहुत बढ़ जाएगी जो पर्यावरण पर बहुत भारी पड़ सकती है। सभी देशों को इलेक्ट्रॉनिक कचरे के संग्रह और प्रबंध के लिए कड़े नियम बनाने चाहिए। साथ ही विकसित देशों को चाहिए कि वे इस समस्या से निपटने के लिए विकासशील और गरीब देशों को यथाशीघ्र उपयुक्त टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण करें।

इलेक्ट्रॉनिक कचरे से बढ़ता प्रदूषण

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