धरती जानती है

धरती जानती है
धरती वह सब भी जानती है
जो हम नहीं जानते।
युगों-युगों से तपी है यह धरती
लगातार तपस्यारत है, तप रही है।
किसी भी संत, महात्मा, ऋषि, ब्रह्मर्षि, फकीर, तीर्थकर, बोधिसत्व
अवतार, पैगम्बर या मसीहा से अधिक तपी है धरती
और अभी तक अंतर्धान नहीं हुई है
शायद असली अवतार, पैगम्बर या मसीहा धरती ही है।
वैसे भी सभी अवतारों, पैगम्बरों औ मसीहाओं के प्रकाशपुंजों का
संलयन हो गया है
धरती के विराट आभामंडल में।

लोग धरती को टटोलते हैं
कोई वर्तमान के लिए
कोई इतिहास के लिए
कोई भविष्य के लिए
लेकिन सबका भविष्य तो धरती ही है।

धरती सोचती है
मैं भी कैसी मां हू
मां तो केवल जन्म देती है
और मैं जन्म भी देती हूं
और मृत्यु के बाद उन्हें अपनी कोख में
एक बार पुनः सुला लेती हूं।
धरती केवल अपने को ही नहीं जानती
बल्कि, जल, पावक, समीर और गगन
सबको जानती है धरती
सौरमंडल, अंतरिक्ष, आकाशगंगा
और समग्र काल और सृष्टि
सभी को जानती-पहचानती है धरती।
सारे नैसर्गिक नियमों को
जानती-मानती है धरती।

अग्नि, जल, वायु या आकाश
धरती के ऋत के साथ
जब अपना स्वर मिलाते हैं
तो निकलती हैं विभिन्न ध्वनियां
उनमें अधिकांश तो ममतामयी एवं प्रिय ही होती हैं
लेकिन कभी-कभी वे रूप धर लेती हैं
ज्वालामुखी, बाढ़, तूफान या भूकंप का।
काश! हम आकाशवाणियों के साथ-साथ
समय रहते सुन पाते धरती वाणियां भी।
धरती वैज्ञानिक भी है
और प्रयोगशाला भी।
धरती स्टेज भी है, कही अनकही कथा भी,
और रहस्य भी।

धरती सारे आवेश
अपने में समेट लेती है
फिर भी रहती है अनावेशित।
जितनी भी मूर्तियां हैं जिन्हें हम पूजते हैं
जितनी भी इमारतें हैं जहां हम पूजते हैं
सभी धरती के टुकड़े हैं।
हम टुकड़ों की जगह, टुकड़ों-टुकड़ों की जगह
पूरी धरती की इबादत कब करेंगे?
पूरी धरती की पूजा कब करेंगे?
या पूरी धरती को
ईश्वर का प्रतीक कब मानेंगे?
जब-जब लड़ाइयां हुई हैं
परिवारों में या राज्यों में
तो बेवजह कटी-खपी, नपी है धरती
और फिर भी
अखबारों में किताबों में कितनी कम छपी है धरती!

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