धसान

शोणो महानदश्चात्र नर्मदा सुरसरि क्रिया
मंदाकिनी दशार्णा च चित्रकूटस्त थैव च।


(मार्कण्डेय पुराण 57/20)

रायसेन जिला के जसरथ पर्वत से निकलकर धसान नदी सिलवानी तहसील की सिरमऊ, बेगमगंज तहसील की पिपलिया जागीर, बील खेड़ा, रतनहारी, सुल्तानागंज, उदका, टेकापार कलो, बिछुआ, सनेही, पडरया, राजधर, सोदतपुर ग्रामों के समीप से प्रवाहित होकर सागर जिले के नारियावली के उस पार तक बहती है। सागर जिले में यह सिहौरा, नरियावली, उल्दन, धामौनी, मैंहर, ललितपुर की (महारोनी तहसील) वनगुवा के तीन किलोमीटर पूर्व प्रवेश करती हुई यह टीकमगढ़ के दतना और छतरपुर की 70 किलोमीटर की सीमा बनाती हुई झांसी हमीरपुर और जालौन के संधि स्थल के नीचे बेतवा में मिल जाती है। इतना ही नहीं धसान नदी को हिन्दुओं के साथ-साथ जैन भी अपने तीर्थ स्थलों में इस स्थान देते हैं-

महाबोधिः पाटलाश्च नामतीर्थमवन्तिकामहारूद्रौ महालिंगा दशार्णाः च नदी शुभा। ‘वामन पुराण’

महाभारत के विराट पर्व में नकुल की विजय के संदर्भ में दशार्ण नदी का भी उल्लेख है।

शान्ति रम्याः जनपदा बहन्नाः पारितः कुरून।
पांचालश्चेदिमत्स्याश्च शूरसेनाः पटचराः।
दशार्ण नवराष्ट्रं च मल्लाः शाल्वा युगंधरा।


दशार्ण नदी का अपभ्रंश आगे चलकर बुन्देली बोली में धसान हो गया है। यह शब्द बुन्देलखण्ड के जनमानस में इतना समा गया है कि अब दशर्णा को यहां का जन-जन धसान के नाम से ही उच्चारण करता है।

त्वयासन्ने परिणत फल जम्बू बनान्ताः,
संपन्स्यन्ते कतिपय दिनं स्थायि हंसा दशार्णाः।


-कालिदास (मेघदूत)

धसान नदी अपने बहाव के साथ कभी मुड़ती है, कभी बल खाकर चलती है, कभी नये मार्गों को तलाश कर लेती है, कभी आस-पास के कगारों को तोड़कर चलती है। इस प्रकार वह परिवर्तनशील होती हुई सागर की ओर निरंतर चलती चली जाती है। धसान भी प्रदूषित हो रही है। फलस्वरूप इसके किनारों एवं भूमिगत जल स्रोतों के प्रदूषित होने का गम्भीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।

महाभारत के विराट पर्व (19) में नकुल की विजय श्री के प्रसंग में दशार्ण की उल्लेख है। लेकिन यह दशार्ण नदी न होकर दुर्ग-भुमि है।

दशार्ण नवराष्ट्रं च मल्लाः शाल्वा युगंधरा।

बुन्देलखण्ड का दशार्ण नाम तेरहवीं शताब्दी तक अबाध रूप से चलता रहा। चंदेल शासक परमर्दि देव (1165-1203 ई.) को ‘दशार्णाधिपति’, नाम से जाना जाता रहा है।

सिरमऊ पहला स्थान है जो धसान के किनारे बसा हुआ है। धसान नदी उत्तर में बहुत दूर तक सागर और ललितपुर जिलों के मध्य की सीमा की विभाजन रेखा है। टीकमगढ़ जिले में धसान नदी के किनारे पर स्थित या आस-पास स्थित लगभग ग्यारह गाँव हैं, जिनके नाम हैं- ककरवाहा, भैंसवारी, बड़ागाँव, धसान, मौखरा, सुजारा, पटौरी, चंदपुरा, पचेर, कोटरा और आलमपुर। छतरपुर से टीकमगढ़ या प्राचीन बिजावर राज्य से ओरछा राज्य तक धसान 70 किलोमीटर की सीमा बनाती है। धसान का पूर्वी किनारा नैसर्गिक रूप से छतरपुर जिले की बिजावर तहसील की सीमा रेखांकित करता है। इसके तटवर्ती ग्राम सोरखी, खरदूती और देवरान हैं। देवरान में इसकी सहायक नदी बीला (काठन) दशार्ण में विसर्जित हो जाती है।

दशार्ण नदी बुन्देलखण्ड की जीवन रेखा है। क्योंकि रायसेन, सागर, टीकमगढ़, ललितपुर, झाँसी, जालौन आदि की 352 किलोमीटर की यात्रा तय करती है। नदी की यात्रा में विश्राम या पड़ाव नहीं होता। वह तो ‘चरैवेति प्रचलाम्’ या ‘एकला चलो’ की संदेशवाहिनी बनकर निरंतर गतिशील रहती है। रुकना नदी का काम नहीं है। वह तो अपने विसर्जन स्थल, गंतव्य या मंजिल पर पहुँचकर ही दम लेती है। ‘रामकाज कीन्हें बिना मोहिं कहाँ विश्राम।’ यह तभी रुकती या झुकती है जब यह सिन्धु या किसी बड़ी नदी में सहायक नदी के रूप में विलीन होकर एकाकार हो जाती है। उससे अपना तादात्म्य स्थापित कर महामिलन का सुख भोगती है। उद्भव से विसर्जन की प्रत्येक नदी की यात्रा में बिना पड़ाव के मंजिल तक बेतहाशा हाँफती हुई निरंतर भागती रहती है। इस भागमभाग में मिट्टी, कंकण, कीचड़, चट्टानें, गिरी- गह्वर, कन्दराएँ, ऊबड़-खाबड़ कंटकाकीर्ण मार्ग अवरोध उत्पन्न करते हैं लेकिन अविचलित सरिताएँ या तो अपने पथ स्वंयमेव निर्मित कर लेती है। या अपने रास्ते को खोजती हुई निरंतर बढ़ती जाती हैं। उद्भव से विसर्जन तक नदी की आत्मकथा जीवन के अनेक रहस्यों को उद्घाटित करती है। समय की धारा के साथ सदियों से इसकी जल धाराएँ तट, लहरें, भवरें, जलप्रपात, नद-नाले मौन साक्षी हैं। नद-नदियों के किनारे अपने में इतिहास, कहानी, संस्कृति, सभ्यता और भूगोल की अधखुली पर्तों का समय-समय पर रहस्य से पर्दा हटाते हैं। यही कहानी दशार्ण की है। जो कालिदास के मेघदूत, महाभारत के विराट पर्व, मार्कण्डेय पुराण, वामन पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित पुरातन नदी है।

देवरान से टरपेर, ईसानगर, कुर्रा रामपुर और गेरौंली से अपनी यात्रा करती हुई दशार्ण देवरी, अलीपुर, काशीपुर से झाँसी जिले की सीमा का स्पर्श करती है। झाँसी और हमीरपुर जिलों की सीमारेखा बनाती है। यह अपनी इहलीला झाँसी, हमीरपुर और जालौन के मिलन बिन्दु चंदवारी में समाप्त करती है। एक उर्ध्वगामी नदी अधोग्रति को प्राप्त होती है। धसान-बेतवा के मध्य तट पर दशरथ ने अपना बाण चलाकर श्रवण कुमार का वध किया था। फलस्वरूप हमीरपुर जिले की सीमा पर दशरथ मंदिर तथा जालौन के श्रवण गंगा के पास अँधा-अंधी के मंदिरों के पुरावशेष विद्यमान हैं। कार्तिक पूर्णिमा और मकर संक्रांति में मेला लगता है। महाशिवरात्रि में कांवरें भेंट की जाती हैं।

सागर जिले का अधिकांश भाग विन्ध्य पर्वत माला से आच्छादित है। विन्ध्य पर्वत भारत के साथ प्राचीन पर्वतों में से एक है। यह पर्वतमाला सागर जिले के सागर, बण्डा, रेहली और नरियावली में फैली हुई हैं। सागर जिले के मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर सिहौरा के पास दशार्ण नदी के निकट ‘पाषाण युगीन’ एक उद्योगशाला प्राप्त हुई है। सागर के नरियावली में भित्तिचित्रों को देखा गया है। इसा नदी के किनारे सागर से 29 किलोमीटर की दूरी पर धामौनी दुर्ग स्थित है। जहाँ धसान दो गहरी खाइयों के बीच से दो धाराओं में बहती है। उल्दन नामक गाँव में भाण्डेर नदी इसी नदी में विसर्जित हो जाती है। यह स्थान बण्डा से 16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। भाण्डेर के धसान के संगम पर मकर संक्रांति के पावन पर्व पर चार दिवसीय मेले का आयोजन प्राचीन परम्परा है। यहाँ एक शिव मंदिर है जिसकी प्रतिमा स्वयमेव प्रकट हुई थी। धसान के ही किनारे सागर-ललितपुर मार्म पर मेहर गाँव में हिंगलाज देवी का मंदिर है। सागर जिले में नरेन और सुखचैन नदियाँ भी बहती हैं।

दशार्ण और बीला काठन के संगम पर मठ, मंदिर और प्रतिमाओं के भग्नावशेष, बछरानी गाँव के पूर्वी तट पर गुप्तकालीन दो मंदिर, ईसानगर, कुर्रा रामपुर, गर्रौली और आलीपुरा के किले दशार्ण और कुकड़ेश्वर नदियों के संगम पर, अचट्ट में खजुराहो के समान चंदेलकालीन मूर्तियाँ एवं पुरावशेषों की धसान सदियों से साक्षी रही है। यह सभी स्थान छतरपुर जिले के अन्तर्गत आते हैं। इतना ही नहीं इसी जिले में धसान के ही समीप देवरा गाँव में दो स्थान प्राचीन भित्तिचित्रों के पाये जाते हैं। जिन्हें ‘पौर का दाता’ और ‘पुतली की दाता’ के नाम से जाना जाता है

टीकमगढ़ जिले में दशार्ण के तट पर मौखरा गाँव में गुप्तकालीन शिखर विहीन मंदिर, दूबदेई देवी का मंदिर, पचेर का किला, ककरवाहा और बड़ागाँव धसान के बीच गुर्जर प्रतिहार कालीन ऊमरी का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर, शिव मठ, जैन मंदिर, छौटा सा दुर्ग और हनुमान जी का विग्रह आदि स्थल स्थित हैं। दशार्ण के नजदीक लघु दुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की शरणस्थली रहा है।

उत्तरप्रदेश में हमीरपुर और झाँसी जिलों के मिलन बिन्दु पर लहचूरा बाँध और गाँव के समीप लगभग 2 किलोमीटर क्षेत्र में पाषाणयुगीन औजार प्राप्त हुए हैं। झाँसी से ही 18 किलोमीटर दशार्ण के बाँयें किनारे गरौठा गाँव से 10 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में दो पुराने महादेव मंदिर, चंदेला बैठक, दशार्ण नदी में आकंठ डूबी विश्वमित्र की प्राचीन पाषाण प्रतिमा आदि दर्शनीय स्थान है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा एवं मकर संक्रान्ति को मेला भरता है।

झाँसी जिले में धसान पर लहचूरा बाँध बना है। इस नदी पर देवरी में भी एक बाँध बनाया गया है-राठ-उरई सड़क मार्ग से 18 किलोमीटर दूर मुहाना घाट से 2 किलोमीटर बायीं ओर धसान नदी के गहरे स्थाई दौहों में मगरों का आश्रस्थल देखा जा सकता है। हो सकता है कि मगरों के कारण ही इस गाँव का नाम मगरौठ पड़ा है। मगरौठ को विनोबा जी के भू-दान अभियान के अन्तर्गत ‘प्रथम ग्राम दान गाँव’ का सम्मान मिला. इस गाँव का स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

उत्तर प्रदेश के ललितपुर की महरौनी तहसील के गिरार गाँव के किनारे कुछ खूबसूरत मंदिरों के अवशेष हैं। जिनमें राम और शिव के मंदिर प्रमुख हैं। यहाँ एक पहाड़ी की गुफा में भी शिव मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि यह गोंडों ने बनवाये थे। यहाँ मार्च में प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है। गाँव के पूर्व में एक जैन मंदिर भी है।
 

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