एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस सूचकांक में भारत को खराब रैंकिंग

एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस इंडेक्स, फोटो: Needpix.com
एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस इंडेक्स, फोटो: Needpix.com

येल यूनिवर्सिटी की तरफ से एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस के आधार पर की गई रैंकिंग में भारत को 168वां स्थान मिला है। भारत में पर्यावरण को लेकर जागरूकता और सरकार के तमाम दावों के बीच ये दयनीय रैंकिंग बताता है कि पर्यावरण के क्षेत्र में भारत को अभी और काम करने की जरूरत है। 

येल यूनिवर्सिटी ने 180 देशों में पर्यावरण को लेकर उठाए गए एहतियाती कदमों के आधार पर एनवायरमेंटल परफॉर्मेंस रैंकिंग (ईपीआर-2020) प्रकाशित की है। इस रैंकिंग में दक्षिण एशिया के देशों में भारत के अलावा अफगानिस्तान ही है, जिसे भारत से खराब रैंकिंग दी गई है। इस मामले में पाकिस्तान, भुटान, श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश की रैंकिंग भारत से बेहतर है। भुटान को 107वीं, श्रीलंका को 109वीं, मालदीव को 127वीं, पाकिस्तान को 142वीं, नेपाल को 145वीं और बांग्लादेश को 162वीं रैंकिंग दी गई है।  येल यूनिवर्सिटी की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक, ये रैंकिंग 32 प्रकार के प्रदर्शनों के मूल्यांकन के आधार पर दी जाती है। 

येल यूनिवर्सिटी अपनी वेबसाइट पर लिखता है, “ईपीआई रैंकिंग ये बताता है कि किन देशों ने पर्यावरण की चुनौतियों को बेहतर तरीके से निबटाया। पर्यावरण की ये चुनौतियां कमोबेश सभी देशों के सामने है, लेकिन बेहतर रैंकिंग उन्हें मिलती है, जो इन चुनौतियों से बेहतर तरीके से निबटते हैं।” 

रिपोर्ट में सभी मानदंडों के प्रदर्शन के आधार पर भारत को महज 27.6 स्कोर दिया गया है। अगर अलग-अगल मुद्दों को लेकर भारत की रैंकिंग देखें, तो स्थिति और भी दयनीय है। मसलन वायु गुणवत्ता के मामले में भारत को महज 13.4 स्कोर मिला है और इसकी रैंकिंग 179वीं है। भारत से नीचे केवल एक देश पाकिस्तान है। पिछले 10 वर्षों में प्रदर्शन में बदलाव को लेकर भारत को नेगेटिव स्कोर दिया गया है। वायु प्रदर्शन के मामले भारत की स्थिति कितनी खराब इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि पिछले दो-तीन सालों से सर्दी के मौसम में दिल्ली समेत तमाम जगहों पर प्रदूषण इतना बढ़ जाता है कि लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। 

पर्यावरणीय स्वास्थ्य के मामले में भारत की रैंकिंग 172वीं है और स्कोर 16.3 स्कोर है।

वहीं पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के मामले में भारत की रैंकिंग 174 है और स्कोर महज 10.9 मिला है। दक्षिणी एशिया के 8 देश इस रैंकिंग में शामिल हैं, जिनमें से पाकिस्तान को छोड़ कर बाकी सभी देशों का प्रदर्शन भारत से बेहतर है। येल यूनिवर्सिटी ने बताया कि रैंकिंग का निर्धारत पीएम 2.5 के एक्सपोजर से सालाना होने वाली मौतों के आधार पर किया गया है। 

घरों में खाना बनाने से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर हुई रैंकिंग में हालांकि भारत की स्थिति कुछ ठीक है। इसमें भारत को 128वां स्थान मिला है और बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बेहतर स्थिति में है। ओजोन एक्सपोजर की बात करें, तो इस मामले में भारत 179वें पायदान पर है। पाकिस्तान, भुटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका की स्थिति भारत से बेहतर है। 

भारत सरकार ने देशभर में स्वच्छ भारत मिश्न शुरू किया और लोगों को जागरूक करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद भी झाड़ू लगाया, लेकिन अफसोस की बात है कि पेयजल और साफ-सफाई के मामले में भी भारत को खराब रैंकिंग मिली है। 180 देशों में भारत को 139वां स्थान मिला है और स्कोर 19.4 है। नेपाल, बांग्लादेश, भुटान, अफगानिस्तान जैसे देशों को इस मामले में भारत से बेहतर रैंकिंग मिली है। 

कूड़ा प्रबंधन के मामले में भारत ने दक्षिण एशियाई देशो में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन वैश्विक स्तर पर देखें, तो शीर्ष 100 देशों में भारत शामिल नहीं है. भारत को इस क्षेत्र में 103वां स्थान मिला है। 

जलवायु परिवर्तन के मामले में भी भारत की स्थिति बहुत ठीक नहीं है। इसमें भारत को 106वां स्थान मिला है और स्कोर 45 है। हालांकि, दक्षिण एशियाई देशों में पाकिस्तान को छोड़ दें, तो दूसरे देशों के मुकाबले भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा है।

इसके अलावा जैवविविधता, मरीन प्रोटेक्शन, वन्यजीव सूचकांक, ईकोसिस्टम सर्विसेज, हरियाली संरक्षण, जलाभूमि, मत्स्य, कार्बन उत्सर्जन, कृषि, नाइट्रोजन प्रबंधन, जलस्रोत आदि सेक्टरों में भी भारत की स्थिति चिंताजनक है।

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