बिहार के लिए न्यू नाॅर्मल है बाढ़

24 Jun 2020
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बिहार के लिए न्यू नाॅर्मल है बाढ़
बिहार के लिए न्यू नाॅर्मल है बाढ़

चीन के साथ साथ नेपाल से भी इस समय सीमा विवाद का मुद्दा गरमाया हुआ है। विवाद के चलते नेपाल ने लालबकेया नदी पर बांध को मजबूत करने का कार्य रोक दिया है। इससे बिहार पर बाढ़ का खतरा मंडारने लगा है। इससे बिहार सरकार चिंतित है और केंद्र सरकार को पत्र लिखा है, लेकिन बाढ़ बिहार के लिए नई नहीं है। यहां के लोगों की खुशियां हर साल बाढ़ के पानी में बह जाती है। एक तरह से बिहार हर साल उजड़ता है और फिर हर साल बसावट का दौर शुरू होता है। लोगों की जिंदगानी बाढ़ और बसावट के बीच ही फंसकर रह गई है। बाढ़ के चक्रव्यूह में फंसे बिहार में हर साल करोड़ों रुपये की फसल तबाह हो जाती है, जो किसानों को भी दोराहे पर लाकर खड़ा कर देती है, लेकिन बाढ़ को रोकने के सरकार के प्रयास धरातल पर केवल खानापूर्ति के समान ही दिखाई देते हैं। जिस कारण बिहार के लिए बाढ़ न्यू नाॅर्मल बन गई है। 

बिहार से नेपाल का पहाड़ी इलाका लगा है। पहाड़ों पर बारिश होने से नदियों के माध्यम से पानी नीचे की तरफ आता है और मैदानी इलाकों में भर जाता है। यहां से पानी बिहार में दाखिल होता है। नेपाल की इसी सीमा से बिहार के पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज जिला लगता है। इसलिए यहां सबसे ज्यादा बाढ़ भी आती है। द वायर के मुताबिक वर्ष 2017 में बिहार के 17 जिलों में बाढ़ आई थी। 1.71 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हुए थे और 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे। आठ लाख एकड़ फसल बर्बाद हो गई थी। बीबीसी के मुताबिक वर्ष 2016 में 12 जिले बाढ़ की चपेट में आए थे, जिसमें 23 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। करीब 20 जिलों में बाढ़ का असर रहा और 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। 2013 की बाढ़ का आलम और भी ज्यादा बुरा था। इस वर्ष बाढ़ का असर 20 जिलों में दिखा और 50 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। करीब 200 लोगों ने जान गंवाई। 2011 की बाढ़ ने 25 जिलों में  तबाही मचाई। जिसमें 71.43 लाख लोग प्रभावित हुए। लगभग 249 लोगों की बाढ़ के कारण मौत हो गई, जबकि 1.5 की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा।

वर्ष 2008 में बिहार में आई बाढ़ ने 18 जिलों को चपेट में लिया और 50 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया। लगभग 250 लोगों की मौत हुई। वर्ष 2007 की बाढ़ बिहार के लिए भयानक विनाश लेकर आई। इस दौरान बाढ़ का कहर 22 जिलों पर बरपा और 2.4 करोड़ से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। ऐसा मानना है कि 2400 से ज्यादा जानवरों की भी मौत हुई थी। बीबीसी के मुताबिक एक करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा खेती की भूमि पूरी तरह तबाह हो गई थी। वर्ष 2004 की बाढ़ में 20 जिले, 9346 गावं और 2 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। लगभग 522 करोड़ की फसल का नुकसान हुआ और 3272 जानवरों की मौत हुइ। वर्ष 2002 में भी बिहार को भयानक बाढ़ का सामना करना पड़ा था। इस वर्ष बाढ़ का कहर 25 जिलो पर बरपा। 8318 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए। 489 लोगों की मौत हुई और लगभग 511 करोड़ रुपये की फसलें पूरी तरह तबाह हो गई थी। 

20 साल पहले यानी वर्ष 2000 में आई बाढ़ से बिहार में काफी कुछ तबाह कर दिया था। इस वर्ष 33 जिले और लगभग 12 हजार से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ गए। 336 लोगों ने बाढ़ में जान गंवाई, जबकि 2500 से ज्यादा मवेशियों की मौत हो गई। 83 करोड़ की फसल को नुकसान पहुंचा, लेकिन बिहार के इतिहास में सबसे भयानक बाढ़ वर्ष 1987 में आई थी। तब राज्य के 30 जिलों के 24518 गांव प्रभावित हुए थे। 1399 लोगों ने जान गंवाई और 5000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। खेती की दृष्टि से 678 करोड़ रुपये की फसल पूरी तरह तबाह हो गई थी।

कुछ दिन पहले ही दो दिन में पटना में 141 मिलीमीटर बारिश हुई जिससे अशोक नगर, राजेंद्र नगर, राजीव नगर, पुनाइचक, सैदपुर, खेतान मार्केट, नवरत्नपुर, विग्रहपुर, संजय नगर जैसे इलाकों में पानी जमा होने से लोगों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बिहार की नदियों के जलस्तर में भी बढ़ोतरी हो गई है। मुजफ्फरपुर में बागमती नदी का जलस्तर बढ़ने से कटाव शुरू हो गया है। कटाव के कारण कुछ गावों का संपर्क टूट गया है। तो वहीं नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद को लेकर अब बिहार भी इसमें पिसता नजर आ रहा है। ऐसे में बिहार के लिए न्यू नाॅर्मल हो गई बाढ़ का खतरा इस बार ज्यादा मंडाराने लगा है। बिहार की जनता को इससे निजात दिलाने के लिए सरकारें को पहल करने की जरूरत है। जिसके लिए स्थायी समाधान वक्त की सबसे बड़ी मांग है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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