गांधी का स्वच्छ भारत

महात्मा गांधी भारत को स्वच्छ बनाना चाहते थे। लेकिन ऐसा हो न सका और अब महात्मा के उसी पथ पर चलने का बीड़ा उठाया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।

.मौका था बनारस हिंदू विश्व विद्यालय के स्थापना दिवस का। 47 साल के गांधी को तब बापू की उपाधि नहीं दी गई थी। बीचयू के स्थापना दिवस के मौके पर वह मंच पर बैठे थे। उनके साथ मंच पर ऐनी बेसेंट, पंडित मदन मोहन मालवीय और दरभंगा महाराज जैसी कई हस्तियां मौजूद थीं।

सामने कई राजा महराजा और प्रबुद्ध वर्ग के लोग बैठे हुए थे। अब मंच से लोगों को संबोधित करने की बारी मोहनदास करम चंद गांधी की थी। सभी को उम्मीद थी कि बीएचयू के स्थापना दिवस पर वह शिक्षा के विषय पर बोलेंगे लेकिन उन्होंने जो बोला उसे सुनकर वहां बैठे सभी लोग हैरान रह गए।

भाषण की खास बातें


वाराणसी कल मैं बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए गया था। जिन गलियों से मैं जा रहा था उसे देखते हुए मैं यही सोच रहा था कि अगर कोई अजनबी इस महान मंदिर में अचानक आ जाए तो हिंदुओं के बारे में वह क्या सोचेगा।

अगर वह हमारी निंदा करेगा, तो क्या वह गलत होगा? इस मंदिर की जो हालत है क्या वह हमारे चरित्र को नहीं दिखा रही। करीब 100 साल पहले महात्मा गांधी द्वारा दिया गया यह भाषण भारत में उनका पहला सार्वजनिक भाषण था। तब उन्होंने गंदगी का जिक्र किया। हिन्दुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक बनारस। शिव की नगरी काशी का। जीवन- मरण के चक्र से मुक्ति की धरती। उस धरती पर कितनी गंदगी फैली है, उसका जिक्र गांधी जी अपने 1916 के इस भाषण में कर रहे थे।

बीएचयू की स्थापना के मौके पर महात्मा गांधी ने कहा था मैं ये बात एक हिन्दू की तरह बड़े दर्द के साथ कह रहा हूं। क्या ये कोई ठीक बात है कि हमारे पवित्र मंदिर के आस-पास की गलियां इतनी गंदी हों? उसके आस-पास जो घर बने हुए हैं वे चाहे जैसे तैसे बने हों। गलियां टेढ़ी-मेढ़ी और संकरी हों। अगर हमारे मंदिर भी सादगी और सफाई के नमूने न हों तो हमारा स्वराज्य कैसा होगा? अगर अंग्रेज यहां से बोरिया बिस्तर बांध के चले भी गए तो क्या हमारे मंदिर पवित्रता, स्वच्छता और शांति के धाम बन जाएंगे।

ये भाषण महात्मा गांधी ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी- बीएचयू की स्थापना के मौके पर दिया था। बीएचयू को बनाने का जिम्मा उठाया था कांग्रेस के बड़े नेता पंडित मदन मोहन मालवीय ने। पंडित मालवीय बीएचयू को दुनिया का सबसे अच्छा विश्व विद्यालय बनाना चाहते थे। मौके पर मौजूद लोगों को लगा कि लंदन में पढ़ाई लिखाई कर चुके गांधी कुछ बड़ी बातें करेंगे। पर गांधी तो गंदगी और साफ-सफाई जैसी मामूली बातों का पाठ पढ़ाने लगे। गांधी के भाषण में पूरा जोर था शहर में फैली गंदगी पर।

आखिर गांधी धर्म नगरी की इस हालत को देखकर इतने दुखी क्यों थे? जिस मंच से गांधी भाषण दे रहे थे वहां मौजूद लोगों में उनका चेहरा थोड़ा कम जाना पहचाना था। मंच पर ज्यादा बड़े मेहमान वे राजा और महाराजा थे जिनके पैसे से बीएचयू बना था। कांग्रेस के कई बड़े नेता भी मंच पर गांधी का भाषण सुन रहे थे। गांधी बिना लाग-लपेट के जो कुछ बोल रहे थे उसे अब सुन पाना मेहमानों के लिए मुश्किल हो रहा था।

पहले तो गांधी ने अंग्रेजी में भाषण देने वालों की खिंचाई की। उसके बाद वह शान-ओ-शौकत की नुमाइश करने वाले राजा- महाराजाओं पर बरस पड़े।

महात्मा गांधी ने कहा मुझे हैरानी इस बात से हो रही है कि ये जो कार्यक्रम चल रहा है इसकी अध्यक्षता के लिए हम विदेशी जुबान का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं। क्या इस कार्यक्रम को चलाने के लिए हम अंग्रेजी की जगह हिन्दी में नहीं बोल सकते। मैं यहां मौजूद राजा-महाराजाओं की शान-ओ-शौकत को देख कर भी हैरान हूं।

भारत तब तक मुक्त नहीं हो सकता जब तक कि आप लोग खुद को कीमती गहनों के भार से मुक्त कर देशवासियों के भरोसे को नहीं जीत लेते। गांधी अभी भाषण दे ही रहे थे कि बीएचयू की स्थापना में बड़ी भूमिका रखने वाले स्वतंत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीय और ऐनी बेसेंट ने उन्हें रोकने की कोशिश की। महात्मा गांधी की गंदगी और साफ-सफाई की बातों को सुन कर गहनों से लदे राजकुमार गुस्से में वहां से निकल गए।

इतना ही नहीं दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह ने सभा को ही तुरंत बरखास्त कर दिया। मोहन दास करमचंद गांधी आखिर ऐसी बातें क्यों कर रहे थे? गांधी धार्मिंक किस्म के व्यक्ति थे। तो क्या काशी की गंदगी को देख कर गांधी की धार्मिंक भावना जाग उठी? या फिर यूरोप और दक्षिण अफ्रीका में रह चुके गांधी वहां की साफ-सफाई की संस्कृति से प्रभावित थे? तब से अब तक सौ साल गुजर चुके हैं।

भारत गांधी के लिए स्वच्छता का व्यापक अर्थ था। वे बाह्य स्वच्छता पर तो जोर देते ही थे, लेकिन उसके जरिये मन की स्वच्छता पर उनका ध्यान रहता था। आश्चर्य है कि गांधी के सपनों का भारत बाह्य रूप से अस्वच्छ और मनुष्य की नैतिकता के लिहाज से बेहद अपवित्र हो चुका है। यहां हमने स्वच्छता को लेकर गांधी के कुछ विचारों को सामने रखा जो उन्होंने बीएचयू के स्थापना समारोह में कहे थे। प्रस्तुत हैं उनके भाषण के कुछ अंश..कितनी साफ और स्वच्छ है देश की धर्म नगरी? महात्मा गांधी ने गंदी गलियों का जिक्र किया था। आज भी हम देख सकते हैं मंदिर के आसपास की गलियां गंदगी से भरी हैं। सौ साल पहले भी यहां थीं तंग गलियां आज भी यहां कोई बदलाव नहीं हैं। मंदिर की सफाई में सुधार तो हुआ है लेकिन मंदिर से बाहर की दुनिया गंदगी से भरी है। महात्मा गांधी जिस पवित्रता और साफ सफाई की बात किया करते थे उसमें अभी भी कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।

नहीं बदली तस्वीर


महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में लिखे लेख के जरिए 1929 में जो तस्वीर खींची थी। 85 साल बाद आज भी हर रोज वही तस्वीर दुहराई जाती है।

हजारों हजार टन फूल, माला, सूत, गुलाल, चावल, पंचामृत गंगा में यूं ही बहाए जाते हैं। गंगा हर रोज पहले से ज्यादा मैली होती है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक हरिद्वार में हर रोज 3.90 करोड़ लीटर सीवर निकलता है जबकि ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता सिर्फ 1.80 करोड़ लीटर ही है।

यानी हर रोज 2.10 करोड़ लीटर गंदगी रोजाना बिना ट्रीटमेंट के गंगा में डाली जा रही है। गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी की रिसर्च में कहा गया है कि हर श्रद्धालु करीब 650 ग्राम पूजन सामग्री गंगा में डालता है।

पिछली बार सिर्फ माघी पुर्णिमा के दिन करीब एक हजार टन पूजन सामग्री गंगा में बहा दी गई। ‘कल मैं बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए गया था। जिन गलियों से मैं जा रहा था उसे देखते हुए मैं यही सोच रहा था कि अगर कोई अजनबी इस महान मंदिर में अचानक आ जाए तो हिंदुओं के बारे में वह क्या सोचेगा।’

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