गाँव में आसान हुआ पानी तो सपने भी हुए पूरे

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करीब 15 साल पहले वह शादी के बाद जब से दुल्हन बन कर इस गाँव में आई थी, तब से थोड़े दिनों पहले तक उसकी जिन्दगी धुँआ–धुँआ सी ही थी। जैसे जिन्दगी इन थोड़े ही दिनों में उसे बोझ सी लगने लगी थी। अल सुबह से पानी की चिन्ता सताने लगती तो रात को सुबह जल्दी उठने की चिन्ता बनी ही रहती। इस गाँव में घर के लिए जरूरी पानी जुटाना जैसे बड़ी मशक्कत से कम नहीं हुआ करता था। वह हमेशा अपनी किस्मत को दोष देती रहती कि ऐसे गाँव में उसकी शादी हो गई, जहाँ न तो पानी का कोई सोता है और न ही आस-पास कोई नदी पोखर। उसे अपने माता–पिता पर भी गुस्सा आता कि अपना फर्ज पूरा करने के लिए उन्होंने ऐसे गाँव में उसका रिश्ता तय कर दिया। उसके अपने मायके में पानी की ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी। उसे अपने पति या ससुराल से कोई शिकायत नहीं थी, वे सब उसका बहुत ध्यान रखते पर पानी का सवाल ही ऐसा था कि कोई करे भी तो क्या..? गाँव की सभी औरतों को पानी का इन्तजाम तो करना ही पड़ता है न। अब क्या पानी लेने बूढ़ी सास को कुएँ तक भेजें।

यह कहानी वैसे तो मध्यप्रदेश के देवास जिले के बागली तहसील के छोटे से गाँव नयागाँव की 37 वर्षीया सुनीता की है, लेकिन त्रासदी यह कि यह कहानी अकेली सुनीता की ही नहीं बल्कि नयागाँव उससे सटे कुकड़ीपुरा और राजगढ़ के तीन गाँवों में रहने वाली करीब आठ सौ से ज्यादा औरतों की थी। समस्या एक दिन की हो तो समझ आता है पर रोज–रोज की यही किच–किच आखिर कोई कब तक सहन करे। औरतों का धीरज अब खत्म होने लगा था। यह सन 2012 का साल था। इन तीन गाँवों में पानी की जबरदस्त किल्लत का साल। सरकार ने भी इस इलाके में सूखे को देखते हुए कई जतन किए थे लेकिन इन तीन गाँवों में कुछ नहीं हुआ। कुओं का पानी तो पहले ही सूख चूका था अब हैंडपम्प भी जवाब दे गए। हालत यहाँ तक पहुँच गए कि औरतों को अपने सर पर मटके लेकर गाँव से 2–2 किमी दूर खेतों पर बने कुओं से पानी लाने को मजबूर होना पड़ा। आखिर औरतें अपने घर–बच्चों को बिना पानी के कैसे रहने दे। पानी का इन्तजाम करते–करतेही सुबह से शाम हो जाती, फिर घर का काम। औरतों की जिन्दगी बस पानी की जुगाड़ में ही सिमट कर रह गई थी।

परेशान औरतों ने सुना कि अफसर जल संकट वाले गाँवों में पीने का पानी जुटाने के लिए सरकार की तरफ से कुछ संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं तो इन औरतों को उम्मीद बंधी कि यदि ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो कि वे एक बार फिर पानी की जद्दोजहद से बाहर आ सकेंगी। औरतों ने इकट्ठा होकर तय किया कि बागली चलकर तहसील के सरकारी अफसरों को अपनी समस्याओं से अवगत कराएँगी और अपने गाँव के लिए पानी लाकर ही रहेंगी। सुबह जल्दी पानी के काम से निपटकर औरतें बागली के लिए निकल गई। वहाँ पहुँचकर पहले तो दो–तीन घंटे उनकी कोई पूछ–परख ही नहीं हुई तब उन्होंने हल्ला मचाना शुरू किया तो कुछ कर्मचारियों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि आप से साहब नहीं मिल सकेंगे। उन्हें बहुत काम है पर औरतें भी अड़ गई और कहने लगी कि हमें भी बहुत काम है हम भी बार–बार घर का काम छोड़कर और खर्चा कर तहसील के चक्कर नहीं लगा सकते। काफी देर की जद्दोजहद के बाद आखिर तहसील के बड़े साहब से उनकी मुलाकात हो सकी। औरतों ने उन्हें अपनी सारी व्यथा कथा कह सुनाई और बताया कि वे किन विपरित परिस्थितियों में परेशान हो रही है। यदि उनके गाँवों में पानी के लिए कोई वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध करा सकें तो उनकी परेशानी मिट सकती है। बड़े साहब ने उनसे आवेदन ले लिया और कहा कि ठीक है, अफसरों को भेजकर दिखवा लेंगे। औरतें घर लौट आईं पर कई दिन बीतने के बाद भी जब कोई नहीं आया तो औरतें फिर बागली गई और वहाँ अफसरों से बात की पर कोई हल नहीं निकला। ऐसा कई बार हुआ पर इन औरतों की सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था। इनकी बातों से अफसरों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। औरतों ने इसे अपनी नियति मानकर अब बागली के चक्कर लगाना भी छोड़ दिए। उन्हें लगा कि कहीं कुछ नहीं होने वाला।

.इसी बीच एक पत्रकार उनके गाँव आया और उसने औरतों को इतनी दूर से सर पर मटके लेकर पानी लाते देखा तो गाँव वालों से पूछा कि ऐसा क्यों है तो ग्रामीणों ने उसे पूरी कहानी कह सुनाई। पत्रकार ने गाँव के लोगों को तैयार किया कि वे गाँव की परेशानी को सरकार के सामने रखें तो कुछ हो सकता है। गाँव वालों ने बताया कि कुछ नहीं होने वाला। हम कई सालों से पंचायत से प्रस्ताव भेजते रहे पर कुछ नहीं हुआ। अब तो औरतें भी अपनी बात खुद बड़े साहब तक पहुँचा चुकी पर कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा। अफसर फिर से हड़का देंगे।

आखिरकार एक दिन तीनों गाँवों के लोग तख्तियाँ लिए हुए बागली कस्बे में पहुँचे। यहाँ तहसील के बाहर उन्होंने नारेबाजी करते हुए पूरे कस्बे में रैली निकालकर विरोध जताया। इन्होंने जब अपनी माँग बागली की एसडीएम के सामने रखी तो कुछ देर के लिए तो वह भी चौंक गई। दरअसल ग्रामीणों ने एसडीएम को राष्ट्रपति के नाम जो ज्ञापन सौंपा था उसमें यह लिखा था कि सेवन्या खुर्द पंचायत में आने वाले हमारे इन तीन गाँवों में पानी की बहुत किल्लत है हम कई बार सरकारी अफसरों को इसकी शिकायत भी कर चुके हैं लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा। अब हमारी आखिरी उम्मीद आपसे है – आप या तो हमारे गाँव में पानी के लिए वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध कराएँ या हमें हिन्दू मैरिज एक्ट में संशोधन कर एक और शादी करने की विशेष अनुमति दें ताकि हम दो–दो पत्नियाँ रख सकें। एक पानी लाती रहेगी और एक घर तथा खेती के काम काज सम्भालती रहेगी। उन्होंने बताया कि पानी लाने में औरतें इतनी पस्त हो जाती हैं कि वे दूसरे काम नहीं कर पाती। वे कमजोर होती जा रही हैं और घर में आए दिन इसे लेकर झगड़े होते रहते हैं।

ग्रामीण गोपाल ने बताया कि उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं था। वे आखिर और क्या करते। तत्कालीन तहसीलदार रतनलाल सोनिस बताते हैं कि ग्रामीणों से इस तरह की माँग पहली बार सुनी थी। अफसरों ने तय किया कि आवेदन के आधार पर गाँव में जल्दी ही पीने के पानी की व्यवस्था कराई जाए। अफसरों ने सरकार से गुहार की और कुछ ही दिनों में इन तीनों गाँवों की किस्मत ही बदल गई। कभी बूँद–बूँद पानी को तरसने वाले ये गाँव भी अब पानीदार बन चुके हैं। इन गाँवों में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 2 लाख की लागत से हैंडपम्प लगाकर उसे पानी की टंकी से जोड़ दिया है। अब गाँव में पानी की कोई परेशानी नहीं है। अब पानी की बात चलते ही सुनीता के चेहरे पर चमक दौड़ जाती है। सुनीता बताती है कि अब पानी की परेशानी नहीं रही। पहले तो हमें दूर–दूर से पानी लाना पड़ता था पर अब तो गाँव में ही पानी ही पानी है। अब पानी लाना बहुत आसान हो गया है और हमारे सपने भी पूरे हुए हैं।
 

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