गांवों में शहरों जैसी सुविधाओं का विस्तार

25 Oct 2014
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आज भारत के गांवों में बदलाव की नई इबारत लिखी जा रही है। गांवों में हुई नई पहल का असर दिखाई पड़ रहा है। गांवों में भी शहर जैसी सुविधाएं हैं। लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिल रहा है। गांव-गांव सड़कें पहुंच गई हैं और आधारभूत सुविधाओं का लगातार विकास हो रहा है। गांव-गांव में न सिर्फ बैंक खोले जा रहे हैं बल्कि डाकघरों को भी बैंक के रूप में विकसित किया जा रहा है। आज कच्चे मकानों से भी हेलो की आवाज सुनाई पड़ती है। खेत-खलिहान से ही किसान संचार क्रांति के जरिए अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर रहे हैं। “भारत गांवों में बसता है। गांवों में जब तक शहरों जैसी सुविधाएं विकसित नहीं की जाएंगी, तब तक समग्र भारत का विकास नहीं होगा”, यह अवधारणा थी महात्मा गांधी की। महात्मा गांधी की इसी अवधारणा को केंद्र सरकार ने आत्मसात किया और ग्रामीण भारत के विकास के लिए कई नए प्रयोग किए। विभिन्न क्षेत्रों में समग्र विकास को गति देने के लिए एक के बाद एक योजनाएं लागू की और योजनाओं के सही तरीके से क्रियान्वयन करने और आम आदमी को योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए जरूरत के मुताबिक संविधान में भी संशोधन किया।

जुलाई और नवंबर 2008 में महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच किए गए एक सर्वे में पाया गया कि मोबाइल ने किसानों की हर समस्या का समाधान कर दिया है। सर्वेक्षण से यह बात उभरकर सामने आई कि मोबाइल का सबसे ज्यादा फायदा महाराष्ट्र के किसानों ने उठाया है। दूसरे नंबर पर राजस्थान के किसान रहे और तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश के। यूपीए सरकार की ओर से किए गए इन उपायों के असर भी दिखाई पड़ने लगे हैं। राष्ट्रीय कृषि विभाग योजना के तहत खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन से जहां फल-फूल और सब्जी व मसालों की पैदावार बढ़ी है वहीं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत अनाज एवं दालों का उत्पादन बढ़ा है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून के लागू होने के बाद न सिर्फ शैक्षिक विकास को गति मिली है बल्कि बेरोजगारी की दर में भी गिरावट आई है। लोगों को रोजगार के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ रहा है, उन्हें गांव में ही अपने घर के आसपास रोजगार मिल रहे हैं।

ग्रामीण भारत के विकास में केंद्र सरकार ने हमेशा ही रुचि दिखाई है, लेकिन इसे गति मिली पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में। आज जिस संचार क्रांति ने भारत के विकास में नई पहल की है, उस संचार क्रांति का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी को जाता है। ग्रामीण भारत में नई पहल करने की जो नींव उन्होंने रखी, उसी नींव पर आज बुलंद इमारत तैयार हो रही है। यही वजह है कि एक तरफ संचार क्रांति का सपना साकार हुआ तो दूसरी तरफ पंचायती राज की अवधारणा पूरी हुई। आज जो पंचायती राज एक्ट हमारे सामने है, उसमें महात्मा गांधी से लेकर जयप्रकाश नारायण की परिकल्पना समाहित है। गांधी और जेपी दोनों की मान्यता थी कि पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया जाए, चुनाव सुनिश्चित कराए जाएं, वित्तीय अधिकार और पंचायतों को विकास का एजेंट न बनाकर उसे स्थानीय स्वशासन की इकाई बनाया जाए। इस परिकल्पना को पंचायती राज एक्ट में परिलक्षित किया गया, जिसका असर आज हमारे सामने दिखाई पड़ रहा है।

पेयजल में सामुदायिक भागीदारी को और बढ़ाने तथा मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता निगरानी और सतर्कता कार्यक्रम फरवरी, 2006 में प्रारंभ किया गया। इसके तहत हर ग्राम पंचायत से पांच व्यक्तियों को पेयजल गुणवत्ता की नियमित निगरानी के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए शत-प्रतिशत आर्थिक सहायता, जिसमें पानी परीक्षण किट भी शामिल है, प्रदान की जाती है। पहली हरितक्रांति को अब तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है। इस दौरान देश की जनसंख्या भी बढ़ी है और लोगों की जरूरतें भी, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था में 58 फीसदी लोगों को रोजगार और जीविका मुहैया कराने वाली कृषि का रकबा बढ़ने के बजाय घटा है। ऐसे में सरकार के सामने ग्रामीण विकास को नया आयाम देना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन सरकार की दूरदर्शी नीतियों की वजह से किसी न किसी रूप में गांवों में खुशहाली लौट रही है। ग्रामीण इलाके में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, संचार, शिक्षा, रोजगार आदि के साधन बढ़ रहे हैं। इसका असर यह हुआ कि ग्रामीणों का पलायन थम रहा है। लोग शहरों के बजाय गांवों में ही उन सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं, जिनके लिए शहर आना मजबूरी होती थी। आज गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना है तो स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, इंदिरा गांधी आवास विकास योजना, भारत निर्माण, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना सहित तमाम ऐसी योजनाएं हैं, जिनके जरिए भारत के गांवों को विकसित करने के लिए नई पहल हो रही है। देश की सभी पंचायतों को इंटरनेट से सुसज्जित किया जा रहा है। यहां रेलवे आरक्षण से लेकर किसानों को मौसम तक की जानकारी मिल सकेगी। अभी शुरुआती दौर में ढाई लाख केंद्र खोले जा रहे हैं, जबकि वर्ष 2014 तक हर पंचायत में ऐसा ही एक केंद्र हो जाएगा।

डाकघर जल्द बनेंगे बैंक


डाकघरों को बैंक बनाने का सपना जल्द पूरा होने के आसार हैं। भारतीय डाक विभाग देश के 2207 डाकघरों में कोर बैंकिंग प्रणाली जल्द शुरू करने वाला है। इस प्रणाली के शुरू होने के बाद आप अब डाकघरों की बचत योजनाओं में अपना पैसा देशभर के किसी भी डाकघर से निकलवा या जमा करवा सकते हैं। यही नहीं, डाक विभाग ने देशभर के 810 डाकघरों का चुनाव कर लिया है, जहां वे एटीएम सुविधा भी ग्राहकों को उपलब्ध करवाएगा।

डाक विभाग को भारतीय रिजर्व बैंक भी जल्द कोर बैंकिंग प्रणाली शुरू करने के लिए अपनी मंजूरी देने जा रहा है। इसके तहत डाकघर भी बैंकों के समान काम कर सकेंगे। डाकघर बचत बैंक स्कीम में ग्राहकों को सुविधा देने के लिए कोर बैंकिंग प्रणाली शुरू करने की योजना है। इसके बाद बैंकों के बचत खाते, सावधि जमाखाते और यहां तक कि कर्ज देने के मुद्दे पर भी विचार चल रहा है। डाक विभाग ने अपनी इस योजना के लिए पूरा खाका तैयार कर लिया है। इसके मुताबिक डाक विभाग ने उत्तर भारत के कई राज्यों के विभागीय डाकघरों में कोर बैंकिंग प्रणाली और एटीएम सुविधा देने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसके तहत उत्तर प्रदेश के 71, उत्तराखंड के 13, पंजाब के 23, जम्मू-कश्मीर के 9, हिमाचल प्रदेश के 18, हरियाणा के 16 और दिल्ली के 12 डाकघरों में एटीएम सुविधा शुरू करने की योजना है।

बैंकिंग सुविधाओं के अलावा डाक विभाग ने भारतीय डाक तकनीकी योजना 2012 को अमलीजामा पहनाते हुए देशभर के कई राज्यों के डाकघरों को कंप्यूटरीकृत कर लिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के 2338, उत्तराखंड के 374, पंजाब के 767, जम्मू-कश्मीर के 218, हिमाचल प्रदेश के 462, हरियाणा के 454 और दिल्ली के 357 डाकघर कंप्यूटरीकृत हो गए हैं। वहीं यूपी के 204, उत्तराखंड के 9, पंजाब के 4, जम्मू-कश्मीर के 40 और दिल्ली के 38 डाकघरों को अभी भी कंप्यूटरीकृत किया जाना बाकी है।

संचार क्रांति का सच होता सपना


संचार क्रांति का सपना अब सच होता नजर आ रहा है। गांवों में संचार से जुड़ी करीब-करीब हर सुविधा पहुंच गई है। संचार क्रांति के इस सपने का असर यह हुआ है कि गांवों में रोजगार के नए-नए रास्ते खुले हैं। आज भारत के गांवों में सात करोड़ 60 लाख से अधिक टेलीफोन कनेक्शन हैं। लोगों को छोटी-छोटी जरूरतों के लिए घंटों इंतजार नहीं करना पड़ रहा है। गांवों में टेलीफोन, मोबाइल तो पहुंच ही गए हैं, अब गांव-गांव ब्रॉडबैंड पहुंचाने की नई पहल की जा रही है।

सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए देश के गांव-गांव में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी पहुंचाने की योजना को दूरसंचार आयोग ने मंजूरी दे दी है। इससे ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा से संबंधित सेवाओं को पहुंचाना आसान हो जाएगा। इसके तहत अगले तीन वर्षों के भीतर देश की सभी पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जोड़ा जाएगा। इस पर 20 हजार करोड़ रुपए की लागत आने की संभावना है। सरकार का कहना है कि यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक सेवाओं को पहुंचाने में बहुत मददगार साबित होगी। इस योजना के लिए यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) की राशि इस्तेमाल की जाएगी। दूरसंचार ऑपरेटरों से सरकार सालाना एक शुल्क वसूलती है जिसे इस फंड में रखा जाता है।

ब्रॉडबैंड कनेक्शन में 10 फीसदी की वृद्धि होने से राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में 1.4 फीसदी की वृद्धि संभावित है। इससे समझा जा सकता है कि यह योजना देश की अर्थव्यवस्था को कितना मजबूत बनाएगी। इससे बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। ब्रॉडबैंड नेटवर्क तैयार करने का काम पहले तो बीएसएनएल या रेलटेल जैसी सरकारी कंपनियों को दिया जाएगा लेकिन बाद में निजी कंपनियों को देने के प्रस्ताव पर भी विचार किया जा सकता है। शुरुआत में ओएफसी से देश के सभी जिला मुख्यालयों को जोड़ा जाएगा। फिर ब्लॉकों को और अंतिम चरण में ग्राम पंचायतों को इससे जोड़ा जाएगा। पूरी योजना वर्ष 2014 में पूरी हो जाएगी।

माना जा रहा है कि यूपीए सरकार आगामी आम चुनाव से पहले इस योजना को पूरी तरह से लागू करना चाहती है ताकि इसे अपनी एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाया जा सके। ब्रॉडबैंड कनेक्शन में 10 फीसदी की वृद्धि होने से राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में 1.4 फीसदी की वृद्धि संभावित है। इससे समझा जा सकता है कि यह योजना देश की अर्थव्यवस्था को कितना मजबूत बनाएगी। इससे बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

अब कॉल सेंटर गांवों की ओर


एक तरफ केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण भारत में संचार क्रांति को तेज किया जा रहा है तो दूसरी तरफ उसका असर भी दिखने लगा। कॉल सेंटरों में नौकरी के लिए अब गांव के पढ़े-लिखे युवकों को शहर की तरफ नहीं भागना पड़ेगा। केंद्र सरकार जल्द ही ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीओ खोलने जा रही है। यही नहीं संप्रग सरकार आईटी को गांवों की तरफ ले जाने की तैयारी कर चुकी है। इसके तहत 2012 तक देश की सभी ढाई लाख पंचायतें ब्रॉडबैंड इंटरनेट सर्विस से जुड़ जाएंगी, जिसके माध्यम से गांव वाले हर तरह की जानकारी ले सकेंगे। आईटी में एक करोड़ दस लाख से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं। गांवों में कॉमन सर्विस सेंटर खोले जाने पर ग्रामीण बेरोजगारों को सबसे ज्यादा लाभ होगा। इन केंद्रों पर एक कम्प्यूटर, एक स्कैनर, एक प्रिंटर और एक तकनीकी कर्मचारी की नियुक्ति की जाएगी जहां पर गांव का आदमी किसी भी प्रकार का बिल जमा कर सकेगा। जमीन के रिकॉर्ड व भूमिखाते की भी जानकारी मिल सकेगी। पूरी दुनिया में बीपीओ में भारत का 34 प्रतिशत हिस्सा है। गांव में कॉल सेंटर खुलने के बाद यह हिस्सा और बढ़ जाएगा।

कॉल सेंटरों में नौकरी के लिए अब गांव के पढ़े-लिखे युवकों को शहर की तरफ नहीं भागना पड़ेगा। केंद्र सरकार जल्द ही ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीओ खोलने जा रही है। पूरी दुनिया में बीपीओ में भारत का 34 प्रतिशत हिस्सा है। गांव में कॉल सेंटर खुलने के बाद यह हिस्सा और बढ़ जाएगा। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री सचिन पायलट ने एक साक्षात्कार में बताया कि नई तकनीक का बायमेक्स टॉवर देश में सबसे पहले राजस्थान के अजमेर में लगाया गया है। इससे 15 किमी की परिधि में बिना तार के ब्रॉडबैंड व इंटरनेट इत्यादि की सर्विस मिल सकेगी। यही नहीं एफटीएच फाइबर टू होम की सर्विस भी सबसे पहले जयपुर में लागू की गई। इस सर्विस के तहत बाल बराबर तार के माध्यम से टीवी, इंटरनेट व टेलीफोन की सुविधा उपलब्ध रहेगी।

गांवों में शैक्षिक विकास


शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया है। इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि जो प्राइवेट विद्यालय सरकार से किसी भी प्रकार का आर्थिक सहयोग अथवा भूमि आदि हासिल किए हैं, उन्हें हर हाल में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार के बच्चों को भी प्रवेश देना होगा। शिक्षा विकास की कुंजी है। इस सिद्धांत को मानते हुए केंद्र सरकार की ओर से भारत के गांवों में शैक्षिक विकास की दिशा में कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। सर्व शिक्षा अभियान ने ग्रामीण इलाके में शैक्षिक उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसके बाद शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया है। इस कानून का सबसे ज्यादा फायदा ग्रामीण इलाके को मिल रहा है। इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि जो प्राइवेट विद्यालय सरकार से किसी भी प्रकार का आर्थिक सहयोग अथवा भूमि आदि हासिल किए हैं, उन्हें हर हाल में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार के बच्चों को भी प्रवेश देना होगा। इस अनिवार्यता से उन बच्चों का भी भविष्य संवर रहा है, जो निजी स्कूलों में पढ़ने के इच्छुक थे, लेकिन गरीबी के कारण वे संबंधित विद्यालय की फीस नहीं चुका पा रहे थे। इसके अलावा सरकारी एवं गैर-सरकारी स्कूलों में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या ग्रामीण इलाके में ज्यादा होती है। वे कुछ समय पढ़ाई करने के बाद विभिन्न कारणों से काम-धंधे में जुट जाते हैं। ऐसे में इस कानून के लागू होने के बाद देश के करीब 92 लाख उन बच्चों को दोबारा स्कूल ले जाया जा रहा है, जो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते थे।

सड़कों ने खोला गांवों के विकास का रास्ता


आवागमन की सुविधाएं विकास की धुरी होती हैं। गांव हो या शहर, जब तक वहां सड़कें नहीं होंगी तब तक विकास को गति नहीं मिलती। यही वजह है कि किसी भी स्थान पर बस्तियां बसाने से पहले वहां सड़क का निर्माण कराया जाता है ताकि सुगम तरीके से आवागमन की सुविधा हो सके। भारत के गांवों पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। भारत के गांवों में आजादी के बाद सड़कों का जाल बिछाने का काम शुरू हुआ, लेकिन एक दशक में जिस गति से गांवों में सड़कें बनी हैं, वह ऐतिहासिक है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का असर इतना व्यापक हुआ कि हर गांव और हर ढाणी संपर्क मार्ग से जुड़ गए हैं। 25 दिसंबर, 2002 को शुरू हुई यह योजना अब अंतिम चरण में है। पहले एक हजार की आबादी वाले गांवों को इस योजना के तहत मुख्य सड़क से जोड़ा गया और बाद में पांच सौ की आबादी वाले गांवों को इसमें शामिल कर लिया गया है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2012 तक सभी गांव और ढाणी को इस योजना से आच्छादित कर दिया जाए।

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का असर इतना व्यापक हुआ कि हर गांव और हर ढाणी संपर्क मार्ग से जुड़ गए हैं। इसके अलावा मुख्य सड़कों के निर्माण और उनके विस्तारीकरण पर भी केंद्र सरकार गंभीरता दिखा रही है। वर्ष 2010-11 में 5600 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार ने 50 परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इस तरह देखा जाए तो गांवों में सड़कें होने का फायदा हर किसी को मिल रहा है। पहले लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में घंटों का वक्त लगता था। सड़कों के अभाव में कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था, लेकिन अब यह समस्या खत्म हो गई है। गांवों में भी शहर जैसी चमचमाती सड़कें हो गई हैं। इन सड़कों के निर्माण से लोगों को आवागमन में काफी सहूलियतें मिली हैं। अब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर काफी कम समय और सस्ते किराए में पहुंच रहे हैं।

गांवों तक पहुंची स्वास्थ्य सुविधाएं


भारत के गांवों में अभी तक स्वास्थ्य सुविधाओं का काफी अभाव था, लेकिन अब ग्रामीण इलाके की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। इसी के तहत केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एक ऐसी योजना तैयार की गई है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने वालों को चार साल में ही एमबीबीएस की डिग्री देने का ऐलान किया गया है। चूंकि केंद्र सरकार का पूरा जोर ग्रामीण इलाके पर है, यही वजह है कि चालू वित्तीय वर्ष के बजट में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को 2100 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2356 करोड़ रुपए किया गया है। इस तरह कुल स्वास्थ्य बजट 26760 करोड़ रुपए का रखा गया है।

केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एक ऐसी योजना तैयार की गई है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने वालों को चार साल में ही एमबीबीएस की डिग्री देने का ऐलान किया गया है। इतना ही नहीं केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण इलाकों में लगातार चिकित्सकीय सुविधाएं बढ़ने का असर भी अब दिखने लगा है। 12 अप्रैल, 2005 से शुरू किए गए ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की वजह से संस्थागत प्रसव में बढ़ोतरी हुई है। भारत के गांवों में गत वर्ष 47886 आशा सहयोगिनी को तैनात किया गया। इस तरह अब ग्रामीण इलाके में तैनात होने वाली आशा सहयोगिनियों की संख्या करीब आठ लाख हो गई हैं। आशा सहयोगिनी का सबसे ज्यादा फायदा ग्रामीण इलाके को मिला है। चूंकि शहरी महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी जानकारी तो ले लेती थीं, लेकिन ग्रामीण महिलाएं अपने दर्द को छुपाए रखती थीं। आशा सहयोगिनी ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दे रही हैं। इससे मातृ एवं शिशु मृत्युदर में भी करीब 70 फीसदी की गिरावट आई है। वर्ष 2010-11 में 55743 ग्रामीण स्वास्थ्य समितियों का गठन किया गया। हाल ही में जारी जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि अब जन्म एवं मृत्यु दर को लेकर भी लोगों में जागरुकता आई है।

पिछली जनगणना की तुलना में इस बार जनसंख्या की राष्ट्रीय वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत है, जबकि वर्ष 2001 में 21.5 फीसदी थी। इसके अलावा शहर से लेकर ग्रामीण इलाके में मलेरिया, पोलियो, टीबी आदि के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इनकी दवाएं एवं टीका निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इससे इन जानलेवा बीमारियों से होने वाली मौतें भी थमती नजर आ रही हैं। वर्ष 1996 में जहां मलेरिया से भारत में 1010 लोगों की मौते हुई थी वहीं जागरुकता अभियान चलाए जाने के बाद वर्ष 2007 में सिर्फ 335 लोगों की मौतें हुईं। वर्ष 1947 में जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी, जो अब 70 के करीब पहुंच गई है।

इसी तरह राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना (आरजीएसईएजी) के विस्तार को मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है। इससे 11 से 18 वर्ष की आयु वर्ग वाली किशोरियों के सशक्तिकरण हेतु इस योजना को देशभर के 200 चुनिंदा जिलों में समन्वित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) परियोजनाओं और आंगनबाड़ी केंद्रों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। ग्यारहवीं योजना में इस योजना से 11 से 18 वर्ष के आयु वर्ग की 92 लाख से 1 करोड़ 15 लाख किशोरियों के लाभान्वित होने की संभावना है। योजना के तहत स्कूल जाने वाली 11 से 14 वर्ष के आयु वर्ग वाली लड़कियों तथा 15 से 18 वर्ष के आयु वर्ग वाली सभी लड़कियों को साल के 300 दिन पांच रुपए प्रति लाभार्थी की दर पर पोषण संबंधी प्रावधान (600 कैलोरी और 18 से 29 ग्राम प्रोटीन) है जिसकी आधी-आधी (50-50 प्रतिशत) जिम्मेदारी केंद्र और राज्य वहन करेंगे।

हर घर हुआ रोशन


भारत के ग्रामीण इलाके में अभी तक कृत्रिम रोशनी का इंतजाम नहीं था, लेकिन अब हर राज्य के हर गांव, हर ढाणी में बिजली पहुंच गई है। गांवों में बिजली पहुंचने का असर यह हुआ कि ग्रामीणों के जीवन-स्तर में बदलाव आया। बिजली संचालित अत्याधुनिक सुविधाएं लोगों के घरों में पहुंच गई। टीवी, फ्रिज, कूलर सहित भौतिकता के तमाम वे साधन अब गांवों में ही उपलब्ध हो गए हैं, जिनके लिए लोग शहर में रहना पसंद करते थे। दरअसल यह सपना साकार हुआ ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार की पहल से। मंत्रालय की ओर से अप्रैल 2005 में सभी गांवों और बस्तियों का चार वर्षों में विद्युतीकरण करने के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना लागू की। इसके तहत हर घर तक बिजली पहुंचाई जाएगी। इस योजना को भी भारत निर्माण योजना के अधीन लाया गया है।

राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी जिसके लिए ग्रामीण विद्युत वितरण रीढ़ (आरईडीबी) स्थापित करने की जरूरत महसूस की गई। इस जरूरत को पूरा करने के लिए 33/11 केवी उप स्टेशनों का विस्तार किया जा रहा है। इसके लिए चालू वित्तीय वर्ष में 155495 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जबकि वर्ष 2009-10 में 114308 एवं 2010-11 में 146579 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं।

गांवों में बिजली पहुंचने के साथ ही वहां कृषि और विभिन्न ग्रामीण गतिविधियों जैसे सिंचाई, पंपसेट, लघु और मध्यम उद्योग, खादी एवं ग्रामोद्योग, शीत भंडार श्रृंखला, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आईटी आदि का भी विस्तार हो रहा है। योजना के क्रियान्वयन की केंद्रीय एजेंसी ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड द्वारा पूंजी लागत में 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान की जा रही है। गरीबी रेखा से नीचे के घरों के विद्युतीकरण के लिए शत-प्रतिशत सब्सिडी 1500 रुपए प्रति आवास की दर से प्रदान की जा रही है।

पानी की समस्या का हुआ समाधान


देश की आजादी के बाद भारत के गावों में पेयजल को लेकर काफी समस्या थी। कहीं फ्लोराइडयुक्त पानी था तो कहीं पर्याप्त पेयजल की उपलब्धता ही नहीं थी। लोगों को स्वच्छ पेयजल मिले, इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई गई। केंद्र सरकार ने विभिन्न निधियों में पेयजल को सर्वोपरि रखा। इसका परिणाम यह हुआ कि अब जिन स्थानों पर आसानी से पेयजल उपलब्ध है, वहां बोरिंग कराकर इंडिया मार्का टू हैंडपंप लगाए गए हैं और जिन स्थानों पर पानी उपलब्ध नहीं है, वहां पाइप लाइन के जरिए शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।

कुछ दिन पहले शुरू किए गए ग्रामीण पेयजल मिशन ने रही-सही कसर को पूरा कर दिया है। ग्रामीण पेयजल मिशन भारत निर्माण कार्यक्रम के छह घटकों में से एक है। भारत निर्माण को लागू की गई इस अवधि में जहां जलापूर्ति बिल्कुल नहीं थी, ऐसे 55,067 क्षेत्रों और 3.31 लाख ऐसे इलाकों जहां आंशिक रूप से जलापूर्ति की जा रही थी, शामिल करके पेयजल उपलब्ध कराया गया। 2.17 लाख ऐसे इलाकों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया गया जहां गंदे पानी की सप्लाई की जाती थी।

पानी की खराब गुणवत्ता से निपटने के लिए सरकार ने वरीयता क्रम में आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों को ऊपर रखा है। इसके बाद लोहे, खारेपन, नाइट्रेट और अन्य तत्वों से प्रभावित पानी की समस्या से निपटने का लक्ष्य बनाया गया है। पेयजल में सामुदायिक भागीदारी को और बढ़ाने तथा मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता निगरानी और सतर्कता कार्यक्रम फरवरी, 2006 में प्रारंभ किया गया। इसके तहत हर ग्राम पंचायत से पांच व्यक्तियों को पेयजल गुणवत्ता की नियमित निगरानी के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए शत-प्रतिशत आथिर्क सहायता, जिसमें पानी परीक्षण किट भी शामिल है, प्रदान की जाती है।

इससे पहले वर्ष 1986 में राष्ट्रीय पेयजल परियोजना की शुरुआत की गई थी, वर्ष 1991 में इसका नाम बदलकर राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल परियोजना कर दिया गया। इसका उद्देश्य है सभी गावों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना, पेयजल स्रोतों के अच्छे रखरखाव के लिए स्थानीय समुदायों को सहायता प्रदान करना एवं अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की पेयजल संबंधी जरूरतों पर विशेष ध्यान देना। इसी तरह त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम 1972-73 में प्रारंभ किया गया था। वर्तमान में यह राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल परियोजना के तहत चलाई जा रही है। इसका असर यह हुआ कि अब गांव-गांव ढाणी-ढाणी में शुद्ध जल पहुंच रहा है। पेयजल की किल्लत खत्म हो गई है। इससे ग्रामीणों में जबर्दस्त उत्साह है।

केंद्र के सहयोग से बिहार में नई पहल


बिहार सरकार ने वित्तीय समावेश के तहत 2012 तक दो हजार की आबादी वाले गांवों के हर परिवार तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने की तैयारी की है। इसके तहत हर परिवार का बैंक खाता होगा। खाता संचालन के लिए 2500 रुपए के ओवर ड्राफ्ट की सुविधा मिलेगी। साथ में 10 हजार रुपए का जनरल क्रेडिटकार्ड दिया जाएगा, जिससे विवाह, बीमारी या खास जरूरत के समय लोग उसका लाभ उठा सकें। केंद्र सरकार और बैंकों के सहयोग से इसकी रणनीति बनाई गई है। इसके तहत बिहार के चिह्नित 19 जिलों में से 10 में हर परिवार के एक सदस्य का बैंक खाता खोल दिया गया है। शेष 9 जिलों में 90 फीसदी से ज्यादा लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। अन्य बचे 19 जिलों में 2012 तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा।

पंचायतों के विकास को नई पहल


गांवों और गांववालों की दशा बदलने के लिए केंद्र सरकार अब गांव को शहरों की सुविधा से लैस करने का जिम्मा पेशेवर एमबीए और बीटेक इंजीनियरों से कराने की तैयारी में है। ग्रामीण बुनियादी ढांचे के प्रबंधन के लिए एमबीए और तकनीकी जरूरतें पूरी करने के लिए बीटेक इंजीनियरों की नियुक्ति की योजना पर केंद्र सरकार तेजी से चल पड़ी है। मनरेगा, वाटरशेड प्रोग्राम और स्वच्छता राष्ट्रीय आजीविका मिशन, इंदिरा आवास और अन्य केंद्रीय योजनाओं के संचालन का दायित्व अब इन्हीं के हाथों में होगा। एमबीए और बीटेक की डिग्री वाले इन युवाओं की नियुक्ति से एक साथ दो फायदे होंगे। एक तो शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा, दूसरे ग्रामीण विकास को नई दिशा मिलेगी। ग्रामीण विकास मंत्रालय की योजनाओं का क्रियान्वयन सही तरीके से हो सकेगा। देश की कुल ढाई लाख ग्राम पंचायतों में ये नियुक्तियां किए जाने की योजना है। राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने इस दिशा में पहल भी कर दी है। यानी कुल पांच लाख से अधिक एमबीए और इंजीनियरों की नियुक्ति के नए अवसर भी खुल गए हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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