ग्लोबल वार्मिंग का समाधानः गांधीगीरी

‘‘ग्लोबल वार्मिंग का समाधानः गांधीगीरी’’ पुस्तक में जलवायु परिवर्तन को समझाने के साथ ही गांधीगीरी के द्वारा इससे निपटने के तरीकों पर विचार व्यक्त किया गया है। पुस्तक में भूमिका और प्रस्तावना के अतिरिक्त 14 अध्याय है। भूमिका में लेखक कहते हैं कि ‘‘मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक तापन यानी ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न हो रहे विभिन्न खतरों से इस ग्रह के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं...मानव ने विरासत में मिली अमूल्य प्राकृतिक संपदा का बहुत अपव्यय किया है। इसके अलावा वैश्विक कल्याण की बजाए स्वयं के कल्याण की सोच ने हमें प्रकृति का विरोधी बना दिया है। ऐसे समय में महात्मा गांधी के सादा जीवन उच्च विचार वाली विचारधारा को अपनाने के साथ ‘वसुधैवकुटुम्बकम्’ की भावना के अनुरूप जीवनयापन करने में मानव ही नहीं, अपितु समस्त जीव मात्र का कल्याण निहित होगा।’’

प्रस्तावना में लेखक ने लिखा है कि पृथ्वी ही ब्रह्मांड में एकमात्र ज्ञात ग्रह है, जहां जीवन उपस्थित है। पृथ्वी का नाजुक संतुलन प्रकृति के अविवेकपूर्ण दोहन से गड़बड़ा गया है, जिसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न हुई है। अमीर बनने की चाह और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना आम बात हो गई है। आज शुद्ध जल, शुद्ध मिट्टी और शुद्ध वायु हमारे लिए अपरिचित हो गए हैं। लेखक का निष्कर्ष है कि ‘‘गांधी जी के विचारों का अनुकरण करते हुए मानव प्रकृति के साथ प्रेममय संबंध स्थापित करते हुए आनंदमय जीवन व्यतीत कर इस पृथ्वी ग्रह की सुंदरता को बरकरार रख सकता है।’’

अध्याय 2 में बताया गया है कि पृथ्वी किस प्रकार अनोखा और प्यारा ग्रह है। इसमें गांधीजी के जीवन और आदर्शों का भी संक्षिप्त परिचय है। तीसरे अध्याय में पृथ्वी के जल, वायु, मिट्टी, वन और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का वर्णन किया गया है कि किस प्रकार इन कारकों की अंतःक्रियाओं ने पृथ्वी को जीवनदायी ग्रह बनाया है। प्रदूषित होते वातावरण को लेखक ने चौथे अध्याय का विषय बनाया है। वे बताते हैं कि ‘‘मानव की गतिविधियों से अब न ध्रुवीय क्षेत्र सुरक्षित बचे हैं न अंतरिक्ष। पर्यावरण में होने वाले तीव्र बदलावों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) ने 1981 से 1990 के दशक को पर्यावरण की पराजय का दशक माना है। वायु, महासागर, मीठे जल के स्रोत व मिट्टी किसी तरह प्रदूषित हुए हैं; बढ़ते वाहन, प्लास्टिक का उपयोग, कचरे का अंबार, ई-कबाड़ इत्यादि किस तरह प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, इसकी सटीक जानकारी दी गई है। उनका सुझाव है कि प्रदूषण से मुक्ति के लिए पर्यावरण मित्र यानी ईको फ्रैंडली जीवनशैली को अपनाना होगा।

पांचवा अध्याय ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ का परिचय देता है कि ‘‘किस तरह ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल गैसें वायुमंडल में ऐसा आवरण तैयार कर देती हैं, जो सूर्य से आने वाली गर्मी को वापस नहीं जाने देती हैं।’’ लेखक यह बताना भी नहीं भूला है कि ‘‘यदि धरती के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड ने गर्मी को रोकने की भूमिका न निभाई होती तो हमारा पृथ्वी ग्रह एक ठंडा ग्रह होता। ...लेकिन अति सदैव बुरी होती है।’’

छठे अध्याय ‘ग्लोबल वार्मिंग’ में धरती का पारा चढ़ाने के लिए किस-किस देश का क्या योगदान रहा है, इसका विश्लेषण किया गया है। लेखक का कहना है कि पृथ्वी को ‘अपनों से ही खतरा है’ यानी मानव की करतूतों से।’ इस अध्याय में विषय से जुड़ें अच्छे वैज्ञानिक आंकड़ें दिए गए हैं।

सातवां अध्याय जलवायु परिवर्तन के ऊपर है। वे बताते हैं कि सन् 2007 में आईपीसीसी की चौथी रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन की पुष्टि की गई है।

आठवां अध्याय है, ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से होने वाले संभावित बदलाव। नवनीत मानते हैं कि ‘जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं ने धरती के विविध रंगों को बेरंग कर दिया है, ‘जीवन का ताना-बाना पूरी तरह नष्ट होने को है’, ‘ग्लेशियर पिघलने लगे हैं’, ‘नदियां सूखने लगी हैं’, ’फसलें तबाह होने लगी हैं।’ कितना तापमान बढ़ने पर क्या असर पड़ेगा, इस अध्याय में इतने अच्छे आंकड़े हैं। भारत पर प्रभाव के बारे में प्रकाश डाला गया है। प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं को रेखांकित करने का काम नौवें अध्याय में किया गया है। इसमें प्राकृतिक आपदाओं तथा ओजोन परत में बढ़ते छेद जैसी समस्याएं शामिल की गई हैं। ‘जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य’ के बारे में दसवा अध्याय बताता है। जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के बारे में लेखक ने चेतावनी दी है कि यही हालात रहे तो सन् 2100 तक ‘वन्य पशुओं और वनस्पतियों की करीब 12,000 प्रजातियां देखते ही देखते खत्म हो जाएंगी।’

बारहवें अध्याय से लेखक समस्याओं के समाधान पर अधिक ध्यान देने लगता है। पहला समाधान बताया है ‘वैकल्पिक ऊर्जा’। इसमें सौर ऊर्जा, सौर तापीय ऊर्जा, फोटोवोल्टेइक तकनीक, पवन ऊर्जा, भूतापीय और तृप्त जल ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा, बायोडीजल बायोगैस, परमाणु ऊर्जा, सीएलएफ आदि का परिचय देते हुए ऊर्जा संरक्षण संबंधी सुझाव दिए गए हैं। तेरहवें अध्याय में जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न संधियों का वर्णन है। इसमें क्योटो संधि, बाली सम्मेलन, बैंकाक सम्मलेन, आईपीसीसी मांट्रियल वार्ता आदि शामिल हैं। लेखक का संदेश है ‘साथी हाथ बढ़ाना’

चौदहवां अध्याय ग्लोबल वार्मिंग के प्रबंधन पर प्रकाश डालता है। इसमें ‘पर्यावरण बचाने के वास्ते, कुछ आसान से रास्ते‘, पाठक का ध्यान खींचते हैं। ‘कार्बन फुट प्रिंट’ को भी समझाया गया है।

पुस्तक के अंतिम अध्याय ”हर समस्या का समाधान गांधीगीरी“ में लेखक ने गांधीजी के प्रमुख विचारों का संक्षिप्त रूप से उल्लेख किया है। लेखक गांधीजी की विचारधारा को उनके ही वचारों में उद्धृत करके समझाता है। जैसे कि ‘तृष्णा का कोई अंत नहीं’। गांधीजी का मानना था कि धरती पर पाए जाने वाले अंसख्य किस्म के प्राणियों में से मनुष्य मात्र एक प्राणी है। यह धरती केवल मनुष्य की नहीं, बल्कि सभी प्राणियों की है। अपनी इस सीमित स्थिति का आभास करने पर मनुष्य लालच, अहंकार व आधिपत्य जैसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रख सकता है।“ गांधीवाद सेवा और त्याग को महत्व देता है। प्रकृति को मात्र उपभोग की वस्तु न माना जाए। संतोषी सदा सुखी है। सादगी से प्रेम उपजता है। यदि मानव प्रकृति के खिलाफ आचरण करता है। तो उसका परिणाम उसे तो भोगना ही होगा, साथ ही अन्य जीवों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। अंतिम निष्कर्ष है सादा रहन-सहन से पर्यावरण के साथ जीना सीखें। लेखक लिखता है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान युवा पीढ़ी में गांधीजी के विचारों को जानने की इच्छा बलवती हुई है और इसके परिणामस्वरूप आज की पीढ़ी को गांधीजी के विचार गांधीगीरी के रूप में प्रेरणा दे रहे हैं। युवा पीढ़ी के मन में पर्यावरण के प्रति प्रेम जागा है और वह पर्यावरण क्लबों और अन्य गतिविधियों से प्रकृति की सेवा करने लगे हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए अब युवा पीढ़ी आगे आ रही है जो प्रकृति और मानवता के लिए अच्छी बात है। लेखक द्वारा इस पुस्तक को लिखने का उद्देशय भी यही है कि मानवता एवं प्रकृति के मध्य मधुर संबंध बनें रहें ताकि ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं उत्पन्न न हो और धरती पर जीवन सदैव मुस्कुराता रहे।

निश्चय ही पर्यावरण की रक्षा के लिए यह गांधीगीरी सभी वर्ग के पाठकों को आकर्षित करेंगी। आज के विश्व की सबसे बड़ी चुनौती का लेखक ने बड़ा ही सटीक उपाय बताया है। लेखक ‘नवनीत कुमार गुप्ता’ की इस किताब में गागर में सागर भरने का प्रयास किया है जो सराहनीय है। उनकी यह किताब पर्यावरण पर आए खतरे को समझने और उसके लिए कुछ कदम उठाने का मन रखने वाले हर व्यक्ति को पढ़नी और गुननी चाहिए।

पुस्तक: जलवायु परिवर्तनः एक गंभीर समस्या
लेखक: नवनीत कुमार गुप्ता
प्रकाशक: पेन्सी बुक्स
आर जेड-66/ए, सोमेष विहार, छावला, नई दिल्ली-110071
संस्करण: प्रथम 2012
पृष्ठ:111
मूल्य: 175 रुपए

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading