गंगा दशहरा: गंगा जी के लिये पैसा नहीं, पानी बहाने की जरूरत

31 May 2020
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बिहार के जलसंसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह अविरल गंगा सम्मेलन में
बिहार के जलसंसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह अविरल गंगा सम्मेलन में

गंगा के अच्छे दिन की मार्केटिंग जारी है। सरकारी घोषणा हो अथवा विरोध करने वालों का भाषण हर स्तर पर मार्केटिंग। इन सबके बीच सबसे अहम सवाल की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है, वह है गंगा के अस्तित्व का। रिवर नहीं है, लेकिन रिवर का फ्रंट डेवलप कर रहे हैं हम। पहले लोगों के बीच गंगा की अविरल धारा आये तो सही, उसके बाद ही स्वच्छता की बात करना ईमानदार प्रयास होगा। गोमुख से निकलने के बाद गंगा की स्थिति को जानने से साफ है कि गंगा का अस्तित्व बिहार तक पहुंचने की राह में लगभग समाप्त हो जाता है, लेकिन हम उसकी स्वच्छता के लिए अभियान चला रहे हैं। गंगा जल के बंटवारें और अन्य तथ्यों पर गौर करने से आप समझ सकेंगे कि गोमुख से निकलकर हरिद्वार के बाद कानपुर आदि शहरों से गुजरते हुए इलाहाबाद तक पहुंचते-पहुंचते मां गंगा मरणासन्न हो जाती है। ऐसे में उत्साहित लोगों को इस नदी की गहराई को समझना आवश्यक है। इन सबके बीच एक अहम सवाल यह भी है कि गोमुख से निकलने वाली गंगा का जल बिहार को भी मिले और वह अविरल बहते हुए सागर तक पहुंचे, तभी हमारे प्रयास को ईमानदार कहा जाएगा। 

बिहार में कर्मनाशा, सोन, सरयु, मही, गंडक, बुढी गंडक, बागमती, कोसी आदि नदियों के जल को बिहारवासी गंगा का पानी मानने को विवश हैं। इन नदियों के संगम के दौरान उनके द्वारा साथ लाये गये कचरों का भी संगम होना स्वाभाविक है। बिहार में नदियों की समस्या के लिये सर्वाधिक चर्चित फरक्का बराज के कारण गंगा की राह में बढते गाद ने बाढ और कटाव की समस्या को बढाया है। केंद्र सरकार ने गंगा को लेकर कई योजनाओं की घोषणा की है, लेकिन योजनाएं घोषणा से आगे बढ़्ती हुई नहीं दिखती है। हाल तो यह है कि गंगा के नाम पर चिन्हित राशी का उपयोग शहरों और कस्बों में शौचालय व सिवर लाईन बनाने समेत तमाम कार्यों किया जा रहा है। गंगा नदी के नाम पर खर्च की जाने वाली राशि से ही गंगा जी को गंदा किये जाने की बात को इस तरह से समझा जा सकता है। शहरों में शौचालय और सिवर लाईन बनाने के बाद शहरों का गंदा पानी गंगाजी में ही डालने की व्यवस्था लगातार जारी है। गंगा की पवित्रता और शुद्धता की कामना देश के हर कोने में रहने वाला व्यक्ति करता है, लेकिन हमने कभी यह समझने का प्रयास नहीं किया कि डोर टू डोर इक्कठा किया जाने वाला कचरा कहां जाता है। गंगा के उपरी इलाके में गंगा जल के अधिक दोहन का नतीजा है कि गंगा हमारे बीच से समाप्त होने के कगार पर हैं, बिहार से तो गायब हो ही चुकी है। भले ही बरसात के मौसम में गंगा की राह में जल दिखने लगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि गंगा जी का भरपूर दोहन भीमगौड़ा, बिजनौर, नरौरा व अन्य बैराजों से कर लिया जाता है। इसके बाद थोड़ी-बहुत जल राशि लेकर सागर की ओर बढऩे वाली गंगा की दशा उसके काले पड़े हुए जल को देखकर लगाया जा सकता है, लेकिन सरकारी प्रयास है कि पानी बहाने की जरूरत को नजरअंदाज कर केवल पैसा बहाने पर ही केंद्रित है।

गंगा नदी की समस्याओं और सरकारी प्रयासों में अविरलता के मसले को गौण देख प्रबुद्ध समाज के सहयोग से अक्षधा फाउंडेशन ने वर्ष 2014 से पानी रे पानी... अभियान के तहत अपना प्रयास प्रारम्भ किया। इस क्रम में स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का नाम लेना अतिआवश्यक है, क्योंकि गंगा जी के लिये यह प्रयास उनके प्रेरणा से ही प्रारम्भ किया गया और आज जारी है। इसके तहत पहला आयोजन 17 अगस्त 2014 को पटना के गांधी संग्रहालय में किया गया, जहां देश के कई जल विशेषज्ञों ने अपनी चिंता व्यक्त की और बाद में पूरे राज्य में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इसके बाद आरा, छपरा, मुंगेर और भागलपुर समेत राज्यभर में अलग-अलग गंगा जी की समस्या को लेकर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान गंगा एवं अन्य नदियों की समस्याओं पर व्यापक चर्चा की गई और यह मत सामने आया है कि बिहार में गंगा जी की समस्याएं गंगाजल के अत्यधिक दोहन और फरक्का बराज के कारण उसकी राह में उत्पन्न गाद के कारण सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि पदार्थ एवं शक्ति के अविनाशी सिद्धान्त के तहत सतही एवं भूमिगत जल का अनुपातिक सम्बन्ध होना चाहिए। इस क्रम में गंगा का जल दोहन ३० प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि फिलवक्त बैराजों से ९५ प्रतिशत से अधिक गंगा जल का दोहन हो रहा है। परिणामस्वरूप गंगा नदी का जलस्तर अचानक गिर गया है और उसका वेग कम हो गया और इससे स्वत: होने वाली प्रक्रिया गंगा नदी की उराही का काम नहीं हो पा रहा है। 

केंद्र में नई मोदी सरकार ने आते ही गंगा जी को जलमार्ग के रूप में विकसित करने के लिये इलाहाबाद से हल्दिया तक 100 किलोमीटर पर लॉक सिस्टम बांध बनाने की तैयारी कर ली। पहले से फरक्का बांध के कारण बिहार प्रत्येक वर्ष तबाह होता है, यदि गंगा जी पर और बांध बने तो होने वाली तबाही का शब्दों में बयान करना कठिन होगा। इसके बाद गंगा जी को तलाब में बदलने से बचाने का प्रयास तेज किया गया। गंगा जी को जलमार्ग में तब्दील करने की योजना से चिंतित विधान पार्षद केदार नाथ पांडेय, राजेंद्र सिंह (जलपुरूष) और पत्रकार पंकज मालवीय ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से मिलकर गंगा की समस्याओं से अवगत कराया। गंगा जी के लिये पूर्व से ही गम्भीर रहने वाले श्री नीतीश कुमार जी ने नए तथ्यों की जानकारी के बाद गम्भीरता दिखाते हुये केंद्र सरकार को पत्र लिखकर नमामी गंगे कार्यक्रम के तहत घोषित कई योजनाओं पर अपनी कड़ी आपत्ती दर्ज करायी। हालांकि गंगा जी को जलमार्ग बनाने के क्रम में इलाहाबाद से हल्दिया तक 100 किलोमीटर पर बराज बनाने अपने निर्णय को केंद्र सरकार ने तत्काल वापस लेने का एलान किया। इसके बावजूद गोमुख से निकलने वाले गंगाजल में बिहार की हिस्सेदारी और फरक्का बराज़ के कारण होने वाले नुकशान से बिहार को बचाने के प्रयास को जारी रखा गया। इस प्रयास का असर था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने गंगा की अविरलता के मसले पर गम्भीरता दिखाते हुये समस्या का समाधान ढुंढने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के आयोजन का निर्णय किया। इसके तहत 15-16 फरवरी 2017 को पटना में और 18-19 मई 2017 को दिल्ली में कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी की उपस्थिति ने आयोजन को नई दिशा प्रदान की और पानी रे पानी... अभियान के संयोजक पंकज मालवीय की सक्रियता को राज्य सरकार द्वारा सम्मानित किया गया। देश में यह पहला आयोजन था, जहां किसी राज्य की सरकार ने गंगा जी की समस्याओं को लेकर गम्भीरता से अपनी राय को सबके सामने रखा।

पानी रे पानी... अभियान के तहत गंगा की अविरलता को लेकर प्रारम्भ अभियान को आगे बढाते हुये 15 मार्च 2015 को राजधानी पटना में गंगा की समस्या के मसले पर विधान मंडल में बहस की मांग को लेकर एक दिवसीय धरना का आयोजन किया गया। जिसमें मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह, वरीय समाजवादी नेता रामबिहारी सिंह, वरीय पत्रकार अजय कुमार, पंकज मालवीय समेत सैकडों गंगा प्रेमियों ने भाग लिया। सरकार ने इसका संज्ञान लेते हुए वार्ता की, तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने अपने स्तर से गंगा की समस्याओं को लेकर पहल का अश्वासन प्रतिनिधिमंडल को दिया और केंद्र सरकार को एकपत्र भेजकर गंगा की अविरलता कायम करने की मांग भी की। इसके अलावा अविरल गंगा चेतना यात्रा का आयोजन किया गया और बिहार में गंगा के प्रवेशस्थल चौसा (बक्सर) से लेकर फरक्का (पश्चिम बंगाल) तक की यात्रा कर गंगा जी की समस्या और प्रभाव को समझने का प्रयास भी किया गया। यह यात्रा 1 फरवरी 2017 को वसंत पंचमी के दिन फरक्का में समाप्त हुई। इसके अलावा फरक्का बराज के प्रभाव को समझने के मालदा और मुर्सिदाबाद जिले के गांवों में विशेषज्ञों की टीम के साथ वर्ष 2017 में समस्याओं का विस्तृत अध्ययन कर हालात से सरकार को अवगत कराया गया। 

गंगा जी और पानी की समस्याओं को लेकर लगातार कार्य के दौरान विशेषज्ञों से बातचीत और उनके विचारों को नजदीक से सुनने व समझने का अवसर प्राप्त होता है। एक बात तो समझ में आ ही चुका है कि गंगा नदी की अधिकांश समस्याएं मानव निर्मित हैं। कुम्भ स्नान के लिये गंगा जी के साफ पानी के इंतजाम को हम सब देख चुके हैं और करोना जैसी महामारी की रोकथाम के लिये देश में "लाकडाउन" के दौरान गंगा नदी के पानी के साफ होने की बात भी सामने आई। आखिर कैसे हो गया, पानी साफ ! इन सबके बीच एक सवाल यह भी है कि बिहार को गोमुख से निकलने वाला गंगाजल क्यों नहीं मिलता है ? "गंगा और बिहार" अभियान के दुसरे चरण में गंगा अवतरण दिवस (गंगा दशहरा) से नदी चेतना यात्रा की शुरूआत की जा रही है, इसके तहत गंगा जी और सहायक नदियों की समस्याओं को समझने का प्रयास किया जाएगा।

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