गंगा को साफ करने में लग सकते है कई दशक

18 Sep 2020
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गंगा नदी
गंगा नदी

गंगा की स्वच्छता को लेकर विपक्ष  केन्द्र सरकार को हर समय कठघरे में खड़ा करता रहता है। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने गंगा की स्वछता को लेकर कई करोड़ रुपये बहा दिए उसके बावजूद गंगा अभी तक निर्मल नही हो पाई है। 

विपक्ष के आरोपों के बीच जल शक्ति मंत्रालय की एक अहम रिपोर्ट सामने आई है जिसमें बताया गया है कि  केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगा अभियान से कुछ हद तक गंगा साफ हो पाई है 

इस रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में कुछ  विशेषज्ञों की टीम ने उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और  पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया से गंगा नदी के कुछ नमूने लिये और उसकी टेस्टिंग की, जिसमें पता चला है कि  गंगा  पहले से अधिक स्वच्छ तो हुई है लेकिन पीने लायक पानी के लिये कई दशक लग सकते है ।

कई जगह गंगा की गुणवता में हुआ सुधार 

इसके अलावा देश मे ऐसे 27 स्थान है जहाँ गंगा में ऑक्सिजन या फिर पानी मे रहने वाले जीवों को मिलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा बेहतर हुई है जबकि 42 में 21 स्थानो में रासायनिक ऑक्सीजन की मांग ( बायो केमल ऑक्सीजन डिमांड, बीओडी का सम्बंध बैक्टीरिया द्वारा ली जाने ऑक्सीजन की मात्रा से होता है जो जैविक संबंधित पदार्थों और  फेइकल कोलिफॉर्म सामग्री को डिकॉम्पोज़ करता है),और पानी की खपत की मात्रा में सुधार हुआ है 

गंगा की स्वच्छता पर यह तमाम जानकारी कोच्चि के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट आरके गोविंद को आरटीआई से मिली है। आरके गोविंद ने आरटीआई के तहत जल शक्ति मंत्रालय से गंगा के  स्वछता के लिए उठाये जा रहे कदमो पर  जानकारी मांगी थी। जिसके जवाब में  मंत्रालय ने मौसमी बदलाव को छोड़कर तीन पैमाने पर गंगा के पानी  की गुणवत्ता की वार्षिक औसत की जानकारी दी है।

साल 2014 में जब बीजेपी  सत्ता में आई तो उसने गंगा को साफ करने के लिए अपनी महत्वकांक्षी योजना नमामि गंगे अभियान की नींव रखी। जिसका मकसद गंगा को प्रदूषण मुक्त और संरक्षित करना था।

तीन पैमाने पर पानी की शुद्धता का आंकलन किया गया 

अधिक मात्रा में समाप्त होता ऑक्सीजन ( राष्ट्रीय स्तर का औसत 5.5 मिलीग्राम पर लीटर से अधिक है) से पता लगता है  कि जलीय जीव जंतु जीवित रह पाएंगे यह नही।  

कम होती बीओडी ( राष्ट्रीय औसत 3.5 मिली पर लीटर या उससे कम) पानी में कम मात्रा में बैक्टीरिया और दूसरे माइक्रो ऑर्गेनिज्म के बारे में जानकारी देती है। फीकल कॉलिफोर्म ( राष्ट्रीय औसत औसत 100 ml पानी में 2500 कोलिफॉर्म या कम) जो पानी में सीवेज की स्थिति के बारे में बताता है

जल शक्ति मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट बताती है कि पिछले 6 सालों में इन तीन पैमानो के आधार पर आकलन किया जाए तो  कई जगह पानी की गुणवत्ता में कुछ हद तक  सुधार हुआ है, लेकिन पानी पीने लायक होने  में अभी और कई साल लग सकते है। 

पानी पर चार दशकों से काम करने वाले पर्यावरण विशेषज्ञ और इंडिया एकेडमी ऑफ वाटर साइंस के संस्थापक बीडी जोशी का कहना है कि "गंगा को स्वच्छ करने के अभियान मैं काफी सुस्ती है जिसके कारण अभी तक गंगा का पानी सिर्फ 10 से 15% ही साफ हो पाया है। अगर ऐसा ही हाल रहा तो गंगा को साफ करने में कई साल लग सकते हैं"

केंद्र सरकार ने शुरू में गंगा को साफ करने की समय सीमा के रूप में 2019 तय किया था, लेकिन  नमामि गंगे परियोजना (एनजीपी) की धीमी रफ्तार के कारण इसे 2022 तक बढ़ा दिया गया है। 01 अगस्त तक, 154 सीवेज परियोजनाओं में से केवल 29% को पूरा किया गया है । जबकि इस परियोजना के लिये  सरकार की तरफ से  करीब 23,120 कोरोड़ की राशी आवंटित की गई थी । 

देश के 8  राज्यों  में सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हुए शुरू

मंत्रालय के सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि देश के 8 राज्य उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड ,वेस्ट बंगाल, हरियाणा हिमाचल और झारखंड में 2525 किलोमीटर तक फैली गंगा में सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू होने जा रहा है ।वही गंगा के किनारे बसे 97 कस्बों से हर दिन करीब 2953 मिलियन लीटर सीवेज का उत्पादन होता है।  जबकि मौजूदा समय मे इसकी ट्रीटमेंट की क्षमता महज 1794 एमएलडी तक ही है।

आरटीआई से भी बात सामने आई ही कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में मानव और पशु के सीवेज को नदी में बहने से रोकने के प्रयासो से गंगा की गुणवत्ता में सबसे ज्यादा सुधार देखने को मिला है और दूसरा सबसे बड़ा कारण, मैदानी इलाकों के मुकाबले पहाड़ी क्षेत्रों में औद्योगिक कचड़ा कम होता है।

वही उत्तराखंड के पर्यावरण मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि " गंगा नदी के करीब बसे सभी शहरों और कस्बों में ट्रीटमेंट प्लांट और शौचालयों का निर्माण करके सीवेज को रोकने का काम किया गया है हमारी कोशिश रहेगी  गंगा को  पूरी तरह सीवेज मुक्त किया जाए।"

आरटीआई से यह भी पता लगता है कि जैसे ही गंगा उत्तराखंड के तीर्थस्थल हरिद्वार की और रुख करती है वैसे ही पानी की गुणवता भी खराब होने लगती है और आगे औद्योगिक शहर कानपुर में भी नदी के बहाव में  गिरावट आई है,जहाँ औद्योगिक कचरा अभी भी नदी में बह रहा है ।

साल 2014 से 2019 के बीच  हरिद्वार और कानपुर में  गंगा नदी  8 से 10% स्वच्छ हुई है। वही बिहार में गंगा की सहायक नदियों जैसे कोसी और गंडक के जल प्रवाह के कारण छपरा और पटना में पानी की गुणवत्ता थोड़ी बेतर हुई है लेकिन जैसे ही पश्चिम बंगाल की और ये रुख करती है तो इसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है।  2014 से 2019 तक बंगाल और बिहार में पानी की गुणवत्ता में करीब 30% का सुधार हुआ है।

गंगा के पानी के साफ होने के बावजूद लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ सकता है 

दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑफ डैम, नदियों  (SANDRP) के संयोजक हिमांशु  ठक्कर का मानना है कि पानी की गुणवत्ता में सुधार से बड़ा मुद्दा नदी का बहाव है। हर मौसम में अगर नदी का बहाव बेहतर हो जाता है, तो पानी अपने आप स्वच्छ हो जाएगा। लेकिन वास्तविकता ये है कि नदी का बहाव  काफी कम हो रहा है जिससे  गंगा नदी  बेसिन  में रहने वाले लोगों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा।

हिमांशु ठक्कर माना है कि

'सीवरेज और उद्योग से निकलने वाले कचरे पर लगाम लगाने के लिये काफी काम किया गया है ।राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है की ट्रीटमेंट प्लांट कोई फेक रिपोर्ट ना दे और  अपनी अधिकतम क्षमता पर काम करें। ”

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