गंगा का निजीकरण!

समतल भू-भाग में पहुंचने के बाद नदियों के ज्यादातर जल का जबर्दस्त दोहन ही नहीं किया जाता, बल्कि शहरी क्षेत्रों के मल-मूत्र और औद्योगिक कचरे को भी नदियों में ठिकाने लगा दिया जाता है। यही कारण है कि आज अधिकतर नदियां गंदे नालों में तब्दील हो चुकी हैं, तो अनेक शहर उसी गंदे पानी को छान कर पीने के लिये मजबूर हैं। अब निजीकरण के बाद पता नहीं क्या हाल होगा? गंगोत्री से निकल कर बंगाल की खाड़ी तक 2510 किलोमीटर की दूरी तय कर सदियों से अविरल बहते हुए अपने जल से करोड़ों लोगों की प्यास बुझती आ रही गंगा आज अपने उद्गम स्थल से अनुमानित एक तिहाई दूरी तय कर न केवल अपने जल से वंचित हो रही है, बल्कि गंगा किनारे आबाद कस्बों, शहरों और नगरों में बहने वाले गंदे नालों का ठिकाना लगाने का अहम जरिया बन कर स्वयं गंदे नाले में तब्दील भी होने जा रही है। गंगा की ऐसी दशा देखकर प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी ने अपने को गंगापुत्र बताते हुए इसकी सफाई के लिये कसम खाई थी। उस वक्त लोगों ने इसे हलके में लिया, किन्तु प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय बनाकर अपनी गंभीरता जाहिर की और उमा भारती को मिशन पर लगाया।

जिम्मेवारी मिलते ही उमा भारती ने मोदी को पहले तो दूसरा भगीरथ घोषित किया, फिर ऐलान किया कि गंगा की ऐसी सफाई की जाएगी कि गंगोत्री से गंगाजल की धारा अविरल बहते हुए बंगाल की खाड़ी तक पहुंचने लगेगी। उमा भारती की इस घोषणा से यह साफ है कि वह नदियों को कृत्रिम तरीके से बचाने की अपेक्षा प्राकृतिक तरीके से बचाने की सोच रखती हैं।

गंगा में आस्था रखने वाले करोड़ों- करोड़ लोगों सहित गंगा की तरह अन्य नदियों की दुर्दशा देख चुके लोगों के मन में उमा भारती के द्वारा गंगा की सफाई को लेकर की घोषणा के बाद आशा की ऐसी किरण जगी कि अब वह दिन दूर नहीं, जब नदियों के अत्यधिक जल के दोहन के साथ ही नदियों के किनारे आबाद व्यावसायिक परिसरों, आश्रमों, शहरों के मल-मूत्र और औद्योगिक कचरे को भी नदियों में बहा कर ठिकाने लगाने पर रोक लगेगी। इस तरह की रोक से न केवल नदियों को गंदे नालों में तब्दील होने से बचाया जा सकता है, बल्कि प्राकृतिक जल की कमी के कारण लुप्त हो रही नदियों को बचाने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहल भी शुरू हो सकती है।

घोषणा के बाद केन्द्र सरकार ने शुक्रवार को नरेन्द्र मोदी के गंगा डेवलपमेंट प्लान के तहत गंगा के जरिए ट्रांस्पोर्ट और टूरिज्म योजना का जो खुलासा किया, वह उमा भारती की सोच और योजना के एकदम विपरीत है। प्रधानमंत्री की योजना गंगोत्री से निकलने वाले गंगा जल को बंगाल की खाड़ी तक पहुंचाने की बजाय पहले चरण में वाराणसी से लेकर कोलकाता और हुगली तक मालवाहक जहाज तथा यात्री नावें चलाने की है, जिसे दूसरे चरण में इलाहाबाद तक बढ़ाया जाएगा। इससे यह भी साफ हो जाता है कि गंगा की सफाई को लेकर मोदी और उमा भारती की सोच एवं मॉडल में जमीन-आसमान का अंतर है।

उमा भारती गंगा को बंगाल की खाड़ी तक प्राकृतिक रूप से जिंदा करने वाला मॉडल अपनाना चाहती हैं, जबकि मोदी के मॉडल को गंगा को प्राकृतिक रूप से बचाने की बजाय नदियों के निजीकरण की तरफ बढ़ने की पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। यही नहीं, इस कदम से भारत की नदियों में प्रदूषण में इजाफा होना भी तय है। यह बात और है कि बढ़ती आबादी और संकुचित हो रहे हिमालय तथा सूखते जा रहे प्राकृतिक जल स्नेतों के बाद नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी के बगैर न तो उमा भारती के मॉडल के तहत गंगोत्री से निकलकर गंगाजल बंगाल की खाड़ी तक पहुंचेगा और न पानी के अभाव में वाराणसी से हुगली तक नावें चल पाएंगी।

जरूरी है कि उमा भारती व नरेन्द्र मोदी अपने-अपने मॉडल देशवासियों के समक्ष रखें ताकि वे सही-गलत का चुनाव करके अपनी राय व्यक्त कर सकें। हालांकि, दोनों ही मॉडलों को अमली जामा पहनाने के लिये गंगा के जलस्तर में बढ़ोतरी करना आवश्यक है। दीगर है कि तापमान वृद्धि के कारण बर्फ पिघलने से हिमालय का क्षेत्रफल सिमटता जा रहा है और पर्वतीय क्षेत्रों में 70-80 के दशक के बाद से ऐसे प्राकृतिक जल स्नेत सूखते जा रहे हैं, जिनका पानी सीधे गंगा में या गंगा की सहायक नदियों में मिलता था। इन सब पर निगाह डालने के बाद यह आशंका होना स्वाभाविक है कि मौजूदा केन्द्र सरकार गंगा की सफाई के नाम पर गंगाजल और नावों को वाराणसी से लेकर हुगली तक पहुंचाने के काम में देश की नदियों और उनकी जमीन को निजी हाथों को बेचने की पहल तो नहीं कर रही? और अगर ऐसा है तो उसका शीघ्र विरोध आवश्यक है।

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