गंगा की गाय को बचाओ

22 Sep 2012
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गंगा हमारी आस्था की प्रतीक है, जो अनेक सभ्यताओं और परम्पराओं को अपने में समेटे हुई है। गंगा में बढ़ते प्रदूषण की वजह से न केवल गंगा मैली हुई है बल्कि इसकी गोद में पल रहा हमारा राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन (गंगा की गाय) का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। गंगा के साथ डॉल्फिन का संबंध बहुत पुराना है, भगीरथ के तपस्या से जब गंगा स्वर्ग से उतरी थीं तो उनके साथ डॉल्फिन भी थी।

गंगा नदी में मानवीय गतिविधियों में बढ़ोतरी, प्रदूषण, गाद भरना, नदी में जल प्रवाह की कमी डॉल्फिन जैसे शर्मीले जीव के लिए खतरनाक परिस्थितियां हैं। वह भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण के बिहार के क्षेत्र में यातायात गतिविधियों के प्रस्ताव को भी सोंस के लिए आशंका की नजर से देखते हैं। प्रयोगशाला प्रजनन (कैप्टिव ब्रीडिंग) में सफलता नहीं मिलने के कारण इस पर अनुसंधान बहुत कठिन है। यह जीव एक बार में एक बच्चा देता है इसलिए आबादी बहुत कम है। राष्ट्रीय जल जीव घोषित की गई गंगा डॉल्फिन के संरक्षण में बीते 32 वर्ष से लगे एक नामी विशेषज्ञ का कहना है कि यदि समय रहते प्रयास नहीं किये गये तो चीन की यांगत्जी नदी की तरह गंगा से भी यह खूबसूरत जल जीव विलुप्त हो जाएगा। ‘डॉल्फिन मैन’ के नाम से मशहूर पटना विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान के प्रोफेसर आर के सिन्हा कहते हैं कि चीन ने 2006 में यांगत्जी नदी की डॉल्फिन और अपनी प्यारी ‘बैजी’ को खो दिया। गंगा की डॉल्फिन भी इसी प्रकार के संकट का सामना कर रही है। समय रहते प्रयास नहीं किये गये तो ‘‘गंगा की गाय’’ कहलाने वाली डॉल्फिन का भी यही हश्र होगा। चीन की यांगत्जी नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन का वैज्ञानिक नाम लिपोटिस वेक्सीलाइफर है, जो अब ढूंढे नहीं मिलती। गंगा डॉल्फिन के लिए भी कुछ उसी प्रकार की परिस्थितियां उत्पन्न हो गयी हैं जो यांगत्जी में हुई थी। गंगा डॉल्फिन का स्थानीय नाम सोंस और सुसु भी है। सिन्हा कहते हैं कि यांगत्जी डॉल्फिन का विलुप्त होना हम सभी के लिए आंख खोलने वाली घटना है। लेखक सैमुअल टर्वी ने बैजी के विलुप्त होने के लिए जिन परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया वही गंगा डॉल्फिन के लिए भी उत्पन्न हो गयी हैं। 2006 में किये गये सर्वे के अनुसार बिहार में प्रवाहित गंगा नदी क्षेत्र में करीब 800 और गंडक में 320 डॉल्फिन थी।

डॉल्फिनमैन कहते हैं, ‘‘भारत में इसे राष्ट्रीय जल जीव का दर्जा देने का निर्णय सकारात्मक कदम है लेकिन काफी काम बाकी है। यदि गंगा की डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी होती है तो यह गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की सफलता का प्रमुख पैमाना होगा, क्योंकि खाद्य तंत्र में डॉल्फिन शीर्ष पर है। बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित गंगा डॉल्फिन अनुसंधान केंन्द्र की रुपरेखा तैयार करने में लगे सिन्हा कहते हैं कि भारत में गंगा डॉल्फिन की आबादी का 60 प्रतिशत बिहार में गंगा और गंडक नदी में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश, असम (ब्रह्मपुत्र), बिहार और पश्चिम बंगाल को मिलाकर करीब 2500 गंगा डॉल्फिन होने का अनुमान है। सिन्हा कहते हैं कि डॉल्फिन रिसर्च सेंटर की परियोजना कार्य रिपोर्ट अंतिम चरण में है। वह अगले सप्ताह तक राज्य सरकार को इसे सौंप देंगे। राज्य सरकार ने 25 फरवरी 2012 को उन्हें प्रस्तावित अनुसंधान केंन्द्र के लिए जिम्मेदारी दी थी।

तीन दशक से डॉल्फिन संरक्षण कार्य में लगे प्रोफेसर सिन्हा कहते हैं कि गंगा नदी में मानवीय गतिविधियों में बढ़ोतरी, प्रदूषण, गाद भरना, नदी में जल प्रवाह की कमी डॉल्फिन जैसे शर्मीले जीव के लिए खतरनाक परिस्थितियां हैं। वह भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण के बिहार के क्षेत्र में यातायात गतिविधियों के प्रस्ताव को भी सोंस के लिए आशंका की नजर से देखते हैं। प्रयोगशाला प्रजनन (कैप्टिव ब्रीडिंग) में सफलता नहीं मिलने के कारण इस पर अनुसंधान बहुत कठिन है। यह जीव एक बार में एक बच्चा देता है इसलिए आबादी बहुत कम है। वह कहते हैं कि कुछ अनुसंधान में कीटनाशकों के अवशेष भी डॉल्फिन के उच्च्तकों में पाये गये हैं। सिन्हा गंगा डॉल्फिन का अगला सर्वे इस वर्ष नवंबर दिसंबर में करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें वह बक्सर (चौसा) से लेकर कटिहार (मनिहारी) तक गंगा नदी में और गंडक में डॉल्फिन का सर्वे करेंगे। यह केंन्द्र पटना विश्वविद्यालय में ही स्थापना के लिए प्रस्तावित है। अनुसंधान केंन्द्र के साथ वह डॉल्फिन कार्य योजना (एक्शन प्लान) पर काम कर रहे हैं। इसमें डॉल्फिन संरक्षण में मछुआरों को प्रमुख भागीदार बनाने, उन्हें प्रशिक्षण देने और वैकल्पिक रोजगार के साधन उपलब्ध कराने का प्रावधान है, जिसके अंतर्गत बड़ी संख्या में ‘डॉल्फिन मित्र’ बनाने की योजना है।

सिन्हा इस एक्शन प्लान में एक व्यापक सूचना तंत्र बनाकर इसमें गंगा के किनारे स्थापित स्कूल कालेजों के विद्यार्थियों को भागीदार बनाने के समर्थक हैं। वह कहते हैं कि लोक कथाओं और दंत कथाओं में भी डॉल्फिन को पूजनीय माना गया है। सारण के डोरीगंज में एक यादव बहुल गांव में लोग इस स्तनधारी जीव को गंगा की गाय के रूप में पूजते हैं। कई बुजुर्गों ने नदी में डॉल्फिन की कलाबाजियों को देख इसे नदी में फूल खिलने की संज्ञा दी है। इसके अलावा अशोक शिलालेख और पौराणिक कथाओं में भागीरथ के गंगावतरण प्रयास के दौरान भी डॉल्फिन का उल्लेख है। सिन्हा एनजीआरबीए के सदस्य भी हैं और उनके सुझाव पर अमल करते हुए केंन्द्र सरकार ने मई 2010 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया।

डॉल्फिन मैन के कार्य को अंतरराष्ट्रीय सराहना बहुत मिली है। आमेजन डॉल्फिन पर काम करने वाले कोलंबिया के वैज्ञानिक टी फरनांडो, सिंधु नदी के डॉल्फिन ‘भूलन’ पर काम करने वाले अब्दुल अलीम, चीन के वैज्ञानिक झाऊ केया, मिशिगन विश्वविद्यालय (अमेरिका) के माइक विली, फ्रांस के वैज्ञानिक क्रिश्चियन गैलिसियां, व्हेल और डॉल्फिन संरक्षण सोसाइटी ब्रिटेन के एलिओसा स्मिथ ने सिन्हा के कार्य से अपने अनुसंधान कार्य में बहुत कुछ सीखा है। इस जलीय जीव के बारे में साहित्य और प्रकाशित सामग्री की कमी को दूर करते हुए सिन्हा ने अब तक 91 रिसर्च पेपर, 33 तकनीकी पत्र, 15 आलेख और एक पुस्तक लिखी है। गंगा डॉल्फिन पर वह एक व्यापक पुस्तक तैयार कर रहे हैं। वह डॉल्फिन पर एक पीएचडी अनुसंधान कार्य करा चुके हैं। इसके अलावा अन्य कई लोगों को प्रशिक्षित कर चुके हैं, जो अनुसंधान कार्य कर रहे हैं।

यह सिन्हा के डॉल्फिन संरक्षण कार्य का ही प्रयास है कि बिहार सरकार ने पांच अक्तूबर को डॉल्फिन दिवस मनाने की सहमति दे दी है। औपचारिक घोषणा बाकी है। सिन्हा कहते हैं कि डोरीगंज में सरयू - गंगा नदी के मिलन, कटिहार में कोसी गंगा नदी और सोनपुर में गंडक गंगा के मिलन स्थल ऐसे प्रमुख स्थल है जिनकी पहचान गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए की गयी है। संरक्षण की दिशा में इन पर काम करना बहुत जरूरी है। सिन्हा ने नारा दिया है, ‘‘ सोंस बचेगा नदी में, नाम कमाओ सदी में ’’ वह इसी ध्येय से काम कर रहे हैं।

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