गंगा कल्याण योजना : उद्देश्य एवं क्रियान्वयन


गंगाहमारे देश की आर्थिक प्रगति का आधार हमारी कृषि व्यवस्था रही है। वर्तमान समय में देश के 65 प्रतिशत से भी अधिक लोग अपनी रोजी-रोटी प्राप्त करने के लिये कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं। देश की कुल राष्ट्रीय आय में अकेले कृषि क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत योगदान है। देश में कृषि क्षेत्र के विकास तथा इसे अधिक सुदृढ़ एवं लाभकारी बनाने में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है- सिंचाई की समुचित व्यवस्था। लेकिन देश की लगभग 72 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि अभी भी सिंचाई की सुविधा से वंचित है और यहाँ कृषि अभी भी ‘मॉनसून का जुआ’ है। निश्चित है कि इस असिंचित भूमि के अधिकांश मालिक छोटे-छोटे आकार के खेतों वाले साधनविहीन गरीब किसान हैं जो आर्थिक तंगी के कारण अपने खेतों की प्यास नहीं बुझा सके हैं। इसके दुष्प्रभाव ने जहाँ एक ओर उन्हें आर्थिक-सामाजिक रूप से विपन्न लोगों की श्रेणी में रहने को मजबूर किया है, वहीं देश के आर्थिक विकास में कृषि के योगदान को पर्याप्त महत्व प्राप्त नहीं हो सका है। अतः सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र को अधिक विकसित एवं लाभकारी बनाने के उद्देश्य से सिंचाई के अभाव को दूर करते हुये उसे सुव्यवस्थित रूप प्रदान करने हेतु ‘गंगा कल्याण योजना’ के नाम से एक अति विशेष योजना शुरू की गई है।

योजना के उद्देश्य


सरकार द्वारा गंगा कल्याण योजना एक फरवरी, 1997 से शुरू की गई है। इस योजना का उद्देश्य गरीबी-रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लाखों-करोड़ो लघु एवं सीमान्त किसानों को अपने खेतों की सिंचाई करने के लिये सिंचाई के साधन उपलब्ध कराकर उनका आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है। उल्लेखनीय है कि देश में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों की संख्या 32 करोड़ से भी अधिक है जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 35 प्रतिशत है। इन गरीब लोगों में सर्वाधिक प्रतिशत खेतिहर किसानों, विशेषकर लघु कृषकों (जिनके पास कृषि योग्य भूमि 2 से 5 एकड़ के बीच है) तथा सीमान्त कृषकों, (जिनके पास कृषि योग्य भूमि ढाई एकड़ से भी कम है), का है। गरीबी के कारण इन लोगों को बोई जाने वाली फसलों को सींचने के लिये सिंचाई के साधन भी उपलब्ध नहीं हैं जिसके कारण ये लोग छोटी-छोटी जोतों से अपने द्वारा किये गये श्रम के अनुपात में उपज अथवा लाभ प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं। अतः सरकार ने इन गरीब किसानों को सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने के लिये ‘गंगा कल्याण योजना’ के नाम से एक कल्याणकारी योजना का सूत्रपात किया है।

इस योजना का प्रमुख उद्देश्य इन विपन्न किसानों को बोरवेल्स एवं ट्यूबवैल की सुविधा प्रदान कर इन्हें भूमिगत जल के दोहन द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना है। प्रारम्भ में इस योजना को ‘समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम’ की एक उपयोजना के रूप में प्रारम्भ किया गया था लेकिन इस योजना के महत्व को ध्यान में रखते हुये एक अप्रैल, 1997 से भारत सरकार द्वारा इसे देश भर के सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में स्वतंत्र रूप से लागू करने का निर्णय लिया गया है। भारत सरकार द्वारा प्रचलित वर्ष में इस योजना के लिये 200 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान भी किया गया है। यह योजना भारत सरकार की ‘मिलियन वैल’ (दस लाख कुँआ) स्कीम से कुछ भिन्नता लिये हुये है। ‘मिलियन वैल’ योजना मुख्य रूप से बेरोजगार लोगों को मजदूरी पर काम दिलाने के उद्देश्य से सिंचाई के लिये खुले कुँओं का निर्माण कराये जाने की एक योजना है। इसके अन्तर्गत देश में अब तक 10 लाख 57 हजार से भी अधिक खुले कुओं का निर्माण कराया जा चुका है। लेकिन गंगा कल्याण योजना का उद्देश्य सिंचाई साधनों के माध्यम से गरीबी की रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे किसानों को स्वरोजगार उपलब्ध कराकर उन्हें समृद्धि की ओर बढ़ाने में उनकी सहायता करना है।

उत्तर प्रदेश में योजना का क्रियान्वयन


उत्तर प्रदेश में भी कृषि क्षेत्र प्रदेश की आर्थिक प्रगति का आधार रहा है। यहाँ राज्य की कुल आय का 42 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होता है और प्रदेश की 72 प्रतिशत जनसंख्या अपने भरण-पोषण के लिये कृषि पर निर्भर करती है। साथ ही प्रदेश के लगभग 2 करोड़ कृषि-जोतों में से 90 प्रतिशत जोतों के मालिक लघु एवं सीमान्त कृषक हैं। इन कृषकों में से 20 प्रतिशत लोगों के खेतों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। शेष 80 प्रतिशत सीमान्त एवं लघु कृषकों को सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें लगाये गये श्रम की तुलना में कम पैदावार प्राप्त होती है जिससे वे गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन करने को मजबूर हैं। आर्थिक तंगी के कारण वे अपने खेतों के लिये सिंचाई की सुविधा जुटाने में असमर्थ रहे हैं। ऐसे लोगों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी प्रदेश में गंगा कल्याण योजना एक फरवरी, 1997 से प्रदेश के 51 जिलों में लागू की गई है। यह योजना भारत सरकार की 80 प्रतिशत तथा प्रदेश सरकार की 20 प्रतिशत वित्तीय भागीदारी से कार्यान्वित की जा रही है।

प्रदेश की नौवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 1997-2002) के अन्तर्गत इस योजना हेतु 25 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाना प्रस्तावित है। इस योजना के लिये वर्ष 1997-98 हेतु पाँच करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित करते हुये प्रदेश सरकार द्वारा इस योजना से प्रदेश के लघु और सीमान्त कृषकों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिये बहुआयामी प्रयास करने का निर्णय लिया गया है। इस योजना का उद्देश्य गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे किसानों को उनकी गरीबी दूर करने में सहायता करना है तथा सिंचाई साधनों को विकसित करने के लिये आवश्यक ऋण की व्यवस्था कराते हुये पर्याप्त अनुदान राशि सहायता रूप में देते हुये उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में भूमिगत जल और भूतल जल के उपयोग के लिये योजनाएँ शुरू करने के लिये प्रोत्साहित करना है।

प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले ऐसे सभी लघु एवं सीमान्त कृषक इस योजना से लाभ उठा सकते हैं। जिनके परिवार में ‘एकीकृत ग्रामीण विकास योजना’ अथवा अन्य योजना के अन्तर्गत लघु सिंचाई के लिये पहले कभी कोई सदस्य लाभान्वित नहीं किया गया हो। लघु किसानों से तात्पर्य ऐसे किसानों से है जिनके पास खेती योग्य भूमि ढाई एकड़ से 5 एकड़ के बीच है अर्थात 5 एकड़ से अधिक नहीं है तथा सीमान्त कृषकों से तात्पर्य उन किसानों से है जिनके पास खेती योग्य भूमि ढाई एकड़ से अधिक नहीं है। इस योजना से लाभ प्राप्त करने के लिये उक्त सीमा के अन्तर्गत गरीबी की रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहा कोई भी किसान व्यक्तिगत रूप से लाभ प्राप्त कर सकता है। इस योजना की एक विशेषता यह भी है कि उक्त सीमा के अन्तर्गत पात्र व्यक्तियों के 5 से 15 लोगों के समूह का गठन करते हुये उन्हें इस योजना से सामूहिक रूप से लाभ प्रदान किये जा सकते हैं।

सामूहिक रूप से लाभ की शर्तें


योजनान्तर्गत सामूहिक रूप से लाभ प्राप्त करने के लिये 5 से 15 सदस्यों का एक समूह बनाकर सभी को योजना से लाभान्वित करने का प्रयास किया जाता है। सामूहिक रूप से लाभ प्राप्त करने के लिये समूह के गठन हेतु निम्नांकित बातें सुनिश्चित करना आवश्यक होता है:-

1. समूह में सम्मिलित किये जाने वाले लाभार्थियों के खेत आपस में मिले हुये होने चाहिये।

2. अनुसूचित जाति एवं जन जाति के समूह में सामान्यतया इसी वर्ग में आने वाले किसानों को सम्मिलित किया जायेगा।

3. जहाँ अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों के खेतों की स्थिति इस प्रकार की हो कि उन्हें सामूहिक रूप से लाभ प्रदान कर पाना सम्भव नहीं हो, वहाँ गैर-अनुसूचित जाति और जनजाति के किसानों को भी सम्मिलित किया जा सकता है लेकिन इसमें गैर-अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों की संख्या 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के समूह में गैर-अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों की कुल भूमि के अधिकतम 25 प्रतिशत अंश की सीमा तक ही सदस्य बनाये जा सकते हैं।

4. समूह में सम्मिलित किये जाने वाले लाभार्थी लघु अथवा सीमान्त कृषक होने चाहिये।

5. प्रत्येक लाभार्थी गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाला होना चाहिये।

6. आशावान लाभार्थी को पूर्व में किसी योजना द्वारा लघु सिंचाई के अन्तर्गत लाभ प्राप्त व्यक्ति नहीं होना चाहिये।

विशेष प्रावधान



सरकार द्वारा गंगा कल्याण योजना एक फरवरी, 1997 से शुरू की गई है। इस योजना का उद्देश्य गरीबी-रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लाखों-करोड़ो लघु एवं सीमान्त किसानों को अपने खेतों की सिंचाई करने के लिये सिंचाई के साधनों को उपलब्ध कराकर उनका आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है।

इस योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, जनजाति एवं विकलांगों के लिये 50 प्रतिशत संसाधन आरक्षित किये गये हैं। इस प्रकार इन वर्गों के लोगों को इस योजना से अधिकाधिक लाभान्वित करने का विशेष प्रावधान है। योजनान्तर्गत योजना के लिये कुल निर्धारित धनराशि का 50 प्रतिशत इन लोगों के कल्याण के लिये व्यय किया जाना सुनिश्चित किया गया है। साथ ही सामूहिक लाभ के अन्तर्गत गैर-अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों हेतु मात्राकृत धनराशि व्यय की जायेगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन लोगों के लाभ के लिये कुल व्यय की जाने वाली राशि में से कम से कम 50 प्रतिशत धनराशि इन वर्गों के लिये ही आवश्यक रूप से व्यय की जाए।

चयन प्रक्रिया


इस योजना हेतु लाभार्थियों के चयन की जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है उससे यह सुनिश्चित किया जाना सम्भव हो पायेगा कि इस योजना के अन्तर्गत योजना से लाभ प्राप्त करने के वास्तविक रूप से हकदार लोगों को ही इसका लाभ प्राप्त हो सके इसीलिये लाभार्थियों का चयन ग्रामसभा की खुली बैठक में ही करना निर्धारित किया गया है। इसके अन्तर्गत लाभार्थियों के चयन हेतु निम्नांकित प्रक्रिया अपनाना निश्चित किया गया है:-

1. लाभार्थियों का चयन केवल ग्राम पंचायतों की खुली बैठक में ही किया जा सकेगा।

2. लाभार्थियों का चयन मात्र उन परिवारों से ही किया जा सकेगा जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों से सम्बन्धित होंगे।

3. लाभार्थी को लघु कृषक अथवा सीमान्त कृषक की श्रेणी का व्यक्ति होना चाहिये।

4. अनुसूचित जाति, जनजाति एवं विकलांग सदस्यों हेतु 50 प्रतिशत का आरक्षण सुनिश्चित किया जायेगा।

5. सामूहिक लाभ देने हेतु प्रत्येक समूह में केवल उन्हीं किसानों को सम्मिलित किया जायेगा जिनके खेत परस्पर मिले हुये होंगे।

6. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों का यथा सम्भव अलग समूह गठित किया जायेगा।

7. समूह के गठन के लिये यदि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के खेतों की स्थिति पास-पास नहीं हो तो वहाँ 25 प्रतिशत की सीमा तक गैर-अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।

8. ग्राम पंचायत द्वारा लाभार्थियों के चयन के पश्चात क्षेत्र पंचायत के माध्यम से जिला ग्राम्य विकास अभिकरण से इन लाभार्थियों की सूची की जाँच कराकर यह सुनिश्चित किया जायेगा कि वास्तविक रूप से जरूरतमंद लोग ही इस योजना के तहत लाभ उठा सकें और योजना अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कामयाब हो सके।

प्रदत्त लाभ


इस योजना के अन्तर्गत ‘व्यक्तिगत रूप से’ लाभ पाने वाले किसानों को ड्रिलिंग, पम्पसेट के शेड, और स्टोरेज टैंक के निर्माण पर होने वाले व्यय के बराबर धनराशि उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त ‘सामूहिक रूप से’ लाभ पाने वाले समूहों के मामले में पुलों के निर्माण, भूमि के समतलीकरण तथा सिंचाई हेतु पानी निकालने वाले उपकरणों पर होने वाले व्यय के लिये भी धनराशि उपलब्ध कराने का प्रावधान है। चूँकि इसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरणों एवं सामग्री के लिये प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग लागत होगी, अतः इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि प्रत्येक क्षेत्र में इन कार्यों पर होने वाले व्यय का अनुमान करने के बाद ही प्रत्येक क्षेत्र के लिये अलग-अलग मानक निर्धारित किये जाएँ। इसीलिये प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रवार लागत के मानकों का निर्धारण मुख्य अभियन्ता, लघु सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कराया जाना निश्चित किया गया है। प्रत्येक क्षेत्र के लिये तैयार मानकों के आधार पर योजनान्तर्गत व्यक्तिगत रूप से लाभ पाने वाले किसानों एवं सामूहिक रूप से लाभान्वित होने वाले किसानों के लिये उक्त कार्यों हेतु आवश्यक रूप से वांछित धनराशि की व्यवस्था वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से प्रदेश सरकार द्वारा कराई जायेगी।

गरीब किसानों को सिंचाई संसाधनों के निर्माण हेतु आवश्यक धनराशि सुनिश्चित कराने के अतिरिक्त सरकार द्वारा लाभार्थियों को वित्तीय लाभ के रूप में कुछ अनुदान देने की भी व्यवस्था की गई है। सामूहिक क्रियाकलापों के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, जनजाति एवं विकलांग लोगों के समूहों को 75 प्रतिशत अनुदान प्रदेश सरकार द्वारा दिया जायेगा और इस अनुदान की अधिकतम सीमा 40 हजार रुपये प्रति एकड़ होगी। व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित होने वाले किसानों के मामले में यह अनुदान 5 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से दिया जायेगा और इसकी अधिकतम सीमा 12 हजार पाँच सौ रुपये होगी। दो या इससे अधिक व्यक्तियों के समूह वाली किन्तु एक ही भूखण्ड के रूप में प्रयुक्त भूमि के मामले में अनुदान की दृष्टि से उसे एक ही लाभार्थी माना जायेगा। अनुसूचित जाति, जनजाति एवं विकलांग लोगों के अतिरिक्त इस योजना के अन्तर्गत लाभान्वित अन्य वर्गों के किसानों को देय अनुदान की मात्रा कुल लागत की 50 प्रतिशत निर्धारित की गई है लेकिन समूह के लिये अनुदान की अधिकतम सीमा 40 हजार रुपये ही है। किसान के व्यक्तिगत मामले में 5 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से अधिकतम साढ़े बारह हजार रुपये की सीमा निर्धारित की गई है।

लाभ कैसे उठाएँ


गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लघु एवं सीमान्त किसान यदि इस योजना से लाभ उठाना चाहते हैं और अपने खेतों में फसलों का अधिक उत्पादन सुनिश्चित करने के लिये सिंचाई साधन, जैसे बोरवेल और ट्यूबवेल लगाना चाहते हैं, तो उन्हें यथाशीघ्र अपने गाँव, ब्लॉक अथवा जिले में सम्बन्धित अधिकारियों/कर्मचारियों से सम्पर्क स्थापित करके गंगा कल्याण योजना के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करनी चाहिये, जैसे:बोरवैल1. ग्राम स्तर पर- ग्राम पंचायत के प्रधान/ग्राम्य विकास अधिकारी से
2. ब्लाक स्तर पर- खण्ड विकास अधिकारी (बी.डी.ओ.) से
3. जिला स्तर पर- मुख्य विकास अधिकारी/अपर जिलाधिकारी (परियोजना)/जिला विकास अधिकारी से

इस योजना से उन्हें अपने सिंचाई के साधन विकसित करने के लिये आवश्यक धनराशि की व्यवस्था की गई। साथ में ऋण के रूप में प्राप्त की गई धनराशि को वापस करने में सरकार द्वारा अनुदान के रूप में भारी-भरकम छूट भी प्रदान की गई। आशा है कि इस योजना से गरीबी की रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे किसानों को स्वरोजगार के माध्यम से समृद्धि की ओर बढ़ने में निश्चित रूप से सहायता मिलेगी।

(लेखक राज्य नियोजन संस्थान, उत्तर प्रदेश, कालाकांकर भवन, लखनऊ में संयुक्त निदेशक (प्रशिक्षण) हैं।)

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