गंगा में पिता

कल
चुप हो गए पिता
गंगा में डुबकी मारकर

बरसों की छुटी हुई नौकरी
अपमान और असुरक्षा के बीच
पिता जानते थे कि
गंगा हिमालय से निकलती है
और हिमालय कहां है

इस माचिसनुमा शहर में
पिता ने बटोर लिए थे आंकड़े
कि घर के आंगन से बिस्तर तक कितने हिमालय हैं
और सड़क तक आते-आते
कितनी गंगाएं सूखा जाती है

फूटी हुई नाव
और फटे पाल के सहारे निकले थे कभी
गंगा की तलाश में,
हवा और पानी के थपेड़ों के बीच
चकोहनुमा धार के शीर्ष पर मैंने
उन्हें लट्टू की तरह नाचते देखा था
मैंने सुनी थी उनकी अड़ियल आवाज
वो….
वो रही गंगा
रेत की तलों में
तरबूज खेतों के पास-पास
सीप-सी सिकुड़ी, केंचुए-सी रेंगती दिखती थी गंगा
किसी कसाई का खूंटा तोड़ आई थी
मरियल-सी
पर वे जहां पहुंच गए थे
बहुत सहज नहीं था कि जड़ों की ओर
लौटने के लिए लपेट सके
सांस के महीन और उलझे हुए धागे

मेरे कंधों पर नहीं चढ़े पिता
नहीं मांगी, बैतरनी के लिए गाय
डूबकर चुप हो गए
यह नियति नहीं थी पिता की
लहरों पर अब भी शेष है उनके पांव के निशान
अपनी लड़ाई जीतकर नहीं गए पिता
अपनी लड़ाई हारकर नहीं गए पिता
छोड़ गए अपने खानदान का वाक्यसूत्र
कि जहां बाप डूबता है
बेटा तैरना सीखता है।

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