गोमुख से गंगासागर तक पदयात्रा पर एक संन्यासी

19 Jul 2010
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यदि यह पदयात्रा किसी नेता या अभिनेता की होती अथवा कोई रथयात्रा हो रही होती तो मीडिया इसकी पल-पल की जानकारी दे रहा होता, किंतु यह यात्रा एक संन्यासी कर रहा है, लिहाजा इसकी कहीं चर्चा नहीं हो रही, गोमुख से गंगासागर तक किनारे-किनारे पूरे ढाई हज़ार किलोमीटर लंबे मार्ग पर सर्दी, लू के थपेड़ों और बरसात के बीच इस संन्यासी की पदयात्रा गंगा की निर्मलता के लिए हो रही है। वह भी ऐसे मार्ग पर, जो कभी पारंपरिक यात्रा पथ नहीं रहा। कई स्थानों पर तो दूर-दूर तक सड़क ही नहीं है।

उत्तर भारत की जीवन रेखा मानी जाने वाली गंगा नदी इन दिनों दोहरी मार झेल पही है। एक और वह बांधों के कारण अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है, बाकी कसर आधुनिक रहन-सहन, शहरीकरण एवं उद्योगीकरण के दबाव ने पूरी कर दी है। बांधने और कूड़ा-कचरा एवं जहरीला पानी मिलाने से गंगा अपनी पवित्रता खो चुकी है। इसके जल का प्रत्यक्ष-परोक्ष उपयोग नदी किनारे बसने वाली करोड़ों की आबादी के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्या का जनक बन चुका है। तीन दशक पहले जिस गंगा का जल कानपुर, इलाहाबाद एवं बनारस में साफ था, आज वह गटर के पानी जैसा हो चला है। हरिद्वार के बाद इसका अमृत समान जल अशुद्ध होता चला जाता है और यह मात्र कहने भर के लिए नदी रह जाती है।

गंगा की ऐसी हालत संवेदनशील लोगों को सदा विचलित करती रही है। विगत वर्ष आईआईटी के प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने पहले उत्तरकाशी एवं बाद में दिल्ली में लंबे समय तक अनशन किया तो सरकार ने गंगा पर बांध बनाने के गंभीर मुद्दे पर मात्र दिखाने के लिए कुछ परियोजनाओं को स्थगित कर दिया। संवेदनशील न होते तो 75 साल के इस बुजुर्ग वैज्ञानिक को क्या पड़ी थी? घर में आराम से रह सकते थे। यद्यपि उनके अनशन को समाप्त कराने के लिए ठेकेदारों एवं पूंजीपतियों की लॉबी ने पूरा जोर लगा दिया था, जिनके लिए विकास का मतलब महज़ पैसा कमाना है। ठीक यही टिहरी बांध बनने से पहले हुआ था, किंतु आज इस बांध की विभिषिका को लाखों लोग झेल रहे हैं। पहले यही कंपनियां एवं इनके समर्थक टिहरी बांध को लेकर तरह-तरह के सपने दिखाया करते थे, किंतु अब जबकि सारे सपने चूर-चूर हो गए हैं, वे दूसरी जगह जाकर विकास का राग अलाप रहे हैं। अग्रवाल का अनशन गंगा की धारा को रोके जाने के विरुद्ध था, आचार्या नीरज की गोमुख से लेकर गंगा सागर तक की लंबी पदयात्रा गंगा की निर्मलता को लेकर है। वह प्रवचन करने वाले बाबाओं से अलग हैं, जो तमाम सुख-सुविधाओं के बीच रहकर जनता को आध्यात्म का पाठ पढ़ाते हैं।

रसायन विज्ञान में एमएससी एवं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता से संन्यासी बने आचार्य नीरज एक बेहद कठिन पदयात्रा पर हैं। उनके दो मक़सद हैं। पहला यह कि अपनी सामर्थ्य के मुताबिक गंगा से सटे प्रत्येक नगर-गांव तक गंगा की निर्मलता का संदेश देना और दूसरा यह कि वास्तविक स्थिति का आकलन करने के बाद गंगा की स्वच्छता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर का आधार तय करना। रसायन विज्ञान में एमएससी एवं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता से संन्यासी बने आचार्य नीरज एक बेहद कठिन पदयात्रा पर हैं। उनके दो मक़सद हैं। पहला यह कि अपनी सामर्थ्य के मुताबिक गंगा से सटे प्रत्येक नगर-गांव तक गंगा की निर्मलता का संदेश देना और दूसरा यह कि वास्तविक स्थिति का आकलन करने के बाद गंगा की स्वच्छता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर का आधार तय करना। उनके अनुसार, नदियों के प्रति सरकार एवं जनता को जवाबदेह बनाया जा सकता है और न्यायालय ही यह कर सकता है। वह कहते हैं कि हम मेट्रों रेल से सबक ले सकते हैं। जहां भी गंदगी करने के लिए कठोर कानून हैं, वहां कोई गंदा नहीं करता। क्या ऐसा ही कोई कानून गंगा को प्रदूषित करने वालों के लिए नहीं बन सकता?

350 किलोमीटर का पहला चरण गोमुख से हरिद्वार के बीच पूरा कतरने के बाद यात्रा का दूसरा चरण उत्तर प्रदेश में जारी है। यह चरण बिजनौर बैराज, ब्रजघाट, गढ़मुक्तेश्वर, अनुपशहर से नरौरा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, फतेहपुर, इलाहाबाद एवं वाराणसी होते हुए बलिया तक 1100 किलोमीटर का है। पदयात्रा का तीसरा चरण बिहार में 6 अगस्त से शुरू होगा। छपरा, हाजीपुर, पटना, मुंगेर, खगड़िया एवं भागलपुर होते हुए यह पदयात्रा बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में प्रवेश करेगी। सितंबर माह में आचार्य नीरज बंगाल के नगरों से गुज़रेंगे। यात्रा का समापन 2 अक्टूबर को गंगासागर में होगा।

आचार्य नीरज के अनुसार, गंगा को साफ करने के लिए चल रहे मौजूदा कार्यक्रम अस्थायी एवं तात्कालिक हैं, जिनमें कहीं भी समर्पण और जवाबदेही नहीं है। गंगा जैसी नदी को इस तरह साफ नहीं किया जा सकता। आज यदि लोग ऋषि-मुनियों की तरह संवेदनशील होते तो नदी गंदी ही न होती। उद्योगीकरण एवं आधुनिक विकास के बीच हम भूल गए कि गंगा करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है, लेकिन उसे प्रदूषित होने से रोकने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं है।

अपने उद्गम स्थल से ही गंगा गंदी होने लगती है। कहीं उसमें घरेलू कचरा और सीवर मिलाया जा रहा है तो कहीं बड़े-बड़े उद्योगों का कचरा एवं जहरीला जल। पूजा-पाठ कराने वाले भी नदियों को गंदा करने में पीछे नहीं है। सैकड़ों क्विंटल फूल और मुंडन-पिंडदान के लिए काटे गए बाल भी गंगा में बहाए जा रहे हैं। शवों के दाह से भी गंगाजल प्रदूषित हो रहा है। विकास एवं भौतिकवाद के अंधानुकरण के बाद से ही गंगा में गंदगी की मात्रा बढ़ती चली गई और उसके जल के औषधीय गुण समाप्त हो गए। आज कुछ स्थानों पर गंगा में नहाने का वैज्ञानिक आधार नहीं रहा। उसमें मिले कैडमियम, क्रोमियम एवं पारे सहित अनेक खतरनाक रसायनों का असर गंगा किनारे बसे नगरों की आबादी के स्वास्थ्य पर हो रहा है, जहां उसके जल का उपयोग पीने, सिंचाई एवं नहाने के काम में होता है। विषाक्त जल का प्रभाव सिंचित फसलों एवं सब्जियों पर भी हो रहा है। नदी में मछलियां मर रहीं हैं, डाल्फिन संकटग्रस्त है।

गंगा भारत की धरोहर है, इसलिए इसे अलग-अलग राज्यों की नदी के रूप में न देखकर भारत की नदी के रूप में देखना होगा। हमारे नगर में यह नदी पवित्र है और आगे भी पवित्र रहे जैसी सोच देश की सारी जीवनदायनी नदियों को उनका पुराना प्राकृतिक एवं पवित्र रूप दे सकती है। गंगा यदि साफ होगी तो इससे सुख, समृद्धि एवं वैभव का मार्ग प्रशस्त होगा। अभियान के प्रवक्ता सुशील सीतापुरी कहते हैं कि गंगा किनारे नाव से तो अभियान चले हैं, किंतु पदयात्रा एक अनोखा अभियान है। अभियान के तहत बनारस एवं पटना में गोष्ठियां आयोजित करने की योजना है। आचार्य नीरज बनारस में 24 जुलाई एवं पटना में 20 अगस्त के आसपास पहुंचेंगे। वह जब गोमुख से चले थे तो उनके ज्यादातर साथी कठिन यात्रा के कारण बीमार हो गए। अब तक की पदयात्रा उन्होंने अकेले ही तय की है। लोग उनके साथ कुछ दूरी तक चलते हैं और थकने पर यात्रा से अलग हो जाते हैं, लेकिन नीरज की यात्रा सर्दी, गर्मी और बरसात के बीच निर्बाध रूप से जारी है। एक दिन में वह बीस किलोमीटर चलते हैं और नदी किनारे बने आश्रमों में रहते हैं।

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