ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा

5 Jun 2015
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अनुमान है कि वर्तमान में विश्व की 1 अरब 10 करोड़ आबादी को पीने का पानी ठीक से मयस्सर नहीं है। वर्ष 2050 तक के आकलन से संकेत मिलता है कि विश्व की दो तिहाई आबादी को पीने के पानी की दिक्कत रहेगी। पानी की गुणवत्ता को बनाए रखना और दीर्घकालिक आधार पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना भारत की प्रमुख चुनौतियों में सबसे अहम है।

ग्रामीण पेयजल


हमारे देश में ग्रामीण पेयजल के क्षेत्र में चुनौतियों का अम्बार लगा है। विश्व भर में एक अरब से भी अधिक लोगों को सुरक्षित और भरोसेमन्द जलस्रोत नसीब नहीं है। जीवन के सभी रूपों की बुनियादी जरूरतों में पानी सबसे महत्त्वपूर्ण है और यह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की कुंजी है। अनुमान है कि वर्तमान में विश्व की 1 अरब 10 करोड़ आबादी को पीने का पानी ठीक से मयस्सर नहीं है। वर्ष 2050 तक के आकलन से संकेत मिलता है कि विश्व की दो तिहाई आबादी को पीने के पानी की दिक्कत रहेगी। कुछ को कम हो सकती है तो कुछ को ज्यादा। पानी की गुणवत्ता को बनाए रखना और दीर्घकालिक आधार पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना भारत की प्रमुख चुनौतियों में सबसे अहम है। औद्योगिक गतिविधियों के कारण जल प्रदूषण की बढ़ती समस्या, जनसंख्या में वृद्धि और कृषि क्षेत्र के लिए पानी की बढ़ती माँग ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है कि ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ भागों में सुरक्षित पेयजल पहुँचाना एक समस्या बन गई है।

तालिका-1: त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम (एआरडब्ल्यूएसपी) की शुरुआत से पूर्व समस्याग्रस्त गाँवों की कवरेज

अवधि

कवर्ड गाँवों की संख्या

समस्याग्रस्त गाँव

अन्य

योग

1951 से 1961

11000

-

11000

1961 से 1968-69

6000

-

6000

1969-70 से 1970-71

2000

-

2000

कुल कवरेज (1951-52 से 1970-71)

19000

-

19000

 

तालिका-2: त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम को लागू करने के बाद समस्याग्रस्त गाँवों की कवरेज
ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा तालिका 2
केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ से ही ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने का प्रयास करती रही हैं। परन्तु इस प्रयास को वेग मिला 1972-73 में, जब केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों और केन्द्रशासित प्रदेशों को पेयजल आपूर्ति की गति बढ़ाने में मदद के लिए त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम (एआरडब्ल्यूएसपी) की शुरुआत की। बाद में विषय पर और अधिक ध्यान केन्द्रित करने के लिए इस कार्यक्रम को एक मिशन के तौर पर शुरू किया गया और राष्ट्रीय पेयजल मिशन के नाम से 1986 में पेयजल प्रबन्धन के लिए एक तकनीकी मिशन शुरू किया गया। राष्ट्रीय पेयजल मिशन (एनडीडब्ल्यू) का नाम बदल कर 1991 में राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन (आरजीएनडीडब्ल्यूएम) कर दिया गया। इसके और आगे जाते हुए मार्च 2004 तक सभी बसाहटों में सुरक्षित पेयजल प्रदान करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 1999 में ग्रामीण विकास मन्त्रालय में पृथक से पेयजल आपूर्ति का विभाग गठित किया गया।

शामिल क्षेत्र


1999 की व्यापक कार्ययोजना के अनुसार देश में 14 लाख 22 हजार 664 बस्तियाँ थीं। राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 4588 बस्तियाँ कवर्ड नहीं थीं और 50 हजार 479 आंशिक रूप से कवर्ड (कुल योग 55 हजार 67) थीं। इसके अलावा 391 बस्तियाँ ऐसी थीं जो पहली अप्रैल, 05 तक या तो शहरों में बदल चुकी थीं अथवा उजड़ चुकी थीं। राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों ने अपनी प्रगति रिपोर्टों में जो जानकारियाँ दी हैं, उनसे पता चलता है कि 28 फरवरी, 2006 तक कुल मिलाकर 3,164 कवर्ड नहीं, 41,457 आंशिक रूप से कवर्ड और 13 लाख 77 हजार 662 पूर्ण कवर्ड बस्तियाँ थीं। परन्तु कवरेज की स्थिति बदलती रहती है और यह सम्भावना हमेशा बनी रहती है कि पूर्णरूपेण कवर्ड बस्तियाँ आंशिक रूप से कवर्ड अथवा कवर्ड नहीं बस्तियों में बदल जाएँ। इसी प्रकार आंशिक कवर्ड बस्तियाँ कवर्ड नहीं में तब्दील हो सकती हैं। ऐसा स्रोतों के सूख जाने या भूजल स्तर के गिर जाने, स्रोतों की गुणवत्ता प्रभावित होने अथवा प्रणालियों के चुक जाने, दोषपूर्ण परिचालन और सन्धारण के कारण उनका अपनी क्षमता से कम काम करने; जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति उपलब्धता में कमी और नई बस्तियों के बसने के कारण हो सकता है। वर्ष 2003 के सर्वेक्षण के आँकड़ों से पता चलता है कि बस्तियों की बहुत बड़ी संख्या पूर्ण कवर्ड से आंशिक कवर्ड में और आंशिक कवर्ड से कवर्ड नहीं में बदल चुकी हैं। इसके अलावा कुछ नयी बस्तियाँ भी बस गई हैं।

 

तालिका-3: ग्रामीण पेयजल क्षेत्र के लिए दसवीं योजना (केन्द्रीय) परिव्यय (रुपए करोड़ में)

योजना

परिव्यय

वास्तविक

2002-03

2110

2100.70

2003-04

2585

2564.90

2004-05

2900

2930.79@

2005-06

4050*

4098.03@

2006-07

5200

-

* पुनरीक्षित आकलन चरण में, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति के लिए राशि बढ़कर 40 अरब 60 करोड़ रुपए हो गई।
@ वास्तविक व्यय में वृद्धि ग्रामीण पेयजल आपूर्ति के लिए स्वास्थ्य रक्षा (स्वच्छता) के मद की खर्च न की गई राशि का उपयोग करने के कारण हुई।

 

प्रारम्भ से लेकर अब तक (28 फरवरी, 2006) कवरेज की वार्षिक स्थिति इस प्रकार है :

देश की ग्रामीण बस्तियों में सुरक्षित पेयजल पहुँचाने हेतु 1972-73 में शुरू किए गए त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम ने कतिपय निश्चित मानकों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सुविधाएँ मुहैया कराने पर ध्यान केन्द्रित किया है। ग्रामीण बस्तियों में 35 लाख से अधिक हैण्डपम्प लगाए गए हैं। इनके अलावा पाइप लाइन के जरिये पानी पहुँचाने की भी एक लाख से अधिक योजनाएँ कार्यरत हैं। चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने का काम राज्य सरकारें करती हैं, प्रयास किए जा रहे हैं कि उनकी नीतियों में कुछ सुधार हों और उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए जिससे कवरेज के लक्ष्य को वे प्राप्त कर सकें।

ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा चित्र 1पिछले कई वर्षों से सरकार अ-सेवित और अल्पसेवित ग्रामीण आबादियों में निवेश बढ़ाकर और उन्नत तकनीकी उपायों के जरिये सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रही है। इन उपायों के बाद भी, देश के अनेक भागों में उपयुक्त मात्रा में पानी की उपलब्धता उचित गुणवत्ता और पेयजल की सुविधा दीर्घकाल तक बनाए रखने में अनेक समस्याएँ खड़ी हो रही हैं। आने वाले समय में यदि कोई रणनीति तैयार की जाती है तो उसमें इन समस्याओं द्वारा पेश आने वाली चुनौतियों से निपटने पर ध्यान देना होगा। स्पष्ट है कि केवल सरकारी प्रयासों से इन सभी समस्याओं का हल नहीं किया जा सकता। अतः इस कार्य में पूरे समुदाय, सभ्य समाज, सरकार और निजी उद्यमियों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि देश की ग्रामीण बस्तियों में पर्याप्त, सुरक्षित पेयजल दीर्घकाल तक मिलता रहे।

रणनीति


इस उद्देश्य के लिए अपनाई गई रणनीति इस प्रकार है :

1. नई पाइप लाइनें डालकर वैकल्पित स्रोतों से क्षेत्रीय योजनाएँ मुहैया कराना;
2. पुरानी पड़ गई योजनाओं वाली बस्तियों में नई योजनाओं की पूरक व्यवस्था करना;
3. अपनी निर्धारित क्षमता से कम काम कर रही पुरानी पड़ गई योजनाओं को पुनर्जीवन प्रदान करना;
4. पारम्परिक स्रोतों को पुनर्जीवित करना;
5. वर्षा जल संचय के लिए संरचनाएँ मुहैया कराना;
6. मौजूदा स्रोतों (योजनाओं) को वैकल्पिक सुरक्षित स्रोतों से जोड़कर, रिचार्जिंग कर और छतों पर वर्षा जल संचय कर समेकित प्रयास से उपयोगी बनाना;
7. विद्यालयों में पेयजल सुविधाओं के लिए मानव संसाधन विकास मन्त्रालय से समन्वय स्थापित करना;
8. वर्ष 2006-07 से जल की गुणवत्ता प्रभावित बस्तियों के लिए खासतौर पर धन की व्यवस्था करना।

पानी की गुणवत्ता


पानी की गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए 1992 में उपमिशन कार्यक्रम शुरू किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सुरक्षित पेयजल प्रदान करने के लिए स्रोत के मूल स्थान पर ही उपचार संयन्त्र की स्थापना करने अथवा भू-जलीय या सतही स्रोतों से सुरक्षित जल की वैकल्पिक व्यवस्था करने हेतु राज्य सरकारों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के तहत 1994 तक संखिया, फ्लोराइड, लौह तत्व और खारेपन को दूर करने वाले संयन्त्रों की स्थापना के लिए मंजूरी दी गई। 1998 से पहले तक 13 अरब 42 करोड़ रुपए लागत वाली 120 परियोजनाएँ मंजूर की गई थीं। इनमें केन्द्र सरकार का अंश 10 अरब 6 करोड़ रुपए का था जिसमें 101 परियोजनाएँ पूरी की गईं। उपमिशन परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था केन्द्र और राज्य के बीच 75 और 25 के अनुपात में की गई थी।

ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा चित्र 2राज्यों को 1 अप्रैल, 1998 से उपमिशन परियोजनाएँ मंजूर करने के अधिकार दे दिए गए थे। राज्य सराकरें/केन्द्रशासित प्रदेश जिस आधार पर त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति योजनाएँ स्वीकृत करती हैं, उसी आधार पर उपमिशन परियोजनाएँ भी मंजूर कर सकती हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें कार्यक्रम की कवरेज, धारणीयता और गुणवत्ता के पहलुओं पर ध्यान देना होगा। उपमिशन परियोजनाओं के लिए 1 अप्रैल, 1999 तक वित्तीय व्यवस्था, केन्द्र और राज्यों के बीच 75 और 25 के अनुपात में की जाती रही, परन्तु 1 अप्रैल, 1998 और 31 मार्च, 1999 के बीच स्वीकृत परियोजनाओं में यह अनुपात 50-50 का रहा था।

आठवीं पंचवर्षीय योजना में, 1992 से 1997 के बीच 7 हजार गुणवत्ता प्रभावित बसाहटों के लिए 120 उपमिशन परियोजनाएँ मंजूर की गई थीं, जिनकी कुल लागत 13 अरब एक करोड़ रुपए थी। उसके बाद 1 अप्रैल, 1998 से उपमिशन परियोजनाएँ मंजूर करने के अधिकार राज्यों को सौंप दिए गए थे। 1 अप्रैल, 1998 के बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल जैसे राज्यों से मिली रिपोर्टों के अनुसार नौवीं और दसवीं योजनाओं के दौरान पानी की गुणवत्ता की समस्या के निवारण के लिए इन राज्यों में अनेक उपमिशन परियोजनाएँ मंजूर की गई। वर्ष 2005-06 के दौरान, राज्य सरकारों की रिपोर्टों के अनुसार पानी की गुणवत्ता प्रभावित 2,971 बस्तियों में सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने वाली योजनाएँ लागू की गईँ।

राष्ट्रीय ग्रामीण जल गुणवत्ता चेतावनी और निगरानी कार्यक्रम


जल गुणवत्ता चेतावनी और निगरानी कार्यक्रम का उद्देश्य पानी की गुणवत्ता पर नजर रखना और पानी की गुणवत्ता की समस्या वाले क्षेत्रों की पहचान करना तथा उपयुक्त प्रौद्योगिकी अपनाकर उसका निवारण करना था। 459 जिलों में जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करने की मंजूरी दी गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इनमें से 386 प्रयोगशालाएँ स्थापित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त, राज्यों ने भी 148 जिलों में पानी परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की हैं। प्रयोगशालाओं की यह संरचना (संख्या) सभी स्रोतों के परीक्षण के लिए अपर्याप्त थीं, सरकार ने फरवरी 2006 में समुदाय आधारित राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता मॉनीटरिंग और निगरानी कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत को सभी पेयजल स्रोतों की गुणवत्ता को मॉनीटर करने के लिए एक-एक पानी परीक्षण किट दी जाएगी। जिन नमूनों में सकारात्मक लक्षण (गुणवत्ता के प्रति सन्देह होगा) पाए जाएँगे, उनकी दुबारा जाँच जिला अथवा राज्य स्तरीय प्रयोगशाला में की जाएगी।

ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा चित्र 3राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल गुणवत्ता मॉनीटरिंग एवं निगरानी कार्यक्रम पेयजल की गुणवत्ता, ग्रामीणजनों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच सम्बन्ध स्थापित करने के लिए समग्र और समेकित रूप से काम करने की उत्तम मददकारी रणनीति है। इस कार्यक्रम में, सभी स्तरों पर पानी की गुणवत्ता को चेतावनी देने का काम जल आपूर्ति करने वाली एजेंसियाँ करेंगी और इस पर नजर रखेंगे स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी। पेयजल आपूर्ति विभाग विभिन्न स्तरों पर गतिविधियों में तालमेल बिठाने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय से समन्वय कर रहा है। यह अनुभव किया गया है कि जहाँ तक सम्भव हो, स्वास्थ्य जलापूर्ति और स्वच्छता कार्यक्रमों के लिए एक जैसी समितियाँ बनाकर साझे संस्थागत ढाँचों के जरिये तालमेल बिठाया जाए। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा अनुबन्धित एक्रीडिटेड सोशल हेल्थ एक्टीविस्ट (आशा) नाम की गैर-सरकारी संस्था को मैदानी परीक्षण किटों के जरिये मैदानी स्तर पर पेयजल स्रोतों के निरीक्षण और निगरानी के काम में लगाया जाएगा। प्रयास किए जा रहे हैं कि जहाँ सम्भव हो वहाँ आईईसी और क्षमता निर्माण गतिविधियाँ मिल कर चलाई जाएँ। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मन्त्रालय के अधिकारियों के साथ इस बाबत नियमित बैठके हो रही हैं।

भारत निर्माण


पेयजल जलापूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचों के निर्माण के लिए 2005-06 से 2008-09 के बीच चार वर्षों में पूरी होने वाली प्रस्तावित भारत-निर्माण योजना के 6 घटकों में शामिल है। भारत-निर्माण के पेयजल घटक के तहत सीएपी 99 की सभी बाकी बची बस्तियों को शामिल करने का प्रस्ताव है। वर्ष 2008-09 तक उन सभी 3 लाख बस्तियों को जिनमें पेयजल आपूर्ति की मात्रा घट गई हैं, के साथ-साथ गुणवत्ता में कमी वाली सभी बस्तियों को भी कार्यक्रम का लाभ पहुँचाने का लक्ष्य है। भारत निर्माण के पेयजल घटक में विद्यालयों को शामिल नहीं किया गया है। फिर भी, इरादा है कि मार्च 2007 तक ग्रामीण क्षेत्रों के सभी मौजूदा विद्यालयों में पेयजल और स्वच्छता की सुविधाएँ उपलब्ध करा दी जाएँ।

सुधार कार्यक्रम


ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सरकार आमतौर पर निःशुल्क पेयजल उपलब्ध कराती है। ग्रामीण जलापूर्ति की प्रणालियाँ चलाई तो जाती हैं परन्तु इनका स्वामित्व सरकारी विभागों के अधीन ही रहता है। परन्तु आजकल पानी एक दुर्लभ संसाधन होता जा रहा है और पीने के लिए काम आने वाला इसका भाग सबसे अन्त में प्राप्त होता है। जिन समुदायों को अपने भरण-पोषण हेतु पेयजल की आवश्यकता होती है, उनका योजनाओं के प्रकार, सन्धारण और उपलब्ध जल के उपयोग के अनुपात पर कोई दखल नहीं होता। इसमें एक प्रमुख बाधा स्थापित प्रणालियों की परिचालन एवं साधारण (ओएण्डएम) लागत रही है, जिसका पानी की आपूर्ति की धारणीयता पर प्रभाव पड़ता है। ओएण्डएम लागत स्थापित योजनाओं की कुल लागत का 15 प्रतिशत होता है। चूँकि योजना सरकारी विभाग द्वारा संचालित होती है, इसलिए सम्भव है कि ओएण्डएम की यह लागत किसी खास योजना के लिए इस्तेमाल न की गई हो। देश में स्थापित जलापूर्ति योजनाओं की ओएण्डएम की कुल अनुमानित लागत लगभग 67 अरब 50 करोड़ रुपए वार्षिक होती है। ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के तहत 37 लाख हैण्डपम्पों और एक लाख, पाँच हजार नल जल योजनाओं के जरिये पानी की आपूर्ति की जाती है। ओएण्डएम के लिए प्रतिवर्ष कुल 6 अरब रुपए ही उपलब्ध होते हैं। इसलिए उपलब्ध राशि और वास्तविक व्यय में भारी अन्तर रहता है। इसके अलावा योजनाओं की परिसम्पत्ति एक विशाल क्षेत्र में फैली होती है। सरकारी विभाग कर्मचारियों, बजट और प्रेरणा के अभाव में इन सभी परिसम्पत्तियों की निगरानी और सन्धारण करने की स्थिति में नहीं हैं। ग्रामीण लोग इन परिसम्पत्तियों को सरकारी सम्पत्ति मानते हैं और इनके सन्धारण के लिए आगे नहीं आते जिससे यह प्रणाली ज्यादा समय तक ठीक से नहीं चल पाती।

ग्रामीण पेयजल और स्वास्थ्य रक्षा चित्र 4चूँकि ग्रामीण पेयजल आपूर्ति क्षेत्र में पर्याप्त निवेश किया गया है और भारी-भरकम बुनियादी ढाँचा और प्रणालियाँ लगाई जा चुकी हैं, यह आवश्यक है कि वे बराबर ठीक-ठाक काम करती रहें। अतः केन्द्र सरकार ने अब माना है कि :

1. लक्ष्य आधारित वे प्रस्ताव जिनमें वास्तविक उपभोक्ताओं की वास्तविक पद्धतियों और वरीयताओं पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, उनके स्थान पर माँग-आधारित प्रस्ताव जिसमें उपभोक्ताओं की इच्छानुसार सेवा दी जाती हो और जिसके लिए वे खर्च करने को तैयार हों, लागू करने की तुरन्त जरूरत है।
2. आगे यह भी परिचालन और सन्धारण के खर्च और कलपुर्जों की बदली की लागत की पूरी वसूली से योजनाओं को दीर्घावधि तक चलाए जाने में वित्तीय समस्याएँ आड़े नहीं आएगी।

इन धारणाओं पर अमल करने हेतु केन्द्र सरकार ने 1999 में क्षेत्र सुधार परियोजनाएँ शुरू की। जून 2002 तक 26 राज्यों के 67 जिलों में मार्गदर्शी परियोजनाएँ शुरू की गईं। परियोजनाओं पर पूरी तरह अमल करने के लिए तीन वर्ष का समय दिया गया और 2002 के दिसम्बर में 'स्वजलधारा' के माध्यम से पूरे देश को इन सुधारों के अधीन ले लेने के बाद, 2004-05 में क्षेत्र सुधार परियोजनाओं को स्वजलधारा के साथ मिला दिया गया।

स्वजलधारा के प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं :

1. माँग जनित और समुदाय की भागीदारी वाला प्रस्ताव हो।
2. पंचायतें/समुदाय ही सभी पेयजल योजनाओं का नियोजन, क्रियान्वयन, परिचालन, सन्धारण और प्रबन्धन करें।
3. उपभोक्ताओं के कुल लागत का 10 प्रतिशत शुरू में ही नकद देना चाहिए। ओएण्डएम का पूर्ण व्यय भी उपभोक्ता वहन करेंगे। माँग बढ़ने पर कुल लागत के व्यय की हिस्सेदारी का अनुपात भी उसी के अनुरूप बढ़ना चाहिए। समुदाय की भागीदारी नकद हो सकती है या फिर श्रम, भूमि और सामग्री के रूप में। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों, अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए यह लागू नहीं होगा।
4. पेयजल परिसम्पत्तियों का पूरा स्वामित्व ग्राम पंचायतों के पास होना चाहिए।
5. परिचालन और सन्धारण पूरी तरह से उपभोक्ता/पंचायतें करेंगे।
6. सुधारों के सिद्धान्तों को अपनाने वाली ग्राम पंचायतों और विकास खण्डों को स्वजलधारा परियोजनाओं में शामिल होने का पात्र माना जाएगा।
7. लाभान्वित समूह एक पंजीकृत सोसायटी होगी और उसे अपना प्रस्ताव ग्राम अथवा जनपद पंचायत के माध्यम से भेजना होगा।

केन्द्र सरकार ने 1999 से और उसके बाद शुरू की गई सुधार प्रक्रिया को संस्थागत रूप देने की पहल की है। यह पहल पानी की आपूर्ति और स्वच्छता, दोनों क्षेत्रों पर लागू होती है। इस प्रक्रिया में, राज्य सरकारों की सुधार प्रक्रिया को अपनाना होगा और कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मुख्य भूमिका निभानी होगी और उत्तरदायित्व वहन करना होगा। नतीजतन, प्रत्येक राज्य को अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासकीय और राजनीतिक व्यवस्था के अनुसार एक निश्चित समय-सीमा में योजना तैयार करने की आवश्यकता होगी। समझौते में राज्यों में सुधारों को गति देने के लिए विभिन्न पड़ावों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाएगा। समझौते में राज्यों को निम्नलिखित बातों के लिए वचन देना होगा :

1. परियोजना में पूर्ण भागीदारी को सुनिश्चित करने हेतु पेयजल योजना के चयन, नियोजन, अभिकल्पन, क्रियान्वयन, वित्तीय नियन्त्रण और प्रबन्धन व्यवस्थाओं के माध्यम से निर्णायक भूमिका निभाने वाले ग्रामीणों के सशक्तीकरण पर आधारित सामुदायिक भागीदारी के साथ-साथ माँग पूरी करने वाले अनुकूलनीय प्रस्ताव को अपनाना।
2. राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं को परिसम्पत्तियों के हस्तान्तरण और उनके द्वारा प्रबन्धन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विधायी उपाय करेंगी।
3. सेवा प्रदाता और नीति निर्धारक निकाय की भूमिका को अलग-अलग रखा जाएगा।
4. सेवा प्रदाता : पंचायती राज संस्थाओं/वीडब्ल्यूएससीज (ग्रामीण जलापूर्ति समुदायों/केन्द्रों) को प्रदत्त सेवा के लिए प्रभार लेने का अधिकार दिया जाएगा। इसमें उपभोक्ताओं से पानी का प्रभार वसूलने और उसकी दर तय करने के साथ-साथ पंचायती राज संस्थाओं/वीडब्ल्यूएससीज की परिचालन और सन्धारण की शत-प्रतिशत जिम्मेदारी भी शामिल होगी।
5. नीति प्रदाता : सरकार के नोडल विभाग की भूमिका को प्रत्यक्ष सेवा देने वाले से बदल कर नीति-निर्माता, रणनीतिक नियोजन, समन्वयन, सामुदायिक भागीदारी की व्यवस्था और समर्थन करने वाले के रूप में बदलना।
6. निर्णय प्रक्रिया, परिसम्पत्तियों के नियन्त्रण और प्रशिक्षण, सभी में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना।
7. प्रत्येक जलापूर्ति योजना में स्रोतों के सुदृढ़ीकरण, संरक्षण उपाय, वर्षाजल संचय और भूजल रिचार्जिंग प्रणाली शामिल होगी, जिससे स्रोत दीर्घावधि तक काम करता रहे।
8. निम्नलिखित कोष की स्थापना और उसके लिए धन की व्यवस्था राज्य करेगा।
9. परिचालन एंव संधारण कोष : मौजूदा परिसंपत्तियों को पंचायती राज संस्थाओं को सौंपने से पूर्व उनके सन्धारण और पुनर्जीवन तथा ग्राम पंचायतों के परिचालन एवं सन्धारण कोष को एकबारगी प्रोत्साहन राशि प्रदान करने के लिए योजना की कुल लागत की 10 प्रतिशत राशि केन्द्र और राज्य, दोनों प्रदान करेंगे।

स्वच्छता


पुनर्गठित सीआरएसपी के तहत समुदाय नीत और लोक केन्द्रित दृष्टिकोण अपनाते हुए 1 अप्रैल, 1999 से सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) शुरू किया गया। टीएससी में राज्यवार आवण्टन के स्थान पर माँग जनित दृष्टिकोण को अंगीकार किया गया है। यह कार्यक्रम स्वच्छता सुविधाओं की माँग बढ़ाने के लिए सूचना, शिक्षा और सम्प्रेषण पर जोर देता है। यह कम उम्र से ही स्वच्छता और स्वास्थ्य रक्षा के बारे में अभिवृत्ति और व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए विद्यालयों में स्वच्छता और स्वास्थ्य विज्ञान की प्रासंगिक शिक्षा पर भी जोर देता है।

टीएससी क्रियान्वयन व्यवस्था


केन्द्र और सम्बन्धित राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारों के समर्थन से विभिन्न राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के 540 जिलों में टीएससी पर अमल हो रहा है। राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों, चुने हुए जिलों के लिए टीएससी परियोजना चलाते हैं ताकि वे केन्द्रीय सहायता के लिए दावा पेश कर सकें। किसी भी टीएससी पर अमल के लिए लगभग तीन से पाँच वर्ष का समय लगता है। जिला स्तर पर जिला पंचायतें परियोजना पर अमल करती हैं। यदि किसी कारणवश, जिला पंचायत अस्तित्व में नहीं है, तो जिला जल एंव स्वच्छता मिशन टीएससी पर अमल कर सकता है। इसी प्रकार ब्लॉक और पंचायत स्तरों पर पंचायत समितियों और सम्बन्धित ग्राम पंचायतों को टीएससी के क्रियान्वयन में शामिल किया जाता है।

ग्रामीण स्वच्छता उन्नयन के लक्ष्य


1. 2010 तक सभी घरों का कवरेज : जहाँ तक स्वछता का प्रश्न है, दसवीं योजना के अन्त तक स्वच्छता कार्यक्रम से अछूते लोगों की संख्या घटाकर आधा करने के सहस्राब्दि विकास लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जैसा कि भारत सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने निर्णय लिया है 2010 तक देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में टीएससी परियोजनाओं पर पूर्णरूप से अमल करना है। इस उद्देश्य के लिए टीएससी का आकार बढ़ाया जा रहा है ताकि बाकी बचे जिलों में टीएससी परियोजनाओं को 2005-06 तक मंजूरी दी जा सके। इससे लक्ष्य के अनुसार योजना के प्रभावी और धारणीय क्रियान्वयन में लगने वाले समय की बाधा को दूर किया जा सकेगा।

2. वर्ष 2006-07 तक सभी विद्यालयों में कार्यक्रम लागू करना : टीएससी क्रियान्वयन के अंश के रूप मंस शौचालय सुविधाओं वाले सभी ग्रामीण विद्यालयों को 2006-07 के अन्त तक इस कार्यक्रम का लाभ पहुँचाना है। ग्रामीण क्षेत्रों के उन सभी विद्यालयों को इस कार्यक्रम के तहत ले लेने का लक्ष्य है जिनके पास टीएससी के अधीन धनराशि उपलब्ध हैं। स्वयं के संसाधनों वाली निजी शालाओं में भी यह कार्यक्रम लागू किया जाएगा। सभी शालाओं में बालिकाओं के लिए विशेष प्रावधान किए जाएँगे। सभी विद्यालयों में बालिकाओं के लिए सार्वजनिक सुविधाओं के पृथक खण्ड बनाए जाएँगे। टीएससी के अन्तर्गत पाँच लाख, पाँच हजार शौचालय खण्डों को स्वीकृति पहले ही दी जा चुकी है। अनुमान है कि अगले दो वर्षों में बाकी बची शालाओं में शौचालय खण्ड का काम शुरू हो जाएगा। यह कार्यक्रम केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के शिक्षा विभाग के सर्व शिक्षा अभियान के सहयोग से चलाया जा रहा है।

3. सभी आंगनवाड़ियों का कार्यक्रम में समावेश : एक अन्य महत्त्वपूर्ण गतिविधि के अन्तर्गत सभी आंगनवाड़ियों में छोटे बच्चों के अनुकूल शौचालयों की व्यवस्था करना है। यह लक्ष्य भी 2005-06 के अन्त तक पूरा कर लिया जाएगा।

अनुमान है कि आज की तारीख में 38 प्रतिशत ग्रामीण घरों में शौचालयों की सुविधा उपलब्ध है। पिछले पाँच वर्षों में किए गए कार्य का विवरण अधोलिखित है :

योजना परिव्यय


10वीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत योजना आयोग ने अब तक कुल 22 अरब 30 करोड़ रुपए की राशि आवण्टित की है। वर्षवार ब्यौरा तालिका-5 में दिया गया है।

तालिका 4: स्वच्छता अभियान का वर्षवार कवरेज

क्र.

वर्ष

वर्षात तक कवरेज (लगभग)

1.

2005-06

38%

2.

2004-05

32%

3.

2003-04

27.5%

4.

2002-03

23%

5.

2001-02

22.5%

 

तालिका 5: स्वच्छता के लिए राशि (करोड़ रुपए में)

क्र.सं.

वर्ष

बजट प्रावधान

जारी राशि

1.

2002-03

165

141

2.

2003-04

165

205*

3.

2004-05

400

368

4.

2005-06

700

660.71**

5.

2006-07

800

 

* 40 करोड़ रुपए पुनरीक्षित अनुमान के स्तर पर अतिरिक्त दिए गए थे।

** 31 मार्च, 2006 तक जारी वास्तविक राशि

 

प्रमुख पहल


राज्यों में टीएससी के क्रियान्वयन को सुधारने के लिए विभाग ने कई कदम उठाए हैं। कुछ प्रमुख प्रयासों का विवरण निम्नानुसार है :

1. निर्मल ग्राम पुरस्कारों की शुरुआत : समग्र स्वच्छता अभियान को बल प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार ने पूर्णरूपेण स्वच्छ और खुले मैदान में मल त्यागने की क्रिया को समाप्त करने हेतु ग्राम पंचायतों, विकास खण्डों और जिलों के लिए वर्ष 2003 में 'निर्मल ग्राम पुरस्कार' के नाम से एक प्रोत्साहन योजना शुरू की है। प्रोत्साहन स्वरूप 10 हजार से लेकर 50 लाख रुपए तक के पुरस्कार दिए जाते हैं। यह योजना न केवल पंचायती राज संस्थाओं के लिए है, बल्कि उन व्यक्तियों और संगठनों के लिए भी है जो पूर्ण स्वच्छता के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2004-05 में 40 पंचायती राज संस्थाओं ने पूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम अपनाने के लिए यह पुरस्कार प्राप्त किए। वर्ष 2005-06 में 14 राज्यों की 759 ग्राम पंचायतों और 9 विकास खण्डों ने राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से 23 मार्च, 2006 को निर्मल ग्राम पुरस्कार प्राप्त किया। इसने टीएससी के कार्यान्वयन को जबरदस्त बढ़ावा दिया है।

2. शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला और बाल कल्याण, आदिम जाति कल्याण, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभागों के बीच अन्तर्क्षेत्रीय समन्वय के साथ-साथ विद्यालयों में भी सफाई कार्यक्रम पर विशेष बल दिया गया है। इसका प्रभाव विद्यालयों में स्वास्थ्य विज्ञान की बेहतर शिक्षा और शौचालयों के निर्माण में पर्याप्त सुधार के रूप में देखने में आया है। स्कूलों में ओएण्डएम गतिविधियों के बेहतर संचालन में भी मदद मिली है।

3. सुदृढ़ निगरानी प्रणाली : टीएससी परियोजनाओं पर वेब आधारित ऑनलाइन मॉनीटरिंग प्रणालियों द्वारा नजर रखी जाती है। परियोजना क्रियान्वयन एजेंसियों की मासिक रिपोर्टों, ग्रामीण विकास मन्त्रालय के क्षेत्रीय अधिकारियों और समीक्षा मिशनों की समय-समय पर होने वाले दौरों से भी कार्यक्रम की खबर रखी जाती है। जिला स्तरीय मॉनीटरिंग एजेंसियों और ग्रामीण विकास मन्त्रालय की मॉनीटरिंग डिवीजन के राष्ट्रीय स्तर के मॉनीटरों की सेवाएँ भी टीएससी परियोजनाओं की मॉनीटरिंग के लिए ली जाती है। जिला स्तरीय मॉनीटर प्रक्रिया के प्राचलों और परिणामों का स्वतन्त्र रूप से मॉनीटरिंग करते हैं और ऑनलाइन मॉनीटरिंग प्रणाली के जरिये अपनी रिपोर्ट भेजते हैं।

4. आईईसी और क्षमता निर्माण : यह कार्यक्रम आईईसी गतिविधियों और विभिन्न दावेदारों की क्षमता निर्माण पर जोर देता है। इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक राज्य में संचार एवं क्षमता विकास एककों की स्थापना की जा रही है। दूरदर्शन और आकाशवाणी के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार अभियान शुरू किया गया है। जमीनी स्तर पर अन्तर्व्यक्ति संचार पद्धति के सहारे कार्यक्रम को प्रसारित किया जा रहा है। क्षमता निर्माण के लिए देश भर में संसाधन केन्द्रों का जाल बिछाया जा रहा है। इसके लिए संसाधन केन्द्रों की क्षमता विकास का काम हाथ में लिया गया है। कारीगरों, मिस्त्रियों, पंचायती राज संस्थाओं, शिक्षकों, प्रचारकों और अन्य भागीदारों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

5. टीएससी परियोजनाओं को तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन : टीएससी कार्यक्रमों को अमल में लाने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इसके लिए समय-समय पर क्रियान्वयन एजेंसियों को मार्गदर्शन के लिए तकनीकी नोट्स जारी किए जाते हैं। अब तक जारी तकनीकी नोट्स में से कुछ का उल्लेख नीचे किया जा रहा है :

(क) विद्यालय एवं आंगनवाड़ी डिजाइन मानक और विकल्प
(ख) विद्यालय जलापूर्ति, स्वच्छता और स्वास्थ्य रक्षा विज्ञान
(ग) टीएससी जिलों के लिए सम्प्रेषण योजनाएँ
(घ) राष्ट्रीय स्तर पर टीएससी के लिए रणनीतिक सम्प्रेषण
(ङ) टीएससी और क्षमता निर्माण गतिविधियों और मापदण्ड पर तकनीकी नोट
(च) माँग सृजन और सामुदायिक भागीदारी पर पुस्तिका।

(लेखिका भारत सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय में पेयजल आपूर्ति विभाग की सचिव हैं)

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