गर्मी का नुस्खा : जल ही जीवन है

19 Apr 2016
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शीतल पेय यानी कार्बोनेटेड पेय में मिला शक्कर शरीर में पहले से मौजूद पानी को भी गुर्दे के जरिए तेजी से निकालने लगता है। यही वजह है कि शुगर के मरीज को बार-बार पेशाब जाना पड़ता है। खून में शक्कर की मात्रा बढ़ते ही पेशाब बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। लिहाजा शरीर हाइपोहाइड्रेटेड अवस्था में पहुँच जाता है। यानी शरीर को पानी की जरूरत तो होती है, पर महसूस नहीं होती। शीतल पेय में मौजूद कैफीन शरीर के ताप नियंत्रण के प्राकृतिक सन्तुलन को भी खराब कर देता है। नई दिल्ली, 16 अप्रैल। चिलचिलाती धूप में दाखिले के लिये एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज के चक्कर लगाते-लगाते रोशन और उसके दोस्तों के पसीने छूट रहे थे। गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी तो सोचा कोल्डड्रिंक पी ली जाये, कुछ तो राहत मिलेगी। राहत तो मिली नहीं, उल्टा रोशन और उसके दोस्त लू का शिकार हो गए। तबीयत इतनी बिगड़ी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ गई। यह घटना भले ही पिछली गर्मी की है लेकिन गर्मी की तपन को महसूस करने के लिये इसका जिक्र जरूरी है क्योंकि इस बार भी गर्मी अचानक ही बढ़ गई है।

गर्मी बढ़ने के साथ ही बाजारों में शीतल पेय (कोल्डड्रिंक) की माँग में भी इजाफा हो गया है क्योंकि आमतौर पर माना जाता है कि शीतल पेय शरीर को गर्मी से राहत देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शीतल पेय शरीर में पानी के स्तर को बढ़ाने और तापमान कम करने के बजाय पानी को कम कर देता है। इसमें मिला कैफीन तापमान से तालमेल बनाने की शरीर की क्षमता को भी प्रभावित करता है। इसलिए गर्मी में शक्कर वाला पेय लेने के बजाय साधारण पानी पीना ज्यादा बेहतर है। स्वास्थ्य व पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो गर्मी व सर्दी के हिसाब से शरीर को ढालने की प्राकृतिक व्यवस्था होती है। उसके अनुरूप रहने से मौसमी प्रभाव से बचाव और विपरीत रहने से बीमारी होती है।

लोगों की सेहत पर पर्यावरण के प्रभाव के विशेषज्ञ डॉ. टीके जोशी ने बताया कि मानव शरीर का गर्मी व सर्दी में बचाव का एक सूत्र होता है कि बाहर का तापमान कुछ भी हो, कुल मिलाकर शरीर का तापमान 37 डिग्री फारेनहाइट बना रहे। यह काम शरीर अपने थर्मो स्टेट यानी दिमाग हाइपोथैलेमस से करता है। दिमाग की यह ग्रंथि शरीर के थर्मोरेग्युलेटर (तापमान सन्तुलन) का नियंत्रण करती है।

मानव शरीर का भीतरी तापमान अगर 45 डिग्री सेल्सियस पहुँच जाये तो मौत निश्चित है क्योंकि इतने तापमान पर शरीर का प्रोटीन उबल जाता है। लिहाजा दिमाग तापमान नियंत्रण पर काम करता है। गर्मी बढ़ने से शरीर का तापमान शरीर में ऑक्सीजन और पानी के साथ त्वचा से होने वाले वाष्पीकरण से सन्तुलित होता है। लिहाजा गर्मी बढ़ने से दिमाग को खून की आपूर्ति कम करके त्वचा की ओर बढ़ा दी जाती है। इससे दिमाग में खून के जरिए पहुँचने वाले ऑक्सीजन व पोषक तत्व कम पहुँच पाते हैं, इसलिये दिमाग थोड़ा सुस्त हो जाता है और काम करना कम कर देता है। इसलिये गर्मी में थकान, बेचैनी व चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।

इसी दिक्कत के कारण दिमाग शरीर को पानी की जरूरत का सन्देश देना भूल जाता है। व्यक्ति को जरूरत भर पानी की प्यास नहीं लग पाती और यही गड़बड़ी उसे लू लगने या ऐसी ही किसी दूसरी बीमारी की चपेट में ला देता है। लिहाजा गर्मी में प्यास लगे या न लगे, हर घंटे एक गिलास पानी जरूर पिएँ। पानी का तापमान 12 डिग्री के आसपास (यानी साधारण पानी) हो। इससे लू लगने के 95 फीसद मामले रोके जा सकते हैं।

डॉ. जोशी ने बताया कि यह भी मिथक है कि शीतल पेय से गर्मी से राहत मिलती है। सच तो यह है कि शीतल पेय यानी कार्बोनेटेड पेय में मिला शक्कर शरीर में पहले से मौजूद पानी को भी गुर्दे के जरिए तेजी से निकालने लगता है। यही वजह है कि शुगर के मरीज को बार-बार पेशाब जाना पड़ता है। खून में शक्कर की मात्रा बढ़ते ही पेशाब बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। लिहाजा शरीर हाइपोहाइड्रेटेड अवस्था में पहुँच जाता है। यानी शरीर को पानी की जरूरत तो होती है, पर महसूस नहीं होती। शीतल पेय में मौजूद कैफीन शरीर के ताप नियंत्रण के प्राकृतिक सन्तुलन को भी खराब कर देता है। ऐसी स्थिति में भी लू लग जाती है। ऐसे में शीतल पेय के बजाय नारियल पानी बेहतर विकल्प है। नींबू पानी या छाछ भी ले सकते हैं।

उन्होंने बताया कि कुछ दवाएँ भी पसीना बनने की प्रक्रिया को कम देती हैं। ऐसे मरीजों को अपने डॉक्टर से राय लेनी चाहिए कि वे गर्मी में कैसे रहें। एसी में रहने की आदत और कंक्रीट के घर भी शरीर की ताप नियंत्रण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। गर्मी में शरीर में नमक का सन्तुलन भी जरूरी है। इसीलिए पहले सॉल्ट टैबलेट से भी गर्मी की बीमारी का इलाज किया जाता था। नमक की अधिकता से होने वाली दिक्कतों के चलते इसे बन्द किया गया। हालांकि अब विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि शक्कर ज्यादा घातक है।

जीटीबी अस्पताल में सहायक प्रोफेसर आशीष गोयल ने बताया कि गर्मी में लू के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। गर्मी में संक्रमण का स्तर भी बढ़ जाता है जिससे हैजा, डायरिया, टायफाइड सहित कई बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। गर्मी में बुजुर्गों और बच्चों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है इसलिये उनके बीमारियों की चपेट में आने का खतरा ज्यादा होता है।

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