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घाट की नाव

घाट की नाव (Ferry boat) नदी को पार करने के लिये घाट पर जो नावें उपयोग में लाई जाती हैं उन्हें घाट की नाव कहते हैं।

यातायात की किस्म के अनुसार नावें लोहे या लकड़ी की बनी होती हैं। नौका की पाटन काठ की बनाई जाती है। इसके चारों ओर हटाए जा सकनेवाले जँगले लगे रहते हैं।

घाट की नावों को साधारणतया नदी की धारा के सहारे खेया या खींचा जाता है। घाट की नाव को चलाने की तीन रीतियाँ हैं: पहली, लटकाए हुए, मोटे तार के रस्से द्वारा ; दूसरी, झूलते केबल द्वारा और तीसरी, जलमग्न केबल द्वारा। लटकाए केबल में एक केबल नदी के आर पार खिंचा रहता है और दोनों किनारों पर खंभों या कैंचीनुमा पायों से बँधा रहता है। केबल ऐसे लटकाया जाता है कि उसका मध्य भाग बाढ़ के पानी के तल से ऊँचा रहे। केबल को उसके क्षमतानुसार खूब तानकर खींचना चाहिए। केबल पर एक दो पहिएवाली गरारी चलती है। गरारी और नाव दो रस्सियों से बाँध दी जाती हैं। एक रस्से की लंबाई घटाई बढ़ाई जाती रहती है, ताकि नाव लंबाई के रुख नदी के बहाव की दिशा की ओर 55 तक झुकी रहे। लौटने के लिये रस्से नाव के दूसरी ओर घुमा दिए जाते हैं।

झूलता केबल नदी की चौड़ाई का डेढ़ा या दुगुना रहता है और यह किनारे या नदी के बीच लंगर से बाँध दिया जाता है। यदि केबल लंबा होता है तो नदी के मध्य में तिरेंदों पर लगा रहता है। केबल का दूसरा सिरा ऐसी दो रस्सियों से नाव से बँधा रहता है जिनकी लंबाई परिवर्तित की जा सकती है, ताकि धारा की दिशा के साथ 55 का कोण बना रहे।

जलमग्न केबल पानी में डूबा रहता है। दो गरारियाँ ऐसे बँधी रहती हैं कि नाव नदी की धारा के साथा 55 का कोण बनाए रखे। लौटने के लिये भिन्न प्रकार की गरारियाँ लगाई जाती हैं। घाट की नावों का ऊपर वर्णन किया उपयोग भारत में बहुत वर्षों से होता आ रहा है। घाट की नावों में भी अब धीरे धीरे पेट्रोल या डीजल तेल से चलनेवाले इंजनों का प्रयोग बढ़ रहा है। (सीताराम बालकृष्ण जोशी)

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