हाथ न धोने की कीमत रुपये 69 हजार करोड़

India loses Rs. 69,000 crore a year due to infections


इंफेक्शंस से बचने के लिए जरूरी है हाथों की सफाईइंफेक्शंस से बचने के लिए जरूरी है हाथों की सफाईलखनऊ, 3 नवम्बर, 2012। भारत को हर साल 69 हजार करोड़ रुपये का नुकसान सिर्फ छोटे इंफेक्शंस की वजह से होता है। यह बात सामने आयी है लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की स्टडी ‘द लाइफब्वॉय कॉस्ट ऑफ इंफेक्शन स्टडी’ में। ये फिगर साल 2012 में भारत के 2012 के हेल्थ बजट 34,448 करोड़ रुपये से भी लगभग दो गुना है। ऐसे में हमारे देश में लोगों की हाइजीन पर एक बड़ा सवालिया निशान लगता है।

हाइजीन पर ध्यान देने की जरूरत


इस हैरान करने वाली फाइंडिंग्स में बताया गया है कि छोटे-मोटे इंफेक्शंस की वजह से भारत के 38 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं। इस वजह से 162 करोड़ वर्किंग डेज प्रभावित होते हैं। अगर हम रिसर्च की माने तो जब भी फैमिली का कोई मेंबर बीमार पड़ता है तो औसतन एक बार का खर्च लगभग 977 रुपये आता है जो कि सलाना 8814 रुपये प्रति परिवार पहुंच जाता है।

हिंदुस्तान युनिलीवर के सीईओ नितिन प्रांजपे ने बाताया कि इस स्टडी के अनुसार पांच से पंद्रह साल की उम्र वर्ग के तीन में से दो बच्चे को हर दो महीने में एक इंफेक्शन जरूर होता है। इसकी वजह से वो स्कूल नहीं जा पाते।

कारगार है साबुन से हाथ धुलना


डॉक्टर्स मानते हैं कि इस तरह के इंफेक्शंस को दूर रखने के लिए रेगुलर साबुन से हाथ धोना कारगार साबित हो सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सीनियर मेम्बर डॉ. पीके गुप्ता कहते हैं। साबुन से हाथ धुलने की सलाह भले ही पुरानी लगे पर है कारगर हमारे देश में आज भी लोगों में खाने से पहले हाथ धुलने का चलन नहीं है। इस वजह से कई कम्युनिकेबल डिजीजेज फैलती हैं। हम लोगों को रिकमेंड करते हैं कि हाथों को कम से कम 30 सेकेंड से एक मिनट तक अच्छी तरह साबुन से धोएं।

आजकल जो भी पेशेंट्स आ रहे हैं उनमें से 90 फीसदी तरह-तरह के इंफेक्शन के कारण होने वाली बीमारियां लेकर आ रहे हैं और इनमें से ज्यादातर बच्चे हैं। सिर्फ हाथ धोने से ही मसला हल नहीं हो जाता। हाथ अच्छी तरह से धुलें और नाखूनों को ज्यादा बढ़ने न दें क्योंकि नेल्स में अक्सर बैक्टीरिया जमा हो जाते हैं जो कि मुंह के रास्ते हमारे पेट में जाते हैं। इसके साथ ही हमें ध्यान देना चाहिए कि हम जो भी फल या सब्जी खाएं उसे पहले अच्छे से साफ करें।

इससे बैक्टीरिया रह जाने के चांसेज काफी कम हो जाते हैं। साबुन वही चुनें जिसमें कार्बोलिक एसिड हो ये एक तरह का डिसइंफेक्टेंट होता है, जो कि बैक्टीरिया को पूरी तरह से मार देता है।

इंफेक्शन है बड़ा कारण


बढ़ते इंफेक्शन के केसेज को देखकर डॉक्टर्स मानते हैं कि लगभग 46 लाख की आबादी वाले लखनऊ शहर में लगभग 90 फीसदी पेशेंट्स इंफेक्शन के चलते अलग-अलग बीमारियों को लेकर आते हैं। नीचे दिए गए आंकड़ें बताते हैं कि किस एज ग्रुप में कितने परसेंट लोग इंफेक्शंस से बीमार पड़ते हैं।

6 महीने से 2 साल

92 परसेंट

2 साल से 5 साल

90 परसेंट

5 साल से 12 साल

88 परसेंट

12 साल से 20 साल

80 परसेंट

20 साल से 35 साल

75 परसेंट

 



मिडिल क्लास है सबसे ज्यादा इंफेक्टेड


डॉक्टर्स के अनुसार जब बात इम्यूनिटी की आती है तो हमें ये बात जान लेनी चाहिए कि लोअर क्लास की इम्यूनिटी सबसे ज्यादा होती है, क्योंकि वो बचपन से ही अनहाईजीनिक कंडीशंस के आदी होते हैं। वहीं अपर क्लास शुरुआत से ही हाइजीन पर खास ध्यान देता है, लेकिन मध्यम वर्ग में एक ओर जहां हाइजीन पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर इम्यूनिटी भी कोई खास अच्छी नहीं होती है। डॉ. पीके गुप्ता के अनुसार, ज्यादातर बीमारियां इंफेक्शंस के जरिए ही होती हैं। इसमें ज्यादातर पेशेंट्स मध्यम वर्ग के होते हैं क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम बहुत ज्यादा डेवलप्ड नहीं होता है। इसलिए हल्का सा इंफेक्शन भी ऐसे में काफी जानलेवा और गंभीर रूप ले सकता है।

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