हाथ उठें निर्माण में

22 Sep 2009
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आज देश में विश्वास और विश्वसनीयता कासंकट पैदा हो गया है। दूर-दराज़ के ग्रामीणआदिवासी क्षेत्रों में तो एकता का यह सूत्रा बहुतही कमज़ोर है। हम सभी को अपने ग्रामीण,आदिवासी भाई-बहनों की ओर हाथ बढ़ाना है,उनके दुख-दर्द, उनकी वेदना को समझना हीनहीं, अनुभव भी करना है। विकास की एक नवीनपरिभाषा स्थापित करनी है। इस सृजनात्मक संघर्षमें देश के युवा वर्ग का नेतृत्व रहेगा, ऐसी मेरीआशा है। इस संघर्ष में आवश्यक है उनकीकल्पना शक्ति और उनका मर्मस्पर्श, जो भारतका पुननिर्माण करेंगे।

भारत के गांव एक मां की तरह पूरे देश कोअपनी गोद में समाये हुए हैं। एक स्वस्थ देश केनिर्माण के लिए हमें अपनी मां की देखभाल अच्छीतरह से करनी होगी। हमें अपने ग्रामवासियों कोवह सब लौटाना होगा जो हमने उनसे छीन लियाहै -- उनका आत्मविश्वास और अपनी तकदीर पर उनका अपना नियंत्राण।

जब प्रशिक्षणार्थी ही प्रशिक्षक बन जाएगा तब हाथ बोल उठेंगे। ऐसे हाथ जो भवनों या कारखानों का ही नहीं, एक देश, एक नई संस्कृति, सम्पूर्ण मानवता का निर्माण भी करेंगे।

हाथ उठें निर्माण में, नहीं मारने, नहीं मांगने
 
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