हिमालय आत्मा में बस जाता है

22 Aug 2011
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हिमालय का एक सुंदर दृश्य
हिमालय का एक सुंदर दृश्य

बात उन दिनों की है, जब मैं इंग्लैंड में रह रहा था। उन दिनों लंदन की भीड़भाड़ और भागमभाग के बीच मुझे हिमालय बहुत याद आता था। उन दिनों हिमालय की स्मृति सबसे ज्यादा तीव्र और स्पष्ट थी। मैं उन्हीं नीले-भूरे पहाड़ों के बीच पला-बढ़ा था। हिमालय मेरी धमनियों में बह रहे रक्त के साथ प्रवाहित था और अब हालांकि मैं उससे बहुत दूर पहुंच गया था और बीच में हजारों मील लंबा समंदर, मैदान और रेगिस्तान था, लेकिन हिमालय मेरी स्मृतियों से मुक्त न हो सका। अगर आप अपनी जिंदगी के किसी भी मोड़ या मौके पर हिमालय के साथ कुछ वक्त रहे हों तो वह आपका हिस्सा हो जाता है। उससे बच निकलने का कोई उपाय नहीं। और इसी तरह लंदन में मार्च के एक दिन कोहरा इतना घना था कि वह धुंध का पहाड़ बन गया और उसके बीच लोगों की भीड़ मानो पहाड़ों के बीच से लहराती-बलखाती निकलती हुई गंगा बन गई। लंदन में तो इस कल्पना भर से संतोष करना पड़ता था। मुझे याद है वह छोटा सा पहाड़ी रास्ता, जो मेरे बेचैन, अधीर कदमों को ओक और बुरुंश के ठंडे, खूबसूरत जंगल की ओर ले गया और फिर पहाड़ी के उस सबसे ऊंचे शिखर पर, जहां तेज, ठंडी हवाएं अपने साथ बहा ले जाने को आतुर थीं।

उस पहाड़ी का नाम था- क्लाउड्स एंड यानी जहां बादल खत्म हो जाते हैं। उस पहाड़ी के एक ओर दूर तक फैले हुए मैदानी भाग का दृश्य था और दूसरी ओर बर्फ से ढंके हुए पहाड़ों की अंतहीन श्रृंखला। चांदनी से भरी हुई छोटी-छोटी पहाड़ी नदियां पर्वतों के बीच घाटियों से होकर बह रही थीं। उन नदियों के बीच-बीच में उगे हुए चावल के खेत ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो हरे रंग की मणियां जड़ी हुई हों और वहां पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर हवाएं सर-सर की आवाज करती हुई देवदार की ऊंची घनी झाड़ियों के बीच से बह रही थीं मानो देवदार को उन्होंने अपनी बांहों में समेट लिया हो। बारिश के मौसम में बादल पूरी घाटी को ढंक लेते हैं, लेकिन पहाड़ी की यह चोटी बादलों से अछूती रहती है। बादलों की धुंध के बीच यह घाटी किसी ऊंचे टापू की तरह खड़ी हुई नजर आती है। इस पहाड़ी रास्ते के एक कोने में एक पुरानी मधुशाला के कुछ टूटे-फूटे अवशेष पड़े हैं। उसकी छत तो न जाने कब की गायब हो गई और बारिश ने उसकी फर्श को पीला और मुलायम बना दिया है। यहां एक उद्यमी अंग्रेज रहा करता था, जिसने अपनी समूची जिंदगी उस पहाड़ पर ही बिताई।

वह मैदान के लोगों के लिए बीयर बनाया करता था। अब उसके घर की दीवारों में काई और झाड़-झंखाड़ का वास है। पत्थरों के नीचे एक जंगली बिल्ली ने अपना घर बना लिया है। प्यारी सी जंगली भूरी बिल्ली, बड़ी-बड़ी हरी आंखों वाली लेकिन वो बस दूर से ही मुझे ताकती रहती है, पास नहीं फटकती। इस पहाड़ी पर कोई रहता नहीं है, लेकिन गांव वाले अक्सर यहां से होकर गुजरते जरूर हैं। वे यहां अपनी भेड़ें और गायें चराने के लिए ले आते हैं। हर गाय और भेड़ के गले में एक घंटी लटकी हुई होती है। इससे चरवाहे को पता चलता रहता है कि वो कहां घास चर रही है। अब वो चरवाहा मजे से पेड़ की छाया में लेटकर आराम फरमा सकता है और स्ट्रॉबेरी का आनंद ले सकता है। बिना इस बात की परवाह किए कि जानवर कहीं भटक न जाएं। मैं कुछ चरवाहे लड़कों और लड़कियों को अच्छी तरह जानता हूं। एक चरवाहा था, जो बहुत अच्छी बांसुरी बजाता था। उसकी सुंदर मीठी धुन पहाड़ों की हवा में घुल-मिल जाती और दूर तक सुनाई पड़ती थी। मुझे देखते ही वह बांसुरी अपने होंठों से हटाए बगैर धीरे से सिर झुकाकर मेरा अभिवादन करता था।

वहां एक लड़की भी थी, जो हमेशा पशुओं के चारे के लिए घास काटती हुई दिख जाती थी। वह अपने पैरों में मोटी-मोटी पायल पहने रहती थी और कान में चांदी के लंबे-लंबे झुमके। हालांकि वह कभी कुछ बोलती नहीं थी, लेकिन जब भी वह रास्ते में कभी मुझसे मिलती तो उसके चेहरे पर सुंदर मुस्कराहट होती थी। वह कभी खुद के साथ, कभी भेड़ या घास के साथ तो कभी अपने हाथों में हंसिया लिए गाना गाती रहती थी और एक लड़का भी था, जो शहर दूध लेकर जाता था। वह अक्सर मुझसे रास्ते में टकरा जाता और फिर लंबी-लंबी बातें करता। वह कभी पहाड़ों से दूर कहीं नहीं गया था और न ही उसने कोई बड़ा शहर देखा था। वह कभी ट्रेन में भी नहीं बैठा था। मैं उसे शहरों की कहानियां सुनाता था और वह मुझे गांवों की। कैसे गांव में लोग मकई से ब्रेड बनाते हैं, कैसे मछली पकड़ी जाती है, कैसे भालू चुपके से आकर कद्दू चुरा ले जाते हैं। उसने मुझे बताया कि जब कद्दू पककर तैयार हो जाता है तो भालू चुपके से आते हैं उसे चुराने के लिए। लंदन में ये सारी चीजें मेरी स्मृतियों में बसी हुई थीं। मुझे सब कुछ याद आता था। मुझे याद आती थी, चीड़ और देवदार की महक, ओक की पत्तियां और मैपल के वृक्ष। हिमालय में विचरने वाले पक्षियों की ध्वनियां याद आती थीं। हिमालय में बसी हुई धुंध भी।

कई बार ऐसा होता है कि कोई छोटी सी घटना, बातचीत का कोई एक मामूली सा टुकड़ा अचानक हमें किसी बीते हुए की याद दिला देता है। हमें अतीत की खोह में ले जाता है। किसी ऐसी जगह जहां, उस पुरानी स्मृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती, वो बीती बातें लौट-लौटकर याद आने लगती हैं। लंदन में सोमवार की एक सुबह मैं भीड़-भड़क्के वाली एक ट्यूब ट्रेन में सफर कर रहा था। मेरे सामने एक सज्जन अखबार पढ़ रहे थे। अखबार का आखिरी पन्ना मेरी आंखों के सामने खुला हुआ था। तभी मेरी निगाह उस पन्ने पर पड़ी। उस अखबार में एक भालू का चित्र था, जिसके हाथों में कद्दू था। अचानक लंदन के गॉड्गे स्ट्रीट और टॉटेनहेम कोर्ट रोड स्टेशनों के बीच से गुजरते हुए हिमालय की वो सारी स्मृतियां, गंध, तस्वीरें और आवाजें मेरे जेहन में ताजा हो उठीं। पुराना सब कुछ याद आने लगा। हिमालय मेरे भीतर उमड़-उमड़कर फूट पड़ रहा था।

लेखक पद्मश्री से सम्मानित ब्रिटिश मूल के साहित्यकार हैं।
 

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