हो सकता है

हो सकता है! कल को तुम्हारे हरे-भरे किनारों को
बेदखल कर बनवा दिए जाएँ बड़े-बड़े शापिंगमाल
और कोई वणिज-वक्रता रोक दे तुम्हारी हवा
खड़े कर तुम्हारे आसपास ईमारतों के ढेर
यह भी हो सकता है-कल को कोई धन्नासेठ!
जोत ले तुम्हारी ज़मीन और रातोंरात वहाँ
चमचमाने लगें कई सितारों के होटल

बड़ी झील!
पूँजी की माया!! कल को हो सकता है
भोपाल के नाम में ये जो ताल की ध्वनि है
उसे बाहर करने के लिए बैठा दिया जाय कोई आयोग

होने को यह भी हो सकता है कि ये जो
बादलों का अक्स है तुम्हारे पानी में
इसकी जगह को चाँप दे कल किसी गुण्डे की
कोठी की विकराल परछाईं

कारस्तानियाँ इतनी गूढ़
कि कल को सिकुड़ जाय तुम्हारा पाट
और घाटों से लहरों के खिलखिलाने का
सिलसिला टूट जाय!

हो सकता है यह एक कवि का दुस्स्वप्न हो
हकीकत में ऐसा न हो कुछ
लेकिन! ऐसा न हो कुछ तो कितना पानीदार होगा
अपना समय और नदी, झरने-झील-तालाब पृथ्वी पर
अपनी नागरिकता को बनाए रख सकेंगे अक्षुण्ण
और आदमी की आँख का पानी भी
ठहरेगा नहीं कैसे भी अपने पानीपन में उन्नीस!

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