हवा में झूलते जहर का कहर 

3 Jul 2019
0 mins read
उद्योगों से हवा में घुलता ज़हर।
उद्योगों से हवा में घुलता ज़हर।

उद्योगों से हवा में घुलता ज़हर।

सृष्टि की शुरुआत में अक्षत, अनछुई हरी-भरी प्रकृति के बीच मानव ने आंख खोली थी, तो स्वच्छ हवा ने ही उसे सांसो की सौगात दी थी। नथुनों फेफड़ों तक उतरती ऑक्सीजन से लबरेज हवा ने ही उसके रक्त संचार को गति दी और जीवन कुलबुलाया। मगर ज्यों-ज्यों मानव का कुनबा बढ़ा, उद्योग बढ़े, वाहनों का सैलाब आया,  प्रगति के लिए पहिए ने गति पकड़ी तो चोट हवा पर हुई। ऑक्सीजन कसमसाई और हवा गंदलाई। हमारे पर्यावरण में सेंध लगाती गंदलाई हवा पर शिकंजा कसते हुए हम सांस लेना नहीं रोक सकते, पर इस हवा की गुणवत्ता को सुधार सकते हैं।

‘‘दिल में एक लहर सी उठी है, अभी कोई ताजी हवा चली है’’। कहीं शायरी में ताजी हवा के महत्व को दर्शाता यह अंदाज कल की हकीकत को बयां करता है। बिगड़ते पर्यावरण का यही हाल रहा तो पुरवइया के झोंके ताजी हवा और ऑक्सीजन तक तरस जाने की दशा आ जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट बताती है कि विश्व स्तर पर हवा इस हद तक गंदला चुकी है कि हमारी सांसों में धीमा जहर फैल रहा है। फेफड़ों में प्रदूषणकारी तत्वों की तह लग रही है, जो ‘‘स्लोडेथ’’ यानी मौत का फरमान है। रिपोर्ट बताती है कि प्रतिवर्ष 50 लाख के लगभग लोग जहरीली हवा के चुंगल में आकर समय से पहले जिंदगी को अलविदा कह जाते हैं।

जीवित ग्रह की दवा है हवा

पूरे ब्रह्मांड में अभी तक ज्ञात गृह में पृथ्वी ही हवादार है। पृथ्वी और आसमान के बीच असंख्य टन हवा भरी हुई है। हर व्यक्ति के कंधे पर हर समय औसतन 1 टन हवा का बोझ रहता है। दुनिया भर की हवा को अंदाज से तोल लिया गया है। इसके लिए एक इकाई तैयार की गई है, जिसमें हवा का भार प्रति वर्ग इंच लिया गया है, लेकिन अलग-अलग जगहों पर यह भार अलग-अलग होता है - जैसे समुद्र के किनारों की बात करें जो यहां हवा का भार 14.7 पाउंड प्रतिवर्ग इंच पाया गया है। जैसे-जैसे हम समुद्र तल से ऊपर बढ़ते हैं, हवा का यह भार कम होता जाता है। जैसे दस हजार फीट की ऊंचाई के पहाड़ों पर यह भार 10 पाउंड प्रति वर्ग इंच होता है, जबकि एवरेस्ट पर यह भार 4.05 प्रतिवर्ग इंच रह जाता है। मोटे तौर पर देखा जाए तो यह हवा दो गैसों से मिलकर बनी है। इसमें 78 प्रतिशत का बड़ा अंश नाइट्रोजन का है और 21 प्रतिशत ऑक्सीजन है। इसके अलावा इसमें कार्बन डाइऑक्साइड, ऑर्गन भी कुछ मात्रा में समाई हुई है। यही गैस हैं जो हवा में बढ़त लेते हुए प्रदूषण को जन्म देती हैं। जैसे यदि हमारे चारों ओर की हवा में 0.05 प्रतिशत तक कार्बन डाइऑक्साइड है, तो हम इसे झेल लेंगे। मगर इसकी सांद्रता 5 से 10 प्रतिशत तक बढ़ जाए तो यह देह के लिए खतरा बन जाती है। यही नहीं हमारे स्वास्थ्य पर पलीता लगा रही और भी गैसें इस पर्यावरण में हैं। मसलन ‘ईंधन पावर संयंत्र‘ आदि से पैदा होती सल्फर डाइऑक्साइड, कम ऑक्सीजन वाले ईंधन से पैदा कार्बन मोनोऑक्साइड, वाहन ईंधन दहन का परिणाम नाइट्रोजन ऑक्साइड, फ्रिज, एसी जैसे आधुनिक साधनों की देन क्लोरोफ्लोरो कार्बन इसी में लैड और धातुएं आदि भी हवा को खराब करती नजर आती हैं। पृथ्वी से कोई 30-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर ट्राई ऑक्सीजन यानी ओजोन गैस भी पाई जाती है, जो एक छतरी-सी तन कर हमें पराबैंगनी किरणों से बचाती है।

हवा में तैरते नन्हे कण भी बड़ा कहर ढाते हैं। यह कण एयरोसॉल हैं। आमतौर पर एक माइक्रोन से कम आकार के कण एयरोसॉल हैं। धुए में व्याप्त एयरोसॉल 10 माइक्रोन तक देखे गए हैं। यह सूक्ष्म कण मानव स्वास्थ्य को तो गंभीर हानि पहुंचाते ही है, मौसम की चाल भी बदलने की क्षमता भी रखते हैं। यह गण हवा के सहारे लंबी दूरी तय कर लेते हैं। इससे जुड़कर चलती धूल भरी आंधियां जहां पृथ्वी के पर्यावरण को बर्बाद करती जाती है, वहीं यह कण पत्थर तक को काट देते हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट बताती है कि यह बारीक कण हवा को इस हद तक प्रदूषित कर डालते हैं कि जीव धारियों को सांस लेने में परेशानी होती है। इसकी गंभीरता मृत्यु का कारण बनती है। वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार एयरोसॉल का यह कहर उनके आकार और आकृति के अलावा हवा में मौजूद उनकी सघनता पर भी निर्भर करता है।

जब प्रकृति करती है प्रदूषण

मानव जनित वायु प्रदूषण की जानकारी आज आम हो गई है मगर यह हैरानी की बात है कि स्वयं प्रकृति भी प्रदूषणकारी तत्वों से हवा को प्रदूषित करती है। इसमें मोटे तौर पर वन ज्वाला, ज्वालामुखी विस्फोट, पृथ्वी के अंदर की चट्टानों में रेडियोधर्मी पदार्थों से निकलती रेडॉन समूह की जैसे प्रमुख हैं। बाकी बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भी परोक्ष रूप से प्रदूषण होता है। विश्व स्तर पर वन ज्वाला की घटनाएं आम हैं। इसमें वृक्षों और साथ की अन्य वनस्पतियों का स्वयं जल उठाने से पर्यावरण में भारी मात्रा उष्मा और प्रदूषण तत्व भरी गैस उत्पन्न होती है। साथ ही क्षेत्र विशेष में गरमाहट भी बढ़ती है। विश्व भर में 500 से अधिक ज्वालामुखी पाए जाते हैं। इनका फटना प्राकृतिक रूप से एक विनाशकारी प्रक्रिया है। आग का दरिया बहुत कुछ साथ लाता है। इसका ताप आसपास की वनस्पति को पूरी तरह झुलसा देता है। परिणाम स्वरूप भारी मात्रा में नुकसानदायक गैसें निकलती हैं। जो पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं। वैज्ञानिक विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि ज्वालामुखी धूल में 0.25 मिलीमीटर तक व्यास के कण होते हैं, जो वातावरण में जाते हैं और प्रदूषण का कारण बनते हैं। ज्वालामुखी विस्फोट के साथ कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रदूषणकारी गैसों से बाहर आती है, जो वायु प्रदूषण का मुख्य कारक गैसें हैं।

घर में घुसा प्रदूषण

घर वह जगह है जहां आप अपने आप को सुरक्षित समझते हैं। सारे दिन की थकान ताक में रख पांव पसारे चैन की सांस लेते हैं। मगर क्या आपका घर सुरक्षित जगह है ? क्या आपकी सांस चैन की सांस है ? शायद नहीं। आपने अपने घर का पर्यावरण बिगाड़ा हुआ है। शहरों में तो बहुमंजिली इमारतों ने तो हवा की रवानगी रोक दी है। चारदीवारी में बंद आप अपने नथुनों से फेफड़ों में सांस के नाम पर प्रदूषित वायु पहुंचा रहे हैं। सृष्टि की शुरुआत में मानव का घर था। खुली प्रकृति तब मानव खुली हवा में सांस लेता था। चारों ओर की हरियाली ही उसकी पहली दोस्त थी। स्वच्छ वातावरण में तब प्रदूषण नाम की कोई चीज नहीं थी। मगर जो जो मानव ने सभ्यता का पाठ पढ़ा उसकी समझ में एक अदद घर की कल्पना आयी। चार दिवारी और एक छत से तैयार घर। आज यही घर मानव की मूलभूत आवश्यकता बन गया है। बढ़ती आबादी ने जहां जमीन का टोटा पैदा कर दिया है वहीं अपने घर पर भी चोट की है। कुछ हद तक गांवों की बात छोड़ दी जाए तो शहरों में बढ़ते हुए कंक्रीट के जंगल यानी बहुमंजिला इमारतों ने तो हवा का आवागमन ही रोक दिया है। यही सब वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा खतरा पैदा कर रहा है। यह एक चिकित्सीय सत्य है कि एक व्यक्ति को हर रोज 15 से 20 किलोग्राम स्वच्छ हवा की आवश्यकता होती है परंतु आज आलम यह है कि किसी भी घर में हवा स्वच्छ नहीं है।
 

प्रदूषण विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि नए निर्माणों के ‘‘एयर टाइट सीलिंग’’ यानी वायुरुद्ध छत निर्माण के कारण ‘‘रुग्ण इमारत रोग’’ अधिक पनपता है। इसके अलावा संश्लिष्ट भवन निर्माण से भी कार्बनिक पदार्थ निकलता रहता है। इन पदार्थों में सभी विषाक्तता लिए होते हैं, जिससे इमारत के अंदर प्रदूषण फैलता है। वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार नई या फिर जीर्णोद्धार हुई इमारतों में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण की समस्या गहराती है। अमेरिकी पर्यावरण एजेंसी की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि इमारतों के अंदर होने वाले प्रदूषण से हर वर्ष 26 हजार लोग कैंसर की चपेट में आकर अपने प्राण गंवा देते हैं। 

एक जमाना था जब घर काफी लंबे क्षेत्र में बनाए जाते थे। तब रसोई से निकलता धुआं घर में नहीं फैलता था। मगर अब रसोई और शौचालय घर के अंदर ही नहीं बल्कि सोने के कमरे से जुड़े होते हैं। पहली बात रसोई की ही करते हैं। आपकी रसोई आपके खान-पान की है और जरूरत पूरा करती है।  मगर साथ-साथ आपके घर के पर्यावरण को भी प्रदूषित करती है। अब जलती हुई कुकिंग गैस हो या केरोसिन भरा स्टोव हो या जलता दूध हो या बाहर निकलती जलति दाल या फिर रसोई के कूड़ेदान में सड़ता कूड़ा। सभी से दिखाई न देने वाली जहरीली गैस निकल कर घर के पर्यावरण में जहर घुल रही है और बीमारियों की सौगात दे दे रही है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण बताते हैं कि खाना पकाने वाली महिलाएं केवल 3 घंटे में इतना कैंसर जन्य रसायन बैंजोपाइरीन अपने अंदर उड़ेल लेती हैं जितना की 20 सिगरेट प्रतिदिन पीने वाले व्यक्ति के फेफड़ों में पहुंचता है किसकी सबसे ज्यादा शिकार होती है ग्रामीण महिलाएं जिनकी रसोई में बतौर इंधन लकड़ी या या फिर उपले ही जलते हैं। इनके जलने में धुंआ पैदा होता है, जो इन्हें क्षय रोग और रक्त अल्पता तक की चपेट में ले आता है। हमारे देश में ठंड से बचने के लिए अलाव जलाने या अंगीठी यानी सिगड़ी जलाने का पुराना चलन है। क्योंकि यह मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी लोकप्रिय है। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों और विश्लेषणों से इस बात की पुष्टि हुई है कि इसमें प्रयुक्त कोयले या फिर लकड़ी से अत्यंत जहरीली गैस कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती है, जो कई बार मौत का कारण भी बनती है। इस गैस का फैलाव घर की ऑक्सीजन को लील ने लगता है। जब घर के वातावरण में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है तो कुछ भी जलने से कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती है। इसमें हमारी सांस से निकलती कार्बन डाइऑक्साइड भी जुड़ जाती है। यह एक रंगहीन, स्वादहीन, मगर हानिकारक गैस है। आमतौर पर वातावरण में इसकी मात्रा 0.03 0.04 प्रतिशत तक होती है घर के वातावरण में जब इसका प्रतिशत बढ़ जाता है तो घुटन पैदा होने लगती है।

घर में कोई धूम्रपान का शौकीन है और एक दो पैकेट यानी 20 से 40 तक सिगरेट घर में ही पी जाने का आलम है, तो समझ लीजिए कि घर के वातावरण को सबसे ज्यादा खतरा इसी से है। घर की गैस के अलावा निकोटिन, अमोनिया, टार हाइड्रोजन सायनाइड, पिरीडीन हाइबेंजो-एथ्रासीन, डाइबेंजो पाइरीन जैसे खतरनाक रसायनों की तह लग जाती है जो घर के पर्यावरण में जहर घोल रहे हैं। यह वे रसायन हैं जो आपके बच्चों वृद्धों का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं। गर्भवती स्त्रियों पर तो इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर हेल्थ के 2 वैज्ञानिकों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण अनुसंधान सर्वेक्षण किए हैं गार्डन स्कॉट बोटम और रोनाल्ड विल्सन कि शोध रिपोर्ट के अनुसार सिगरेट पीने वाले व्यक्ति अपने घर का वातावरण बिगाड़ने के लिए सबसे अधिक दोषी है। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि घर में सिगरेट पीने वाले व्यक्तियों के परिवार में बच्चे प्रतिवर्ष 8.7 दिन बीमार रहते हैं और 10.2 दिन अपने आप को बीमार जैसा महसूस करते हैं। इसकी अपेक्षा सिगरेट न पीने वाले के बच्चे अन्य कारणों से 4.4 दिन बीमार रहते हैं। संभावित कारणों में यह बताया जा रहा है कि चूँकि बच्चों का शरीर विकास की अवस्था में रहता है। अतः उनके फेफड़े काफी संवेदनशील होते हैं। जब परिवार के धूम्रपान के धुए से भी लोग घर का वातावरण अधिक प्रदूषित कर देते हैं।  सिगरेट का यह धुआं बच्चों की सांस के साथ फेफड़ों की दीवार पर परत के रूप में जमा हो जाता है। यह परत फेफड़ों को प्रभावित करके बीमारी पैदा कर देती है। इसी कारण बच्चे जल्दी-जल्दी बीमार होने लगते हैं और कमजोर हो जाते हैं इसी प्रकार गर्भवती महिलाओं के गर्भ में जब धुआं पहुंचता है तो गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करता है। गंभीर समस्याओं में इसका परिणाम विकृत बच्चा होता है और कई बार तो बच्चा मृत भी पाया जाता है। चिकित्सीय परीक्षणों में तो यहां तक देखा गया है कि जो महिलाएं स्वयं धूम्रपान करती हैं उनके गर्भस्थ शिशु को तो खतरा होता ही है साथ ही गर्भपात और बांझपन जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 

गर्मी के दिनों में मच्छरों मक्खियों और अन्य कीटों का प्रकोप घर को चिड़ियाघर बना डालता है। इससे बचने के लिए घर में आज कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव आम बात है। सच पूछिए तो कीटनाशकों का यह छिड़काव घर के वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। मानव त्वचा और खाद्य पदार्थों के द्वारा इनके अवशेष शरीर में जा पहुंचते हैं और गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं। ठीक यही स्थिति कपड़े साफ करने के लिए प्रयुक्त डिटरजेंट की होती है। इनसे हाथों में एग्जिमा, एलर्जी और त्वचा कैंसर जैसे भयंकर रोग भी हो जाते हैं। इनमें फिनाइल, डीडीटी और बीएचसी जैसे रसायन में प्रमुख रूप से हानिकारक हैं। कई परीक्षणों में पाया गया है कि महिलाओं और गाय के दूध में इन अवशेषों की खास मात्रा जा पहुंचती है जो स्वतः मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। घर के अंदर ही रखी कूड़े की टोकरी में जब खाद्य सामग्री पड़ती है, तो उससे जहरीली गैस निकलती है। मच्छर पनपते हैं सो अलग। ठीक इसी तरह बंद कूलर, लंबे समय से बंद कमरा तक घर के वातावरण को चैपट करने के लिए घर में ही आस्तीन के सांप की तरह हैं। तब भला इनसे बचा कैसे जाएं ? बात बहुत आसान है मगर है मेहनत की। पहली बात तो यही कि घर में हवा आने-जाने की उचित व्यवस्था हो। घर के अंदर आसपास पूरा कचरा और पानी एकत्र न होने दें। यदि सफाई हो तो मच्छर-मक्खी पनपेंगे नहीं। तब भला आपको कीटनाशक दवाओं की जरूरत ही क्या पड़ेगी। घरों में जालीदार दरवाजों का प्रयोग कीट पतंगों को दूर रखता है, इसके अलावा रसोई में एग्जॉस्ट फैन का प्रयोग जहरीली गैसों को बाहर निकालने में काफी कारगर सिद्ध हुआ है। कोशिश कीजिए कि रसोई गैस के अंदर खाद्य सामग्री कम से कम जले इससे गैस कम बनेगी। कूड़े की टोकरी को दूर जाकर विदा कीजिए। ध्यान रखिए कूड़ा ज्यादा दिन न सड़े। इसी प्रकार जाड़ों में जब भी सिगड़ी का प्रयोग करें, तो इस बात का ध्यान रखें कि इससे पैदा हुआ धुआं बाहर निकलता रहे। कभी भी चारों ओर से बंद कमरे में हाथ न सेकिये। अलाव या सिगड़ी को सोने से पूर्व बुझा दीजिए और हां, धूम्रपान करने वाले भी ध्यान रखें कि जहां तक हो तो घर में धूम्रपान न करें। यह आपका अपना घर है। 

कुछ समय पूर्व अमरीकी संस्था नासा के वैज्ञानिकों ने एक रहस्य उजागर किया था कि कुछ इमारतें इतनी पुरानी हो जाती हैं कि स्वयं ही घर का पर्यावरण चैपट करने लगती हैं। उन से पैदा होने वाले रोगों को ‘‘रुग्ण इमारत रोग’’ नाम दिया गया है। इनमें रहने वाले लोगों को एलर्जी, आंख में खुजली, सिरदर्द, सांस की परेशानी जैसे रोग पनपने लगते हैं। प्रदूषण विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि नए निर्माणों के ‘‘एयर टाइट सीलिंग’’ यानी वायुरुद्ध छत निर्माण के कारण ‘‘रुग्ण इमारत रोग’’ अधिक पनपता है। इसके अलावा संश्लिष्ट भवन निर्माण से भी कार्बनिक पदार्थ निकलता रहता है। इन पदार्थों में सभी विषाक्तता लिए होते हैं, जिससे इमारत के अंदर प्रदूषण फैलता है। वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार नई या फिर जीर्णोद्धार हुई इमारतों में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण की समस्या गहराती है। अमेरिकी पर्यावरण एजेंसी की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि इमारतों के अंदर होने वाले प्रदूषण से हर वर्ष 26 हजार लोग कैंसर की चपेट में आकर अपने प्राण गंवा देते हैं। वैज्ञानिकों की राय में यदि घर में हरियाली रखी जाए तो प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसलिए घर के अंदर पौधे लगाने का शौक अवश्य पैदा कीजिये।

तकनीकी सहारे, हवा सुधारे

पौधारोपण कर हरियाली को सुधारने के कई प्रयास होते रहे हैं। इस दिशा में विश्व स्तर पर भी पौधा रोपण के कार्यक्रम हुए, मगर यह कतई नहीं कहा जा सकता कि हम इस दिशा में पूर्ण सफलता प्राप्त कर चुके हैं। इन्हीं प्रयासों के समानांतर तकनीकों का भी सहारा लिया जा रहा है, जो घर बाहर की हवा सुधारने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। आज मेट्रो शहरों में एयर प्यूरीफायर का चलन बड़े पैमाने पर हो रहा है। जहां तक उद्योगों में पैदा गंभीर वायु प्रदूषण की बात है तो विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा कड़े नियम और मापदंड निर्धारित किए जा चुके हैं। धुआं उगलती चिमनिओं को बड़ा किया जाना पूर्व उपायो में से एक है, जो पूरी तरह से सक्षम नहीं माना जाता है। इस दिशा में कुछ नए वायु प्रदूषणरोधी उपकरण सामने आए हैं। इनमें सबसे अधिक प्रयोग किए जाने वाला स्क्रबर है। इसके द्वारा धुए में समाए कणों को दूर किया जा सकता है। इसमें ट्राई स्क्रबर और वेट स्क्रबर प्रमुख हैं। जो परिस्थिति के अनुरूप प्रयोग किए जाते हैं। इसी श्रंखला में फिल्टर्स का भी प्रयोग उल्लेखनीय है। इंडस्ट्रियल हवा फिल्टर्स का प्रयोग आज वस्त्र, सीमेंट, सिरेमिक आदि उद्योगों में वांछनीय है। फिल्टर्स से ही मिलती एक अन्य  साइक्लोन भी है जो अति सूक्ष्म कणों को भी शोधित करने की क्षमता रखती है। इसी श्रंखला में मिस्ट कलेक्टर्स विशेष तौर पर उल्लेखनीय हैं। इनके द्वारा तेल, भाप, गैसीय गुबार आदि को आसानी से संग्रहित किया जाता है। इनके द्वारा 99.9 व्यास तक के कणों को काबू में लाना संभव है। यहां थर्मल ऑक्सिडाइजर का उल्लेख भी तर्कसंगत है। जो दोहन से उत्पन्न प्रदूषणकारी तत्व को पकड़ कर निष्क्रिय करता है। कैटेलिक ऑक्सिडाइजर, कैटेलिक रिएक्टर, बायो फिल्टर आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं।

जरूरी है जन जन की भागीदारी

हमारे चारों ओर का आवरण हमारा पर्यावरण है। हम कैसे इसे अपने रहने लायक बनाए यह हमारा फर्ज है। इसका हवा पानी हमें जीवन देता है। अगर हम उसे ही तबाह कर डालें तो हम अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारेंगे।  आज से करीब 12 हजार वर्ष पहले मानव ने प्रकृति और पर्यावरण का उपयोग शुरू किया था। यानी प्रकृति के साथ छेड़खानी शुरू की थी।  उसने जंगल साफ कर फसलें उगानी शुरू की और अपनी देखरेख में पशुपालन शुरू किया। यहीं से शुरू होता है पर्यावरण विनाश। जैसे-जैसे मानव आगे विकास की ओर बढ़ने लगा पर्यावरण का विनाश होने लगा। कृषि का बहुमुखी विकास हुआ और इस विकास के लिए कृषि के क्षेत्र में रसायनों का प्रयोग हुआ। इन रसायनों ने हवा को प्रदूषित किया और जमीन में रिस कर भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर डाला। औद्योगिकीकरण का विकास एवं आधुनिकीकरण हुआ और उद्योगों से निकलने वाली हानिकारक गैसों व मल ने जल व हवा को प्रदूषित करके कई लोगों की जानें ली। वृक्षों की कमी के कारण कई लाखों हेक्टेयर भूमि बाढ़ की चपेट में आ गई। तो कहीं सूखे की चपेट में वृक्षों की कमी जीवाश्मी ईंधन के बेतहाशा प्रयोग व उद्योग से निकलने वाले धुएं के कारण वायु में कार्बन डाइऑक्साइड का अनुपात निरंतर बढ़ रहा है। अन्य हानिकारक तत्व जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फर ट्राइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड व नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भी बढ़ रहे हैं। जिससे मौसम में अनगिनत तब्दीलियां आ रही हैं। यह गैसें सूर्य से आने वाली किरणों की ऊर्जा को कैद कर लेती हैं। जिसके कारण वातावरण का तापमान बढ़ जाता है। इसे ‘‘हरित गृह प्रभाव’’ के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि ताप बढ़ने से पहाड़ों पर सदा जमा रहने वाली बर्फ पिघलने लगेगी और धरती का बहुत बड़ा भाग जलमग्न हो जाएगा। क्लोरोफ्लोरो कार्बन रसायनों के प्रयोग से भी ओजोन मंडल को खतरा हो गया है। ओजोन मंडल जीव जंतुओं का सुरक्षा कवच है। इस की अनुपस्थिति में पैराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर पहुंच जाएंगी, जिससे जीव जंतुओं पर कई कुप्रभाव पड़ेंगे। जब पर्यावरण इस हद तक बिगड़ गया कि पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट के बादल मंडराने लगे तो विश्व समुदाय को मजबूरन पर्यावरण के संरक्षण रखरखाव एवं सुधार के बारे में सोचना पड़ा।

विश्व पर्यावरण की लगातार डूबती हुई नब्ज समीक्षा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में वर्ष 1972 में मानव और पर्यावरण विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। पर्यावरण के विषय पर विश्वव्यापी जागरूकता लाने में एक सम्मेलन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। पर्यावरण विषय पर जनसाधारण में जागरूकता लाने के उद्देश्य से वर्ष 1972 से ही 5 जून प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भारत सरकार ने भी कई कारगर कदम उठाए हैं। वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा वन, वन्य प्राणी एवं पर्यावरण संरक्षण को राष्ट्र के नीति निर्धारक सिद्धांतों में शामिल किया गया। संविधान की धारा 51 (अ) द्वारा अपने इर्द-गिर्द के वातावरण का संरक्षण एवं सुधार भारत के प्रत्येक नागरिक के मूल कर्तव्यों में शामिल किया गया है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भारत सरकार ने कुछ कारगर कदम उठाए हैं। पर्यावरण समस्याओं का अध्ययन एवं उनके हल के लिए वर्ष 1972 में पर्यावरण समिति का गठन किया गया। वर्ष 1980 में पर्यावरण संरक्षण संबंधी कानून व उनके कार्यान्वयन के लिए एक और समिति का गठन किया गया और इस समिति की सिफारिशों के आधार पर पर्यावरण विभाग की स्थापना हुई। जिसको वर्ष 1985 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का दर्जा दिया गया। हालांकि वर्ष 1972 से ही पर्यावरण संबंधी कई अधिनियम बने हैं, परंतु उनमें कोई न कोई खामी जरूर होती है। इन खामियों को दूर करने के लिए वर्ष 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बना। इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार को पर्यावरण की रक्षा हेतु किसी भी उद्योग, जिससे कि पर्यावरण को खतरा हो पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार प्राप्त है। इस अधिनियम द्वारा सरकार को पर्यावरण संबंधी मापदंड निर्धारित करने का भी अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम के तहत भारत के किसी भी नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि कोई व्यक्ति पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन कर रहा है तो वह न्यायालय में शिकायत दर्ज करवा सकता है। नियमों का उल्लंघन करने वालों के विरूद्ध सख्त दंड का भी प्रावधान है। बात फिर वहीं आ ठहरती है कि हम जिस धरती पर अपनी बिसात बिछाए बैठे हैं, उसे हमें ही रहने लायक बनाना है। अगर हमने इसके भूगोल को नहीं जाना तो यह हमें इतिहास बना देंगे।

 

TAGS

what is air pollution in english, what is air pollution in hinid, air pollution causes, air pollution effects, air pollution project, types of air pollution, air pollution essay, air pollution in hindi, air pollution in india, sources of air pollution, air pollution in china, air pollution in world, world environment day 2019 theme, world environment day 2020 theme, world environment day in english, world environment day in hindi, world environment day 2018 theme, world environment day quotes, world environment day essay, world environment day 2019 theme and slogan, world environment day speech, world environment day 2018 theme and slogan, world environment day history, world environment day history in hindi, why do we celebrate world environment day, NASA on environment, ministry of environment and forest, van evam paryavaran mantralay, disease caused by water pollution, diseases caused by air pollution wikipedia, list of diseases caused by air pollution, effects of air pollution on human health in points, world environment day wikipedia, world environment day wikipedia in hindi, air pollution wikipedia in hindi, air pollution in home, devices to reduce air pollution, countries facing air pollution, countries facing air pollution in hindi.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading