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इलाहाबाद

इलाहाबाद प्राचीन प्रयाग, (अ. २५ २५ उ.दे. ८२पू. १९७१ई. में जनसंख्या ५,१३,९९७) गंगा और यमुना के संगम पर दोनों नदियों के बीच में बसा हुआ है। एक तीसरी नदी सरस्वती के भी यहाँ मिलने की कल्पना की जाती है, यद्यपि इसका कोई चिह्न यहाँ प्रकट नहीं होता। प्रयाग की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान हमें युवान्‌ च्वाङ्‌ (६४४ ई.) के वर्णन में भी मिलता है। उस समय नगर कदाचित्‌ संगम के अति निकट बसा हुआ था। इसके पश्चात्‌ लगभग आठवीं शताब्दी तक प्रयाग का इतिहास अंधकार में है।

अकबरनामा, आईने अकबरी तथा अन्य मुगलकालीन ऐतिहासिक पुस्तकों से ज्ञात होता है कि अकबर ने सन्‌ १५८४ ई. के लगभग यहाँ पर किले की नींव डाली तथा एक नया नगर बसाया जिसका नाम उसने 'इलाहाबाद' रखा। इससे बरबस ही यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि यदि यहाँ अकबर द्वारा नए नगर की स्थापना हुई तो प्राचीन प्रयाग का क्या हुआ। कदाचित्‌ किले के निर्माण के पूर्व ही प्रयाग गंगा की बाढ़ के कारण नष्ट अथवा बहुत छोटा हो गया होगा। इस बात की पुष्टि वर्तमान भूमि के अध्ययन से भी होती है। वर्तमान प्रयाग रेलवे स्टेशन से भारद्वाज आश्रम, गवर्नमेंट हाउस, गवर्नमेंट कालेज तक का ऊँचा स्थल अवश्य ही गंगा का एक प्राचीन तट ज्ञात होता है, जिसके पूरब की नीची भूमि गंगा का पुराना कछार रही होगी जो सदैव नहीं तो बाढ़ के दिनों में अवश्य जलमग्न हो जाती रही होगी। संगम पर बने किले की रक्षा के हेतु बेनी तथा वक्सी नामक बाँधों को बनाना भी अकबर के लिए आवश्यक रहा होगा। इन बाँधो द्वारा कछार का अधिकांश भाग सुरक्षित हो गया। वर्तमान खुसरो बाग तथा उसमें स्थित मकबरे जहाँगीर के काल के बने बताए जाते हैं। मुसलमानी शासन के अंतिम काल में नगर की दशा कदाचित्‌ अच्छी नहीं थी और उसका विस्तार (ग्रैंड ट्रंक रोड के दोनों ओर) बाढ़ से रक्षित भूमि तक ही सीमित था। सन्‌ १८०१ ई. में नगर अंग्रेजों के हाथ आया, तब उन्होंने यमुनातट पर किले के पश्चिम अपनी छावनियाँ बनाई। फिर बाद में, वर्तमान ट्रिनिटी चर्च के आसपास भी इनके बँगले तथा छावनियाँ बनीं।

सन्‌ १८५७ ई. के गदर में ये छावनियाँ नष्ट कर दी गई तथा नगर को बहुत क्षति पहुँची। गदर के पश्चात्‌ १८५८ ई. में इलाहाबाद को उत्तरी पश्चिमी प्रांतों (नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज़) की राजधानी बनाया गया। वर्तमान सिविल लाइंस की योजना १८६० ई. में बनी और १८७५ तक वह पर्याप्त बस गई। यद्यपि इलाहाबाद और कानपुर तक की रेलवे लाइन गदर के पूर्व बन चुकी थी, तो भी नगर का व्यापारिक महत्व १८६५ ई. में यमुना पर पुल बनने के पश्चात्‌ बढ़ा। गत शताब्दी के अंत तक नगर में कई महत्वपूर्ण इमारतें तथा संस्थाएँ निर्मित हुई╟ जिनमें मेयो हाल, म्योर कालेज, गवर्नमेंट प्रेस तथा हाईकोर्ट मुख्य हैं। चौक के चुंगीघर तथा पास के बाजार का निर्माण भी इसी समय हुआ।

गत ५० वर्षो में नगर का विस्तार अधिक हुआ है। जार्ज टाउन, लूकरगंज तथा अन्य नए महल्ले बसाए गए। इलाहाबाद फैजाबाद रेलवे लाइन १९०५ ई. में तथा झूसी से सिटी (रामबाग) स्टेशन तक की रेलवे लाइन १९१२ में बनी। इलाहाबाद इंप्रूवमेंट ट्रस्ट द्वारा नगर के बहुत से भागों में कई छोटी छोटी बस्तियाँ भी बसाई गई तथा नई सड़कों का निर्माण हुआ। परंतु उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ चली जाने से इस नगर की उन्नति रुक गई। अब यहाँ यूनिवर्सिटी और हाईकोर्ट होने के कारण तथा इसके तीर्थस्थान होने के कारण ही नगर का महत्व है। युमना के उस पार नैनी में एक व्यावसायिक उपनगर बसाने का प्रयत्न हो रहा है। (उ.सिं.)

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