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ईरान

ईरान पश्चिमी एशिया का एक राजतंत्र है जो 1935 ई. के पूर्व पर्शिया (फारस) कहा जाता था। 2,000 ई. पू. में इसका नाम आर्याना था। इसके दक्षिण में फारस एवं ओमान की खाड़ियाँ तथा अरब सागर, पश्चिम में ईराक एवं तुर्की, उत्तर में रूस एवं कैस्पियन सागर तथा पूरब में पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान हैं। यह उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा में 1,400 मील लंबा तथा उत्तर से दक्षिण 875 मील चौड़ा है।

स्थिति-250 उ.अ. से 400 उ.अ., 44 पू.दे. 630 30 पू.दे.। क्षेत्रफल : 16,21,860 वर्ग किलोमीटर (6,28,000 वर्गमील); जनसंख्या (1966 ई.) : 2,57,81,090। ईरान का अधिक भाग मरुस्थल है। अत: जनसंख्या प्राय: सर्वत्र विरल है, जिसका औसत घनत्व केवल 13 प्रति वर्ग कि.मी. है। प्रमुख नगरों में 10 नगरों की जनसंख्या एक लाख से अधिक है। वे हैं तेहरान (1970 में 30,15,000), टेब्रीज़ (4,68,459), इस्फ़हान (5,75,001), मेसेद (4,17,171), अबादान (2,70726), शिराज (1,69,099), करमनशाह (1,18,344), अह्वाज़ (2,06,265), रश्त (1,41,756), एवं हमादान (1,61,944)। तेहरान यहाँ की राजधानी है, फारसी राज्यभाषा है।

मरुस्थल में भूमि कई प्रकार की है और वहाँ के देशवासियों ने इनको विशेष नाम दिए हैं। बजरी या बालू के कड़े पृष्ठ को दश्त कहते हैं, बिना जल या वनस्पति के क्षेत्रों को लुट कहते हैं और काले कीचड़ के दलदलों को, जिनपर बहुधा नमक की पपड़ी बँध जाती है, कवीर कहते हैं। कवीरों से यात्रियों को बहुत डर लगता है, क्योंकि ऊपर से दृढ़ दिखाई पड़नेवाली पपड़ी के नीचे बहुधा गहरा दलदल रहता है जिसमें यात्री डूबकर मर जाते हैं।

ईरान आल्प्स्‌-हिमालय-भंजतंत्र (फ़ोल्ड सिस्टम) के अंतर्गत है। इसकी उत्तरी एवं दक्षिणी सीमा पर क्रमानुसार एलबुर्ज एवं ज़ैग्रस पर्वतश्रेणियाँ हैं जो पश्चिम में आर्मीनिया की गाँठ में मिलती हैं। ईरान तीन प्राकृतिक खंडों में विभक्त है।

(1) एलबुर्ज पर्वत-यह परतदार चट्टानों का बना है, जिसमें अनेक ज्वालामुखी पहाड़ हैं। ईरान की डेमावेंड नामक सर्वोच्च चोटी की ऊँचाई 18,600 फुट हैं।
(2) मध्य का पठार-पर्वतों से घिरा यह विस्तृत पठार प्राचीन मणिभ चट्टानों का बना है। इसकी ऊँचाई 4,000 फुट है। इसका पूर्वी भाग अधिक चौड़ा है जहाँ मरुस्थल पर दलदल मिलते हैं । यहाँ सिस्टान एवं जाज़ मुरियन द्रोणी (बेसिन) की ऊँचाई केवल 1,000 फुट है।
(3) ज़ैग्रस पर्वत-उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व को फैला यह पर्वत ईरान की दक्षिण पश्चिमी सीमा निर्धारित करता है। इस्फहान के पश्चिम लुरीस्तान एवं बख्तियारी प्रदेश में इसके सर्वोच्च भाग की ऊँचाई 14,000 फुट है।

ईरान के आधे से अधिक भाग (3,50,000 वर्ग मील) का जल-परिवाह आंतरिक है। आंतरिक परिवाह के क्षेत्र में पूर्व में दश्त-ए-लुट, सिस्तान एवं जाज़ मुरियन नामक द्रोणियाँ हैं, पश्चिम में उर्मिया झील (20,000 वर्ग मील) एवं मध्य में दश्त-ए-कवीर है। उत्तर में सफीद रूद, गारगन एवं अर्त्रक नामक नदियाँ कैस्पियन सागर में गिरती हैं। दक्षिण पश्चिम में ईरान की एक मात्र नाव चलाने योग्य नदी कारूँ बख्तियारी पर्वत से निकलकर शत-अल अरब की सहायक बनती है।

ईरान की जलवायु कैस्पियन तटीय भाग को छोड़, अति विषम है। अत्यधिक तापांतर (40फा.), अल्पवृष्टि एवं अति प्रचंड वायु, पर्वतावृत पठारों एवं द्रोणी की जलवायु की विशेषताएँ हैं। वर्षा जाड़े में रूमसागर से आनेवाले चक्रवात से होती है। कैस्पियन प्रांतों में सर्वाधिक वर्षा (लगभग 50) होती है। पठार के उत्तर पश्चिमी भाग में वर्षा लगभग 12 , मध्य में 6 तथा दक्षिण पूर्व में हुसेनाबाद एवं सिस्तान में केवल 2 होती है। फारस की खाड़ी के तटस्थ क्षेत्र में वर्षा 10 होती है। जाड़े में पर्वतों पर तुषारपात होता है। ग्रीष्म ऋतु में सिस्तान मरुस्थल में बालू एवं धूलयुक्त अति प्रचंड वायु लगभग 70 मील प्रति घंटे के वेग से प्राय: 120 दिन तक चलती है। यह प्रदेश आँधियों का देश कहा जाता है जो ''120 दिन की आँधी'' के लिए कुख्यात है।

कैस्पियन प्रांतों में 3,000 फुट की ऊँचाई तक रूमसागरीय जलवायुतुल्य वनस्पति मिलती है। इमारती लकड़ी मज़नदेरन, गिलान, फार्स एवं कुर्दिस्तान प्रांतों में प्राप्त होती है। मध्य ईरान के पठार एवं पहाड़ियाँ वृक्षविहीन हैं। बबूल करमन, करमनशाह एवं खुरासान में मिलता है। दक्षिणी ईरान में खजूर की प्रचुरता है। जैतून के पेड़ 'रूदबर' में प्राप्त हैं।

ईरान फल की उपज के लिए प्रसिद्ध है। खरबूजा, तरबूज, अंगूर, खूबानी, चेरी, बेर एवं सेब साधारणत:सभी जगह उपजाए जाते हैं। टेब्रीज़ एवं मेशेद के सतालू (शफतालू), इस्फहान के खरबूजे एवं चेरी, डेमावेंड के सेब, नतांज़ की नाशपाती तथा करमनशाह के अंजीर विशेष प्रसिद्ध हैं।

कैस्पियन प्रांतों के अतिरिक्त, शेष ईरान में नदियों एवं कनातों या करेज़ों (अर्थात्‌ सोतों और नालों)द्वारा सिंचाई करके खेती होती है। फारस की खाड़ी के तटस्थ मैदान में शुष्क कृषि प्रचलित है। गेहूँ, जौ, बाजरा, कोदो, कुटकी, जवारी एवं मक्का प्राय: सभी भागों में होते हैं। चावल के लिए कैस्पियन क्षेत्र प्रसिद्ध है। पठारी भाग की मुख्य उपज गेहूँ एवं मक्का है। रूई विशेषत: कैस्पियन तट तथा खुरासान, इस्फहान, एवं येज्द़ प्रांतों में होती है। तंबाकू उर्मिया काशान एव इस्फहान जिलों में उपजाया जाता है। अफीम के उत्पादन पर 1956 ई. से प्रतिबंध लगाया गया है। गिलान, मज़नदेरन, येज्द़ एवं काशान क्षेत्र में रेशम के कीड़े पाले जाते हैं।

यहाँ की अस्थायी (खानाबदोश) जातियों एवं कृषकों का मुख्य व्यवसाय ऊन के लिए भेड़ पालना है। ऊन दरी एवं कालीन बनाने के काम आता है। अज़रबैजान एवं खुरासान के प्रांत घोड़ा, गधा, भेड़, एवं बकरे के लिए विख्यात हैं। ईरान में परिवहन की असुविधा के कारण तेल के अतिरिक्त अन्य खनिजों का विकास नहीं हुआ है। 1948 ई. में खनिज तेल की संचित निधि 9,400 लाख टन निर्धारित की गई थी। इसका उत्पादन 1957 ई. में 350; 1958 में 404; 1959 में 536; 1960 में 501; 1961 में 563; 1962 में 645; 1963 में 660; 1964 में 840; 1965 में 920; 1966में 1060; 1967 में 1210; 1968 में 1330; 1969 में 1530 तथा 1970 में 1720 लाख टन था। तेल का प्रमुख क्षेत्र दक्षिण पश्चिम ईरान में खूजिस्तान है जहाँ मस्ज़िद-ए-सुलेमान, हत्फ केल, आगा जरी, गच सारन, नत्फ सफीद, एवं लाली नामक छह खाने हैं। इनके निकट अबादान में संसार का सबसे बड़ा तेल शुद्ध करने का कारखाना है, जिसकी क्षमता 5,00,000 बैरल शुद्ध तेल प्रति दिन है। पश्चिम ईरान में, ईराकी सीमा के निकट, तेल का दूसरा क्षेत्र नत्फ-ए-शाह है। यहाँ का तेल करमनशाह में शुद्ध किया जाता है। अन्य खनिजों में कोयला तेहरान एवं मज़नदेरन में, लोहा करमन, समनन, इस्फहान एवं अनारक में, ताँबा अब्बासाबाद एवं ज़ेंजन में, सीसा अनारक में तथा फीरोजा निशापुर में मिलते हैं। कुछ संखिया, सज्जी मैंगनीज़, शैल लवण, गंधक, राँगा आदि भी प्राप्त हैं।

ईरान में प्रधानत: शिल्पकला एवं कुटीर उद्योग का विकास हुआ है। बहुमूल्य दरियाँ, कालीन, रेशमी वस्त्र एवं धातुशिल्प के लिए यह प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। हाल में तैल कारखानों के अतिरिक्त चीनी, सीमेंट, और रेशमी, सूती एवं ऊनी वस्त्रों के कारखाने भी खोले गए हैं। सूती एवं ऊनी वस्त्र उद्योग का प्रमुख केंद्र इस्फहान है, जो रुई एवं कच्चे ऊन के उत्पादन क्षेत्र में स्थित है। सूती वस्त्र उद्योग के अन्य केंद्र शाही, मज़नदेरन, बहशहर, कस्विन, करमन, मेशेद, एवं येज्द हैं। टेब्रीज़ एवं कस्विन ऊनी वस्त्र उद्योग के अन्य केंद्र हैं। रेशम उद्योग चालूस एवं रेश्त में तथा जूट उद्योग शाही एवं रेश्त में विकसित हैं। करमन दरी बुनने का प्रमुख केंद्र है। इसके अन्य केंद्र टेब्रीज़, सुलतानाबाद, तेहरान, शिराज़, हमादान, खुर्रमाबाद, बिजार, सैन्ना एवं कशान हैं। चीनी की मिलें तेहरान एवं कैस्पियन क्षेत्र में हैं। दियासलाई टेब्रीज़, ज़ंजान, तेहरान एवं इस्फ़हान में बनती है। तेहरान आधुनिक उद्योग का केंद्र है जहाँ काँच, शस्त्र एवं कारतूस, रसायन, प्लैस्टिक, साबुन, सिगरेट, कृषि यंत्र एवं अर्क चुआने के कारखाने हैं। 1955-56 ई. ईरान ने 1,26,000 कंबल, 20 लाख मीटर ऊनी, 400 लाख मीटर सूती एवं 60 लाख मीटर रेशमी वस्त्रों का उत्पादन किया।

ईरान के मुख्य आयात चीनी, चाय, सूती वस्त्र, इस्पात, मशीन, मोटर गाड़ियाँ, टायर, एवं रसायन हैं। यहाँ के मुख्य निर्यात पेट्रोल, दरियाँ, एवं कालीन, रुई, सूखे एवं ताजे फल, ऊन, चमड़ा तेलहन आदि हैं।

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