जैव विविधता बनाए रखने की चुनौती

9 Oct 2012
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जैवविविधता
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जैव विविधता पर 01 अक्टूबर से शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन 16 अक्टूबर को खत्म होगा। भारत के हैदराबाद के इंटरनेशनल कंवेशन सेंटर और इंटरनेशनल ट्रेड एक्जीविशन में चल रहा यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की दृष्टि से एक बड़ा आयोजन है। ‘कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज टू द कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीओपी 11)’ नाम से हो रहे इस कन्वेंशन में 150 देशों के पर्यावरण व वन मंत्री और विश्व बैंक, एडीबी जैसे संगठनों के अधिकारी भी भागीदारी करेंगे। जैव विविधता को बचाने के दृष्टिकोण से यह अनूठा सम्मेलन होगा, बता रहे हैं कुमार विजय।

दुनिया में 17 मेगा बायो डाइवर्सिटी हॉट स्पॉट हैं, जिनमें भारत भी है। हमारे देश में दुनिया की 12 फीसदी जैव विविधता है, लेकिन उस पर कितना काम हो पाया है, कितने वनस्पति और जीव के जीन की पहचान हो पाई है, यह एक अहम सवाल है। लोकलेखा समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पर्यावरण और वन मंत्रालय 45,000 पौधों और 91,000 जानवरों की प्रजातियों की पहचान के बावजूद जैव विविधता के संरक्षण के मोर्चे पर विफल रहा है।आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में जैव विविधता पर पिछले एक अक्तूबर से शुरू हुआ सम्मेलन 19 अक्टूबर तक चलेगा। यह इस तरह का ग्यारहवां सम्मेलन है, जिसमें दुनिया के 193 देशों के लगभग 15,000 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इस तरह का इतना बड़ा आयोजन सुबूत है कि जैव विविधता के संरक्षण और इसके टिकाऊ उपयोग के लिए इस वार्ता का कितना महत्व है। जैव विविधता के मामले में भारत एक समृद्ध राष्ट्र है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि देश में कृषि और पशुपालन, दोनों का काफी महत्व है। लेकिन दुर्भाग्य से यह विविधता अब बहुत तेजी से खत्म होती जा रही है।

जीवों के वासस्थल का बर्बाद होना इसका कारण है। खेती का तरीका बदलने के कारण भी जीन का क्षरण हो रहा है। ऐसे में, जैव विविधता के महत्व के प्रति देश में जागरूकता लाने की जरूरत है। हम मिट्टी के कटाव को नंगी आंखों से देख सकते हैं, लेकिन जीन के क्षरण को इस तरह नहीं देख सकते। इसीलिए हम यह समझ नहीं पाते कि जीन और प्रजाति का खत्म होना हमारे भविष्य के विकल्प को किस तरह कम कर देता है। ऐसी स्थिति में यह और चिंतनीय है, जब पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है। स्वाभाविक है कि इसका हमारी कृषि पर विपरीत असर पड़ेगा।

द नेशनल बायो डाइवर्सिटी ऐक्ट, 2002 के तहत हमारे देश में जैव विविधता प्रबंधन के देख-रेख की तीन स्तरीय व्यवस्था है। स्थानीय स्तर पर बायो डाइवर्सिटी मैनेजमेंट कमेटी, राज्य स्तर पर स्टेट बायो डाइवर्सिटी बोर्ड और केंद्रीय स्तर पर नेशनल बायो डाइवर्सिटी अथॉरिटी है, जिसका मुख्यालय चेन्नई में है। अभी तक देश के 26 राज्यों में बायो डाइवर्सिटी बोर्ड की स्थापना हो चुकी है। केरल और मध्य प्रदेश बायो डाइवर्सिटी मैनेजमेंट कमेटी के गठन में आगे हैं।

दुनिया में 17 मेगा बायो डाइवर्सिटी हॉट स्पॉट हैं, जिनमें भारत भी है। हमारे देश में दुनिया की 12 फीसदी जैव विविधता है, लेकिन उस पर कितना काम हो पाया है, कितने वनस्पति और जीव के जीन की पहचान हो पाई है, यह एक अहम सवाल है। लोकलेखा समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पर्यावरण और वन मंत्रालय 45,000 पौधों और 91,000 जानवरों की प्रजातियों की पहचान के बावजूद जैव विविधता के संरक्षण के मोर्चे पर विफल रहा है। दूसरी ओर, पर्यावरण और वन मंत्रालय के मुताबिक, द बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने 46,000 वनस्पतियों और 81,000 जीव-जंतु की ही पहचान की है, जबकि इनकी संख्या लाखों में है।

कटु सचाई यह है कि पिछले पांच दशक में यह देश आधे से अधिक जंगल, 40 फीसदी मैंग्रोव (नदियों के किनारे की दलदली जमीन पर होने वाले वे उष्णकटिबंधीय वृक्ष, जिनके तने जमीन के नीचे तक जाते हैं) और बड़ी मात्रा में दलदली जमीन खो चुका है। इस दौरान पौधों और जानवरों की असंख्य प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं और सैकड़ों प्रजातियां अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

पश्चिमी घाट दुनिया के उन 14 स्थानों में से एक है, जो अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यह देश की 27 फीसदी वनस्पतियों के अलावा वैश्विक स्तर पर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे 325 पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की प्रजातियों का घर है। हालांकि पेड़ काटने, खनन और अतिक्रमण के कारण पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत असर पड़ रहा है। इसलिए इसके संरक्षण का सवाल काफी अहम है, क्योंकि यह सिर्फ राष्ट्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक धरोहर है।

यूनेस्को ने पश्चिमी घाट के 1,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के 10 स्थानों को विश्व धरोहर घोषित किया है। हैदराबाद में हो रहे इस वैश्विक सम्मेलन का एक सकारात्मक पहलू यह भी हो सकता है कि हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति संवेदनशील बनें। जैव विविधता के मोर्चे पर समृद्धि से ही हमारा अस्तित्व टिका है। इसलिए आर्थिक विकास के साथ-साथ इसे बचाए रखने के लिए जहां सरकारों को सजग होना चाहिए, वहां लोगों, खासकर युवा पीढ़ी को जैव विविधता के संरक्षण के प्रति सजग करना जरूरी है।
 

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