जैव विविधता का संरक्षण सबसे बड़ी चिंता

जैव विविधता के संरक्षण का सवाल पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़ा है। इसे ध्यान में रखते हुए 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है।

इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष का केन्द्रीय विषय है ‘आक्रमणकारी बाहरी प्रजातियां’। आक्रमणकारी बाहरी प्रजातियां ऐसे पादप पशु और पैथोजन्स और अन्य जीव हैं जो खास पारिस्थिकीतंत्र में पैदा नहीं हुए थे लेकिन वहां प्रवेश कर पर्यावरणीय नुकसान पहुंचा सकते हैं।

महान प्रकृतिविद चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ के अनुसार प्रजातियों का विलुप्तीकरण प्राकृतिक प्रक्रिया है लेकिन आज प्रजातियों के विलुप्त होने की दर चिंताजनक है। इस कारण पारिस्थितिकी के जैविक और अजैविक घटकों का ताना-बाना बिगड़ रहा है। जिस प्रकार एक जाल का धागा खींचने या तोड़ने से सारा जाल बिगड़ जाता है, उसी तरह एक पौधे या जीव के लुप्त होने पर उस पर आश्रित अन्य जीव प्रजातियां भी प्रभावित होती हैं। इस प्रकार भोजन श्रृंखला और खाघ जाल प्रभावित होने का असर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर देखा जा सकता है।

पिछले पचास वर्षों में जहां मानव जनसंख्या दोगुनी हुई है, वहीं जीव-जगत और पेड़-पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने की गति में तीव्रता आई है। वैज्ञानिकों के अनुसार उष्णकटिबंधीय वनों के विनाश के कारण प्रजातियों का सामूहिक विलुप्तीकरण हो जाता है। विश्व के तीन समृद्ध जैव विविधता केन्द्रों अमेजन बेसिन, कांगो द्रोणी प्रवहरण के देशों तथा दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। एक अनुमान के अनुसार निकट भविष्य में लगभग 30,000 पादप प्रजातियां हमसे अलविदा कह देंगी।

सवाल है कि आखिर विलुप्तिकरण का कारण क्या है? और जैव विविधता का संरक्षण क्यों आवश्यक है? क्योंकि हम दैनिक जीवन में भोजन, ईंधन, चारा, वस्त्र आदि के लिए पेड़-पौधों और उनके उत्पादों पर निर्भर हैं। अतिरिक्त दोहन के कारण अनेक वनस्पतियों के विलुप्त होने का खतरा होता है जिसके कारण हमारी अनेक आवश्यकताओं पर असर पड़ता है। प्रजातियों के विलुप्तीकरण के दो कारण हो सकते हैं पहला प्राकृतिक और दूसरा मानव निर्मित।

भूस्खलन, बाढ़, सूखा, वन में लगने वाली आकस्मिक आग आदि प्राकृतिक कारणों के कारण कभी-कभार किसी प्रजाति का पूरा वंश ही समाप्त हो जाता है। कीड़ों और रोगों की चपेट में आने के कारण भी कभी-कभी कोई प्रजाति विलुप्त हो सकती है और कुछ की प्रजनन क्षमता दुर्बल होने के कारण उनकी विलुप्ति की संभावना बढ़ जाती है। कभी-कभार प्रजातियों के बीच प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा या बदले परिवेश में अपने आप को अनुकूल न कर पाना भी प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण बनता है। हालांकि वर्तमान में पौधों की प्रजातियां विलुप्त होने के लिए मानव निर्मित कारकों का अधिक योगदान है। तथाकथित विकास जैसे सड़कों का निर्माण, कृषि एवं उघोगों की आवश्यकता के चलते वनों के उजड़ने के कारण भी प्रजातियों को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।

विदेशी खरपतवारों के आक्रमण के कारण भी जैव विविधता को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए नील नदी की मछली, नाइल पर्च को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तो वहां की सिलचिड मछलियों की दो सौ से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो गईं। इसी प्रकार गेहूं के साथ संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से आयतित गाजर घास तथा शोभाकारी पौधे के रूप में मैक्सिको से लाए गए लेंटाना ने भारत की जैव विविधता के लिए गंभीर चुनौती पैदा की है।

अंतरराष्ट्रीय संस्था वर्ल्ड वाइल्ड फिनिशिंग ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि 2030 तक घने जंगलों का 60 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाएगा। वनों के कटान से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की कमी से कार्बन अधिशोषण ही वनस्पतियों व प्राकृतिक रूप से स्थापित जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न करेगी। मौसम के मिजाज में होने वाला परिवर्तन ऐसा ही एक खतरा है। इसके परिणामस्वरूप हमारे देश के पश्चिमी घाट के जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां तेजी से लुप्त हो रही हैं। एक और बात बड़े खतरे का अहसास कराती है कि एक दशक में विलुप्त प्रजातियों की संख्या पिछले एक हजार वर्ष के दौरान विलुप्त प्रजातियों की संख्या के बराबर है।

जलवायु में तीव्र गति से होने वाले परिवर्तन से देश की 50 प्रतिशत जैव विविधता पर संकट है। अगर तापमान से 1.5 से 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो 25 प्रतिशत प्रजातियां पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी।

जैव विविधता जलवायु और वर्षा का कारक है जिससे पृथ्वी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और भू-गर्भ का जलस्तर बना रहता है। खाघ पदार्थों का सत्तर फीसद हिस्सा मधुमक्खियों व तितलियों तथा तीस फीसद चिड़ियों के परागमन से तैयार होता है। इसलिए सृष्टि में सभी जीव-जंतुओं की अपनी महत्ता है। पृथ्वी सिर्फ छह अरब लोगों का ही घर नहीं बल्कि 28 अरब जीव-जंतुओं की भी दुनिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जैव विविधता का मानव जीवन के अस्तित्व में अहम योगदान है।

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