जान लेती जहरीली हवा


प्रदूषण के कारण साँस सम्बन्धी रोगों के बढ़ने से दिल्ली में ही प्रतिदिन करीब तेईस लोगों की जानें जा रही हैं और न जाने कितने बच्चे-बूढ़े-जवान साँस सम्बन्धी तमाम रोगों से बड़ी तादाद में जूझ रहे हैं। ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण को रोकने हेतु अगर कारगर उपाय नहीं किये गए, तो वर्ष 2050 तक हर बरस तकरीबन 66 लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में प्रदूषित हवा की वजह से हर बरस तकरीबन 33 लाख लोग अपनी जान गँवा रहे हैं। हाल ही में एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने एक महत्त्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए खुले में कूड़ा जलाने पर पूरे देश में प्रतिबन्ध लगा दिया है। इतना ही नहीं एनजीटी के आदेशों की अवहेलना करने वालों पर 25 हजार रुपए जुर्माने का भी प्रावधान किया है। गौरतलब है कि सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 का सख्ती से पालन करने का निर्देश देते हुए एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय से भी मदद माँगी है।

साथ ही एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय और राज्य सरकारों से पीवीसी और क्लोरिनेटेड प्लास्टिक पर 6 महीनों के अन्दर बैन लगाने को भी कहा है। एनजीटी ने चार हफ्तों के भीतर सभी राज्य सरकारों को ठोस कचरे के निस्तारण को लेकर बने 2016 के नियमों के मुताबिक एक्शन प्लान तैयार कर पूरे राज्य में सॉलिड वेस्ट के डिस्पोजल का खाका बनाने को कहा है। एनजीटी का यह फैसला दायर की गई उस याचिका के उत्तर के रूप में सामने आया जिसमें राज्य और केन्द्र सरकारों को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर स्थानीय इकाइयों को निर्देश देने की माँग की गई थी।

एनजीटी की यह सख्ती और पाबन्दी सराहनीय है क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाने वाले कारणों में खुले में कूड़ा जलाना एक अहम वजह है। शहरों से लेकर गाँवों-कस्बों तक, दमघोटू हवा की समस्या को और विकराल बनाने वाली यह समस्या लम्बे समय से चिन्ता का विषय बनी हुई है वैसे भी कचरे के निस्तारण का यह कोई सही तरीका नहीं है।

यह प्रशासनिक व्यवस्थाओं की उदासीनता ही कही जाएगी कि देश के सभी हिस्सों में यूँ कचरा जलाकर उसे ठिकाने लगाया जाता है। इतना ही नहीं हवा में जहर घोलने वाला यह नासमझी भरा काम बरसों से होता आ रहा है। ऐसे में यह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का यह प्रतिबन्ध उचित है। वैसे तो घर के आस-पास से निकले कचरे और सूखी पत्तियों को जलाना लम्बे समय से ही एक कानूनी अपराध है पर अब देश भर के लिये जारी इस निर्देश को गम्भीरता से लिया जाएगा इसकी उम्मीद की जा सकती है।

अफसोसजनक ही है हमारे देश में कई तरह के कड़े कानूनों के बावजूद कूड़े का करीब 40 फीसदी से ज्यादा जलाया ही जाता है। दुनिया भर के देशों में चीन और हिन्दुस्तान में यह आदत सबसे ज्यादा है। कोई हैरानी की बात नहीं ये दोनों ही देश आज भयंकर प्रदूषण की चपेट में हैं। इस सिलसिले में हुए विस्तृत शोध बताते हैं कि कूड़ा जलाने से ना केवल हवा जहरीली होती है बल्कि बीमारियाँ भी बढ़ती हैं।

जलते कूड़े से कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं जिनसे साँस से जुड़ी समस्याएँ हर उम्र के लोगों में बढ़ रही हैं। चिन्तनीय यह भी है कि हिंदुस्तान में प्लास्टिक की बोतलों, टायर और इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान समेत हर तरह का कचरा जला दिया जाता है जिसके चलते हवा की गुणवत्ता को खत्म करने वाले और भी कई तरह के टॉक्सिन इस धुएँ के जहर में शामिल होते हैं।

विशेषज्ञों का भी मानना है कि महानगर से निकले ठोस कचरे को जलाना पर्यावरण और इंसानी स्वास्थ्य के लिये बेहद घातक है। इसके कारण हवा में हानिकारक पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) की मात्रा बढ़ जाती है। हवा में मौजूद ऐसे कण साँस के जरिए इंसानों के शरीर में पहुँचकर सेहत को नुकसान पहुँचाते हैं। दरअसल, दमघोटू हवा के मामले में महानगरों के हालात भयावह हो चले हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में टॉप-20 में से 10 शहर हिन्दुस्तान के हैं। इतना ही नहीं देश को स्वच्छ बनाने के लिये कचरे का सही निस्तारण किये जाने के बारे में उचित योजना बनाई जानी जरूरी भी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आँकड़ों के मुताबिक हर साल चेन्नई शहर 1.6 मिलियन टन और कोलकाता 1.1 मिलियन टन कचरे का उत्पादन करते हैं। वहीं हैदराबाद 1.4 मिलियन टन कचरा हर साल पैदा कर रहा है।

ये आँकड़े चिन्तित करने वाले हैं। खासकर तब जब हमारे देश में आज भी कचरा निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं है। हिन्दुस्तान के सभी बड़े शहर आज कचरे के ढेर पर बैठे हैं। जो अनगिनत स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रहा है। एक अकेले उत्तर प्रदेश राज्य में ही प्रतिवर्ष 4.2 मिलियन टन कूड़े का उत्पादन होता है। वहीं पश्चिम बंगाल में हर वर्ष 4.5 टन कचरा जमा हो रहा है। अध्ययन बताते हैं कि वायु प्रदूषण से हिन्दुस्तान के केवल 36 शहरों में ही हर साल हजारों लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है।

अब यह समस्या केवल महानगरों तक ही सीमित नहीं है। कोलकाता, कानपुर और हैदराबाद जैसे शहरों में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें पिछले तीन-चार सालों में दोगुनी हो गई हैं। केवल प्रदूषण जनित रोगों से देश में प्रतिदिन 150 लोग मौत के मुँह में समा रहे हैं। प्रदूषण का स्तर खतरनाक हद तक पहुँचने को लेकर ही न्यायालय ने दिल्ली को गैस चेम्बर बताते हुए अपनी चिन्ता जाहिर की थी। कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकार की कार्य योजनाओं को भी इस समस्या से जूझने में नाकाफी भी बताया था। जहरीली हवा के चलते दिल्ली में कई बार हालात आपातकाल जैसे हो चुके हैं।

हवा में फैल रही जानलेवा जहरीली गैसों का मुख्य कारण इन कचरे के ढेरों को आग के हवाले करना ही है। गौर करने वाली बात है कि पश्चिमी देशों ने कचरे के ढेर जमा करने के बजाय उसके पुनः चक्रीकरण के मामले में काफी तरक्की की है। जबकि हमारा देश अभी बहुत पीछे है। हालांकि कचरे का उत्पादन और निस्तारण अब एक वैश्विक समस्या है। पर हिन्दुस्तान जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के लिये तो यह और बड़ी समस्या है। तकलीफदेह यह भी है कि सबसे अधिक प्रहार नागरिकों के स्वास्थ्य पर कर रही है।

प्रदूषण के कारण साँस सम्बन्धी रोगों के बढ़ने से दिल्ली में ही प्रतिदिन करीब तेईस लोगों की जानें जा रही हैं और न जाने कितने बच्चे-बूढ़े-जवान साँस सम्बन्धी तमाम रोगों से बड़ी तादाद में जूझ रहे हैं। ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण को रोकने हेतु अगर कारगर उपाय नहीं किये गए, तो वर्ष 2050 तक हर बरस तकरीबन 66 लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में प्रदूषित हवा की वजह से हर बरस तकरीबन 33 लाख लोग अपनी जान गँवा रहे हैं। अगर प्रदूषण के बढ़ते स्तर को रोकने के लिये कोई सक्षम कार्रवाई नहीं की गई, तो वर्ष 2050 तक, हर बरस मरने वालों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।

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