जब लोग ही इस पवित्र जल को नहीं बचा पा रहे हैं

रुद्रप्रयाग की चिट्ठी

 

इस परियोजना में 70 प्रतिशत काम स्थानीय व्यक्तियों को दिया जायेगा लेकिन महज 4 व्यक्तियों को ही रोजगार मुहैया किया गया है। बाकी लोग बाहर से लाये गये हैं, जबकि स्थानीय ग्रामीण बेरोजगार बैठे तमाशबीन बने हैं। बचपन से देखे पेड़-पौधों पर आरियाँ चलती या बुलडोजर को चढ़ते देख लोगों की आँखें भर आती हैं। पर वे खुल कर विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं।

गुप्तकाशी से 7 किमी. दूर जाखधार में प्रति वर्ष वैशाख में लगने वाला ‘बिखोत मेला’ नयी सोच के लोगों के लिये शोध का विषय है। यहाँ तेरह गाँवों का देवता जाख, भक्त लोगों की वर्षा या धूप की फरियाद अवश्य पूरी करता है। जाख, यक्ष का दूसरा रूप है। वनवास में रह रहे पांडव जब एक पोखर में प्यास बुझाने पहुँचे तो पोखर के रखवाले यक्ष के जवाब न देने के कारण मर गये। अन्ततः युधिष्ठिर ने सभी प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों के प्राण बचाये। किंवदन्ती है कि वह जलाशय यही है। अब उस जलाशय में पेड़ों के टुकड़े काटकर धधकती अग्नि में जाख देवता लाल-लाल अंगारों पर नाचता है। माना जाता है कि उस पल देवता को कोयलों की जगह पानी ही नजर आता है। आश्चर्य वाली बात यह है कि नर देवता लगभग 3 मिनट तक इस अग्निकुण्ड में नाचता है, परन्तु उसके नंगे पैरों पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। लोग आँखें फाड़कर इस दृश्य को देखते हैं। इस दिन हजारों की संख्या में स्थानीय लोगों के साथ देश-विदेश के पर्यटक भी उपस्थित रहते हैं। परदेशी बेटियाँ अपनी ‘खुद’ मिटाने के लिये अपने मायके के लोगों के साथ कुछ क्षण बिता कर प्रसन्न होने की कोशिश करती हैं। अल्हड़ कुँवारी लड़कियाँ चूड़ियों की दुकानों से रंग-बिरंगी चूड़ियाँ खरीदती हैं। विवाहितायें इन चूड़ियों को भगवान जाख का प्रसाद समझ लम्बे समय तक सुहागिन बनने की चाह के साथ पहनती हैं। अग्निकुण्ड की राख लोग अपने घर ले जाते हैं। मान्यता है कि यह भभूत हर मर्ज की दवा है। यह रहस्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिये खोज का विषय है।

एक ओर बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा पानी को रोककर जल विद्युत परियोजनायें बनाने से पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। दूसरी ओर इस पानी में कई जगह से मल-मूत्र बहाये जाने से हिमालय से निकले जल की पवित्रता समाप्त हो रही है। पूजा-पाठ, हवन आदि में ‘गंगाजल’ का कितना महत्व है, यह उन काँवड़ियों को पता है जो नंगे पाँव कई-कई दिन उपवास रखकर गंगाजल ले जाकर अपने आप को खुशनसीब समझते हैं। यदि उन श्रद्धालुओं को पता लगे कि जो जल वे लेकर आ रहे हैं, वह कतई शुद्ध नहीं है, तो उनकी आस्था का क्या होगा? गौरीकुण्ड में मन्दाकिनी नदी भी अब लगातार गंदगी को समेटती हुई बहती है। सीजन के दौरान घोड़े/खच्चरों के मालिक तथा अन्य कई लोग इस पवित्र जल में मल-मूत्र त्यागकर नदी को अपवित्र करते हैं। कई लॉजों या मकानों के शौच का पिट भी नदी में जाकर खुलता है। केदारनाथ आये भक्तों को इस बात पर सहज विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। परन्तु हाथ कंगन को आरसी क्या। वह दिन भी आ सकता है, जब श्रद्धालु पानी ले जाने की बात तो दूर, यहाँ आना भी नहीं चाहेंगे। जिला प्रशासन यात्रा बैठक के दौरान ऐसी समस्याओं से निजात दिलाने की बात तो करता है, परन्तु हकीकत में एक-दो समस्याओं पर ही कुछ काम होता है। बाकी अगले वर्ष के लिये टाल दिया जाता है। प्रशासन को चाहिये कि ऐसे स्थानों पर लोहे की जाली लगाकर इस समस्या को दूर करने की कोशिश करे। असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करना भी जरूरी है।

रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग केदारनाथ धाम को जोड़ने का इकलौता मार्ग है। कई सालों से जर्जर यह मार्ग अनेक बड़ी दुर्घटनाओं का कारण रहा है। कई दुर्घटनायें तो खतरनाक मोड़ों तथा बड़े-बड़े गड्ढों के कारण ही हुई हैं। कई बार लोगों द्वारा शासन-प्रशासन को ज्ञापन देकर चेताया गया है। मगर किसी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है। यह बड़ी विडम्बना है कि सुप्रसिद्ध केदारनाथ धाम, कालीमठ, रुद्र महादेव, कालीशिला विश्वनाथ मंदिर, नारायणकोटी मंदिर समूह तथा कई पौराणिक प्रसिद्ध धार्मिक मंदिरों को जोड़ने वाला यह मार्ग आज भी सरकार के मार्ग सुधारीकरण करवाने के कई कोरे वादों की पोल खोल रही है। रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड तक के राष्ट्रीय राजमार्ग में बड़े-बड़े गड्ढे तथा संकीर्ण मार्ग के कारण यह यात्रा दुःखदायी प्रतीत होती है। ऊपर से सीमा सड़क संगठन द्वारा सड़क चौड़ीकरण के कारण घंटों लगा जाम, ऊबड़-खाबड़ मार्ग तथा उड़ती धूल इस यात्रा को अधिक उबाऊ बना रही है। 7 मई को केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले गौरीकुण्ड से तिलवाड़ा तक का 35 किमी. का डामरीकरण कार्य ताबड़तोड़ ढंग से ठेकेदार से करवाना एक तरह का खिलवाड़ है। डामरीकरण कम, तारकोल द्वारा सड़क को महज काला दिखाने की खानापूर्ति हो रही है। सोनप्रयाग से नीचे कई स्थानों पर डामर उखड़ता जा रहा है। लोगों का कहना है कि ठेकेदार द्वारा मिक्सचर उचित अनुपात में नहीं मिलाया गया है। ऊपर से हर दिन रोड-रोलर खराब हो जाता है।

प्रदूषण की भेंट चढ़ती मंदाकिनी नदीप्रदूषण की भेंट चढ़ती मंदाकिनी नदीमिक्सचर प्लान्ट से 130 डिग्री सेंटीग्रेड पर उठाया जाता है। मिक्सिंग प्लांट से सोनप्रयाग या गौरीकुण्ड 45 किमी. दूर पड़ता है। ऐसे में मिक्सचर को वहाँ पहुँचते डेढ़ से दो घण्टा लग जाता है, जिससे मिक्सचर काफी ठण्डा हो जाता है। इंजीनियरों का मानना है कि मिक्सचर को कम से कम 60 डिग्री पर सड़क पर डालकर रोलर द्वारा समतल किया जाना चाहिये। लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों में मिक्सचर ले जाते-जाते 20 डिग्री तक पहुँच जाता है। ऐसे में सड़क का सही डामरीकरण करना असंभव है। उत्तराखण्ड में बिजली बनाने के लिये बाहर से आयी कम्पनियाँ अगर मामूली छेड़छाड़ तक ही सीमित होती तो जनता सह लेती। मगर जल, जमीन, जंगल से जुड़े कई ऐसे मसले हैं, जिनसे क्षेत्रीय ग्रामीणों का खून उबाल मार रहा है। गुप्तकाशी से जुड़े नारायणकोटी और फाटा व्यूंग के जंगलों में ऐसा ही हो रहा है। लैको नामक एक कम्पनी हमारी धरती, जल और अविचल पहाड़ों की ‘ऐसी की तैसी’ करने में जुटी हुई है।

सीतापुर से नारायणकोटी ड्रिफर तक भिन्न-भिन्न पहुँच मार्ग के निर्माण हेतु 4.821 हे. वन भूमि लैको हाइड्रो इनर्जी प्रा. लि. को स्वीकृत हुई है। वन व पर्यावरण मंत्रालय, (भारत सरकार) द्वारा इन्हें ‘फाटा ब्यूंग’ जल विद्युत परियोजना हेतु 1780 पेड़ों का कटान स्वीकृत था। इनमें नारायणकोटी से ब्यूंग गाड़ तक 3 किमी. सड़क के निर्माण हेतु 470 पेड़ों का कटान भी शामिल था। परन्तु लैको कम्पनी द्वारा बड़ी बेरहमी से 1500 से ज्यादा पेड़ काटे गये। इनमें कई बहुमूल्य जड़ी-बूटियाँ भी शामिल हैं। सड़क भी प्राप्त स्वीकृति से ज्यादा काटी गयी है। स्थानीय ग्रामीणों के विरोध को लैको के प्रोजेक्ट मैनेजर द्वारा यह कहकर शान्त करवा दिया गया कि इस परियोजना में 70 प्रतिशत काम स्थानीय व्यक्तियों को दिया जायेगा लेकिन महज 4 व्यक्तियों को ही रोजगार मुहैया किया गया है। बाकी लोग बाहर से लाये गये हैं, जबकि स्थानीय ग्रामीण बेरोजगार बैठे तमाशबीन बने हैं। बचपन से देखे पेड़-पौधों पर आरियाँ चलती या बुलडोजर को चढ़ते देख लोगों की आँखें भर आती हैं। पर वे खुल कर विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं।
 

 

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